कवित्त - २
प्रसंग :- प्रस्तुत कवित्त में प्रकृति-सौन्दर्य के पारखी कवि देव ने पूर्णिमा की चाँदनी
रात में धरती और आकाश के सौन्दर्य को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है :-
व्याख्या :- पूर्णिमा की रात में धरती और आकाश में चाँदनी की आभा इस तरह फैली
है जैसे स्फटिक (क्रिस्टल)
नामक शिला से निकलने वाली दुधिया रोशनी संसार रुपी मंदिर पर ज्योतित हो रही हो। कवि देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें वहाँ तक बस चाँदनी
ही चाँदनी नज़र आती है।यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का समुद्र हिलोरे ले
रहा हो। चाँदनी इतनी झीनी और पारदर्शी है कि नज़रें अपनी सीमा तक स्पष्ट देख पा रही
हैं,नज़रों को देखने में कोई
व्यवधान नहीं आ रहा। धरती पर फैली चाँदनी की रंगत फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान
उज्ज्वल है तथा उसकी स्वच्छ्ता और स्पष्टता दूध के बुलबुले के समान झीनी और
पारदर्शी है।चाँदनी रात में खड़ी नायिका का सौन्दर्य कवि देव को और भी लुभावना लग
रहा है। मल्लिका के उजले फूल चाँदनी रात में और भी उजले दिख रहे हैं मानों धरती पर
किसी ने मोती विखेर दिये हों। कवि देव जब चाँदनी रात में आकाश को निहारते हैं तो
आकाश उन्हें स्वच्छ दर्पण की तरह लगता है और वहाँ चमकते तारे और खिले चाँद को
देखते हैं तो उन्हें ऐसा भ्रम होता है मानों धरती पर खिले मल्लिका के फूलों के
प्रतिबिम्ब आकाश रुपी दर्पण में तारों के रुप में ज्योतित हो रहे हैं जबकि चाँदनी
में नहायी नायिका आकाश रुपी आरसी (दर्पण) में चाँद बनकर दिखती है।
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प्रश्न १:-चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर :- प्रकृति-सौन्दर्य के पारखी कवि देव ने चाँदनी रात के सौन्दर्य को
निम्नलिखित रुपों में देखा है :-
(अ) कवि देव ने आकाश में फैली चाँदनी को स्फटिक (क्रिस्टल) नामक शिला
से निकलने वाली दुधिया रोशनी के समतुल्य बताकर उसे संसार रुपी मंदिर पर छितराते
हुए देखा है।
(ब) कवि देव की नज़रें जहाँ तक जाती हैं उन्हें
वहाँ तक बस चाँदनी ही चाँदनी नज़र आती है। यूँ प्रतीत होता है मानों धरती पर दही का
समुद्र हिलोरे ले रहा हो।
(स)कवि देव ने
चाँदनी की रंगत को फ़र्श पर फ़ैले दूध के झाग़ के समान तथा उसकी स्वच्छ्ता को दूध के
बुलबुले के समान झीना और पारदर्शी बताया है।
(द) कवि देव जब
चाँदनी रात में आकाश को निहारते हैं तो आकाश उन्हें स्वच्छ दर्पण की तरह लगता है
और वहाँ चमकते तारे और खिले चाँद को देखते हैं तो उन्हें ऐसा भ्रम होता है मानों
धरती पर खिले मल्लिका के फूलों के प्रतिबिम्ब आकाश रुपी दर्पण में तारों के रुप
में ज्योतित हो रहे हैं जबकि चाँदनी में नहायी नायिका आकाश रुपी आरसी (दर्पण) में
चाँद बनकर दिखती है।
प्रश्न २:-‘प्यारी
राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट
करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:- भाव :- कवि देव ने अपनी कल्पना की उड़ान भरते हुए समस्त आकाश को
आरसी अर्थात् आईना या दर्पण मान लिया है और चाँद के सौन्दर्य को देख आकाश रुपी
दर्पण में दिख रही धरती की नायिका राधा कह दिया है।
यहाँ राधा के सौन्दर्य की तुलना चाँद के
सौन्दर्य से की गई है अत: यहाँ उपमा अलंकार है।
प्रश्न
३:- तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की
उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों
का प्रयोग किया है?
उत्तर
:- कवि देव ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए
स्फटिक शीला से निर्मित मंदिर का, दही के समुद्र का, दूध
के झाग का , मोतियों की चमक का और दर्पण की स्वच्छ्ता आदि जैसे उपमानों
का प्रयोग किया है।
प्रश्न ४:- अपने घर की छत से
पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर :- चाँदनी रात यूँ ही मनभावन होती है उस पर से यदि वह पूर्णिमा की रात हो तो फ़िर उसका क्या कहना । चाँदनी
रात का सौन्दर्य तो बस ! देखते ही बनता है। कल ही
पूर्णिमा थी और संयोग से छत पर मेरा जाना भी हुआ था। सच ! जहाँ तक नज़रें गईं वहाँ
तक सिर्फ़ दूधिया चान्दनी ही नज़र आ रही थी।
वातावरण शान्त , निर्मल और धवल था ।
चान्दनी का सौन्दर्य मन पर हावी होने लगा और मन अनायास गुनगुना उठा-
“भूली हुई यादों.... मुझे इतना न
सताओ,
अब चैन से रहने दो..मेरे पास ना आओ
।भूली हुई............० ।”
बीते दिन याद आते चले गए और मन
सुखद स्मृतियों मे खोता चला गया। चाँदनी ने केवल धरती ही नहीं बल्कि मन को भी
शीतलता प्रदान किया ।
प्रश्न ५ :- भारतीय ऋतु चक्र में छ्ह ऋतुएँ
मानी गई हैं , वे कौन - कौन सी हैं ?
उत्तर:- भारतीय ऋतु चक्र में निम्नलिखित छ्ह ऋतुएँ हैं-
ग्रीष्म,वर्षा,शरद ,हेमन्त, शिशिर
और बसन्त ।
॥ इति - शुभम् ॥
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बिमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी '