Sunday 31 August 2014

CBSE CLASS 10 HINDI KAVITA - FASAL - NAGARJUN (फ़सल : नागार्जुन)

 फ़सल
प्रश्न 1- कवि के अनुसार फ़सल क्या है?
उत्तर - कवि नागार्जुन के अनुसार फ़सल किसी एक व्यक्ति अथवा प्रकृति के किसी एक तत्त्व की उपज नहीं, बल्कि अनगिनत किसानों और मज़दूरों के परिश्रम तथा प्रकृति के पंच महाभूतों ( क्षिति , जल , पावक , गगन और समीर ) के समवेत योगदान एवम् सहयोग का फल है।

प्रश्न 2- कविता में फ़सल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर - फ़सल को उपजाने के लिए अनेक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। जिनमें धरती ,पानी , सूर्य, हवा और मनुष्य का परिश्रम आवश्यक है। इनके परस्पर सहयोग से ही फ़सल उपज सकती है।इनमें से किसी भी तत्त्व का अभाव फ़सल को नहीं उपजने देगा।

प्रश्न 3- फ़सल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर - कवि ने फ़सल को मानव - श्रम से जोड़ा है, क्योंकि मनुष्यों के हाथों किया गया श्रम ही फ़सल को उपजाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मनुष्य यदि परिश्रम न करे तो फ़सल उग ही नहीं सकती। उनके हाथों के स्पर्श की बहुत महिमा है।ऐसा कहकर कवि मनुष्यों विशेषकर किसानों और मज़दूरों के प्रति अपना लगाव और आभार व्यक्त करता है।

प्रश्न 4- भाव स्पष्ट कीजिए :--
  रूपान्तर है सूरज की किरणों का
  सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का !

उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश का भाव है कि फ़सल उगाने और उसके फलने-फूलने और लहलहाने में अनेक तत्त्वों का योगदान है। सूर्य की किरणें अपनी ऊर्जा को फ़सलों में समाहित करती हैं , जबकि वायु तत्त्व न हो तो पौधे साँस ही न ले पाएँगे।तात्पर्य यह कि हवा भी फ़सल को जीवंतता प्रदान करती है।इन दोनों तत्त्वों के अभाव में फ़सल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।फ़सल को उपजाने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।


प्रश्न 5- कवि ने फ़सल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है--
 
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे ?
उत्तर - अलग-अलग खेतों मे प्राय: भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। सभी मिट्टियाँ एक ही जैसी नहीं होतीं, न ही उनमें एक जैसी फ़सल ही उगाई जा सकती है।उनमें अलग - अलग विशेषताएँ पाई जाती हैं। वे अपनी विशेषताओं के आधार पर ही अलग - अलग फ़सलों को उगाती है। ये भिन्नता उसके गुण और धर्म के कारण ही होती है।

(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
उत्तर - वर्तमान युग में खेती के लिए वैज्ञानिक-पद्धति और संसाधनों के प्रयोग से मिट्टी के स्वाभाविक गुण नष्ट हो रहे हैं। अधिकाधिक मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग, गंदगी ,कचरा और प्लास्टिक जैसे पदार्थों के प्रदूषण आदि के कारण मिट्टी के गुण-धर्म में गिरावट आती जा रही है।निश्चित रूप से इसके लिए वर्तमान जीवन शैली दोषी है।

(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है।
उत्तर - मेरे विचार से मिट्टी ने यदि अपना गुण-धर्म छोड़ दिया तो धरती से हरियाली का, पेड़-पौधे और फ़सल आदि का नाम-ओ-निशाँ मिट जाएगा। इनके अभाव में तो धरती पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती । हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि मिट्टी का गुण-धर्म बना रहे।

(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर - मिट्टी के गुण - धर्म को पोषित करने में हम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हम मिट्टी को प्रदूषण से बचाकर, वृक्षारोपण कर , मिट्टी के कटाव को रोकने की व्यवस्था कर ,फ़सल-चक्र चलाकर, कम से कम मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करके हम मिट्टी के गुण-धर्म का का पोषण कर सकते हैं।

॥ इति - शुभम् ॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Monday 25 August 2014

