रीढ़ की हड्डी
प्रश्न 1- रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर "एक हमारा जमाना था ...."कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?उत्तर- समय परिवर्तनशील हुआ करता है । अत: उसकी मानसिकता , विचारधारा और रहन-सहन में बदलाव आना स्वाभाविक है। वर्तमान में जो परिवर्तन दिखाई दे रहा है वह समयानुकूल ही है। रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद का अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करना बिल्कुल तर्कसंगत नहीं है क्योंकि सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक या अन्य क्षेत्रों में आए बदलाव समय सापेक्ष ही होते हैं। ऐसे में "एक हमारा जमाना था ...." कहकर अपने जमाने को श्रेष्ठ साबित करना और वर्तमान को गया-गुजरा या अविकसित कहना परोक्ष रूप से वर्तमान पीढ़ी को अपमानित करना है। ऐसी ही तुलना के क्रम में उस ज़माने को यदि आज का युवक गया-गुजरा कह दे तो उसे असभ्य , अव्यवहारिक और न जाने कैसे - कैसे विशेषणों से नवाजा जाता है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि ऐसी नौबत ही न आए। ऐसे लोगों को यदि दूसरों की भावनाओं का नहीं तो कम से कम अपने मान-सम्मान की चिन्ता अवश्य करनी चाहिए।
प्रश्न 2- रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?
उत्तर- रामस्वरूप ने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाई। यह उनके आधुनिकता के समर्थक होने का प्रमाण है। वे अपनी बेटी का विवाह गोपालप्रसाद के बेटे से करवाना चाहते थे, जबकि दकियानूसी विचारवाले गोपालप्रसाद उच्च शिक्षित बहू नहीं चाहते थे। इसलिए रामस्वरूप बाबू को विवशतावश अपनी बेटी की उच्च शिक्षा की बात को छिपाना पड़ा। यह एक विरोधाभास ही सही पर वास्तव में यह उनकी विवशता को उजागर करता है कि आधुनिक समाज में सभ्य नागरिक होने के बावजूद उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की खातिर रूढ़िवादी लोगों के दवाब में झुकना पड़ रहा था।
प्रश्न 3- अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं,वह उचित क्यों नहीं है ?
उत्तर- रामस्वरूप का अपनी बेटी उमा से अपेक्षित व्यवहार सरासर गलत है। वे अपनी पढ़ी-लिखी बेटी को कम पढ़ा-लिखा साबित करना चाहते हैं,जो कि बिल्कुल अनुचित है। साथ ही वे उमा की सुन्दरता को और भी बढ़ाने के लिए नकली प्रसाधन सामग्री को उपयोग करने की बात कर रहे हैं। वे चाहतें है कि उमा का व्यवहार लड़के और उसके पिता जैसा चाहते हैं वैसा हो। वह यह बात भूल रहें हैं कि लड़के की तरह लड़की की भी पसंद है,जिसका ध्यान रखना चाहिए।
प्रश्न 4- गोपाल प्रसाद विवाह को 'बिजनेस' मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं ,क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर- मेरे विचार से दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं।लड़के के पिता गोपाल प्रसाद विवाह जैसे पवित्र रिश्ते में भी बिजनेस ढूँढ़ रहे हैं। जबकि लड़की के पिता रामस्वरूप आधुनिक समाज में सभ्य नागरिक होने के बावजूद रूढ़िवादी लोगों का साथ दे रहें हैं। यदि वे चाहते तो अपनी बेटी के लिए किसी अन्य सभ्य और स्वाभिमानी वर की तलाश करते। ऐसा करके वे दोनों ही संबंधों की गरिमा को कम कर रहे हैं।
