Friday 27 February 2015

HINDI VYAKARAN - VAKYA (हिन्दी व्याकरण - वाक्य)


वाक्य 
शब्दों का ऐसा सार्थक और व्यवस्थित समूह जो किसी भाव या विचार को पूर्णत: प्रकट करता हो, वाक्य कहलाता है। 

 जैसे  ==>                  गौरव पत्र लिखता है।

शब्दों का यह समूह अपेक्षित अर्थ प्रदान कर रहा है , अत: यह वाक्य है।


कर्ता और क्रिया पक्ष के अनुसार वाक्य के  दो अंग हैं ==>
(क) - उद्देश्य ।
(ख) - विधेय ।


(क)- उद्देश्य
==> वाक्य में जिसके बारे में कुछ कहा जाता है,उसे उद्देश्य कहते हैं।
जैसे ==>

 
   १-  बिजली चम - चम चमक रही है।
==>

 



<==  २- बच्चे शतरंज़ खेल रहे हैं।







 


ऊपर के वाक्यों में ‘बिजली’ और ‘बच्चे’ उद्देश्य हैं; क्योंकि इनके विषय में कुछ कहा गया है।

(ख) - विधेय
==> उद्देश्य के बारे में जो कुछ भी कहा जाता है, वह सब कुछ विधेय कहलाता है।

जैसे ==>



    १-  बिजली चम - चम चमक रही है ==>

 


 

          २- बच्चे शतरंज़ खेल रहे हैं   ==>





 
ऊपर के वाक्यों में ‘बिजली’ और ‘बच्चे’ के बारे में क्रमशः ‘चम - चम चमक रही है।’ और 

शतरंज़ खेल रहे हैं।’ कहा गया है, 
अत: ‘चम - चम चमक रही है।’ और ‘शतरंज़ खेल रहे हैं।’ विधेय हैं।

वाक्य को दो आधारों पर बाँटा गया है ==>
(क) अर्थ के आधार पर

(ख) रचना के आधार पर

क्रमश : अगले पोस्ट में ==>

Wednesday 25 February 2015

CBSE CLASS 10TH HINDI - KRITIKA - MAIN KYON LIKHATA HUN BY AGYEYA - (मैं क्यों लिखता हूँ)

BIMLESH DUTTA DUBEY SWAPNADARSHY

मैं क्यों लिखता हूँ?
प्रश्न १ - लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष-अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है , क्यों ?
उत्तर - किसी घटना को देखकर कुछ जानना प्रत्यक्ष अनुभव है। लेखन में प्रत्यक्ष-अनुभव नहीं बल्कि अनुभूति मदद करती है। अनुभूति किसी घटना को बाहर से देखने पर नहीं अपितु स्वयं को उस घटना का भोक्ता बनाने से उत्पन्न होती है। इसके लिए आवश्यक है उस घटना को अपने अन्त:करण में समा लेना। जब अन्त:करण में घटना का दृश्य साकार होगा , तब अनुभूति जगेगी, और जब अनुभूति जगेगी तब उस घटना को अभिव्यक्त करने की व्याकुलता भी बढ़ेगी। जब तक यह व्याकुलता अन्दर न हो , तब तक कुछ भी लिख पाना संभव नहीं ।

प्रश्न २ - लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के बिस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया ?
उत्तर - लेखक हिरोशिमा की घटना कई बार किताबों और अख़बारों में पढ़ चुका था । बाद में वह हिरोशिमा भी गया और वह अस्पताल भी देखा , जहाँ रेडियम - पदार्थ के शिकार लोग वर्षों से कष्ट झेल रहे थे। इस प्रकार लेखक को अनुभव या प्रत्यक्ष अनुभव तो हुआ , पर अनुभूति नहीं हुई । हिरोशिमा की सड़क पर घूमते हुए उसकी नज़र अचानक एक ऐसे पत्थर पर टिक गई जिस पर एक मानव आकृति छपी हुई थी । दिमाग़ में अचानक एक बात कौंध गई। परमाणु  बिस्फोट के समय वह व्यक्ति उस पत्थर के पास खड़ा होगा । बिस्फोट के भभको में आदमी की छाया इस पत्थर पर तो पड़ी होगी और वह स्वयं भाप बनकर उड़ गया होगा । अचानक लेखक के अन्त:करण में परमाणु-बिस्फोट का दृश्य साकार हो गया । वह स्वयं को बिस्फोट का भोक्ता मानने लगा। इस प्रकार प्रत्यक्ष अनुभूति ने उसे बिस्फोट का भोक्ता बना दिया ।

प्रश्न ३ - ‘मैं क्यों लिखता हूँ?’ पाठ के आधार पर बताइए :--

(क) - लेखक को कौन - सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं ? 
उत्तर - लेखक यह जानने के लिए लिखता है कि आखिर वह लिखता क्यों है? लेखक लिखकर अपनी भीतरी विवशता को पहचानने की कोशिश करता है। वह लिखने के बाद ही उससे मुक्त हो पाता है । अर्थात् अपनी आंतरिक या भीतरी विवशता को पहचानने और उससे मुक्ति पाने के लिए ही लेखक लिखता है ।
कभी - कभी बाहरी दबावों जैसे संपादक , प्रकाशक आदि के कहने या आर्थिक लाभ के लिए भी उसे लिखना पड़ता है ,परन्तु ; ये सभी उसके लिखने के मूल स्रोत नहीं हैं ।

(ख) - किसी रचनाकार के प्रेरणा-स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं ।
उत्तर - प्राय: हम देखते हैं कि लोग एक - दूसरे की देखा - देखी या अनुकरण करते हैं। यदि किसी रचनाकार की भीतरी विवशता को कोई दूसरा भी अपनी विवशता बना ले अर्थात् उसको भी अनुभूति हो जाए, तो वह भी कुछ रचने के लिए व्याकुल या उत्साहित हो सकता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी रचनाकार के प्रेरणा-स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए उत्साहित कर सकते हैं ।

प्रश्न ४ - कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति / स्वयम् के अनुभव के साथ - साथ बाह्य - दबाव भी महत्वपूर्ण होता है । ये बाह्य - दबाव कौन - कौन से हो सकते हैं ?
उत्तर - इस प्रकार के बाह्य-दबाव निम्नलिखित हो सकते हैं :--
(अ)- प्रकाशकों के आग्रह का दबाव |
(ब)- संपादकों के आग्रह का दबाव |
(स)- इष्ट-मित्रों के आग्रह का दबाव |
(द)- यश प्राप्त करने का दबाव |
(इ)- अपनी पहचान बनाए रखने का दबाव |
(फ)- धन प्रप्त करने का दबाव |

प्रश्न ५ - क्या बाह्य-दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्र से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे ?
उत्तर - किसी व्यक्ति को किसी भी क्षेत्र में यदि एक बार प्रसिद्धि मिल जाती है, तो उसके ढेरों चाहनेवाले या प्रशंसक हो जाते हैं । चाहे वह कोई अभिनेता , गायक , संगीतकार या नर्तक हो अथवा नेता , नाट्यकर्मी , मूर्तिकार या कोई खिलाड़ी हो, उसे अपने प्रशंसकों , आयोजकों , आलोचकों , दर्शकों , श्रोताओं या खरीददारों की माँग या दबाव के कारण उन्हीं के अनुरूप प्रदर्शन या कार्य करना पड़ता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बाह्य-दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही नहीं ; अपितु अन्य क्षेत्र से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं ।

प्रश्न ६ - हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अन्त: व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है। यह आप कैसे कह सकते हैं ?
उत्तर - लेखक विज्ञान का विद्यार्थी था । अत: हिरोशिमा जाने से पहले ही किताबों और समाचार-पत्रों के माध्यम से वहाँ के सर्वनाश की पीड़ा को अनुभव किया था । परन्तु ; हिरोशिमा जाकर उसे प्रत्यक्ष-अनुभूति भी हुई । इस प्रकार वह हिरोशिमा पर कविता भी लिखने में समर्थ हुआ। अत: हम कह सकते हैं कि हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अन्त: व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है ।

प्रश्न ७ - हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरूपयोग है । आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ - कहाँ और किस तरह से हो रहा है ?
उत्तर - हिरोशिमा की घटना निश्चित रूप से विज्ञान का भयानकतम दुरूपयोग है । मेरी दृष्टि में आज लगभग हर क्षेत्र में विज्ञान का धड़ल्ले से दुरुपयोग हो रहा है । आज भयानकतम मारणास्त्रों की बाढ़ आना , साइबर - क्राइम का बढ़ना , प्रदूषण का जानलेवा स्तर तक पहुँचना , जगह - जगह आतंकवादी विस्फ़ोट , भ्रूण - परीक्षण एवम् गर्भपात तथा फ़सल-वृद्धि के लिए ज़हरीले रसायनों के ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग के अलावा और न जाने कितने ही क्षेत्र हैं जहाँ विज्ञान का दुरूपयोग बेरोक-टोक हो रहा है । हर क्षेत्र में मशीनों की बहुतायत ने आदमी को पंगु, निकम्मा और अपना ग़ुलाम बनाना शुरु कर दिया है । आज मानव ही नहीं पूरी दुनिया के अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है । अत: आवश्यक है कि विज्ञान के दुरुपयोग पर अंकुश लगाया जाए ।

प्रश्न ८ - एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान के दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर - विज्ञान के दुरुपयोग ने मानव ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के अस्तित्व को ख़तरे में डाल दिया है । एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से मैं प्रयास करूँगा कि मुझसे या मेरे लिए विज्ञान का दुरुपयोग न हो । मैं उन समस्त क्रिया - कलापों से स्वयम् को दूर ही रखूँगा , जिनमें विज्ञान का दुरुपयोग किया जाता है । इसके अलावा जिन लोगों तक मेरी पहुँच  है, उन्हें भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करूँगा । मैं विज्ञान के दुरुपयोग को रोकनेवाली संस्थाओं का समर्थन करूँगा । प्रकृति की सुरक्षा तथा संरक्षा में संलग्न संस्थाओं का सदस्य बनकर मानव एवम् प्रकृति में संतुलन कायम करने का निरन्तर प्रयास करूँगा ।

॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

CBSE CLASS - X - HINDI - KRITIKA - EHI THAIYAN JHULANI HERANI HO RAMA - BY SHIVA PRASAD MISHRA (एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा)

BIMLESH DUTTA DUBEY `SWAPNADARSHI'

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा

प्रश्न १  हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जानेवाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है ?
उत्तर - आज़ादी की लड़ाई से न तो देश का कोई कोना अछूता रहा और न कोई तबका । प्रस्तुत पाठ की दुलारी जो नाच-गाकर किसी तरह अपना गुज़ारा कर रही थी , वह समाज के उपेक्षित वर्ग से थी । जब विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाने लगी , तब दुलारी ने मेनचेस्टर और लंकाशायर में  बनी कोरी धोतियों का बंडल  देश के दीवानों के सुपुर्द कर दिया । कजरी गायक टुन्नू भी उसी तबके का था, जो देश के दीवानों की टोली में शामिल होकर शहीद हो गया। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं है।

प्रश्न २ - कठोर हृदयी समझे जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर विचलित क्यों हो उठी ?
उत्तर - टुन्नू और दुलारी का जब से सामना हुआ , तभी से दोनों एक - दूसरे पर आसक्त थे । टुन्नू का प्रेम प्रत्यक्ष था, जबकि कठोर हृदयी दुलारी मन ही मन प्रेम करती थी। अधिक उम्र की होने के कारण वह टुन्नू की ज़िन्दगी में नहीं आना चाहती थी । जब उसे टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिला , तब उसका हृदय हाहाकार उठा। उस कठोर हृदयी की आँखों से गंगा - यमुना बहने लगी ।

प्रश्न ३ - कजली - दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा ? कुछ और परंपरागत लोक - आयोजनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर - हमारा देश विविधताओं से भरा है ।यहाँ हर प्रदेश की अपनी-अपनी विशेषता और पर्व - त्योहार हैं । भारतीय संस्कृति लोक - संस्कृतियों का संगम है। इन्हीं लोक - संस्कृतियों में से एक है -- कजरी  दंगल। यह सावन - भादों के महीने में आयोजित की जाती है । इसमें दो गायकों के बीच प्रतियोगिता होती है। धान की रोपाई के बाद किसानों को उसके तैयार होने का इन्तज़ार होता है। इस अवकाश के समय वे ऐसे आयोजन से मनोरंजन करते हैं। आल्हा , बैसाखी , बिहू , ओणम और चैती आदि इसी प्रकार के लोक - आयोजन हैं, जो बहुत प्रचलित हैं।

प्रश्न ४ - ‘दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक - सांस्कृतिक दायरे से बाहर है। फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर - दुलारी एक सरस कजरी गायिका है , जो अपनी गायन - कला के लिए प्रसिद्ध है । गायिका होने के साथ वह एक अच्छी नृत्यांगना भी है। दुलारी बात - बात में पद्य बोला करती थी, इससे पता चलता है कि वह कवि - हृदय भी थी। महिला होने पर भी वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से दबती नहीं थी। होली जलाने के लिए विदेशी धोतियों का बंडल फेंकना यह साबित करता है कि वह  नीडर  , साहसी , त्यागी , देशभक्त और अंग्रेजी शासन के विरूद्ध थी। परन्तु ; नाचने-गाने वाली होने के कारण उसे अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता। यद्यपि वह विशिष्ट कहे जाने वाले समाज के दायरे से बाहर है तथापि  अपने बोल - व्यवहार , शील - आचरण , सच्चे प्रेम तथा देशभक्ति आदि कई चारित्रिक विशेषताओं के कारण वह विशिष्टों से भी विशिष्ट अर्थात् अति विशिष्ट है ।

प्रश्न ५ - दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ ?
उत्तर - खोजवाँ और बजरडीहा नामक दो गाँवों के बीच तीज के अवसर पर कजरी - दंगल का आयोजन हुआ था । दंगल में खोजवाँ वालों की तरफ़ से दुलारी बुलाई गई थी , जबकि बजरडीहा वालों ने एक नवोदित कलाकार टुन्नू को उतारा था। इसी कजरी - दंगल में दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय हुआ था ।

प्रश्न ६ - दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था - “तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?” ! दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा - वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - दुलारी ने टुन्नू के जवाब में गाया था-“तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?”! जिसका भाव है- ओ सिरफ़िरे ! तूने अपनी ज़िन्दगी में कब नोट देखा है , बता । दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा - वर्ग के लिए यह संदेश छिपा है कि उन्हें दिखावा या झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। अपनी सीमा में रहते हुए सामर्थ्य के अनुसार ही सपने संजोना चाहिए। नक़ली प्रेम , फिज़ूलखर्ची चारित्रिक - पतन या भटकाव से बचना चाहिए। कल्पना-लोक में विचरण न करके उन्हें वास्तविकता के धरातल पर रहते हुए अपनी परिस्थितियों के अनुसार ही क़दम उठाने चाहिए ।

प्रश्न ७ - भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने किस प्रकार योगदान दिया ?
उत्तर - भारत के स्वाधीनता संग्राम में दुलारी और टुन्नू ने अपनी - अपनी तरह से योगदान दिया। दुलारी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के क्रम में नई धोतियों का बंडल फ़ेंका, इससे उसने अन्य लोगों को ऐसा ही करने के लिए प्रेरित भी किया। टुन्नू खादी धारण कर देश के दीवानों की टोली में शामिल हो गया। उसने अंग्रेजों का विरोध किया और इस विरोध में वह शहीद भी हो गया ।

प्रश्न ८ - दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी ? यह प्रेम दुलारी को देश - प्रेम तक कैसे पहुँचाता है ?
उत्तर - दुलारी और टुन्नू दोनों कजरी - गायक थे। टुन्नू युवा था , जबकि दुलारी प्रौढ़ा थी। दोनों एक - दूसरे की गायकी से प्रभावित थे और दोनों एक - दूसरे की कला का सम्मान भी करते थे। यह सम्मान - भाव ही कालान्तर में प्रेम में परिणित हो गया । अपने प्रेम का एहसास होते ही दुलारी ने टुन्नू को अपने यहाँ आने से मना कर दिया । दुलारी से निराश टुन्नू स्वयम् को देश के लिए समर्पित करने के निर्णय के साथ स्वतंत्रता - आंदोलन में शामिल हो गया । अपने टुन्नू को आंदोलनकारियों में देख दुलारी ने भी वही रास्ता अपनाया और विदेश में बनी  नई धोतियों के अपने बंडल को होली जलाने के लिए फ़ेंक दिया । इस प्रकार हम देखते हैं कि कला से उपजा प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक पहुँचा देता है ।

प्रश्न ९ - जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश फ़टे - पुराने थे,परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मीलों में बनी कोरी साड़ियों का फ़ेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर - देश के दीवानों द्वारा फैलाई चादर पर जो विदेशी वस्त्र फेंके जा रहे थे , वे अधिकांश फ़टे - पुराने थे। किन्तु ; दुलारी ने नई धोतियों का बंडल फ़ेंका था । इससे पता चलता है कि अंग्रेजों के प्रति उसके मन में बड़ा आक्रोश था। साथ ही यह भी कि उसने हृदय से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। इससे उसकी देश भक्त , त्याग और दृढ़ - इच्छा शक्ति का भी पता चलता है ।

प्रश्न १० - “ मन पर किसी का वश नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोरजनित प्रेम व्यक्त हुआ है  परन्तु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा में मोड़ा ? 
उत्तर - दुलारी उम्र में टुन्नू से बहुत बड़ी थी। फिर भी टुन्नू का मन उसके प्रति आसक्त था । उसका यह प्रेम शारीरिक या रौपिक नहीं बल्कि आत्मिक था। तभी तो दुलारी ने जब उसके प्रेम के उपहार को उपेक्षा से फ़ेंक दिया तो उसकी आँखों से आँसू और मुँह से “ मन पर किसी का वश नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” किशोरजनित प्रेम संवाद निकल पड़ा। उसका प्रेम नि:स्वार्थ था। अत: उसके विवेक ने उसके प्रेम को देश - प्रेम की ओर मोड़ दिया। ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि देश-प्रेम नि:स्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा है ।

प्रश्न ११ - “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! का प्रतीकार्थ समझाइए ।
उत्तर - ‘नाक सदा से मान, प्रतिष्ठा और इज्ज़त का प्रतीक रही है। शायद इसी कारण सबको प्रिय रही है ।‘झुलनी’ , नथिया अथवा लौंग उसी नाक की शोभा बढ़ाने वाले गहने हैं। अत: ये गहने भी अति प्रिय हैं। भारतीय समाज में ये सुहाग की निशानी माने जाते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दुलारी के ‘नाक का गहना टुन्नू था ।
पुलिस ने दुलारी को ज़बरदस्ती उसी स्थान पर नाचने - गाने के लिए बुलाया, जहाँ टुन्नू की हत्या की गई थी । तब दुलारी ने  “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! कासो मैं पूछूँ?” जैसा लोक-संगीत गाया। जिसका अर्थ है -यही वह स्थान है, जहाँ मेरी ‘झुलनी’ (टुन्नू के अर्थ में) खो गई है, मैं किससे पूछूँ, कहाँ ढूँढ़ूँ ? इस गीत में उसके मन की पीड़ा , आक्रोश एवम् व्यथा -  कथा  प्रकट हुई है । 

॥ इति - शुभम् ॥

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

HINDI - SAAR LEKHAN (SANKSHEPAN) CBSE CLASS X HINDI VYAKARAN



मूल अवतरण - ५ 
भारतवर्ष सदा कानून को  धर्म के रूप में देखता रहा है । आज एकाएक कानून और धर्म में अन्तर पड़ गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता , पर कानून को दिया जा सकता है।यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरू हैं वे भी कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के उपरले वर्ग में चाहे जो भी रहा हो , भीतर - भीतर भरतवर्ष अब भी अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है।   (मूल शब्द संख्या - ७५ ) 


शीर्षक - धर्म और कानून
संक्षेपण - आजकल भारत में धर्म और कानून को अलग - अलग माननेवाले एवम् कानून को धोखा देने को ज़ुर्म न माननेवाले लोगों की कमी नहीं है। फिर भी आम भारतीय धर्म को कानून से बड़ी चीज़ मानते हैं। ( संक्षेपित शब्द - २७)

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॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Tuesday 24 February 2015

CBSE CLASS 10TH HINDI - KRITIKA - SANA SANA HATH DODI BY MADHU KANKARIYA (साना साना हाथ जोड़ि - मधु कांकरिया)

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

साना साना हाथ जोड़ि...

प्रश्न १-झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर - लेखिका मधु कांकरिया हिमालय की यात्रा पर थी।पहाड़ी ढलानों पर टिमटिमाते सितारों के छितराए गुच्छे रोशनियाँ विखेर रहे थे। झिलमिलाते सितारों की रोशनी में गंतोक शहर बहुत ही मनोहर लग रहा था । यह मनोहारी दृश्य लेखिका में सम्मोहन जगा रहा था ।

प्रश्न २-गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर - पहाड़ी लोग बहुत ही मेहनती होते हैं । उन्हें जीवन जीने के साधनों को जुटाने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है । गंतोक पहाड़ों पर बसा शहर है । इसे वहाँ बसाने में बहुत मेहनत करनी पड़ी होगी । शायद यही सोचकर गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर कहा गया है ।

प्रश्न ३- कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहरना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर - श्वेत रंग अमन , शान्ति और अहिंसा का प्रतीक है । जब किसी बौद्धिष्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शान्ति के लिए शहर से दूर एकान्त में १०८ श्वेत पताकाएँ फ़हरा दी जाती हैं । जिन्हें कभी उतारा नहीं जाता , वे स्वयं नष्ट हो जाती हैं,जबकि किसी शुभारम्भ पर रंगीन पताकाएँ फ़हराई जाती हैं ।

प्रश्न ४- जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति,वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं,लिखिए।
उत्तर - हिमालय की गोद में बसा सिक्किम प्राकृतिक विविधताओं से भरा पड़ा है। जितेन नार्गे ने लेखिका को बताया कि सिक्किम की भूमि असमतल है । कहीं बर्फ़ से ढँके ऊँचे  शिखर हैं तो कहीं घाटियाँ तो कहीं फूलों से अटी पड़ी वादियाँ । रास्ते पहाड़ी होने के कारण सँकरे और  घुमावदार हैं, जो खतरनाक होते हैं । हाल के दिनों में पर्यटन के साथ प्रदूषण बढ़ने के कारण बर्फ़बारी में कमी आई है। यहाँ के लोगों का जीवन बड़ा कठिन है । प्राय: हर छोटी-बड़ी सुविधा प्राप्त करने के लिए उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ता है । औरतों और बच्चों को भी खेतों में काम करना पड़ता है । यहाँ बॉर्डर है इसलिए सेना के जवान सीमा की सुरक्षा में मुस्तैद देखे जा सकते हैं ।

प्रश्न ५ - लोंग स्टॉक मे घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर - हमारा देश भारत धर्म की धूरी पर टिका है । पूरे देश में धर्म , आस्था , विश्वास , भाग्य , ग्रह और अंध - विश्वास फैला हुआ है । ‘कवी - लोंग - स्टाक’ में जीतेन नार्गे ने जब एक घूमते हुए चक्र की ओर इशारा करके बताया कि यह धर्म  चक्र है , इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं , तब लेखिका को लगा कि सारे भारत की आत्मा एक है क्योंकि ऐसी धारणाएँ पूरे देश में  देखने - सुनने को मिलती हैं ।

प्रश्न ६ - जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होने चाहिए ?
उत्तर - एक कुशल गाइड को मधुभाषी , कर्णप्रिय आवाज़ से सम्पन्न , अच्छा वक्ता , हँसमुख और व्यवहार - कुशल होना चाहिए । अंग्रेज़ी , हिन्दी आदि जैसी मुख्य भाषाओं के अलावा उसे क्षेत्रीय  भाषाएँ भी जानना चाहिए । अपने क्षेत्र के दर्शनीय - स्थलों , वहाँ की सभ्यता , संस्कृति और इतिहास की जानकारी अवश्य होनी चाहिए । गाइड को फोटोग्राफ़ी के साथ - साथ गाड़ी चलाना भी आना चाहिए । वेश - भूषा  में आकर्षण के साथ ही होटलों , दुकानों और क्षेत्र के डॉक्टर आदि की जानकारी भी उसे अच्छा गाइड बनाती है । 

प्रश्न ७ - इस यात्रा - वृत्तान्त में लेखिका ने हिमालय के जिन - जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर - हिमालय के सौन्दर्य ने लेखिका को हर क़दम पर चकित , विस्मित और आत्म-विभोर कर दिया। हिमालय के चमचमाते हिम-शिखर , हहराती नदी , घहराते जल-प्रपातों ने लेखिका को किसी कल्पना - लोक का भान कराया । हिमालय की विशालता  , हरियाली , घाटियों और वादियों के सौन्दर्य ने लेखिका को झूमने पर विवश कर दिया । ‘सेवेन-सिस्टर्स-वाटरफ़ॉल’ ने जहाँ उसे अन्दर तक भींगोया , वहीं ‘कटाओ’ के सौन्दर्य ने उसे चीखने पर मज़बूर कर दिया । लेखिका नीचे तैरती घटाओं , फूलों से शोभित वादियों तथा पर्वत-शृंखलाओं और घाटियों में बिखरे सौन्दर्य को अपने छोटे - से दामन में समेट लेना चाहती थी , परन्तु भला ये संभव कहाँ ! लेखिका हिमालय की विराटता के सम्मुख नतमस्तक थी ।

प्रश्न८- प्रकृति के उस अनन्त और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर - प्रकृति के उस अनन्त और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका अभिभूत हो गईं । हिमालय के समक्ष उन्हें अपना अस्तित्व एक तिनके के समान लगने लगा। वे अत्यन्त रोमाँचित होने लगीं। उनका तन शान्त , मन विभोर एवम् कंठ गदगद होने लगा । यूँ प्रतीत होने लगा जैसे समस्त तामसिकताएँ अकस्मात् स्वाहा हो गई हों। वे समस्त सौन्दर्य को अपने छोटे-से दामन में समेट लेना चाहती थीं। पर; भला अनन्त को भी कोई समेट सकता है। फिर भी उनकी आत्मा तृप्त थी और वे स्वयम् मंत्रमुग्ध ।

प्रश्न ९ - प्राकृतिक सौन्दर्य के अलौकिक आनन्द में डूबी लेखिका को कौन - कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर - लेखिका का मन हिमालय के सौन्दर्य में डूबा था। गाड़ी हिचकोले खाती आगे बढ़ रही थी। सौन्दर्य से भरपूर उस वादी में अचानक जब उन्होंने पत्थर तोड़ती कुछ महिलाओं को देखा तो वे बेचैन हो उठीं। दूसरी बार जब शून्य से पंद्रह (१५) डिग्री तक नीचे वाले तापमान में सीमा पर बैठे फ़ौजियों के कठिन जीवन को देखा तब भी उन्हें दुख हुआ।

प्रश्न १० - सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन - किन लोगों का योगदान होता है? उल्लेख करें।
उत्तर - सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में अनेक लोगों का योगदान होता है। जैसे- गाइड, वाहन-चालक ,होटल वाले,आवश्यक सामानों की दुकानवाले दर्शनीय-स्थलों की देख-रेख करने वाले,फोटोग्राफ़र और पर्यटन एजेंसियों का विशेष योगदान होता है।

प्रश्न ११- "कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।" इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर - किसान, मजदूर अथवा विभिन्न कल-कारखानों में काम करनेवाले श्रमिक अथवा किसी भी निर्माण-कार्य में संलग्न लोग ही आम-जनता कहलाते हैं। देश की प्रगति में इस आम-जनता का बहुत बड़ा योगदान है। देश के विकास का पहिया इन्हीं की कर्मठता से आगे बढ़ता है, क्योंकि ये बहुत कम लेकर भी समाज को बहुत अधिक लौटाते हैं। पर कितने अफ़सोस की बात है कि जो आम जनता देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उसे ही उपेक्षित समझा जाता है।

प्रश्न १२ - आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर - प्रकृति के दोहन की परंपरा कोई नई नहीं है। परन्तु चिंता का विषय यह है कि आज की पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग कर रही है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता चला जा रहा है। इस पीढ़ी ने स्वयम् को प्रकृति से सर्वथा अलग - थलग कर लिया है। हमें चाहिए कि लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करें । पर्यावरण - संरक्षण का अभियान चलाया जाना चाहिए। नई पीढ़ी प्रकृति से जुड़े , ऐसे कार्यक्रम करने चाहिए । कानून को भी सख्त किया जाना चाहिए। सरकारी , ग़ैर-सरकारी तथा सामाजिक संगठनों एवम् फ़िल्मोद्योग को भी एक मंच पर आकर प्रकृति की सुरक्षा और संरक्षा के लिए संकल्प लेना चाहिए।


प्रश्न १३ - प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का ज़िक्र किया गया है । प्रदूषण के और कौन - कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं? लिखें ।
उत्तर - प्रदूषण के कारण स्नोफॉल के अलावा और भी बहुत से दुष्परिणाम सामने आए हैं । प्रदूषण के कारण विश्व का तापमान बढ़ रहा है। ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। समुद्र का जल-स्तर बढ़ता जा रहा है। मौसम-चक्र प्रभावित हो रहा है। सूखा , बाढ़ , भूकम्प ,  भू-स्खलन और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ प्राय: सुनने में आ रही हैं। विभिन्न प्रकार के रोगों से लोग पीड़ित हो रहे हैं। मनुष्य के साथ-साथ सभी प्रकार के जीवधारी ही नहीं बल्कि पूरी प्रकृति ही विनाश के क़गार  पर पहुँचने वाली है 


प्रश्न १४ - ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए ।
उत्तर - ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्‍ज़रलैण्ड कहा जाता है। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। आम लोगों की पहुँच से दूर होने तथा पर्यटन-स्थल घोषित न होने कारण वहाँ न तो अधिक पर्यटक ही जाते हैं और न दुकानें ही हैं। यदि वहाँ दुकानें होतीं तो लोग भी रहते और धीरे-धीरे प्रदूषण भी बढ़ता जाता। परिणामत: वहाँ की नैसर्गिक सुन्दरता लुप्त होने लगती। अत: कह सकते हैं कि ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।


प्रश्न १५ - प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर - ‘कटाओ’ के हिम-शिखर पूरे एशिया के जल-स्तंभ हैं। बड़े अनूठे ढंग से प्रकृति सर्दियों में बर्फ़ के रूप में जल-संग्रह करती है। गर्मी के दिनों में जब पानी के लिए हाहाकार मचती है, तब ये हिम-स्तंभ पिघलकर जलधारा बन जाते हैं और पिपासितों की प्यास बुझाते हैं। सचमुच ; बड़ी अद्भुत है प्रकृति के जल-संचय की व्यवस्था। 


प्रश्न १६ - देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए।
उत्तर - देश की सीमा पर बैठे फ़ौजियों का जीवन बड़ा ही कठिन है। वे निरन्तर ख़तरों से घिरे रहते हैं। वे जहाँ रहते हैं , उनमें से कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहाँ का वातावरण जीवन जीने या रहने के सर्वथा प्रतिकूल हैं। प्रस्तुत पाठ में भीषण सर्दी और शून्य से पन्द्रह डिग्री नीचे तक के तापमान में रहने वाले सैनिकों के कठिन जीवन की चर्चा हुई है। इस तापमान में पेट्रोल तक जम जाता है, फिर भी वे सदा सतर्क और चौकस रहकर हमारी रक्षा में तत्पर रहते हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए। हमारा कर्त्तव्य है कि हम उनका तथा उनके परिवार का ध्यान रखें।


 ॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday 21 February 2015

CBSE NCERT GRAMMARE - SAAR LEKHAN (PRECIS WRITING)


मूल अवतरण - ४
यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलानेवाले निरीह और भोले - भाले श्रमजीवी पीस रहे हैं और फ़रेब का रोज़गार करनेवाले फल - फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।ऐसी स्थिति में जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था हिलने लगी है। क्या यही भारतवर्ष है जिसका सपना तिलक और गाँधी ने देखा था ? विवेकानन्द और रामतीर्थ की आध्यात्मिक ऊँचाईवाला भारतवर्ष कहाँ है?       (मूल शब्द संख्या - ६६ )


शीर्षक - पहले के तुल्य : सिसकते जीवन मूल्य
संक्षेपण - आज ईमानदार और परिश्रमी भूखो मर रहे हैं और फ़रेबी मज़े में हैं। तिलक ,गाँधी , विवेकानन्द और रामतीर्थ की कल्पना वाला भारत नहीं है। ( संक्षेपित शब्द - २२)


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॥ इति - शुभम् ॥

 सार लेखन या संक्षेपण के उदाहरण क्रमश: आगे ...

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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Friday 20 February 2015

HINDI VYAKARAN-SAAR LEKHAN (सार-लेखन) - HINDI GRAMMAR - PRECIS WRITING


मूल अवतरण - ३ 
 राष्ट्रभाषा एक चीज़ है और राजभाषा दूसरी चीज़। यह आवश्यक नहीं कि राजभाषा ही राष्ट्रभाषा हो, हो भी सकती है ,पर सदा ऐसा नही होता।कभी - कभी राजभाषा राष्ट्रभाषा नहीं बन पाती है। अंग्रेज़ी हमारी राजभाषा थी।आज भी पूर्ण रूप से उसका बहिष्कार नहीं हो पाया है,पर वह हमारी राष्ट्रभाषा नहीं थी।(मूल शब्द संख्या-५४)
  
शीर्षक - राजभाषा और राष्ट्रभाषा 
संक्षेपण - राजभाषा और राष्ट्रभाषा मूलत: अलग - अलग चीज़ें हैं। राजभाषा मात्र राजकीय काम - काज की  जबकि राष्ट्रभाषा पूरे राष्ट्र के बोलचाल की भाषा होती है। ( संक्षेपित शब्द - १९) 


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॥ इति - शुभम् ॥

 सार लेखन या संक्षेपण के उदाहरण क्रमश: आगे ...

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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Thursday 19 February 2015

CBSE CLASS X HINDI GRAMMAR - SAR LEKHAN (सार-लेखन)



मूल अवतरण - २

माना कि शरीर ही सब कुछ है, पर यह भी मानिए कि शरीर ही सब कुछ नहीं है।पेट की आग सब पर हावी है ज़रूर,पर दिल की आग भी आग ही है।वह आग जो एक छोटी - सी पूँछ से उचक कर लंका - दहन को उबल पड़ती है और इस अग्निकाण्ड से बचाने वाला बड़भागी कोई विभीषण ही होता है। दिमाग़ के रावण और पेट के कुंभकरण के आलीशान महल आगे दिल के विभीषण की झोपड़ी दुबकी - सकुची पड़ी थी , पर दुनिया ने देखा कि जब सोने की लंका जलकर राख़ हो चुकी,तब भी विभीषण की झोपड़ी ज्यों की त्यों बनी रही।
(मूल शब्द संख्या - ८१ ) 

शीर्षक - शरीर बनाम दिल
संक्षेपण - समस्त कार्यो का आधार शरीर बहुत महत्त्वपूर्ण है पर दिल को अनदेखा नहीं करना चाहिए। दिल की आग पेट से भी भयानक होती है।अत: दिल को भी उचित सम्मान मिलना चाहिए।
( संक्षेपित शब्द - २९)


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॥ इति - शुभम् ॥

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विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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CBSE CLASS 10TH HINDI - SAR LEKHAN (सार-लेखन)


मूल अवतरण - १

बहुत लोग समझा करते हैं कि शिक्षा केवल इसलिए प्राप्त करना आवश्यक हैजिससे हमें रूपये की प्राप्ति हो । आजकल इस विचार के लोगों की संख्या भारत में बहुत अधिक है। ऐसे लोग शिक्षा के वास्तविक आनन्द से सर्वथा वंचित रहते हैं।यह हम भी मानते हैं कि रूपया कमाना भी एक आवश्यक कार्य है । यह कार्य भी शिक्षा से ही होता है, किन्तु शिक्षा का अन्तिम ध्येय इसे ही बना लेना बड़ी भारी भूल है। शिक्षा प्राप्त कर धनोपार्जन अवश्य करना चाहिए, किन्तु शिक्षा के परिणामस्वरूप स्वयं आनन्द करते हुए दूसरों की सुख - समृद्धि को भी बढ़ाना चाहिए । 
(मूल शब्द संख्या - ८५ ) 

शीर्षक - शिक्षा - प्राप्ति का उद्देश्य 
संक्षेपण - बहुत से लोग शिक्षा - प्राप्ति का लक्ष्य केवल धनोपार्जन मानते हैं, पर वास्तविक बात ऐसी नहीं है। धनोपार्जन के साथ ही स्वयं आनंद-लाभ करते हुए दूसरों की सुख - समृद्धि को बढ़ाना ही शिक्षा-प्राप्ति का वास्तविक लक्ष्य है।
( संक्षेपित शब्द - २९)

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॥ इति - शुभम् ॥

 सार लेखन या संक्षेपण के अन्य उदाहरण क्रमश: आगे ...

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

CBSE CLASS X HINDI VYAKARAN - SAR LEKHAN YA SANKSHEPAN (सार लेखन या संक्षेपण)

  
सार लेखन या संक्षेपण

किसी गद्यांश के मुख्य भावों को समझकर उसे संक्षेप में लिखना ही सार लेखन या संक्षेपण कहलाता है । इसमें गद्यांश के मूल बातों या भावों को इस तरह संक्षिप्त किया जाता है कि वह मूल गद्यांश का एक तिहाई हो जाय और कोई भी मुख्य बात या भाव छूटने न पाए। सार लेखन या संक्षेपण के लिए सतत् अभ्यास की ज़रूरत होती है।अभ्यास द्वारा इसके लेखन में महारत हासिल की जा सकती है

संक्षेपण हेतु ध्यान योग्य बातें --

 
१ - मूल संदर्भ या अवतरण के शब्दों की गिनती करके लिख लेना चाहिए।


२ - मूल संदर्भ या अवतरण को २-३ बार ध्यान से पढ़कर उसके मुख्य बातों  

    को चुनकर अलग लिख लेना चाहिए। 

३ - मुख्य बातों से संबंधित सहायक बातों को भी अलग करना चाहिए।


४ - मुख्य और सहायक बातों के आधार पर सबसे पहले सार या संक्षेपण का   

    शीर्षक लिखना चाहिए ।

५ - मुख्य बातों पर आधारित ३ या ४ अति लघूत्तरीय प्रश्न बनाकर उन्हें 

    अपने हिसाब से क्रम बनाकर लिखना चाहिए।

६ - अब उन प्रश्नों के उत्तर क्रमश: लिखकर उन्हें आपस में जोड़ देना

    चाहिए। यही आपका सार लेखन या संक्षेपण कहलाएगा।

७ - जुड़े अंश के शब्दों की गिनती करनी चाहिए। इनकी संख्या मूल सन्दर्भ 

    या अवतरण का एक तिहाई अर्थात् (१०० x ३ = ३३) होना चाहिए।
    संक्षेपित अंश के नीचे शब्दों संख्या भी लिख देना चाहिए।

८ - ध्यान रहे यह कोई गणित नहीं है। इसमें एक-दो शब्द कम या ज्यादा हो

    सकते हैं। परन्तु अधिक अन्तर होने पर अपने द्वारा लिखे एक या दो 
    प्रश्नों के उत्तर को पुन: कम या ज्यादा शब्दों में लिखना चाहिए।

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॥ इति - शुभम् ॥

 सार लेखन या संक्षेपण के उदाहरण क्रमश: आगे ...

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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Monday 16 February 2015

CBSE CLASS 10TH POEM - KANYADAN (कन्यादान) RITURAJ

 
 कन्यादान


प्रश्न १ - आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई मत देना ?
उत्तर - भारतीय समाज पुरूष - प्रधान समाज है , जिसमें स्त्रियों के शोषण की पूरी व्यवस्था है। आधुनिक माँ अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह सजग है।वह जानती है इस समाज में स्त्रियों का शोषण कैसे - कैसे होता है।अत: वह अपनी बेटी को समझाती है कि ‘लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई मत देना’ अर्थात् तू स्वभाव से कोमल , सरल और भोली - भाली होते हुए भी दूसरों पर यह उजागर मत होने देना , अन्यथा लोग इसका अनुचित लाभ उठाएँगे।

प्रश्न २ - ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
        जलने के लिए नहीं’

(क)-इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात साफ़ झलकती है कि इस समाज में स्त्रियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। वे दिन-रात घर का काम - काज करती हैं, सबको रोटियाँ सेंक कर खिलाती हैं,बावज़ूद इसके विभिन्न कारणों से उन्हें ज़िन्दा जला दिया जाता है अथवा उसे स्वयम् ही आत्म-दाह करने पर बाध्य होना पड़ता है।

(ख) - माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा ?
उत्तर - माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए ज़रूरी समझा क्योंकि बेटी अभी भोली और नादान थी। उसे समाज की वास्तविकता तथा शोषण और अत्याचार के तरीकों का ज्ञान नहीं था। माँ चाहती थी कि वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों को भली प्रकार से पहचान ले , ताकि उसे अच्छे - बुरे की समझ हो जाए।

प्रश्न ३- ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
        कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभर कर आ रही है,उसे शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति में ‘धुँधले प्रकाश’ से आशय है--अस्पष्ट एवम् अपूर्ण जानकारी। जबकि ‘कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ का आशय उस थोड़े - बहुत अनुभव या ज्ञान से है जो अपने परिवार या पास - पड़ोस में रहते हुए उसने प्राप्त किया था।तात्पर्य यह कि लड़की अभी भोली - भाली थी , उसे अच्छे - बुरे का ज्ञान नहीं था। 


प्रश्न ४ - माँ को अपनी बेटी ‘अन्तिम - पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर - बेटी जन्म से विवाह के पूर्व तक सदा माँ के पास रहती है।उसी के साथ बातचीत , हँसी - मज़ाक और अपना सुख-दुख बाँटती है।इतने दिनों तक साथ रहने के कारण माँ - बेटी में अटूट लगाव हो जाता है। यही कारण है कि बेटी को विदा करते समय माँ को ऐसा लगता है जैसे उससे उसका सब कुछ छीना जा रहा हो। इसी कारण माँ को अपनी बेटी ‘अन्तिम - पूँजी’ लगती है।

प्रश्न ५ - माँ ने बेटी को क्या - क्या सीख दी ?
उत्तर - माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी :--
* अपनी सुन्दरता पर मन ही मन खुश मत होना क्योंकि ये कुछ ही दिनों की होती है।
* स्वयम् को भोली और सरल मत दिखने देना, अन्यथा लोग कमज़ोर समझकर उसाका नाज़ायज फ़ायदा उठाएँगे।
* गहनें और कपड़ों को अपनी कमज़ोरी मत बनने देना, नहीं तो लोग इसकी आड़ में अपना स्वार्थ करेंगे।
* आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है, उसे जलने का साधन मत बनने देना।


प्रश्न ६ - आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर - दान का अर्थ है-- देना । दान के रूप में किसी वस्तु को  दिया जाता है। जो वस्तु दान के रूप में दे दी जाती है, उससे दान देने वाले का कोई लेना - देना नहीं रह जाता । अर्थात् उस वस्तु से सर्वथा सम्बन्ध - विच्छेद हो जाता है। किन्तु; कन्या न तो कोई वस्तु होती है और न ही विदाई के बाद माता
- पिता का उससे सम्बन्ध - विच्छेद ही होता है। उसके साथ तो जीवन भर का अटूट सम्बन्ध होता है इसलिए कन्या का दान तो हो ही नहीं सकता। अत: हमारी दृष्टि में ‘कन्यादान’ शब्द अनुचित , अपमानजनक और निरर्थक है।


 ॥ इति - शुभम् ॥

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’     

