Wednesday, 30 April 2014

CLASS X

 कवित्त 2 

 

आत्मकथ्य


उत्साह

अट नहीं रही है

 

यह दंतुरित मुसकान

फ़सल

 

 कृतिका

 

माता का आँचल

जॉर्ज पंचम की नाक

 

 SUMMATIVE-II

   क्षितिज़   

कहानी


       

कविता

                         

 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

छाया मत छूना

कन्यादान

संगतकार 


कृतिका

 

साना साना हाथ जोड़ि

 

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा

 

मैं क्यों लिखता हूँ


                

 

Sunday, 27 April 2014

ANDHER NAGARI CHOUPAT RAJA अंधेर नगरी चौपट राजा



अंधेर नगरी चौपट राजा


      "अंधेर नगरी चौपट राजा । टके में भाजी टके में खाजा"

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने इस कहावत को आधार मानकर एक नाटक लिखा था। जिसका कथानक है - एक बड़ा ही विचित्र राजा था। उसने अपनी नगरी के लिए अपने से भी विचित्र कानून लागू किया था। राजा कि घोषणा थी कि  उसके राज्य में सब कुछ एक ही भाव में बेची जाए। उसकी न्याय करने की प्रणाली तो सबसे विचित्र थी । उसके दरबार में यदि किसी को कोई सजा सुना दी जाती तो हर हाल में राज्य के अधिकारियों को उसका पालन करना ही पड़ता । राजाज्ञा थी इसलिए वह सजा यदि किसी निरपराध को ही देनी पड़ती तो भी अधिकारी जरूर देते थे। राजा की ऐसी खतरनाक न्याय व्यवस्था के चलते एक बकरी के मरने पर एक साधु को फाँसी पर चढ़ाया जा रहा था क्योंकि फांसी का फंदा जिस व्यक्ति के लिए बनाया गया था,वह उस व्यक्ति के गले में बड़ा हो रहा था।नियम के अनुसार किसी--किसी को सजा तो देनी ही थी, अत: एक मोटे-ताज़े साधु की गर्दन मापी गई ,फंदा उसके गले के बराबर हुआ और उसे फाँसी पर चढ़ाने की तैयारी की जाने लगी। किन्तु संयोग से घटना ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि कथानक के अन्त में राजा ही फांसी पर चढ़ गया।

परोक्त कथानक यह संदेश देता है कि किसी देश का शासन यदि किसी अविवेकी व्यक्ति द्वारा संचालित होता है तो वह देश निश्चित रूप से रसातल (पाताल-लोक) में चला जाता है। उस राज्य में न तो कोई सुखी रह सकता है और न सुरक्षित। जहाँ सही - गलत को परखने की न कोई कसौटी हो और न प्रजा का दुख - दर्द सुनने की जरुरत समझी जाती हो वहाँ निश्चित रूप से अराजकता का ही साम्राज्य होगा। इस उक्ति में मूलत: एक विवेक-शून्य प्रशासन पर करारा व्यंग्य किया गया है।

म भाग्यशाली हैं कि हर पाँच साल में हमें अपनी गलती सुधारने का मौका मिलता है। यदि लगता है कि गलती हुई है तो किसने रोका है सुधारने से....चुनाव आया है।
॥ इति - शुभम् ॥

बिमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी '




Saturday, 26 April 2014

KAVI DEV KAVITT class 10 cbse hindi kshitij 2 कवि देव कवित्त



कवित्त - २

प्रसंग :- प्रस्तुत कवित्त में प्रकृति-सौन्दर्य के पारखी कवि देव ने पूर्णिमा की चाँदनी रात में धरती और आकाश के सौन्दर्य को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है :-

व्याख्या :- पूर्णिमा की रात में धरती और आकाश में चाँदनी की आभा इस तरह फैली है जैसे स्फटिक (क्रिस्टल) नामक शिला से निकलने वाली दुधिया रोशनी संसार रुपी मंदिर पर ज्योतित हो रही हो। कवि देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें वहाँ तक बस चाँदनी ही चाँदनी नज़र आती है।यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले रहा हो। चाँदनी इतनी झीनी और पारदर्शी है कि नज़रें अपनी सीमा तक स्पष्ट देख पा रही हैं,नज़रों को देखने में कोई व्यवधान नहीं आ रहा। धरती पर फैली चाँदनी की रंगत फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान उज्ज्वल है तथा उसकी स्वच्छ्ता और स्पष्टता दूध के बुलबुले के समान झीनी और पारदर्शी है।चाँदनी रात में खड़ी नायिका का सौन्दर्य कवि देव को और भी लुभावना लग रहा है। मल्लिका के उजले फूल चाँदनी रात में और भी उजले दिख रहे हैं मानों धरती पर किसी ने मोती विखेर दिये हों। कवि देव जब चाँदनी रात में आकाश को निहारते हैं तो आकाश उन्हें स्वच्छ दर्पण की तरह लगता है और वहाँ चमकते तारे और खिले चाँद को देखते हैं तो उन्हें ऐसा भ्रम होता है मानों धरती पर खिले मल्लिका के फूलों के प्रतिबिम्ब आकाश रुपी दर्पण में तारों के रुप में ज्योतित हो रहे हैं जबकि चाँदनी में नहायी नायिका आकाश रुपी आरसी (दर्पण) में चाँद बनकर दिखती है।

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प्रश्न १:-चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?

उत्तर :- प्रकृति-सौन्दर्य के पारखी कवि देव ने चाँदनी रात के सौन्दर्य को निम्नलिखित रुपों में देखा है :-
(अ) कवि देव ने आकाश में फैली चाँदनी को स्फटिक (क्रिस्टल) नामक शिला से निकलने वाली दुधिया रोशनी के समतुल्य बताकर उसे संसार रुपी मंदिर पर छितराते हुए देखा है।
(ब) कवि देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें वहाँ तक बस चाँदनी ही चाँदनी नज़र आती है। यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले रहा हो।

()कवि देव ने चाँदनी की रंगत को फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान तथा उसकी स्वच्छ्ता को दूध के बुलबुले के समान झीना और पारदर्शी बताया है।

() कवि देव जब चाँदनी रात में आकाश को निहारते हैं तो आकाश उन्हें स्वच्छ दर्पण की तरह लगता है और वहाँ चमकते तारे और खिले चाँद को देखते हैं तो उन्हें ऐसा भ्रम होता है मानों धरती पर खिले मल्लिका के फूलों के प्रतिबिम्ब आकाश रुपी दर्पण में तारों के रुप में ज्योतित हो रहे हैं जबकि चाँदनी में नहायी नायिका आकाश रुपी आरसी (दर्पण) में चाँद बनकर दिखती है।

प्रश्न २:-प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?



उत्तर:- भाव :- कवि देव ने अपनी कल्पना की उड़ान भरते हुए समस्त आकाश को आरसी अर्थात् आईना या दर्पण मान लिया है और चाँद के सौन्दर्य को देख आकाश रुपी दर्पण में दिख रही धरती की नायिका राधा कह दिया है।
यहाँ राधा के सौन्दर्य की तुलना चाँद के सौन्दर्य से की गई है अत: यहाँ उपमा अलंकार है।

प्रश्न ३:- तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?

उत्तर :- कवि देव ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए स्फटिक शीला से निर्मित मंदिर का, दही के समुद्र का, दूध के झाग का , मोतियों की चमक का और दर्पण की स्वच्छ्ता आदि जैसे उपमानों का प्रयोग किया है।

प्रश्न ४:- अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर :- चाँदनी रात यूँ ही मनभावन होती है उस पर से यदि वह पूर्णिमा की रात हो तो फ़िर उसका क्या कहना । चाँदनी रात का सौन्दर्य तो बस ! देखते ही बनता है। कल ही पूर्णिमा थी और संयोग से छत पर मेरा जाना भी हुआ था। सच ! जहाँ तक नज़रें गईं वहाँ तक सिर्फ़ दूधिया चान्दनी ही नज़र आ रही थी।  वातावरण शान्त , निर्मल और धवल था । चान्दनी का सौन्दर्य मन पर हावी होने लगा और मन अनायास  गुनगुना उठा-
भूली हुई यादों.... मुझे इतना न सताओ,
अब चैन से रहने दो..मेरे पास ना आओ ।भूली हुई............० ।
बीते दिन याद आते चले गए और मन सुखद स्मृतियों मे खोता चला गया। चाँदनी ने केवल धरती ही नहीं बल्कि मन को भी शीतलता प्रदान किया ।

प्रश्न ५ :- भारतीय ऋतु चक्र में छ्ह ऋतुएँ मानी गई  हैं , वे कौन - कौन सी हैं ?
उत्तर:- भारतीय ऋतु चक्र में निम्नलिखित छ्ह ऋतुएँ  हैं-

ग्रीष्म,वर्षा,शरद ,हेमन्त, शिशिर और बसन्त ।

॥  इति - शुभम्  ॥

अगला पोस्ट क्लास 10 के लिए...))

बिमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी '

hindi A class 10 cbse kshitij-2 कवि देव सवैया



सवैया

प्रसंग :- प्रस्तुत सवैये में रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि देवदत्त द्विवेदी ने श्रीकृष्ण के रूप - सौन्दर्य के वर्णन के माध्यम से अपनी भक्ति निवेदित की है जो एक अलग ढंग की प्रार्थना कही जा सकती है।

व्याख्या :-जिनके पैरों में पाज़ेब है जिसमें घुँघरू लगे हुए हैं जिनसे मनभावन ध्वनि निकल रही है , जिनके कमर में कमरघनी है जिसके घुँघरू से हर कदम पर रुनक - झुनक की कर्ण प्रिय आवाज़ निकलती है। जिनका रंग साँवला है, जिनके साँवले शरीर पर पीताम्बर बहुत सुन्दर लगता है  जिनके गले में बनमाला (वैजयन्ती माला) सुशोभित हो रही है, जिनके माथे पर सदैव मुकुट रहता है, जिनकी आँखें बड़ी - बड़ी और चंचल हैं , जिनके चंद्रमा जैसे सुन्दर - सलोने मुखड़े पर सदैव मंद - मंद मुस्कान की आभा दमकती रहती है जो संसार रूपी मन्दिर में दीपक की तरह शोभायमान हैं, वैसे रूप-सौंदर्य वाले ब्रज के दुल्हा श्रीकृष्ण आपकी जय हो।आप अपने भक्त कवि देव की सहायता करें।

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प्रश्न १:- कवि ने ‘श्रीब्रजदूलहकिसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें ससांर रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है ?

उत्तर :- कविवर देवदत्त द्विवेदी जी ने ‘श्रीब्रजदूलहश्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। जिस प्रकार दीपक मन्दिर की सुन्दरता बढ़ाता है ठीक वैसे ही श्री कृष्ण अपनी उपस्थिति से संसार रुपी मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं अर्थात् उनके होने मात्र से सारा संसार सुन्दर लग रहा है।



प्रश्न २:- पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है ?

उत्तर :- (क) अनुप्रास अलंकार :-

(अ) कटि किकिन कै धुनि की मधुराई।
यहाँ ‘क’ वर्ण की आवृत्ति 
हु   है इसलिए अनुप्रास अलंकार है 
 (ब) साँवरे अंग लसै पटपीत,हिये  हुलसै बनमाल सुहाई। 
 इस पंक्ति में ‘प’ और ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ख) रुपक अलंकार :-

(अ) मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई ।
यहाँ श्री कृष्ण के मुख और चंद्रमा को एक ही मान लिया गया है इसलिए यहाँ रुपक अलंकार है।
(ब) जै जग - मंदिर - दीपक सुंदर ।
यहाँ संसार की समानता मंदिर के साथ की गई है।  दोनों में कोई भेद नहीं होने से यहाँ रुपक अलंकार है।



प्रश्न ३:- निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।

साँवरे  अंग  लसै  पट  पीत  हिये  हुलसै बनमाल सुहाई।

उत्तर :- प्रस्तुत काव्यांश रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि देवदत्त द्विवेदी द्वारा रचित सवैया से लिया गया है। इसमें कवि देव ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है।
काव्य-सौंदर्य :-

*भाव-सौन्दर्य :- जिनके पैरों में पाज़ेब और कमर में कमरघनी है जिसके घुँघरू से हर कदम पर रुनक - झुनक की कर्ण प्रिय आवाज़ निकलती है। जो साँवले सलोने शरीर पर पीताम्बर धारण किये हैं और जिनके गले में बनमाला (वैजयन्ती माला ) सुशोभित हो रही है। वैसे श्रीकृष्ण के रूप - सौंदर्य के वर्णन के माध्यम से कवि देव ने अपनी भक्ति निवेदित की है।

*शिल्प-सौन्दर्य :- प्रस्तुत पंक्तियों में सवैया छंद का प्रयोग किया गया है। साहित्यिक ब्रज भाषा का सुन्दर निरूपण हुआ है।‘कटि किंकिनि’ , ‘पट पीत’ , ‘हिये हुलसै’ में क्रमश: ‘क’ , ‘प’ और ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार की छ्टा छिटकी है।

॥ इति - शुभम् ॥ 
अगला पोस्ट क्लास 10 के लिए...))

बिमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी '