Tuesday 28 October 2014

CBSE CLASS 10-HINDI-stri shiksha ke virodhi kutarkon ka khandan (स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन)


 स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन 

प्रश्न 1 - कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया ?
उत्तर - कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्री-शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने उनके तर्कों को कुतर्क कहते हुए व्यर्थ बताया है।साथ ही विभिन्न सुतर्क देते हुए प्राचीन काल की अनेक विदुषी महिलाओं का उदाहरण देते हुए यह साबित भी किया है कि तत्कालीन समय में भी स्त्री-शिक्षा का चलन था। पुनश्च ; उन्होंने यह भी कहा है कि यह माना कि पुराने समय में स्त्री पढ़ी-लिखी नहीं थी,शायद स्त्रियों को पढ़ाना तब जरूरी नहीं माना गया। लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं,इसलिए उन्हें पढ़ाना चाहिए। जैसे आवश्यकता के अनुसार पुराने नियम को तोड़कर हमने नए नियम बनाए हैं , उसी प्रकार स्त्रियों की शिक्षा के लिए भी नियम बनाना चाहिए।


प्रश्न 2 - ‘ स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं ’ -- कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - ‘ स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं ’ -- द्विवेदी जी ने इस कुतर्क का पुरज़ोर विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि पढ़ाई करने के बाद यदि स्त्री को अनर्थ करने वाली माना जाता है ,तो पुरूषों द्वारा किया हुआ अनर्थ भी शिक्षा का ही दुष्परिणाम समझा जाना चाहिए। यदि पढ़ - लिखकर व्यक्ति अनर्थ ( चोरी,डकैती,हत्या आदि ) करता है, तो सारे स्कूल और कॉलेज़ बन्द कर दिए जाने चाहिए। परोक्ष रूप से द्विवेदी जी ने कहा है कि अनर्थ तो पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों से ही हो सकते हैं। हमें इसे शिक्षा से नहीं जोड़ना चाहिए।

प्रश्न 3 - द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोघी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है - जैसे 'यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरूषों का मुकाबला करतीं।' आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर - द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए निम्नलिखित चुभते व्यंग्यों का सहारा लिया है :-
* स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट ! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
* वेदों को प्राय: सभी हिन्दू ईश्वर-कृत मानते हैं। वेद प्रमाणित है कि ईश्वर वेद-मंत्रों की रचना अथवा उनका दर्शन विश्ववरा आदि स्त्रियों से करावे और हम उन्हें ककहरा पढ़ाना भी पाप समझें।
* स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
* शकुन्तला पढ़ी लिखी न होती तो वह अपने पति के विषय में ऐसी अनर्थपूर्ण बात नहीं करती।लेखक ने पुरुषों द्वारा किए अनर्थ को भी पढ़ाई का दुष्परिणाम कहकर व्यंग्य किया है।
* "आर्य पुत्र, शाबाश ! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!"
* द्विवेदी जी के अनुसार रामायण के बंदर भी संस्कृत बोलते थे। इसे आधार मानकर स्त्री-शिक्षा के कुतर्कों को नकारा साबित करने के लिए उन्होंने व्यंग्यपूर्ण प्रश्न किया है - “ यदि बंदर संस्कृत बोल सकते थे तो क्या स्त्रियाँ संस्कृत नहीं बोल सकती थीं ? ”
* अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घण्टों पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी (भारती) शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे! गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी !
* जिन पंडितों ने गाथा - सप्तशती , सेतुबंध - महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अख़बार के संपादक को इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अख़बार लिखता है।
ऐसे अनेक उदाहरण देकर द्विवेदी जी ने कहा है कि विक्षिप्तों , वात - व्यथितों और ग्रह-ग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे।



प्रश्न 4 - पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है - पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - जिस प्रकार आजकल हिन्दी और बाँग्ला आदि सर्वसाधारण की भाषा है, ठीक इसी प्रकार तत्कालीन समय में प्राकृत भी सर्वसाधारण की भाषा थी। संस्कृत कम ही लोग बोलते थे। बौधों और जैनियों के हज़ारों ग्रंथ प्राकृत में लिखे गए। अब उन ग्रंथों के लेखकों को अनपढ़ तो नहीं कहा जा सकता। यदि ऐसा ही है तब तो आज के हिन्दी , बाँग्ला आदि भाषाओं के सभी लेखक अनपढ़ कहे जाएँगे , क्योंकि ये भी संस्कृत नहीं बोलते । अत: कहा जा सकता है कि प्राकृत बोलना अनपढ़ होने का सबूत नहीं है।


प्रश्न 5 - परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री - पुरुष समानता को बढ़ाते हों--तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर - प्राचीन काल से हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है , अत: परम्पराएँ भी पुरूष - पोषिका हैं। नारियों के उत्थान-पतन में पुरूषों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इस बात को ध्यान में रखें तो परम्पराओं की लम्बी - चौड़ी फ़ेहरिश्त में कुछ ही हैं जो स्त्री-पुरूष की समानता को बढ़ावा देती हैं और जिन्हें आज भी अपनाया जा सकता है। शेष ; त्याज्य हैं। स्त्री और पुरूष एक - दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का विकास कभी संभव नहीं हो सकता । अत: परम्परा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए , जो स्त्री-पुरूष की समानता को बढ़ावा देते हों।


प्रश्न 6 - तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर - तब की शिक्षा - प्रणाली केवल और केवल पुरूषों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी , उसमें स्त्रियाँ कहीं थीं ही नहीं। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था। कुमारिकाओं को घर में रहते हुए सिर्फ़ नृत्य , गायन , शृंगार और भोजन बनाने की कला ही सीखने की अनुमति थी। जबकि पुरूष आश्रमों , मंदिरों और मठों आदि में जाया करते थे।
वर्तमान की शिक्षा-प्रणाली में किसी प्रकार के भेद - भाव का स्थान नहीं है। आज स्त्री - पुरूष के लिए शिक्षा की एक ही प्रणाली है। सबको समान शिक्षा दी जाती है। सह-शिक्षा इसका जीता-जागता उदाहरण है।



प्रश्न 7 - महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर - द्विवेदी जी के समय के समाज में स्त्रियों पर ज़ुल्म होते थे। उन्हें कोई हक़ या अधिकार प्राप्त नहीं था। बड़ी दयनीय स्थिति थी। द्विवेदी जी का मानना था कि स्त्री-पुरूष दोनों के सहयोग से ही समाज का विकास संभव है। अत: उन्होंने स्त्रियों के हक़ , अधिकार , स्वतंत्रता और शिक्षा की वकालत की। अपने निबंधों में उन्होंने शकुन्तला , सीता , गार्गी , विश्ववरा आदि स्त्रियों की बातों के माध्यम से स्त्री - शिक्षा की सिफ़ारिश की। नियमों और परम्पराओं को तोड़ने और छोड़ने कीबात की। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि द्विवेदी जी के निबंध उनकी दूरगामी  और खुली सोच के परिचायक हैं , क्योंकि आज सचमुच ठीक वैसा ही हुआ है ; जो हमारे लिए मंगलकारी है।


प्रश्न 8 - द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर - महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे। उन्होंने भाषा - सुधारक के रूप में व्याकरण और वर्तनी के नियमों को भी स्थिर किया है। इनकी भाषा व्यवहारिक , सरल , प्रवाहमयी और सहज थी। तत्सम , तद्भव , देशज और उर्दू की प्रचलित शब्दावली , विभिन्न प्रचलित कहावतों एवम् लोकोक्तियों से इनके लेख में सजीवता आ जाती थी। द्विवेदी जी की भाषा स्पष्ट है। व्यंग्यात्मकता इनके भाषा की मुख्य विशेषता है। द्विवेदी जी जन - प्रचलित शब्दों के प्रयोग के पक्षधर थे। प्रस्तुत निबन्ध उनकी भाषा - शैली का एक सशक्त उदाहरण है।
 

॥  इति शुभम्  ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Friday 24 October 2014

CBSE CLASS X : HINDI TEXTBOOK SOLUTION - EK KAHANI YAH BHI (एक कहानी यह भी)


 एक कहानी यह भी

प्रश्न 1 - लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?