Saturday 14 February 2015

CBSE CLASS X HINDI - SANGATKAR (संगतकार) MANGALESH DABRAL

  
संगतकार
प्रश्न १- संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करन चाह रहा है?
उत्तर - संगतकार के माध्यम से कवि मंगलेश डबराल वैसे व्यक्तियों , कर्मचारियों , कलाकारों और सहायकों की ओर संकेत करना चाह रहे हैं जो नेपथ्य या पृष्ठ्भूमि में रहकर नि:स्वार्थ भाव से किसी व्यक्ति विशेष की सफलता में हाथ बँटाते हैं। ऐसे लोगों को किसी प्रकार की प्रसिद्धि का लोभ नहीं होता।


 प्रश्न २ - संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं? 
उत्तरप्रस्तुत कविता में वर्णित संगतकार जैसे व्यक्ति समाज के लगभग हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। विशेषकर नृत्य, गायन , फ़िल्म , नाटक, धार्मिक प्रवचन , राजनैतिक प्रचार- प्रसार एवम् खेल आदि के क्षेत्र की व्यवस्था में सहज ही इनके दर्शन होते हैं । 

प्रश्न ३ - संगतकार किन-किन रूपों में गायक - गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर -  किसी भी गायक या गायिका की सफलता के पीछे उसके संगतकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे अपनी आवाज़ को गायक या गायिका की गूँज में मिलाकर उसकी आवाज़ को बल प्रदान करते हैं। उन्हें कठिन स्वरों के विस्तार में उलझने , सरगम को लाँघ कर अनहद में भटकने , तार-सप्तक में उनके स्वर को विखरने से बचाते हैं तथा स्थायी को संभाले रखकर  उसकी आवाज़ के स्तर को बनाए रखते हैं।

प्रश्न ४ - भाव स्पष्ट कीजिए --
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
 
उत्तर - प्रस्तुत काव्यांश में मंगलेश डबराल जी ने संगतकार के चरित्र की विशेषता को उकेरा है। कभी - कभी तार - सप्तक की ऊँचाई पर पहुँच कर जब मुख्य गायिका या गायक का स्वर लड़खड़ाने लगता है या आवाज़ बैठने लगती है तब पीछे से संगतकार की आवाज़ उसे सहारा देकर संभाल लेती है और उसकी आवाज़ को विखरने से बचा लेती है। मुख्य गायक का साथ देते वक़्त उसकी आवाज़ में जो हिचक या अपनी आवाज़ को ऊपर न उठाने की जो कोशिश  होती है, वह उसकी नाकामी, दब्बूपन या विफलता नहीं बल्कि उसकी भलमनसाहत और मानवता है। वह तो बस मुख्य गायिका या गायक की प्रतिष्ठा बनाए रखकर उसे सफलता दिलाना चाहता है। उसे स्वयम् की प्रसिद्धि का प्रलोभन नहीं।

प्रश्न ५ - किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह - तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

 उत्तर - किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्ति का उदाहरण लें तो हम पाएँगे कि उसकी सफलता के पीछे अनगिनत लोगों का हाथ है। उदाहरण के लिए यदि हम फ़िल्म को लें तो हम देखते हैं कि एक फ़िल्म की सफलता या विफला का सारा श्रेय नायक या नायिका को दे दिया जाता है , जबकि सब जानते हैं कि एक फ़िल्म को बनाने में न जाने कितने लोगों का सहयोग होता है। उदहरणतया- पट-कथा लेखक , निर्माता , निर्देशक , गायक गायिका , गीतकार , संगीतकार , कैमरामैन , वितरक , वेश-भूषा-निर्माता, नृत्य-निर्देशक और न जाने कितने ही लोगों के सामूहिक प्रयास से एक फ़िल्म का निर्माण होता है। फिर भी; प्रसिद्धि केवल नायक या नायिका के ही हाथ आती है।

प्रश्न ६ - कभी - कभी तार - सप्तक की ऊँचाई पर पहुँच कर मुख्य गायक का स्वर विखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे विखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - मुख्य गायक गाते - गाते जब अपने सुर को तार-सप्तक की ऊँचाइयों पर ले जाता है तो कभी - कभी उसकी आवाज़ बैठने लगती है, सुर लड़खड़ाने लगता है, तब संगतकार उसके स्वर में अपना स्वर मिलाता है और उसकी गायकी को विखरने से बचा लेता है। ऐसा करके संगतकार गायक की सफलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न ७ - सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसके सहयोगी किस तरह संभालते हैं? 

उत्तर -  सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसके सहयोगी उसका साथ देते हैं। उसे सांत्वना , शाबाशी , सहयोग आदि देकर उसके शक्ति , सामर्थ्य और शौर्य को बढ़ावा देते हैं, जिससे उसका उत्साह भंग नहीं होता। ऐसे में वह अपनी क्षमता से भी बढ़कर कार्य कर गुज़रता है। 

प्रश्न ८ - कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाए--
(क) - ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए ।
 
उत्तर - ऐसी स्थिति में मैं बौखला जाता । स्वयम् को असहाय महसूस करता। तनाव और क्रोध मुझ पर हावी हो जाता। फ़ोन आदि से अपने सहयोगी कलाकार के न पहुँचने का कारण जानता। यदि कोई समुचित कारण नहीं जान पड़ता तो उसे बहुत भला - बुरा सुनाता।

(ख) - ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर - किन्हीं अपरिहार्य कारणों से मेरा सहयोगी कलाकार नहीं पहुँच पाए तो मैं स्वयम् को असहज महसूस करूँगा। फिर भी मैं धैर्य और साहस से काम लूँगा। मैं आयोजकों से इस समस्या पर बात करूँगा। मंच पर पहुँचकर दर्शकों या श्रोताओं से क्षमा  याचना करूँगा। संभव हुआ तो किसी स्थानीय कलाकार को भी मौका दूँगा। अन्त में; सहयोगी के अभाव में भी मैं पूरे आत्म-विश्वास के साथ कार्यक्रम को प्रस्तुत करूँगा।

प्रश्न ९ - आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए।

 उत्तर -  मेरे विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्राय: होते ही रहते हैं , इसलिए मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों का महत्व पता है। सच ; उनके सहयोग के बिना किसी भी प्रकार का समारोह नहीं हो सकता। मंच - निर्माण , साज - सज्जा , वाद्य - यंत्र , मंचीय - उपकरणों की व्यवस्था, दर्शकों या श्रोताओं के बैठने एवम् मेहमानों के चाय-पानी के प्रबन्ध के अलावा प्रकाश तथा ध्वनि आदि की व्यवस्था इन्हीं सहयोगियों पर निर्भर रहती है । अत: कहा जा सकता है कि कार्यक्रम की सफलता या विफलता में मंच के पीछे काम कर रहे सहयोगियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

प्रश्न१० -किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर क्यों नही पहुँच पाते होंगे?   
उत्तर -‘संगतकार’ मुख्यत: संगति करनेवाले होते हैं। उन्हें कभी स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का मौका नहीं मिलता।, फलत: वे द्वितीय श्रेणी के कलाकार बनकर रह जाते हैं। मुख्य कलाकार की चमक - दमक में उनकी प्रतिभा दब - सी जाती है। यह स्थिति उनके लिए निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्हें मुख्य या शीर्ष कलाकार न बनने देने में उनकी निर्धनता , साधनहीनता , अवसर की कमी , प्रशंसकों का अभाव और स्वयं उनमें निहित संगतकार के धर्म का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
                                         

             
॥ इति  शुभम ॥  

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
 

CBSE CLASS 10TH HINDI - CHHAYA MAT CHHUNA (छाया मत छूना) GIRIJA KUMAR MATHUR

      छाया मत छूना


प्रश्न १ - कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर - कठिन यथार्थ का तात्पर्य है - जीवन का कठोर  सच । ‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने कहा है कि मनुष्य को भ्रम , दिखावा या किसी छलावा में न पड़कर जीवन की सचाई को कबूल करना चाहिए । जो सच है , उससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है और न ही पिंड छुड़ाया जा सकता है । हर हाल में सच का सामना करना ही पड़ता है । अत: जो सच है उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ।

प्रश्न २ - भाव स्पष्ट कीजिए --
  प्रभुता का शरण - बिम्ब केवल मृगतृष्णा है,
  हर  चंद्रिका  में छिपी  एक  रात कृष्णा है।

उत्तर - प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि यह संसार द्वन्द्वात्मक है। जीवन के बाद मरण , हार के बाद जीत एवम् दिन के बाद रात का आना नियति ने नियत कर रखा है। जैसे हर चाँदनी रात के बाद काली रात का आना तय है , ठीक उसी प्रकार एहसास भी बदला करते हैं। अत: कह सकते हैं कि बड़प्पन का एहसास भी एक भ्रम या छलावा है।

प्रश्न ३ - ‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर - ‘छाया अवास्तविक होती है। यहाँ ‘छाया’ शब्द कवि के अतीत की सुखद यादों के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है । कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है। अतीत के सुखद स्मृतियों की छाया प्राय: दुखदायी होती है। व्यक्ति अतीत के सुखद क्षणों को याद करके अपने वर्तमान को दुखी कर लेता है । अत: कवि ने कहा है--  “छाया मत छूना , मन होगा दुख दूना।”

प्रश्न ४ - कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे - कठिन यथार्थ ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई ?

