Sunday 28 June 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 6 PREM CHAND KE PHATE JOOTE BY HARISHANKAR PARASAI (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ६ प्रेमचंद के फ़टे जूते)



प्रश्न 1 - हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन - कौन सी विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं?
उत्तर  - प्रेमचंद का जीवन कष्टों से भरा था। वे सदैव जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं (रोटी,कपड़ा और मकान) की पूर्ति के लिए जूझते और तरसते रहे। संघर्षशीलता , जुझारुपन , जिजीविषा , धैर्य , सादग़ी एवं परदुख-कातरता के अलावा रूढ़ियों तथा बाह्याडंबरों का विरोध उनके स्वभाव में शामिल था। प्रेमचंद का व्यक्तित्व एक मर्यादित लेखक का है, जिनका साहित्य समाज के लिए दर्पण का काम करता है।

प्रश्न 2 - कथन के सामने सही / गलत लिखिए।
(क) - बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
उत्तर - ग़लत  ।

(ख) - लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।
उत्तर - सही  । 

(ग) - तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
 उत्तर - ग़लत  ।

(घ) - तुम जिसे घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ अंगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर - ग़लत  ।

प्रश्न ३-नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए:-
(क) - जूता हमेशा टोपी से क़ीमती रहा है। अब तो जूते की क़ीमत और भी बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
उत्तर - जूते का स्थान पैरों में होता है जबकि टोपी शीश पर शोभा पाती है। किन्तु ; आज जूते की क़ीमत बढ़ गई है । तात्पर्य यह कि आज अयोग्य को सम्मानित किया जा रहा है , जबकि टोपी अर्थात् बुद्धिमान और विद्वान को कोई पूछता भी नहीं। आज ‘विद्या धनं सर्वधन प्रसाधनम्’ की बात बेमानी-सी लगती है।आज सरस्वती पर लक्ष्मी भारी पड़ती-सी जान पड़ती है। अर्थात् एक धनवान के आगे-पीछे पचीसों विद्वान डोलते नज़र आते हैं।

(ख) - तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर - लेखक ने प्रेमचंद के पहनावे को लक्ष्य करके इस सत्य को उजागर किया है कि वे दिखावा-पसंद न थे।सच पर पर्दा डालना उनके स्वभाव में शामिल न था।इसके साथ ही लेखक ने अपने माध्यम से समाज की सचाई पर पर्दा डालने एवम् ढोंग और दिखावा करने जैसी मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया है।

(ग) - जिसे तुम घृणित समझते हो , उसकी तरफ़ हाथ की नहीं , पाँव की अँगुली से इशारा करते हो।
उत्तर - लेखक के अनुसार प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त घृणित विचार-धाराओं,आदर्शों , मान्यताओं एवम् सामाजिक विकास को बाधित करनेवाली रुढ़ियों और परम्पराओं के साथ-साथ जिसे भी घृणित समझा , उसके साथ उन्होंने कभी नरमी नहीं दिखाई। उसकी ओर अँगुली या हाथ नहीं उठाया बल्कि उसे लातों और जूतों के योग्य समझा। तात्पर्य यह कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व घृणितों का सफ़ाया कड़ाई से करने का संदेश देता है।

प्रश्न ४ - पाठ में लेखक एक जगह पर सोचता है कि ‘फ़ोटो खिचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग - अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वज़हें हो सकती हैं?
उत्तर - मेरे अनुसार पोशाक के संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:-
पहला तो यह कि फ़ोटो खिंचाने के लिए जैसे सभी अच्छी पोशाकें पहनते हैं; प्रेमचंद ने भी कुछ वैसा ही किया था, यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है क्योंकि पहनने के लिए उससे ख़राब वस्त्र हो भी नहीं सकते थे। अर्थात् वही पोशाक सबसे अच्छी थी, जिसे वे पहने थे। दूसरा कारण ; प्रेमचंद का सीधा , सरल व दिखावा या पाखंड-रहित जीवन हो सकता है , क्योंकि प्रेमचंद के जीवन में कोई लुकाव-छिपाव नहीं था। वे जैसे थे , वैसे दिखते थे । शायद इन्हीं बातों के परिप्रेक्ष्य में लेखक ने अपने विचार बदले होंगे।

प्रश्न ५ - आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन - सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर  - इस लेख की रचना शैली बेहद आकर्षक है। लेखक ने मूलत: गागर में सागर भरने जैसी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इस लेख का विस्तार ठीक किसी नदी के विस्तार की तरह है। जिस प्रकार अपने उद्गम - स्थल पर नदी पानी की एक पतली रेखा होती है और क्रमश: उसका विस्तार होते जाता है , ठीक उसी तरह इस लेख की शुरुआत प्रेमचंद के एक फ़ोटो से होती है, जिसमें उनका फ़टा जूता देखकर लेखक सोचने लगता है। फिर तो सोचते ही विचारों का ताँता लग जाता है। बातों ही बातों में प्रेमचंद के समस्त व्यक्तित्व को पाठक की आँखों के सामने चलचित्र की भाँति साकार करने की लेखक की क़ाबिलियत ने मुझे बहुत प्रभावित किया