CBSE CLASS X HINDI POEM DANTURIT MUSKAN NAGARJUN (दंतुरित मुसकान नागर्जुन)

  दंतुरित मुसकान
प्रश्न 1- बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर - दंतुरित का अर्थ है- बच्चे में पहली बार दाँत निकलना । बच्चों की दंतुरित मुसकान बड़ी मोहक होती है।अपने बच्चे की उस मुसकान पर कवि मोहित हो गया।उस निश्छल मुसकान ने कवि का हृदय परिवर्तन कर दिया। बाँस और बबूल जैसी कठोर प्रकृति वाले कवि को लगा कि उसके आस-पास शेफ़ालिका के फूल झड़ने लगे हों।वह मुसकान इतनी करिश्माई लगी जैसे मृतक में भी जान डाल सकती है। पत्थर को भी पिघला सकती है।उस मुसकान से प्रभावित संन्यास धारण कर चुका कवि पुन: गृहस्थ-आश्रम में लौट आया। 

 
प्रश्न 2- बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर - बच्चे अबोध होते हैं । अत: उनकी मुसकान निश्छल , नि:स्वार्थ और सहज होती है।उनमें इतनी समझ नहीं होती कि कब, कहाँ, किस बात पर और कैसे मुसकाना चाहिए । वे तो बस...अपनी स्वाभाविक मुसकान बिखेर
ना जानते हैं।
बड़े व्यक्ति परिपक्व बुद्धि के होते हैं। उनकी मुसकान समय, स्थान, परिस्थिति  आदि पर आधारित होती है। वे अपनी मुसकान पर नियंत्रण करना जानते हैं; अत: उनकी मुसकान में सहजता कम और बनावटीपन अधिक रहता है।कह सकते हैं कि बच्चे की मुसकान हृदय छू लेती है, जबकि  बड़ों की मुसकान वैसा आकर्षण नहीं रखती।

 
प्रश्न 3-कवि ने बच्चे की मुसकान के सौन्दर्य को किन-किन बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर - कवि नागर्जुन ने बच्चे की मुसकान के सौन्दर्य को जिन बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है,वे निम्नलिखित हैं:--
*मृतक में भी जान डाल देना ।
*कमल का तालाब छोड़कर झोपड़ी में खिलना ।
*बाँस या बबूल से शेफ़ालिका के फूलों का झड़ना ।
*स्पर्श पाकर पाषाण का पिघलना
*तिरछी नज़रों से देख कर मुसकाना।

 
प्रश्न 4- भाव स्पष्ट कीजिए :--
(क) - छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात ।
उत्तर - प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि कोमल शरीर वाले बच्चे खेलते हुए बहुत आकर्षक लगते हैं।उन्हें देख ऐसा लगता है,  जैसे कोई कमल का फूल तालाब में न खिलकर वहीं पर खिल गया हो।

(ख) - छू गया तुमसे कि झड़ने लग पड़े शेफ़ालिका के फूल
      बाँस था कि बबूल ?

उत्तर - प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि बच्चों के स्पर्श में ऐसा जादू होता है कि कठोर प्रकृति वाले भावहीन और संवेदनाशून्य व्यक्तियों में भी सुख , आनंद और वात्सल्य-रस का संचार कर देता है। 


प्रश्न 5- मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं।इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए ।
उत्तर -  मुसकान और क्रोध परस्पर विलोम भाव हैं। मुसकान से चेहरा आकर्षक , मन में प्रसन्नता और वातावरण में उल्लास भर जाता है।मुसकान कठोर एवम् भावशून्य हृदय वाले को भी कोमल और भावयुक्त बना देती है। इसमें पराए को भी अपना बना लेने की अद्भुत क्षमता होती है। जबकि; ठीक इसके विपरीत क्रोध से चेहरा भयानक,मन अशान्त और वातावरण तनावयुक्त बन जाता है।क्रोध से हृदय कठोर और संवेदनहीन हो जाता है।लोगों में भय और आतंक उत्पन्न हो जाता है, जिससे ग़ैर तो ग़ैर अपने भी पराए बन जाते हैं। 


प्रश्न 6- ‘दंतुरित मुसकान’ से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर - ‘दंतुरित मुसकान’ कविता को पढ़कर पाठक बड़ी सहजता से अनुमान लगा सकता है कि बच्चे की उम्र आठ - दस महीने की रही होगी। प्राय: 6 -10 महीने के बच्चे दंतुरित होने लगते हैं अर्थात् उनके दाँत निकलने आरम्भ हो जाते हैं। कई बार इससे कम या अधिक समय भी लग जाया करता है,परन्तु यहाँ माँ उँगलियों से मधुपर्क करा रही है।अत: बच्चे की उम्र अभी निश्चित रूप से 8-10 महीने ही रही होगी।अपने घर-परिवार में बच्चों के दंतुरित होने की उम्र को हम साक्षात्  देख सकते हैं।

प्रश्न 7- बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - कवि और वह बच्चा दोनों एक-दूसरे के लिए सर्वथा अपरिचित थे। कवि ने जब अपने बच्चे और उसके दंतुरित मुसकान को देखा तो उसके भीतर जैसे वात्सल्य - रस का स्रोत फूट पड़ा । समाज का त्याग कर संन्यास ले लेने वाले कवि का हृदय बच्चे के स्पर्श से इतना भावुक, रोमांचित और अभिभूत हो उठा कि वह पुन: गृहस्थ - आश्रम में लौट आया। बच्चे ने कवि की उंगलियाँ पकड़ रखी थी और अपलक कवि को निहार रहा था। बच्चा कहीं देखते-देखते थक न जाए ,ऐसा सोचकर कवि अपनी आँखें फेर लेता है। किन्तु बच्चा उसे तिरछी नज़रों से देखता है,जब दोनों की आँखें मिलती हैं तो बच्चा मुसका देता है। बच्चे की यह अदा कवि के मन को बहुत भाती है ।


॥ इति - शुभम् ॥

 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’


Friday 22 August 2014

CBSE CLASS IX HINDI KRITIKA-1 MERE SANG KI AURATEN (MRIDULA GARG) मेरे संग की औरतें - मृदुला गर्ग

मेरे संग की औरतें

प्रश्न-1- लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं ?
उत्तर- लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था ,परन्तु उनके बारे में सुना जरूर था। वे पर्दानशीं थी,बूढ़ी हो चली थी। पति अंग्रेजों के पक्षधर थे,फिर भी वे अपनी बेटी के लिए एक देशभक्त लड़के की तलाश कर रही थी। अनपढ़ होते हुए भी उनका अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व था और मन में देश की आज़ादी की ललक। वे लेखिका की अपनी नानी थी इसलिए उनसे प्रभावित होना स्वाभाविक ही था।

प्रश्न 2- लेखिका की नानी की आज़ादी के अंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही?
उत्तर- लेखिका की नानी स्वतंत्रता प्रिय महिला थीं। अब चाहे वह स्वतंत्रता व्यक्तिगत हो या फिर देशगत । उन्हें अंग्रेजों और अंग्रेज़ियत से चिढ़ थी। उनके मन में आज़ादी के लिए एक जुनून था। यह बात तब स्पष्ट होती है जब वे अपने पति के देशभक्त मित्र से अपनी बेटी के लिए एक देशभक्त वर की तलाश करने को कहती हैं।

प्रश्न 3- लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में--
 (क) लेखिका के माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- लेखिका की माँ बहुत ही नाजुक,सुंदर और स्वतंत्र विचारों की महिला थीं। उनमें ईमानदारी,निष्पक्षता और सचाई भरी हुई थी।वे अन्य माताओं की तरह कभी भी अपनी बेटी को अच्छे-बुरे की न सीख दी और न खाना पकाकर खिलाया । उनका अधिकांश समय अध्ययन अथवा संगीत को समर्पित था। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और न कभी इधर की बात उधर करती थीं । शायद यही कारण था कि हर काम में उनकी राय ली जाती थी और सब कोई उसे सहर्ष स्वीकारता भी था।

(ख) लेखिका की दादी के घर के महौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
उत्तर- लेखिका की दादी के घर में कुछ लोग जहाँ अंग्रेज़ियत के दीवाने थे,वहीं कुछ लोग भारतीय नेताओं के मुरीद भी थे घर में बहुमति होने के बाद भी एकता का बोलबाला था। घर में किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं थी। सभी लोग अपनी -अपनी स्वतंत्रता एवं निजता बनाए रख सकते थे। घर के बच्चों के पालन-पोषण में घर के सभी लोग जिम्मेदार थे। कोई भी सदस्य अपने विचार किसी पर थोप नहीं सकता था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि घर का माहौल अमन-चैन से भरपूर और सुखद था।

प्रश्न 4- अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने अपनी पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी?
उत्तर- दादीजी एक सामान्य महिला थीं।उनके मन में लड़का - लड़की का भेद नहीं था। पीढ़ियों से परिवार में किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था। प्राय: सभी लोग लड़के की कामना करते थे । दादीजी को ये भेदभाव शायद चुभता होगा। परिवार में किसी कन्या का न होना , उनके मन को बेचैन करता होगा । अपने मन की इसी अशांति को मिटाने के लिए शायद उन्होंने भगवान से प्रार्थना की होगी, जिससे खुश होकर भगवान ने उन्हें एक नहीं बल्कि पाँच-पाँच पोतियों की दादी बना दिया।

प्रश्न 5 - डराने - धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है-- पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- प्राय: देखने-सुनने में आता है कि अच्छा-खासा भला व्यक्ति भी अपराधी बन जाता है। इस अचानक व्यक्तित्व परिवर्तन के पीछे कोई लाचारी , मजबूरी या बेहद जरूरी कारण हो सकते हैं। इन्हें डरा - धमकाकर , मार-पीटकर , उपदेश देकर अथवा दबाव डालकर भी सही राह पर नहीं लाया जा सकता। इनके अपराधी बनने के पीछे कोई विशेष कारण होता है। ऐसे लोग मूलत: नेक, सदाचारी और भले लोग होते हैं। प्रतिकूल परिस्थिति वश अपराधी बनते हैं। इनके अंदर सद-प्रवृत्तियाँ दबी हुई रहती हैं। यदि इन्हें समझाया जाए, मौका दिया जाए और इनके अपराध को नजर-अंदाज कर इनकी सहायता की जाए, तब निश्चित रुप से इनके अंदर की सद-प्रवृत्तियाँ जग जाएँगी और ये सही राह पर वापस लौट सकते हैं।

प्रश्न 6-‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’-इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेखिका को यह बात तब पूरी तरह समझ में आ गई , जब उनके दो बच्चे स्कूल में जाने लायक हो गए । लेखिका कर्नाटक के एक छोटे कस्बे में रहती थी। उन्होंने वहाँ के कैथोलिक चर्च के विशप से एक स्कूल खोलने का आग्रह किया। परंतु उन्होंने क्रिश्चियन बच्चों की संख्या कम होने की बात कहकर स्कूल खोलने से मना कर दिया। लेखिका ने कहा कि गैर- क्रिश्चियन बच्चों को भी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, परंतु विशप तैयार नहीं हुए । ऐसे में लेखिका ने आगे बढ़ते हुए अपने दम पर एक ऐसा स्कूल खोलने का मन बना लिया जिसमें अंग्रेज़ी,कन्नड़ और हिन्दी तीन भाषाएँ पढ़ाई जाएँगी। लोगों ने भी लेखिका का साथ दिया और वे बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने में सफल रहीं।

प्रश्न 7- पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जो लोग कभी झूठ नहीं बोलते और सच का साथ देते हैं । जो किसी की बात को इधर-उधर नहीं करते अर्थात् चुगलखोरी से दूर रहते हैं। जिनके इरादे मजबूत होते हैं,जो हीन भावना से ग्रसित नहीं होते तथा जिनका व्यक्तित्व सरल, सहज एवं पारदर्शी होता है, उन्हें पूरा समाज श्रद्धा भाव से देखता है।