उत्तर - लेखिका के व्यक्तित्व पर उनके पिता और उनके कॉलेज़ की हिन्दी-प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव सबसे अधिक पड़ा। गोरे रंग के प्रति पिता के आकर्षण तथा साँवले रंगवाली लेखिका की उपेक्षा ने उसमें हीन भावना पैदा कर शक्की बनाया। पिता के व्यवहार ने लेखिका के मन में आक्रोश , विद्रोह और जागरूकता भरा। शीला अग्रवाल ने उनमें पुस्तकों के चयन तथा साहित्य में रूचि उत्पन्न की । तत्कालीन राजनीति में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित कर उन्होंने लेखिका को एक नया रास्ता दिखाया।

प्रश्न 2 - इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?

उत्तर - ‘भटियार खाना’ का अर्थ है- ऐसा घर या स्थान जहाँ भट्ठी जलती है अथवा वैसा घर जहाँ लोगों द्वरा लोक-लज्जा का त्याग कर अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता हो। यहाँ लेखिका के पिता रसोईघर को ‘भटियार खाना ’ कहते हैं। उनके अनुसार रसोईघर की भट्ठी में महिलाओं की समस्त प्रतिभा जलकर भस्म हो जाती है, क्योंकि उन्हें वहाँ से कभी फ़ुर्सत ही नहीं मिलती कि वे अपनी कला और प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें। उन्हें अपनी इच्छाओं का गला घोंटना पड़ता है।

प्रश्न 3 - वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?

उत्तर - लेखिका और उसके साथियों की नारेबाज़ी और हड़ताल के कारण कॉलेज़ प्रशासन को कॉलेज़ चलाने में कठिनाई हो रही थी। फलत; लेखिका के पिता के पास कॉलेज़ के प्रिंसिपल का पत्र आया, जिसमें लेखिका के क्रिया - कलापों की शिकायत की गई थी। वे आग-बबूला होकर कॉलेज़ गए। परन्तु ; अपनी बेटी के कारनामें जानकर और उसके प्रभाव को देखकर उन्हें मन ही मन गर्व हुआ। लेखिका पिता के डर से अपने पड़ोसी के यहाँ बैठ गई थी। माँ ने जब जाकर बताया कि उसके पिताजी क्रोधित नहीं हैं, तो वह घर आई। पिता की बातें सुनकर और उनकी खुशी देखकर लेखिका को न तो अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न अपने कानों पर।

प्रश्न 4 - लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - लेखिका ने जब से होश संभाला तब से प्राय: किसी न किसी बात को लेकर अपने पिता के साथ उसका टकराव होता ही रहता था। लेखिका के रंग को लेकर पिता ने उसके मन में हीनता भर दी थी। वे लेखिका में विद्रोह और जागरण का भाव भरना तो चाहते थे , परन्तु ; उसे घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहते थे। लेखिका को रंग का भेदभाव पसंद न था, साथ ही पिता का शक्की स्वभाव भी उसे खलता था। वह भी स्वतंत्रता - संग्राम में सक्रिय भागीदार होना चाहती थी। प्राय: इन्हीं मुद्दों पर दोनों में वैचारिक टकराहट होती रहती थी।

प्रश्न 5 - इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर - सन् 1946-47 ई. में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफ़ान पर था। हर तरफ़ हड़तालें , प्रभात - फ़ेरियाँ, ज़ुलूस और नारेबाज़ी हो रही थी। घर में पिता और उनके साथियों के साथ होनेवाली गोष्ठियों और गतिविधियों ने लेखिका को भी जागरूक कर दिया था। प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को स्वतंत्रता - आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया। जब देश में नियम - कानून और मर्यादाएँ टूटने लगीं, तब पिता की नाराज़गी के बाद भी वे पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ीं। उनका उत्साह , संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा देखते ही बनता था। वे चौराहों पर बेझिझक भाषण, नारेबाज़ी और हड़तालें करने लगीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भी सक्रिय भूमिका थी।

प्रश्न 6 - लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले, किन्तु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं? अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।

उत्तर - बचपन में लेखिका ने गिल्ली-डंडा और पतंग उड़ाने जैसे खेल तो खेले, लेकिन उनका दायरा घर की चारदीवारी तक ही सीमित था। इस दृष्टि से आज स्थितियाँ एकदम बदल-सी गई हैं। आज लड़कियाँ घर की चौखट लाँघ कर खेल के मैदानों में पहुँच गईं हैं। उन पर लगी पाबंदियाँ क्रमश: कमतर होती जा रही हैं। यही कारण है कि लड़कियाँ केवल खेल में ही नहीं , अपितु अन्य लड़कों की तरह समाज सेवा , नौकरी , व्यापार आदि क्षेत्रों में भी अपना वर्चस्व स्थापित करते जा रही हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि आज लड़कियाँ घर की चारदीवारी में बन्द नहीं हैं।

प्रश्न 7 - मनुष्य के जीवन में आस - पड़ोस का बहुत महत्व होता है। बड़े शहरों में रहने वाले लोग प्राय: ‘पड़ोस-कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। अपने अनुभव के आधार पर लिखिए।

उत्तर - मनुष्य के जीवन में ‘पड़ोस-कल्चर’ का बड़ा महत्व है। पड़ोसी प्राय: एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। गाँवों में ‘पड़ोस-कल्चर’ के आज भी दर्शन होते हैं। परन्तु; दुर्भाग्यवश शहरों में ‘पड़ोस-कल्चर’ प्राय: है ही नहीं। महानगरों के लोग इससे सर्वथा वंचित रह जाते हैं। आज नगरों में नर - नारी दोनों कामकाजी हैं। वे अपने काम और घर के अलावा कुछ दूसरा सोच ही नहीं पाते। वे स्व - केन्द्रित हो गए हैं। बच्चे भी अपने भविष्य की चिन्ता में खोए रहते हैं। आज लोग पड़ोसी से इतने कटे हैं कि उन्हें अपने पड़ोसी का नाम भी नहीं मालूम होता , फ़िर भला सुख - दुख बाँटने की तो बात ही दूसरी है।


॥  इति शुभम्  ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday 18 October 2014

HINDI GRAMMAR PRONOUN - HINDI VYAKARAN SARVANAM (हिन्दी व्याकरण सर्वनाम)

सर्वनाम


           1. अथर्व खेल कर आया , वह अब पढ़ेगा ।


2. रूद्र ने अपने दोस्तों से कहा , मैं भी पढूँगा।




इन वाक्यों में ‘वह’ और ‘मैं’ शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हुए हैं। अतः ये सर्वनाम हैं। 

संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।

सर्वनाम के भेद :-
1. पुरुषवाचक सर्वनाम
2. निश्चयवाचक सर्वनाम
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
4. प्रश्नवाचक सर्वनाम 
5. सम्बन्धवाचक सर्वनाम
6. निजवाचक सर्वनाम


1. पुरुषवाचक सर्वनाम :- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाले , सुनने वाले या किसी अन्य के लिए होता है , उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे - मैं , तुम , वह आदि।


इस दृष्टि से पुरुषवाचक सर्वनाम के निम्नलिखित तीन भेद हैं :-

(क) उत्तम पुरूष :- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला या लिखने वाला अपने लिए करता है , उस सर्वनाम को उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे :-


               (अ) - मैं पत्र लिख रहा हूँ।  


(आ) - हमलोग रायगंज में रहते हैं।






(ख) मध्यम पुरूष :- बोलने वाला या लिखने वाला जिस सर्वनाम का प्रयोग सुनने वाले या पढ़ने वाले के लिए करता है , उस सर्वनाम को मध्यम पुरूषवाचक सर्वनाम कहते हैं। 

जैसे :-  (अ) - तुम उधर मत जाओ ?




(आ) - तुमलोग क्या खा रहे हो ?




(ग) - अन्य पुरूष :- बोलने वाले और सुनने वाले अपने या सामने वाले के अलावा अन्य तीसरे व्यक्ति के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करते हैं ,उस सर्वनाम को अन्य पुरूषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे - 


                                                                   (अ) - वह फल खाता है



(आ) - वेलोग दिन भर खेलते हैं।



2. निश्चयवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम किसी निश्चित वस्तु , व्यक्ति या घटना के लिए प्रयुक्त होते हैं , वे निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे- 

                    (अ) - वह मेरा भाई है।

(आ) - यह तुम्हारी कलम है।





3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम :-  जो सर्वनाम किसी अनिश्चित वस्तु , अनिश्चित व्यक्ति या अनिश्चित घटना के लिए प्रयुक्त होते हैं , वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। 
जैसे - 

 (अ) - कोई आ रहा है।
            (आ) - वहाँ कुछ चिपक गया है।


4. प्रश्नवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम प्रश्न पूछने के लिए प्रयोग किया जाता है , उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे :- 
(अ) - वहाँ कौन गाना गा रहा है ?
                       (आ) - तुम क्या खा रहे हो ?
5. सम्बन्धवाचक सर्वनाम :- जो सर्वनाम दो पदों के बीच सम्बन्ध जोड़ता है , उसे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे-

  (अ) - जिसकी लाठी , उसकी भैंस । 

     (आ) - जो सोता है , सो खोता है।




6. निजवाचक सर्वनाम :- वक्ता या लेखक जिस सर्वनाम का प्रयोग वाक्य में अपने लिए करता है , उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे - 

(अ) - हमें अपना काम अपने आप करना चाहिए ।

                     
             (आ) - तुम अपना काम स्वयं करो। 



॥  इति शुभम्  ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Thursday 16 October 2014

CBSE HINDI GRAMMAR NOUN - HINDI VYAKARAN SANGYA (सी.बी.एस.ई हिन्दी व्याकरण संज्ञा)

संज्ञा

संज्ञा का शाब्दिक अर्थ है - नाम । अर्थात् नाम को संज्ञा कहते हैं। दूसरे शब्दों में; किसी व्यक्ति  ,वस्तु , स्थान एवम् भाव के नाम को संज्ञा कहा कहते हैं।
 जैसे -

संज्ञा के पाँच भेद माने जाते हैं :-
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
2. जातिवाचक संज्ञा
3. भाववाचक संज्ञा
4. समूहवाचक संज्ञा
5. द्रव्यवाचक संज्ञा

1. व्यक्तिवाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी एक विशेष व्यक्ति , वस्तु या स्थान आदि का बोध होता है, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे :-
 

2. जातिवाचक संज्ञा :- जिस शब्द से एक ही जाति के अनेक प्राणियों , वस्तुओं अथवा स्थनों का बोध होता है , उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे :- 



3. भाववाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी व्यक्ति , वस्तु या स्थान आदि के गुण , दोष , दशा , स्वभाव आदि का बोध होता है, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे :-
 

4. समूहवाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी समूह या समुदाय का बोध होता है , उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे :-


5. द्रव्यवाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी द्रव्य , पदार्थ या धातु आदि का बोध होता है , उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे :-



* संज्ञा - पदों के विभिन्न प्रयोग :-
 

(क) - व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रुप में प्रयोग :-
 कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रुप में होता है।
जैसे :-

 
(अ)  - समाज में दुर्योधनों ने आतंक मचा रखा है। 
 


(आ) - हर राजनीतिक दल में जयचंदों की भरमार है ।
 



(इ) -  देश में श्रवण कुमारों की कमी नहीं है।

 



(ख) भाववाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रुप में प्रयोग :-
 कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रुप में होता है।
जैसे :- 

(अ) - मेघा को भारतीय पहनावे बेहद हैं। 
 

(आ) - स्नेहा दिखावे करने में ही व्यस्त रहती है। 


(इ) वर्षा के कारण आज कई उड़ाने रद्द हो गईं। 





(ग) - जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रुप में प्रयोग :- 

कभी - कभी जातिवाचक संज्ञा का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञा के रुप में होता है।
जैसे :-