उत्तर - प्रस्तुत कविता में कुछ अन्य विशेषण युक्त शब्द निम्नलिखित हैं, जिनके अर्थ में विशिष्टता समाई है-
* सुरंग-सुधियाँ-सुहावनी => इसका प्रयोग बीती हुई सुखद एवम् मधुर स्मृतियों के लिए किया गया है ।
* जीवित - क्षण => वैसे क्षण जो पुराने होकर भी वर्तमान में आँखों के समक्ष सजीव हो उठते हैं ।
* दुविधा - हत - साहस => साहस होते हुए भी किसी कशमकश में पड़कर उसका प्रकट न होना अथवा दब-सा जाना ।
* शरद - रात => ऐसी मोहक रात जो सर्दी से युक्त हो ।


प्रश्न ५ - ‘मृगतृष्ण’ किसे कहते हैं? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है? 

 उत्तर - ‘मृगतृष्णा’ का सांकेतिक अर्थ है - भ्रम या छलावा । बियावान रेगिस्तान में सूर्य की प्रचण्ड किरणें जब बालू की रेत पर पड़ती हैं , तब उनकी चमक प्यासे मृग को वहाँ पानी के होने का एहसास कराती हैं । जब मृग वहाँ पहुँचता है तब उसे पानी तो नहीं मिलता, परन्तु उतनी ही दूरी पर फिर उसे पानी होने का एहसास होता है । इस प्रकार वह पानी की खोज में भटकता हुआ प्यासे ही मर जाता है। इसी भ्रम या छलावे को मृगतृष्णा कहते हैं। प्रस्तुत कविता में ‘मृगतृष्णा’ का प्रयोग जीवन में धन - दौलत पाने तथा बड़प्पन के एहसास के लिए किया गया है ।

प्रश्न ६ -‘बीती ताहि बिसार दे , आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर - ‘बीती ताहि बिसार दे , आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है --   

‘जो न मिला भूल उसे , कर तू भविष्य वरण ।

प्रश्न ७ - कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - मनुष्य की अपूर्ण इच्छा ही उसके दुख का मूल कारण है। मनुष्य अपने जीवन में बड़ी - बड़ी आशाएँ करता है , उन आशाओं के पूरा न होने पर वह दुखी , निराश और उदास हो जाता है । यह जानते हुए भी कि हर काम अपने समय से ही होता है, फिर भी वह स्वय्म् ही अपने कार्य के होने के समय का निर्धारण करता है। जब उसके निर्धारित समयानुसार कार्य नहीं होता तो वह बहुत दुखी हो जाता है । 


प्रश्न ८ - जीवन में ‘सुरंग-सुधियाँ-सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन - कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर - जीवन सचमुच यादों से परिपूर्ण हुआ करता है। प्राय: हर दिन की अपनी एक कहानी होती है। दिन भर घटने वाली हर घटना  किसी न किसी कहानी की एक कड़ी होती है। अब उन सभी को याद रखना भला कहाँ संभव है । फिर कुछेक यादें हैं जिनकी चर्चा की जा सकती है । जैसे - नदी में नहाने जाना और तैरना , स्कूल के दिनों की मस्ती भरी बातें , खेल में जीत और हार के बाद का दृश्य , परीक्षाओं में सफलता और असफलता  के बाद की मनोदशा आदि । ये स्मृतियाँ आज भी मन को बिजली के बल्ब की तरह जलाती - बुझाती हैं ।

प्रश्न ९ - ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर - हम इस विचार से असहमत हैं । सच तो यह है कि समय बीत जाने पर मिलने वाली उपलब्धि किसी काम की नहीं होती । मन को सांत्वना देने के लिए चाहे हम अपनी पीठ थपथपा लें, पर उस उपलब्धि की कोई उपादेयता नहीं रह जाती । दूसरे ; समय बीत जाने पर मिलने वाली उपलब्धि हमें सांत्वना का पात्र बना देती है । तब सांत्वना के हर शब्द से व्यक्ति अपने को आहत या अपमानित महसूस करता है। अत: मेरे अनुसार ऐसी उपलब्धि व्यर्थ है।




॥ इति - शुभम् ॥


 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
  

Friday 13 February 2015

CBSE CLASS X HINDI - SANSKRITI (संस्कृति)

  
संस्कृति
प्रश्न १ - लेखक की समझ में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर - ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ दो ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग सबसे अधिक और मनमाने ढंग से होता है, किन्तु; समझ में सबसे कम आते हैं।इन शब्दों के साथ ‘भौतिक’ , ‘आधुनिक’ या ‘अध्यात्मिक’ जैसे विशेषण जुड़ जाने से जो थोड़ी-बहुत समझ बनी रहती है,वह भी गड-मड या स्वाहा हो जाती है।अब तक लोगों को पता नहीं कि ये एक ही शब्द हैं अथवा दो अलग-अलग। शायद इसी अस्पष्टता के कारण अब तक ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ नहीं बन पाई है।

प्रश्न २ - आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर - आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज है क्योंकि इसने मनुष्य को खाना पकाना सिखाया।अंधेरे को प्रकाशित कराया, सर्दी में भी गर्मी का अहसास कराया और मानव जीवन को अनेक भाँति से सुख पहुँचाया।आज इसी की बदौलत घर-घर में चूल्हा जलता है।आग न हो तो पूरी दुनिया संकटापन्न हो जाए।इस खोज के पीछे संभवत: पेट की आग को शान्त करने की प्रेरणा ही मुख्य रही होगी।

प्रश्न ३-वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर - ‘संस्कृत-व्यक्ति’ वे हैं जो अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर संसार को नवीन तथ्यों से अवगत कराते हैं। हमारी सभ्यता का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं संस्कृत व्यक्तियों की देन है। परन्तु; वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति वह है जिसका पेट भरा हो और तन ढँका हो अर्थात् सब कुछ उपलब्ध हो ,फिर भी वह निठल्ला न बैठकर कुछ नया खोज या आविष्कार करने में लगा हो।

प्रश्न ४ -न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से दिए गए हैं?न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवम् ज्ञान की कई बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते ,क्यों?
 
उत्तर - न्यूटन ने अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर गुरुत्वकर्षण के नवीन तथ्य से हमें अवगत कराया, इसलिए न्यूटन संस्कृत व्यक्ति थे। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवम् ज्ञान की कई बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते क्योंकि उन्होंने अपने बुद्धि और विवेक के बल पर किसी नवीन तथ्य का दर्शन या आविष्कार नहीं किया। उन्होंने तो बस.. न्यूटन के नियम की बारीकियों को समझा भर है।

प्रश्न ५ -किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सूई - धागे का आविष्कार हुआ होगा ? 

उत्तर - आदि मानव जंगलों और गुफ़ाओं में रहता था। उसे नंगे बदन सर्दी, गर्मी, बरसात और कीड़े-मकोड़ों का सामना करना पड़ता था। इन्हीं परेशानियों से बचने के लिए अर्थात् तन ढँकने के लिए ही सूई धागे का आविष्कार हुआ होगा।

प्रश्न ६ - “मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख करें जब--
(क) - संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।
ऊत्तर - “मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” फिर भी न जाने कितनी बार इसे विभाजित करने की नाकाम कोशिश की जा चुकी है। धर्म , मान्यता , पर्व , त्योहार आदि के नाम पर हिन्दू संस्कृति और मुसलमान संस्कृति को विभाजित करने की कोशिश की गई। पुनश्च ; नौकरी , आरक्षण , जनसंख्या और राज्य के नाम पर भी मानव  संस्कृति को विभाजित करने की कोशिशें हुईं।

(ख) - जब मानव संस्कृति ने एक होने का प्रमाण दिया।
ऊत्तर - मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” इस बात का प्रमाण न जाने कितनी बार हमारी आँखों के सामने आ चुका है। जब अमेरिका ने जापान के नागासाकी और हिरोशिमा शहर पर अणु बम गिराया तब पूरी दुनिया ने उसकी भर्त्स्ना की। जापान का दर्द पुरी दुनिया के चेहरे पर दिखा।सुनामी जैसी भयानक आपदा से त्रस्त मानवता जब कराह उठी तब लोग सारे भेद-भावों को  भुलाकर संकटापन्न लोगों की सहायता के लिए उठ खड़े हुए। इन बातों से पता चलता है कि मानव संस्कृति एक है, इसे विभाजित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न ७ - आशय स्पष्ट करें --
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है , हम उसे संस्कृति कहें या असंस्कृति ?
ऊत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि मानव की जो योग्यता आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है , उसे असंस्कृति कहा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि संस्कृति का संबंध तो केवल और केवल कल्याण की भावना से है।

प्रश्न ८ - लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं?
ऊत्तर - मेरे विचार से संस्कृति वह शक्ति है जिसका संबन्ध हमारी सोच से है, जबकि सभ्यता हमारी सोच का परिणाम है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि संस्कृति परिष्करण की वह शक्ति है जिसका कोई रूप  आकार नहीं होता,जबकि  हमारी आँखों के सामने दिखनेवाली तमाम वस्तुएँ सभ्यता कहलाती हैँ।