प्रश्न 8-‘सच, अकेलेपन का मज़ा ही कुछ और है’-इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर- लेखिका की चौथी बहन रेणु अपनी इच्छा की स्वामिनी थी। उसे अलग-थलग रहना बहुत अच्छा लगता था और अपने मन की करने में बहुत आनंद आता था। एक बार बरसात में सब ने कहा कि स्कूल बंद होगा, मत जाओ परंतु वह न मानी अकेले ही पैदल गई और स्कूल को बंद देखकर वापस आ गई।
लेखिका भी उसी के समान अकेले अपनी मन की करके आनंदित होती थी। उन्होनें बिहार में रहते हुए औरतों को पराए मर्दों के साथ नाटक में काम करवाय॥ फिर कर्नाटक में रहते हुए अपने दम पर प्राइमरी स्कूल खोला। ऐसा कर के उन्हें अपार खुशी मिलती थी। इस प्रकार दोनों बहनों के व्यक्तित्व में ‘अपना कहा मानने’ जैसी समानता थी। दोनों बहनें अकेले ही अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रही और आनंदित होती रही। अत: लेखिका ने ठीक ही कहा है- सच, अकेलेपन का मज़ा ही कुछ और है।
॥ इति - शुभम् ॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Wednesday 20 August 2014

CBSE CLASS X HINDI GRAMMAR ANUBHAV (अनुभाव)

  अनुभाव

अनुभाव का अर्थ है- किसी भाव के उत्पन्न होने के बाद उत्पन्न होने वाला भाव।तात्पर्य यह कि जब किसी के हृदय में कोई भाव उत्पन्न होता है और उत्पन्न भावों के परिणाम स्वरूप वह जो चेष्टा करता है या उसमें जो क्रियात्मकता आती है , उस चेष्टा या क्रियात्मकता को अनुभाव कहते हैं।
जैसे - क्रोध का भाव जगने पर.....


 काँपना , दाँत पीसना,मुट्ठी भींचना,गुर्राना,आँखें लाल हो जाना आदि अनुभाव हैं।
 
अनुभाव दो प्रकार के होते हैं :-
(अ) साधारण अनुभाव :- कोई भी भाव उत्पन्न होने पर जब आश्रय (जिसके मन में भाव उत्पन्न हुआ है) जान- बूझ कर यत्नपूर्वक कोई चेष्टा , अभिनय अथवा क्रिया करता है,तब ऐसे अनुभाव को साधारण या यत्नज अनुभाव कहते हैं।

 जैसे :- बहुत प्रेम उमड़ने पर गले लगाना

 क्रोध आने पर धक्का देना आदि साधारण या यत्नज अनुभाव हैं।


(आ) - सात्विक अनुभाव :- कोई भी भाव उत्पन्न होने पर जब आश्रय (जिसके मन में भाव उत्पन्न हुआ है) द्वारा अनजाने में अनायास, बिना कोई यत्न किए स्वाभाविक रूप से कोई चेष्टा अथवा क्रिया होती है,तब ऐसे अनुभाव को सात्विक या अयत्नज अनुभाव कहते हैं।


 जैसे - डर से जड़वत् हो जाना , पसीने पसीने होना , काँपना
चीख पड़ना , हकलाना  और रोना आदि सात्विक या अयत्नज अनुभाव हैं।

॥ इति - शुभम् ॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Tuesday 12 August 2014

CBSE CLASS X HINDI VYAKARAN VIBHAV (हिन्दी व्याकरण विभाव)

 विभाव

 भाव को प्रकट करने वाले कारण को विभाव कहते हैं। अर्थात् वे सभी साधन जिनके कारण हमारे मन में भाव उत्पन्न होते हैं,उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव को समस्त रसों का जनक भी कहा जा सकता है, क्योंकि रसों की उत्पत्ति इन्हीं के कारण हुआ करती है। 
जैसे--
 चुटकुला पढ़ कर हँसना                          साँप देखकर डर जाना।













यहाँ ‘चुटकुला’ और ‘साँप’ विभाव हैं क्योंकि इनसे क्रमश: हास और भय का भाव उत्पन्न हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो हास्य और भयानक रस की उत्पत्ति हो रही है।

विभाव दो प्रकार के होते हैं-
(क) आलंबन विभाव - जब किसी विभाव को देखकर हमारे मन में भी ठीक वैसा ही भाव उत्पन्न हो, तो वह उत्पन्न भाव ‘आलंबन विभाव’ कहलाता है।
जैसे - किसी हँसते हुए व्यक्ति को देखकर हँसी आना। 


प्रेमी युगल को प्रेम करते देखकर मन में प्रेम उमड़ना आदि।


आलंबन विभाव के दो भेद होते हैं-
(अ) आलंबन- जिसे देखकर, पढ़कर या सुनकर भाव उत्पन्न हो, वह आलंबन कहलाता है।
जैसे- राम को देखकर रावण क्रोधित हो गया ।


यहाँ ‘राम’ आलंबन हुए क्योंकि उनको देखकर ही क्रोध उत्पन्न हुआ है।


(आ) आश्रय - जिसके हृदय में भाव उत्पन्न हो, उसे आश्रय कहते हैं।
जैसे- राम को देखकर रावण क्रोधित हो गया ।  

इस वाक्य में ‘रावण’ के हृदय में भाव उत्पन्न हुआ हैअतः रावण‘आश्रय’ हुआ।


(ख) उद्दीपन विभाव- कभी-कभी किसी को देखकर सुनकर या पढ़कर हमारे मन में भी ठीक वैसे ही भाव उत्पन्न हो जाते हैं । किन्तु किन्हीं परिस्थितियों के कारण जब वे भाव और अधिक प्रगाढ़ हो जाएँ , तो उन परिस्थितियों को उद्दीपन विभाव कहते हैं। अर्थात् स्थायी भाव को और अधिक बढ़ाने या भड़काने में  सहायक कारण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
जैसे- करुण रस के स्थायी भाव शोक के लिए सामने पड़ी हुई किसी अपने की लाश आलंबन विभाव है।

लाश के साथ बैठे उदास लोग, घर वालों का रूदन-क्रंदन, मृतक के अच्छाइयों की चर्चा,लाश उठाने की तैयारियाँ आदि उद्दीपन विभाव हैं क्योंकि ये शोक को और अधिक बढ़ाते हैं। 

उद्दीपन विभाव दो होते हैं :--
(अ) आलंबन गत उद्दीपन - जिसे देख कर कोई भाव उत्पन्न हुआ हो और उसकी क्रियाओं या चेष्टाओं से क्रमश: उसमे और बढ़ोत्तरी हो रही हो। ऐसी क्रियाओं या चेष्टाओं को आलंबन गत उद्दीपन कहा जाता है।
जैसे - किसी हास्य अभिनेता (जोकर) को देखकर मुस्कुरा देना

और फ़िर उसकी वे सारी बातें , उसके हाव-भाव आदि जिन्हें देख-देख कर हम ठहाका लगाते हैं या लोट-पोट हो जाते हैं। वे सारी बातें और हाव-भाव आलंबन गत उद्दीपन हैं।

(आ) वातावरण गत उद्दीपन- किसी को देख कर जब कोई भाव उत्पन्न हो और वातावरण , प्रकृति या किन्हीं अन्य दूसरे कारणों के चलते जब उस भाव में बढ़ोत्तरी हो , तब वे बाहरी कारण वातावरण गत उद्दीपन कहलाते हैं।
जैसे - भय का भाव ।


अंधेरी रात , एकांत , सर
राहट , हिंसक पशुओं या उल्लू आदि की आवाज़  भय को बढ़ाते हैं, अत: ये वातावरण गत उद्दीपन कहलाएँगे।


अनुभाव क्रमश: अगले पोस्ट में...