अत: मेरे विचार से दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं।
प्रश्न 5- "...आपके लाड़ले बेटे के की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं...."उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उत्तर- शंकर परजीवी , परमुखापेक्षी और पराश्रित जीवन जीने वाला लड़का है।उसको अपने मान-सम्मान की परवाह भी नहीं है। लड़कियों के हॉस्टल का चक्कर काटते हुए जब उसे पकड़ा गया तब उसने हॉस्टल की नौकरानी के पैर पकड़ लिए। उमा को पसन्द करने के क्रम में पिता की हाँ में हाँ और ना में ना मिला रहा था।उसने अपने पिता के दकियानूसी विचार और व्यवहार का ज़रा भी विरोध नहीं किया। उमा की पढ़ाई-लिखाई की बात जानकर वह अपने पिता के साथ तुरंत वापस जाने को तत्पर हो जाता है। इससे ऐसा लगता है जैसे शंकर का अपना कोई व्यक्तित्व ही न हो। उसके इसी वयक्तित्व हीनता को लक्ष्य करके उमा ने कहा कि “घर जाकर देखिए कि आपके लाड़ले बेटे के की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं....।”
प्रश्न 6- शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की - समाज को कैसे व्यक्तित्व की जरूरत है ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- शंकर जैसे लड़के जहाँ एक ओर समाज को पंगु बनाते हैं वहीं दूसरी ओर अपने साथ - साथ समाज को भी पतन की ओर धकेलते हैं। समाज को आज उमा जैसे व्यक्तित्व की तलाश है । आज समाज में उसके जैसी साहसी , शिक्षित , सभ्य , स्पष्टवक्ता लड़की की ही आवश्यकता है। ऐसी लड़कियाँ ही समाज के तथाकथित रहनुमाओं का भांडाफोड़ करके उनको असलियत का आईना दिखा सकती हैं । निश्चित रूप से समाज को उमा जैसी क्रान्तिकारी लड़की ही चाहिए जो समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सके।
प्रश्न 7- 'रीढ़ की हड्डी' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 'रीढ़ की हड्डी' एकांकी का शीर्षक प्रतीकात्मक है । शरीर में 'रीढ़ की हड्डी' शरीर को सीधा रखती है। जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं होती , वे सीधे खड़े भी नहीं हो सकते। शंकर की बौद्धिक चारित्रिक एवं शारीरिक अयोग्यता के कारण ही उमा ने इसे बिना रीढ़ की हड्डी वाला कहा है। शंकर जैसे युवक चरित्रहीन , परजीवी और सारी उम्र दूसरों के इशारों पर ही चलते हैं फलत: ये समाज पर बोझ होते हैं। यही स्थिति समाज की भी है। गोपाल प्रसाद जैसे घटिया या दकियानूसी - विचार तथा आत्म-केन्द्रित व्यक्तियों को प्रश्रय देनेवाली सामाजिक व्यवस्था भी लचर और असंतुलित है। ऐसे समाज को भी ‘बिना रीढ़ की हड्डी वाला समाज’ कहा जा सकता है। इस प्रकार दोहरा अर्थ रखने वाला ‘शीर्षक’ सर्वथा उपयुक्त और सार्थक है।
प्रश्न 8- कथा वस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों ?