(अ)  - गाँधी जी ने देश के लिए कई बार आंदोलन किए। 


 
(आ) - पंडित जी भारत के प्रधानमंत्री हुए।  


(इ)- शास्त्री जी दृढ़ - संकल्प वाले व्यक्ति थे। 




*भाव वाचक संज्ञाओं की रचना :- 

(1) जातिवाचक संज्ञाओं से :-
 
देव     - देवत्व                       नेता   - नेतृत्व
दानव    - दानवता                     मनुष्य - मनुष्यता
बच्चा    - बचपन                      पशु   - पशुता
आदमी   - आदमीयत                    जंगल  - जंगलीपन
नेता     - नेतृत्व                      माता  - मातृत्व
चिकित्सक - चिकित्सा                    पुरूष  - पौरूष
पंडित     - पांडित्य                   व्यापारी - व्यापार 
राष्ट्र      - राष्ट्रीयता                   भाई - भाईचारा



(2) - सर्वनामों से :-
 

अहं   - अहंकार                         मम - ममत्व
अपना - अपनापन                        निज - निजता
खुद   - खुदी                            स्व - स्वत्व


 

(3) - विशेषणों से :-
 

एक   -  एकता    अच्छा  -  अच्छाई      सुन्दर   - सुन्दरता         
शान्त - शान्ति     हिंसक  -  हिंसकता      बुद्धिमान - बुद्धिमानी
मीठा  - मिठास     हरा   -  हरीतिमा      बहुत   - बहुतायत
कुशल - कौशल     अरूण  -  अरूणिमा      उपयोगी - उपयोगिता  
भला  - भलाई      टेढ़ा   -  टेढ़ापन       जाग्रत   - जागरण   
वीर   - वीरता      स्वस्थ -  स्वास्थ्य      आलसी  - आलस्य 
गंदा  - गंदग़ी       मूर्ख  -  मूर्खता        कृपण   - कृपणता


(4) क्रियाओं से :-


हँसना  -  हँसी        रोना  - रूलाई     बकबकाना - बकबकाहट
चलना  - चाल        खोजना - खोज     मुस्कुराना  - मुस्कुराहट
पूजना  - पूजा         हँसना - हँसी      उकताना  - उकताहट 
जीतना - जीत         चुनना - चुनाव     उलझना   - उलझाव 
हँसना  - हँसी         उड़ना - उड़ान      गिरना   - गिरावट


(5) अव्ययों से :-

 
धिक्     - धिक्कार   धन्य  - धन्यता     तेज़  - तेज़ी
वाह-वाह  - वाहवाही   भीतर  - भीतरी    प्रतिकूल - प्रतिकूलता  
हा - हा  - हाहाकार   शाबाश - शाबाशी    अपेक्षा  - अपेक्षित

  

॥  इति शुभम्  ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Thursday 2 October 2014

CBSE CLASS 10 HINDI GRAMMAR BHAKTI RAS (भक्ति रस)

 11. क्ति


जहाँ ईश्वर के प्रति श्रद्धा और प्रेम का भाव हो,वहाँ भक्ति रस होता है।


स्थायी -  ईश्वर प्रेम ।

संचारी - विवोध, चिंता, संत्रास, धृति, दैन्य, अलसता

आलंबन - ईश्वर कृपा, दया, महिमा

आश्रय -  भक्त ।

उद्दीपन - मंदिर , मूर्ति आदि ।

अनुभाव - ध्यान लगाना, माला जपना, आँखें मूँदना, कीर्तन करना, रोना, सिर झुकाना आदि ।

जैसे -


 
मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
 

जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥
 

कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।
 

परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥
 

जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
 

सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥

 




विशेष -

* इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति आलंबन है।

* कवि सूरदास का हृदय आश्रय है ।

* श्रीकृष्ण का रूप-सौन्दर्य , उनकी उदारता , भक्त-वत्सलता आदि उद्दीपन है।

* श्रीकृष्ण की भक्ति , उनके प्रति गहन लगाव , किसी और की भक्ति न करना, श्रीकृष्ण को सर्वश्रेष्ठ बताना , किसी और के शरणागत न होना तथा कृष्ण के समक्ष पूर्ण-समर्पण करना अनुभाव है।

* धैर्यपूर्वक श्रीकृष्ण की भक्ति , श्रीकृष्ण की दिव्यता का बोध आदि संचारी भाव है।




 रसों पर विशेष बात... आगामी दिनों में..
  विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’