कन्यादान
उत्तर - भारतीय समाज पुरूष - प्रधान समाज है , जिसमें स्त्रियों के शोषण की पूरी व्यवस्था है। आधुनिक माँ अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह सजग है।वह जानती है इस समाज में स्त्रियों का शोषण कैसे - कैसे होता है।अत: वह अपनी बेटी को समझाती है कि ‘लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई मत देना’ अर्थात् तू स्वभाव से कोमल , सरल और भोली - भाली होते हुए भी दूसरों पर यह उजागर मत होने देना , अन्यथा लोग इसका अनुचित लाभ उठाएँगे।
प्रश्न २ - ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क)-इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात साफ़ झलकती है कि इस समाज में स्त्रियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। वे दिन-रात घर का काम - काज करती हैं, सबको रोटियाँ सेंक कर खिलाती हैं,बावज़ूद इसके विभिन्न कारणों से उन्हें ज़िन्दा जला दिया जाता है अथवा उसे स्वयम् ही आत्म-दाह करने पर बाध्य होना पड़ता है।
(ख) - माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा ?
उत्तर - माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए ज़रूरी समझा क्योंकि बेटी अभी भोली और नादान थी। उसे समाज की वास्तविकता तथा शोषण और अत्याचार के तरीकों का ज्ञान नहीं था। माँ चाहती थी कि वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों को भली प्रकार से पहचान ले , ताकि उसे अच्छे - बुरे की समझ हो जाए।
प्रश्न ३- ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभर कर आ रही है,उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति में ‘धुँधले प्रकाश’ से आशय है--अस्पष्ट एवम् अपूर्ण जानकारी। जबकि ‘कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ का आशय उस थोड़े - बहुत अनुभव या ज्ञान से है जो अपने परिवार या पास - पड़ोस में रहते हुए उसने प्राप्त किया था।तात्पर्य यह कि लड़की अभी भोली - भाली थी , उसे अच्छे - बुरे का ज्ञान नहीं था।
प्रश्न ४ - माँ को अपनी बेटी ‘अन्तिम - पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर - बेटी जन्म से विवाह के पूर्व तक सदा माँ के पास रहती है।उसी के साथ बातचीत , हँसी - मज़ाक और अपना सुख-दुख बाँटती है।इतने दिनों तक साथ रहने के कारण माँ - बेटी में अटूट लगाव हो जाता है। यही कारण है कि बेटी को विदा करते समय माँ को ऐसा लगता है जैसे उससे उसका सब कुछ छीना जा रहा हो। इसी कारण माँ को अपनी बेटी ‘अन्तिम - पूँजी’ लगती है।
प्रश्न ५ - माँ ने बेटी को क्या - क्या सीख दी ?
उत्तर - माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी :--
* अपनी सुन्दरता पर मन ही मन खुश मत होना क्योंकि ये कुछ ही दिनों की होती है।
* स्वयम् को भोली और सरल मत दिखने देना, अन्यथा लोग कमज़ोर समझकर उसाका नाज़ायज फ़ायदा उठाएँगे।
* गहनें और कपड़ों को अपनी कमज़ोरी मत बनने देना, नहीं तो लोग इसकी आड़ में अपना स्वार्थ करेंगे।
* आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है, उसे जलने का साधन मत बनने देना।
प्रश्न ६ - आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर - दान का अर्थ है-- देना । दान के रूप में किसी वस्तु को दिया जाता है। जो वस्तु दान के रूप में दे दी जाती है, उससे दान देने वाले का कोई लेना - देना नहीं रह जाता । अर्थात् उस वस्तु से सर्वथा सम्बन्ध - विच्छेद हो जाता है। किन्तु; कन्या न तो कोई वस्तु होती है और न ही विदाई के बाद माता - पिता का उससे सम्बन्ध - विच्छेद ही होता है। उसके साथ तो जीवन भर का अटूट सम्बन्ध होता है इसलिए कन्या का दान तो हो ही नहीं सकता। अत: हमारी दृष्टि में ‘कन्यादान’ शब्द अनुचित , अपमानजनक और निरर्थक है।
॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
bahut bahut dhanyavad.
ReplyDeleteappke ham saada aabariraheee gea
ReplyDeleteappke ham saada aabariraheee gea
ReplyDeleteThanx
ReplyDeleteYour language and answers are awesome.... agar aap isi tarah har paath ka saar bhi likhenge to bahun madad milegi
ReplyDeleteDhanyawaad
Aapka khoob khoob aabhaar! Aapne hindi ke soundarya ko alag hi roop de diya hai! hum aapki hindi aur gyaan se aashcharyachakit hain!
ReplyDeleteAapse ek aagreh hai ki aap har pankti ka aarth bhi isme jod de to sone pe suhaga ho jayega.
ReplyDeleteThanks for such amazing answer. Thanks a lot
ReplyDeleteDhanyabad aapja abhari rahunga
ReplyDeleteUtpurna answers hai aapke..bohut bohut dhanyavad is sahayata k lie
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यबाद आपको मेरि मदाद्द करने के लिये
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