उत्तर- कथा वस्तु के आधार पर हम कह सकते हैं कि पुरूष पात्रों में गोपाल प्रसाद मुख्य है जबकि स्त्री पात्र में उमा का चरित्र है। दोनों में महत्व और प्रधानता की बात आती है, तो मुझे उमा ही एकांकी का मुख्य पात्र लगती है। भले ही एकांकी में वह थोड़े समय के लिए आई है परन्तु ; एकांकी का उद्देश्य और संदेश उमा के द्वारा ही पाठकों या दर्शकों तक पहुँचता है। एकांकीकार ने कथानक का ताना - बाना उमा के चरित्र को केन्द्र मे रखकर ही बुना है। माथुर जी ने अपनी बातों या विचारों को उमा के चरित्र के माध्यम से ही अभिव्यक्त किया है। उमा के चरित्र के इर्द-गिर्द ही सारी कहानी घूमती है , उसके अभाव में कहानी अधूरी ही रह जाती। अत: हम कह सकते हैं कि एकांकी में उमा का चरित्र ही मुख्य है।
प्रश्न 9 - एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपालप्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- रामस्वरूप एक साधारण व्यक्ति हैं। वे सामाजिक समरसता भी चाहते हैं।उनके मन में न तो पुरूष होने का दंभ है और न स्त्रियों के प्रति कोई हीन भावना। आधुनिक होने के कारण वे शिक्षा को सबके लिए आवश्यक समझते हैं।सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं को धता बताकर उन्होंने अपनी बेटी उमा को ऊँची शिक्षा दिलवाई। परन्तु उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति , आत्मविश्वास और सामाजिक कुरीतियों अथवा मान्यताओं का विरोध करने की क्षमता का अभाव है। फलत: उनका चरित्र एक बेचारा और लाचार व्यक्ति जैसा दिखता है।
गोपाल प्रसाद धूर्त किस्म का व्यक्ति है। वह स्वभाव से स्वार्थी और लालची है। वकील होने के कारण आज के समाज में शिक्षा के महत्व को वह भी जानता है। वह भी आधुनिकता से परिचित तो है किन्तु उसके विचार दकियानूसी , रूढ़ियों से ग्रस्त और पारंपरिक हैं। स्त्रियों के लिए उसके मन में इज्ज़त नहीं है। वह स्त्री-पुरुष की समानता का घोर विरोधी है। वह विवाह जैसे बंधन को बिज़नेस मानता है।
प्रश्न 10 - ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर - ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी जगदीशचंद्र माथुर जी के ‘भोर का तारा’ शीर्षक संकलन से संकलित है। इस एकांकी का उद्देश्य समाज की उस घृणित मनोवृत्ति का पर्दाफ़ाश करना है जो स्त्रियों को पुरूषों की तुलना में कुछ समझती ही नहीं अथवा एकदम नीचले स्तर का मानती है। पुरूषों की पक्षपाती समाज-व्यवस्था में शादी-विवाह के अवसर पर वैवाहिक संबंध तय करते समय लड़कियों के साथ पशुवत् व्यवहार किया जाता है। उनका इस प्रकार निरीक्षण , जाँच या तोल-मोल किया जाता है, जैसे वे कोई बेजान-वस्तु या बेज़ुबान-पशु हों। प्रस्तुत एकांकी एक ओर जहाँ लड़का-लड़की के भेदभाव से ग्रसित समाज को आईना दिखाकर उसकी दूषित मनोवृत्ति पर कुठाराघात करती है; वहीं दूसरी ओर लड़कियों की स्वतंत्रता का परचम बुलंद करती है। उनके हक़ की गूँज को गर्जना में परिवर्तित करने की कोशिश करती है। साथ ही पूरे समाज को स्त्रियों के हक़ और अधिकार प्रदान कर उनकी दशा और दिशा को विकासोन्मुख करने का संदेश दिया है।
प्रश्न 11 - समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन - कौन से प्रयास कर सकते हैं?
उत्तर - हम समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने के लिए निम्नलिखित प्रयास कर सकते हैं :-
(क) - सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को उचित सम्मान देकर ।
(ख) - अच्छे कार्य करनेवाली महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर कार्यक्रम के माध्यम से उनको सम्मानित करके।
(ग) - समाज में स्त्री शिक्षा के महत्व को प्रचारित करके।
(घ) - दहेज - प्रथा का विरोध एवं बिना दहेज की शादी का समर्थन करके।
(ङ) - रुचि के अनुसार किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके।
(च) - शादी - विवाह के अवसर पर लड़की के पसंद-नापसंद को महत्व देकर।
(छ) - सामाजिक समरसता , समानता , सांवैधानिक कर्तव्य और अधिकार की बातें बताकर।
(ज) - अशिक्षित महिलाओं के बीच समाज की सफल महिलाओं के उदाहरण प्रस्तुत करके उनके मन में भी शिक्षा के प्रति रुचि जागृत करके।
॥ इति - शुभम् ॥