 
॥ इति - शुभम् ॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Sunday 3 August 2014

CBSE CLASS 10 HINDI GRAMMAR - BHAV SANCHARI BHAV (हिन्दी व्याकरण भाव संचारी भाव)

भाव

स्थायी भाव के साथ विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से प्राप्त चामत्कारिक आनंद-विशेष को रस कहते हैं।
(१) संचारी भाव/व्यभिचारी भाव - संचारी का अर्थ है- साथ साथ संचरण करने वाला अर्थात् साथ-साथ चलने वाला। संचारी भाव किसी न किसी स्थायी भाव के साथ प्रकट होते हैं। ये क्षणिक,अस्थायी और पराश्रित होते हैं, इनकी अपनी अलग पहचान नहीं होती ।ये किसी एक स्थायी भाव के साथ न रहकर सभी के साथ संचरण करते हैं , इसलिए इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।

* संचारी भाव या व्यभिचारी भाव 33 होते हैं :--
१- अपस्मार(मूर्छा)      १२- चपलता      २३- लज्जा
२- अमर्ष(असहन)      १३- चिन्ता       २४- विबोध
३- अलसता           १४- जड़ता       २५- वितर्क
४- अवहित्था(गुप्तभाव)  १५- दैन्य        २६- व्याधि
५- आवेग            १६- धृति        २७- विषाद
६- असूया            १७- निद्रा        २८- शंका
७- उग्रता             १८- निर्वेद(शम)   २९- श्रम
८- उन्माद            १९- मति        ३०- संत्रास
९- औत्सुक्य          २०- मद         ३१- स्मृति
१०- गर्व             २१- मरण        ३२- स्वप्न
११- ग्लानि           २२- मोह         ३३- हर्ष

॥ इति - शुभम् ॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Friday 1 August 2014

CBSE CLASS 10 HINDI GRAMMAR RAS (हिन्दी व्याकरण- रस)

रस की परिभाषा

सामान्यत: रस पीने या चखने की चीज़ है। जिस तरह रस-पान से हमारी सामान्य दैहिक पिपासा शान्त होती है, ठीक उसी तरह साहित्यिक रस-पान से हमारी आत्मिक या मानसिक पिपासा शान्त होती है। साहित्यिक रस-पान देखकर , सुनकर और पढ़कर किया जाता है। रस काव्य या साहित्य की आत्मा है।
साहित्य या काव्य को पढ़ते या सुनते समय हमें जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ही रस कहा जाता है ।


 इनकी संख्या ११ है :-- 
शृंगार , हास्य , रौद्र , करुण , वीर , अदभुत ,वीभत्स , भयानक , शान्त , वात्सल्य , भक्ति ।
 परन्तु; जिस प्रकार जिह्वा के बिना रस का आस्वादन नहीं किया जा सकता ,ठीक उसी प्रकार स्थायी भाव के बिना साहित्य के रस का आस्वादन नहीं किया जा सकता है। 

स्थायी भाव

हमारे हृदय में सदा - सर्वदा से विराजित रहने वाले भाव जिनसे हम अपनी भावनाएँ प्रकट कर सकने में समर्थ होते हैं, वे स्थाई भाव कहलाते हैं।ये भाव हमारे भीतर जन्म से होते हैं और मृत्यु पर्यन्त रहते हैं। समय और परिस्थिति के अनुरूप ये स्वत: प्रकट होते रहते हैं ; अत: इन्हें स्थायी भाव कहते हैं।

स्थायी भावों की संख्या ११ मानी गई हैं :--
 
रति, हास , क्रोध , शोक , उत्साह , विस्मय  जुगुप्सा (घृणा) , भय,
निर्वेद (शम) , सन्तान के प्रति प्रेम , भगवान के प्रति प्रेम ।


 रस और उनके स्थायी भाव ,  देवता  तथा  रंग :--

   रस   स्थायी भाव -   देवता      -  रंग

 
१ - शृंगार     -   रति   -   विष्णु     -  श्याम
२ - हास्य     -   हास   -   प्रमथ     -  सित
३ - रौद्र      -  क्रोध    -  रुद्र       -   रक्त
४ - करुण     -   शोक  - यमराज      -  कपोत
५ - वीर      -  उत्साह   -  इंद्र       -   गौर
६ - अदभुत   -   विस्मय -    ब्रह्मा    -   पीत
७ - वीभत्स  - जुगुप्सा (घृणा) - महाकाल  -   नील
८ - भयानक -  भय          - कालदेव  - कृष्ण
९ - शान्त    - निर्वेद (शम)  - नारायण  - कुंदेंदु
१० - वात्सल्य - सन्तान - प्रेम  -   --  -   --
११ - भक्ति   -  भगवत् - प्रेम   -   --  -   --


विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’