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किस तरह आखिरकार मैं हिन्दी में आया
प्रश्न १ - वह ऐसी कौन सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया?
उत्तर - लेखक स्वाभिमानी थे। संभवत: उनके निठल्लेपन पर किसी घर वाले या उनके अपने ने व्यंग्य किया होगा। बात उनके हृदय में चुभ गई होगी। शायद ऐसी ही आहत अवस्था में उन्होंने निर्णय किया होगा कि अब उन्हें कोई रोजी-रोजगार अवश्य करना चाहिए। दिल्ली क्योंकि राजधानी है अत: उन्होंने अपने कर्म-क्षेत्र के रूप में उसे ही चुना और जो कुछ भी दो-चार रुपए उनके पास थे उसे लेकर आनन-फ़ानन में जो भी पहली बस मिली उससे दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
प्रश्न २- लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने पर अफ़सोस क्यों रहा होगा?
उत्तर - भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अधिकांश आबादी गाँवों में ही रहती है। गाँव में प्राय: लोग अपनी क्षेत्रीय बोली बोलते हैं। आवश्यकता पड़ने पर हिन्दी का भी प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी विदेशी या साहबों की भाषा होने के कारण उससे न तो गाँव वालों का कोई लेना - देना रहता है और न समझ में ही आती है। शायद इसी सचाई को जानने के बाद कि उनकी कविता आम भारतीयों तक नहीं पहुँच पाती, लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने पर अफ़सोस ही नहीं बल्कि बहुत अफ़सोस हुआ होगा।
प्रश्न ३- अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा?
उत्तर - बच्चन ने लेखक के लिए कुछ इस प्रकार का ‘नोट’ लिखा होगा---
प्रिय शमशेर!
अपने बड़े भाई तेज़ बहादूर के दोस्त ब्रजमोहन जी को तो जानते ही होगे। उन्हीं के कहने पर मैं तुमसे मिलने आया था , पर दुर्भाग्यवश मुलाकात न हो सकी। सोचा था मैं शायद तुम्हारी कोई सहायता कर सकूँ। खैर! यहाँ आकर मैं जितना तुम्हारे बारे में सुना; मुझे अच्छा ही लगा। मन लगाओगे तो बहुत आगे जाओगे। यदि कुछ और करना चाहते हो या किसी प्रकार की सहायता की ज़रूरत हो तो बेहिचक पत्र के माध्यम से सूचित करना। संभव है मैं किसी काम आ सकूँ।
तुम्हारा शुभचिन्तक
बच्चन
प्रश्न ४ - लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है?
उत्तर - लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के कई रूपों को उभारा है, जिनमें निम्नलिखित रूप प्रमुख हैं :--
* भावुक :- बच्चन जी कोमल हृदय वाले व्यक्ति थे। उनसे किसी का भी दुख नहीं देखा जाता था। लेखक की सहायता करना इसका साक्षात् प्रमाण है। उनकी भावुकता ‘प्रबल झंझावात साथी’ जैसी रचना में देखी जा सकती है।
*सहृदय :- बच्चन जी का हृदय उदारता से भरा था। स्वयं पीड़ा और कष्ट में होने के बाद भी वे दूसरों के कष्ट दूर करने के लिए तत्पर रहते थे। सर्वथा अनजान लेखक के प्रति उन्होने जो किया वह उनकी सहृदयता का प्रमाण है।
*कला-पारखी :- बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । दवा दुकान में काम करनेवाले और अपने अतीत में पेंटिंग और चित्रकला से जुड़े रहने वाले लेखक के भीतर छुपे साहित्यकार को उन्होंने सहज ही पहचान लिया था और कालान्तर में प्रयत्नपूर्वक उस साहित्यकार को सबके सम्मुख ला खड़ा किया।
* प्रेरणा के स्रोत :- बच्चन जी वाणी के धनी थे । उनका स्वभाव संघर्षशील, संकल्प फ़ौलादी और व्यवहार छल-प्रपंच रहित था। वे सहज ही सामने वाले पर अपना प्रभाव छोड़ देते थे।
*समय के पाबंद :- बच्चन जी समय के पक्के पाबंद थे । वे कहीं भी निश्चित समय पर पहुँचते थे। वर्षा के समय अपना सामान कंधे पर लेकर स्टेशन तक पैदल जाना और गंतव्य पर समय से पहुँचना इस बात का प्रमाण है।
प्रश्न ५ - बच्चन के अतिरिक्त लेखक को किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला?
उत्तर - बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य कई लोगों का सहयोग प्राप्त हुआ, जिनमें प्रमुखतया उनके भाई तेज़बहादुर थे जिन्होंने पैसे से मदद किया। उनके ससुराल वालों ने उनकी रोज़ी के लिए एक केमिस्ट की दुकान पर रखवाया ताकि वे कंपाउंडरी सीख कर वे अपना गुज़ारा कर सके। पंत और निराला ने उन्हें लेखन के क्षेत्र में सहायता किया। बच्चन जी ने अभिभावक बनकर उनकी पढ़ाई आदि का खर्च उठाया।
प्रश्न ६ - लेखक के हिन्दी - लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर - इलाहाबाद में बच्चन जी के सानिध्य के कारण अनायास ही साहित्यिक वातावरण मिल गया था। निराला और पंत जैसे हिन्दी साहित्य के धुरंधरों से परिचय हुआ और क्रमश: प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ। लेखक ने प्रोत्साहन पाकर कई निबंध भी लिखे जो ‘सरस्वती’ या ‘चाँद’ जैसी प्रसिद्ध पत्रिका में छपे भी। बच्चन जी ने एक नए प्रकार का ‘स्टैंज़ा’ लिखकर दिया, जिसका अनुसरण कर लेखक ने भी लिखा। जब वह रचना ‘हंस’ पत्रिका में छ्पी तब उसने सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। फिर निराला की अनुशंसा पर ‘रूपाभ’ के कार्यालय में प्रशिक्षण प्राप्त कर लेखक ‘हंस’ के कार्यालय में आधिकारिक रूप से चला गया। इस प्रकार लेखक ने पूर्ण रूप से हिन्दी - क्षेत्र में पदार्पण किया।
प्रश्न ७ - लेखक ने अपने जीवन में जिन कठिनाइयों को झेला है , उनके बारे में लिखिए।
उत्तर - लेखक ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया। आरंभ में बेकार रहने के कारण उसके पास धन का अभाव था। फलत: व्यंग्य आदि का भी सामना करना पड़ा। इसी दौरान पत्नी को टीबी.(तपेदिक) जैसा रोग हो गया। आर्थिक अभाव के कारण समुचित इलाज़ न करवाने से पत्नी की मृत्यु हो गई। बड़ी कठिनाई से ‘आर्ट-स्कूल’ में प्रवेश पाया। पेंटिंग करके मकान का किराया और अपना खर्च उठाता रहा। कंपाउंडरी सीखने के लिए ससुराल वालों का कृपा-पात्र बनना पड़ा। फिर बच्चन जी की दया पर इलाहाबाद में रहकर उसे अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। हिन्दी के क्षेत्र में आने के लिए भी उसे कठिन परिश्रम करना पड़ा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि लेखक ने अपने जीवन में ढेर सारी कठिनाइयों का सामना किया।
॥इति-शुभम्॥
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विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’