प्रश्न ६ - इस पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर  - प्रस्तुत पाठ में ‘टीला’ विकास के मार्ग में अवरोध का सूचक है। जिस प्रकार ऊँचे और बड़े टीले मार्ग अवरुद्ध कर देते हैं; ठीक उसी प्रकार समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार , जीर्ण-शीर्ण रीतियाँ , व्यर्थ के रस्म और रीवाज़ तथा परम्परागत कुरीतियाँ सामाजिक विकास की गति में बाधा पहुँचाती हैं, अवरोध उत्पन्न करती हैं। यहाँ ‘टीले’ शब्द का प्रयोग तत्कालिन समय में व्याप्त ऐसी ही समस्याओं या बाधाओं के लिए हुआ है।

प्रश्न ७ - प्रेमचंद के फ़टे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।

उत्तर  -      स्वयम्    लिखें... :-)


प्रश्न ८ - आपकी दृष्टि में वेश - भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर  - समय परिवर्तनशील है। अत: यहाँ कुछ भी चिरस्थायी नहीं है। चाहे वह परिस्थिति हो या अथवा विधि-विधान या खान-पान । हम पहनावा को ही ले। पहले सर्दी , गर्मी और बरसात से बचने या तन ढँकने के लिए पोशाक धारण किया जाता था। बदलते समय ने वेश-भूषा की अवधारणा ही बदल दी है। आज वेश - भूषा सामाजिक रुतबा का प्रतीक बन गया है। यह लोगों को मान-सम्मान दिलाता है। स्वयं को खास दिखाने या सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए विभिन्न सरकारी - ग़ैरसरकारी संस्थाओं , स्कूलों आदि ने अपनी अपनी वेश-भूषा निर्धारित कर रखा है। लोग अपनी औक़ात से ज्यादा पहनावे पर खर्च करते हैं। पिछले साल का फ़ैशन इस साल भी करना पिछड़ेपन का सबूत माना जाता है। आज वेश - भूषा आधुनिकता का पर्याय बन गया है। यह बदलता मिज़ाज और मानसिकता निश्चित रूप से चिन्ता का विषय है। 


॥ इति शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’ 

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ CHAPTER 5 NANA SAHAB KI PUTRI DEVI MAINA KO BHASMA KAR DIYA GAYA BY CHAPALA DEVI(नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया)

BIMLESH DUTTA DUBEY

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

प्रश्न 1 - बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन - कौन से तर्क देकर मैना ने महल की रक्षा करने हेतु प्रार्थना की?

उत्तर  - बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को महल की रक्षा करने के लिए विभिन्न तर्क दिया। मसलन; महल उसे बहुत प्रिय है , इस निर्जीव महल ने अंग्रेजों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया, आपकी मृत बेटी मैरी भी इस महल में खेल चुकी है, उसे भी यह महल प्यारा था.... इत्यादि जैसे तर्क देकर मैना ने महल की रक्षा की प्रार्थना की।


प्रश्न 2 - मैना जड़ - पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी, जबकि अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे।क्यों?

उत्तर  - मैना का जन्म विठूर के राजमहल में ही हुआ था। उसने जब से होश संभाला स्वयं को उसी महल में पाया। फलत: महल के एक-एक जर्रे से उसका लगाव हो गया था। उसी महल में वह पली-बढ़ी और अपना बचपन गुज़ारा । उस महल के साथ उसकी ढेर सारी यादें जुड़ी हुई थी इसलिए वह उसे बचाना चाहती थी। जबकि ठीक उसके विपरीत नाना साहब को पकड़ पाने में असमर्थ रहे अंग्रेज वैसी सभी चीज़ों को समाप्त कर देना चाहते थे , जो नाना साहब की याद दिलाकर उनकी असफलता का मज़ाक उड़ा रहे थे।


प्रश्न 3 - `सर टॉमस हे' के मैना पर दया भाव के क्या कारण थे?

उत्तर  - सर टॉमस हे सेनापति होने के साथ मनुष्य भी थे। अत: उनमें मनुष्यता का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। वे स्वभाव से कोमल और दयालु थे। यही कारण था कि वे मैना की भावनात्मक बातों को ध्यान से सुनने लगे। दया  भाव का दूसरा पक्ष यह था कि मैना उनकी मृत बेटी मैरी की सहेली थी। अत: मैना के प्रति उनके मन में सहज ही सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी।इन्हीं मिले - जुले कारणों से प्रभावित उनका मन दया - भाव से भर उठा था।


प्रश्न 4 - मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैथकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी ?

उत्तर  - जनरल अउटरम अपनी सख़्ती के लिए प्रसिद्ध थे। सर ‘हे’ के कहने पर एक बार वे सोचने पर मजबूर हो गए, परन्तु; उनका निर्णय नहीं बदला। इसके पीछे उनका जातीय - प्रेम रहा होगा , जिसे नाना साहब से ख़तरा था। साथ ही वे अपने उच्चाधिकारियों के गुस्से का शिकार नहीं होना चाह रहे होंगे। शायद ; उन्हें डर था कि यदि उन्होंने मैना के साथ नरमी दिखाई तो उन्हें इसका ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। जो शायद  नौकरी से हाथ धोने से लेकर कठोर दंड के रूप में सामने आ सकता था।संभवत: यही कारण रहे होंगे तभी तो उन्होंने मैना की इतनी छोटी - सी इच्छा भी पूरी न होने दी।


प्रश्न 5 - बालिका मैना की कौन - कौन - सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर  - बालिका मैना असाधारण बालिका थी , जिसमें ढेरों विशेषताएँ थीं। मैं उसकी निडरता , साहस , तर्कशक्ति - संपन्नता , विनम्रता , सहनशीलता और बलिदान जैसी विशेषताओं को अपनाना चाहूँगा। चूँकि इन्हीं गुणों ने मैना को असाधारणता प्रदान किया था , झुण्ड से अलग ला खड़ा किया था। अत: मैं भी उन्हीं गुणों को अपनाकर असाधारण बनना चाहूँगा।


प्रश्न 6 - ‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितम्बर को लिखा था -- ‘बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।’ इस वाक्य में ‘भारत सरकार’ से क्या आशय है?

उत्तर  - तत्कालिन समय में भारत ग़ुलाम था। भारत के शासन की बागडोर अंग्रेज़ों के हाथ में थी। अत: आलोच्य पंक्ति में प्रयुक्त ‘भारत सरकार’ से तात्पर्य उस शासन से है , जो ब्रिटिश - शासन के अन्तर्गत भारत में कुछ अंग्रेज़ अधिकारियों द्वारा चालित था।


प्रश्न 7 - स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी?

उत्तर  - इस प्रकार के लेख भावनाओं को भड़काते हैं , साथ ही सोचने पर मजबूर करते हैं। अंग्रेज़ों की क्रूरता , निर्दयता और अत्याचार की ऐसी कहानियाँ आम लोगों को भी अंग्रेज़ों के विरूद्ध ला खड़ा करती होंगी। अबलाओं , बालिकाओं व निरीह लोगों या मैना सरीखी वीर बालाओं की हत्या की घटना को पढ़कर अंग्रेज़ों के समर्थकों का मन भी हाहाकार कर उठता होगा। परिणाम स्वरूप वे भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाते होंगे।इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस प्रकार के लेखन की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी।


प्रश्न 8 - कल्पना कीजिए की मैना के बलिदान की ख़बर आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो - समाचार तैयार करें।

उत्तर  - ये आकाशवाणी है... अब आप मुझसे (अपना नाम) समाचार सुनिए--
नमस्कार !... सबसे पहले मुख्य समाचार....।
गोरी सरकार की काली करतूत , 
अउटरम बनें यमदूत -- 
रोने भी नहीं दिया मैना को...।
अब , समाचार विस्तार से --
कल कानपुर में अंग्रेज़ अधिकारियों की सरगर्मी दिनभर जारी रही। आज सुबह 11:15 मिनट पर समूचा देश तब स्तब्ध रह गया जब नाना साहब की पुत्री मैना को दहकती आग में झोंककर भस्म कर देने की ख़बर कानपुर कीले के अधिकारियों ने दी।
जैसा कि आपको मालूम ही होगा कि कल जनरल अउटरम ने मैना को आधी रात में ही हिरासत में तब ले लिया था , जब वे अपने ध्वस्त महल के मलवे पर बैठी हुई रो रही थी। गिरफ़्तारी के वक़्त मैना ने अनुरोध किया था कि उन्हें चैन से रो लेने दिया जाए। किन्तु; अउटरम ने उनकी एक न सुनी। सूत्रों के अनुसार उच्चाधिकारियों के आदेश पर आज करीब 9:00 बजे देवी मैना को दहकती आग के हवाले कर दिया गया। दुनिया के देशों ने इस घटना की निन्दा की है। सारे देश में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ नारे लगाए जा रहे हैं। अउटरम आदि के पुतले फूँके जा रहे हैं। मैना का बलिदान इतिहास में अमर रहेगा। इसी के साथ समाचार समाप्त हुए। 
मुझे इज़ाजत दीजिए... नमस्कार। 


शेष प्रश्नों के उत्तर स्वयं देने की कोशिश करें... :-)


॥ इति-शुभम् ॥



 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’