॥ इति - शुभम् ॥

   विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Thursday 12 February 2015

CBSE CLASS X HINDI - NOUBAT KHANE ME IBADAT (नौबतखाने में इबादत)

 
 नौबतखाने में इबादत
प्रश्न १- शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर- शहनाई की दुनिया में डुमराँव को दो कारणों से याद किया जाता है। पहला तो इसलिए कि सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक भारत-रत्न विस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव(बिहार) में हुआ था। दूसरा, डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे नरकट नामक घास पाई जाती है,जिससे शहनाई की रीड बनाई जाती है।

प्रश्न २- बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर- शहनाई मांगलिक अवसरों पर बजाया जानेवाला वाद्य है। इसे मंगल वाद्य भी कहते हैं और इसकी ध्वनि ‘मंगल ध्वनि’ कही जाती है। विस्मिल्ला खाँ सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक रहे। उनके उत्कृष्ट वादन के लिए उन्हें ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। आज भी उनसे बेहतर वादक नहीं हुआ। इसलिए उन्हें शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा जाता है।

प्रश्न ३- सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर- अरब देश में फूँककर बजाए जानेवाले वाद्य अर्थात् (सुषिर वाद्य) को ‘नय’ कहते हैं। ऐसे सुषिर वाद्यों में शहनाई अपनी मधुर एवं सुरीली आवाज के कारण श्रेष्ठ मानी जाती है।इसी कारण इस शहनाई को शाह-ए-नय अर्थात् सुषिर वाद्यों में शाह (सम्राट) कहा गया होगा।

प्रश्न ४- आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों का आशय है कि बिस्मिल्ला खाँ ईश्वर से सदा यही प्रार्थना करते थे कि उनकी लुंगी भले ही फट जाए,किन्तु उनकी शहनाई का सुर कभी न फटे। वे जानते थे कि फटी लुंगी तो सिल जाएगी,लेकिन सुर ही फट गया तो उसे नहीं सुधारा जा सकता।

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आसूँ निकल आएँ।’
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों का आशय है कि बिस्मिल्ला अपने पाँचों वक्त की नमाज में खुदा से सच्चे सुर की माँग करते थे। वे दुआ करते कि ऐ खुदा! मेरे सुर में वह तासीर (प्रभाव) पैदा कर कि जो भी सुने वह भाव-विभोर हो जाए। उसकी आँखों में हर्ष की अधिकता के कारण सच्चे आसूँ छलछ्ला उठें।

प्रश्न ५ -काशी में हो रहे कौन से परिवर्तन बिस्मिल्लाह खाँ को व्यथित करते हैं ?
उत्तर - काशी साहित्य ,संगीत , कला और परंपराओं से ओत - प्रोत गंगा -जमुनी संस्कृति वाली प्रसिद्ध नगरी है।किन्तु आज उसकी समस्त विशेषताएँ लुप्त होती जा रही हैं।काशी के पक्का महाल से मलाई बरफ़ बेचने वाले जा चुके हैं।अब देशी घी की कचौड़ी और जलेबी नहीं बिकती,न ही संगीत,साहित्य,अदब और संगतकारों के प्रति आदर का भाव रहा। घंटों रियाज़ और धार्मिक एकता को आज कोई नहीं पूछता।ये सभी परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते हैं।

प्रश्न ६ - पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि --
(क) - बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे ?
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ शिया मुसलमान थे। अपने धर्म,उत्सव और त्योहारों में गहरी आस्था रखने वाले खाँ साहब एक सच्चे मुसलमान की तरह पाँचों वक्त की नमाज़ अदा करते थे। ईद - मुहर्रम मनाते थे। दूसरी तरफ गंगा नदी और बाबा विश्वनाथ तथा बालाजी पर अपार श्रद्धा रखते थे।होली - दीवाली मनाते थे। काशी के संकटमोचन मंदिर के संगीत आयोजन में वे अवश्य रहते थे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) वे वास्त्विक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। वे बड़े धार्मिक और सादे व्यक्तित्व वाले इंसान थे।उन्होंने खुदा से कभी धन-समृद्धि नहीं माँगी और न ही अपने शहनाई वादन को बाज़ार में भुनाया।उसे वे खुदा की नेमत मानते रहे। तंगहाल रहते हुए भी वे हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता और भाईचारें के लिए प्रयासरत रहे। भारत-रत्न पाकर भी वे पूर्व  की भाँति रहे,उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि वे वास्तविक अर्थों में वे एक सच्चे इंसान थे।

प्रश्न ७- बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में जुड़ी उन घटनाओं का उल्लेख कीजिए जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ का जन्म एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था। बचपन से ही संगीतमय वातावरण में पले बढ़े। जिन व्यक्तियों ने बिस्मिल्ला खाँ की संगीत साधना को समृद्ध किया,उनमें उनके नाना जी , मामा अलीबख्श खाँ,रसूलन बाई और बतूलन बाई,कुलसुम हलवाइन आदि मुख्य हैं।इन्हीं के कारण उन्हें संगीत की प्रेरणा मिली। अभिनेत्री सुलोचना के फिल्मी गाने,रसूलन और बतूलन बाई की गायकी,नाना जी का शहनाई वादन,मामा का रियाज़ और कुलसुम की कचौड़ी की कड़ाही में खौलते तेल की कल-कल में संगीत का आरोह-अवरोह सुनने जैसी समस्त बातों ने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया।

प्रश्न ८- बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ का व्यक्तित्व सादगी से पूर्ण था। उनकी संगीत के प्रति गहरी आस्था,धार्मिक-सौहार्द्र की भावना,गंगा-जमुनी तहजीब,विनोदी स्वभाव,भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा एवं ईश्वर-अल्लाह में गहरी श्रद्धा एवं आस्था ने हमें बहुत प्रभावित किया।

प्रश्न ९- मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- एक सच्चा मुसलमान होने के नाते बिस्मिल्ला खाँ का ‘मुहर्रम’ से गहरा लगाव था। वे दस दिनों तक हजरत इमाम हुसैन के प्रति शोक मनाते थे।इन दिनों वे न तो शहनाई बजाते और न किसी समारोह में शामिल होते। आठवें दिन नौहा(शोक-धुन) बजाते हुए वे दालमंडी से फातमान तक पैदल चलकर जाते और शोक सभा में शामिल होते । मुहर्रम के इस गमज़दा महौल से उनका विशेष लगाव था।

प्रश्न १०- बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे,तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ ने लगभग ८० वर्षों तक लगातार शहनाई बजाया। वे भारत ही नहीं विश्व के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक रहे।उन्होंने अपने वादन-कला को अंत तक पूर्ण नहीं माना।वे अंत तक घंटों रियाज़ करते रहे।अपने पाँचों वक्त की नमाज में वे खुदा से सच्चे सुर पाने की प्रार्थना करते रहे।वे अपने पर झल्लाते थे कि उन्हें अब तक सही ढंग से शहनाई बजाने की तमीज़ क्यों नहीं आई।८० वर्ष तक शहनाई बजाकर भी स्वयं को अपूर्ण मानना और पूरी लगन के साथ पूर्णता के लिए सतत् प्रयास करना यह सिद्ध करता है कि वे कला के अनन्य उपासक थे।

प्रश्न ११- - निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-
क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
उत्तर- प्रधान - यह जरूर है
     संज्ञा उपवाक्य - कि शहनाई और डुमराँव एक दूसरे के लिए उपयोगी हैं।


ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
उत्तर- प्रधान - रीड अंदर से पोली होती है
      विशेषण उपवाक्य - जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है ।

ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे पर पाई जाती है।
उत्तर- प्रधान - रीड नरकट से बनाई जाती है
      विशेषण उपवाक्य - जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारे पर पाई जाती है।


घ) उनको यकीन है,कभी खुदा यूँ हीं उनपर मेहरबान होगा।
उत्तर- प्रधान - उनको यकीन है
      संज्ञा उपवाक्य - कभी खुदा यूँ हीं उनपर मेहरबान होगा।


ड़) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
उत्तर- प्रधान - हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है
      विशेषण उपवाक्य - जिसकी गमक उसी में समाई है।


च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर- प्रधान - खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है
     संज्ञा उपवाक्य - कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। 


प्रश्न १२- निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में लिखिए-
क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
उत्तर- यही वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।

ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
उत्तर- काशी में संगीत आयोजन की एक परंपरा है जो प्राचीन और अद्भुत है।

ग) धत् ! पगली ई भारत-रत्न हमकों शहनाईया पे मिला है,लुंगिया पे नहीं।
उत्तर- धत् ! पगली ई भारत-रत्न हमकों लुंगिया पे नहीं बल्कि शहनाईया पे मिला है।

घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता है।
उत्तर- जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा वह काशी का नायाब हीरा है। 

 
॥इति शुभम्॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’