Thursday 24 July 2014

CBSE CLASS 9 HINDI GRAM SHRI SUMITRA NANDAN PANT (ग्रामश्री सुमित्रानंदन पंत)

ग्रामश्री

प्रश्न १ - कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर - गाँव क हरा -भरा वातावरण , खेतों में लहलहाती जौ , गेहूँ , अरहर आदि की फ़सलें ; उन पर पड़ती सुनहरी धूप, बग़ीचों में फलों से लदे पेड़ तथा विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियों और चहचहाते पक्षी सभी मिलकर गाँव की शोभा में चार चाँद लगाते हैं।गाँव की शोभा देखने वाला बस.. देखता ही रह जाता है। इसलिए कवि ने गाँव की शोभा को ‘हरता जन मन’ कहा है ।
प्रश्न २ - कविता में किस मौसम के सौन्दर्य का वर्णन है ?
उत्तर - कविता में शिशिर ऋतु अर्थात् जाड़े के अन्तिम चरण और दूर कहीं खड़े बसन्त के मौसम के सौन्दर्य का वर्णन है। इस मौसम की खासियत यह होती है कि खेतों में चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखती है। हरी सब्जियों और फल-फूलों की भरमार लगी रहती है। तितली , भौरे और कोयल वातावरण को मनोहारी बनाते हैं।

प्रश्न ३ - गाँव को ‘मरकत डिब्बे - सा खुला’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर - ‘मरकत’ का अर्थ है-- पन्ना नामक रत्न । पन्ना हल्के धानी रंग का होता है।खेतों में दूर-दूर तक फैली हरी-भरी फ़सलें रात भर ओस से भींगती हैं। उन पर प्रात: काल जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तब उन फ़सलों पर टिकी ओस की बूँदें मोतियों की तरह झिलमिला उठती हैं। देख कर ऐसा लगता है जैसे किसी ने खेतों में ‘मरकत’ का डिब्बा खोल कर उलट दिया हो। इसलिए कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे - सा खुला’ कहा गया है।

प्रश्न ४ - अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर - अरहर और सनई के खेत जो कुछ दिन पहले तक हरे-भरे दिखते थे ; अब हिमान्त में वे सुनहरे दिखने लगे हैं। फ़सल पक कर तैयार हो चुकी है। हवा के हल्के झोंके से भी अरहर और सनई की छिमियाँ झनक उठती हैं। ऐसा जान पड़ता है कि खेत में अचानक घुंघरू बज उठे हों।

प्रश्न ५ - भाव स्पष्ट कीजिए :--
(क) - बालू के साँपों से अंकित
     गंगा  की  सतरंगी  रेती

उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि गंगा की लहरों के थपेड़े से उसके किनारे के बालू एक पर एक चढ़ कर साँप जैसी आकृति धारण कर लिए हैं। उन पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो वे रंग- विरंगे दिखाई पड़ते हैं।तात्पर्य यह कि गंगा का तट बहुत सुन्दर और मनोहर लगता है। 

(ख) - हँसमुख हरियाली हिम - आतप
         सुख   से   अलसाए -  से   सोए

उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि चारों ओर छिटकी हरियाली ओस से प्रभावित रहती है। मौसम बड़ा सुहाना होता है। न तो अधिक गर्मी लगती है और न सर्दी ही सताती है अर्थात् समशीतोष्ण वातावरण होता है ; जिससे मन को सुखद अनुभव होता है ।

प्रश्न ६ - निम्न पंक्तियों में कौन - सा अलंकार है ?
       तिनकों  के  हरे   हरे   तन  पर
       हिल हरित रूधिर है रहा झलक

उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियों में ‘’ , ‘’ , और  ‘’ वर्ण की बार - बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास (वर्णानुप्रास) अलंकार की छटा छिटकी है।

प्रश्न ७ - इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है ?

उत्तर - इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह गंगा के किनारे है। गाँव के नाम का ठीक-ठीक पता न होने पर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि वह गाँव भारत के उत्तरी भूभाग पर और गंगा के मैदान में स्थित है।
॥ इति - शुभम् ॥
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Wednesday 23 July 2014

CBSE CLASS 9 HINDI SANVALE SAPANO KI YAD SALIM ALI (साँवले सपनों की याद सालिम अली)

साँवले सपनों की याद

प्रश्न १- किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर- सालिम अली जब बच्चे थे तब खेलते वक्त उनके एयर गन से एक गौरैया घायल हो गई। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। पक्षियों के प्रति उनके मन में सहानुभूति जगी और परिणाम स्वरूप वे प्रसिद्ध पक्षी प्रेमी बन गए।

प्रश्न २- सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यायवरण से सम्बन्धित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई होंगी ?
उत्तर-
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के समक्ष सालिम अली पहुँचे होंगे और दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे पर्यायवरण की चर्चा के दरम्यान केरल की साइलेंट-वैली की बिगड़ती स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की होगी। वैली को धीरे-धीरे रेगिस्तान में बदलते बताया होगा, साथ ही उजाड़ होते दिखाकर जीव-जन्तुओं की प्राण-हानि और वैली की कुरूपता की चर्चा की होगी। जिसे सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें नम हो गई होंगी।


प्रश्न ३ - लारेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि “मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लारेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है।” ?
उत्तर - लारेंस एक पक्षी प्रेमी थे। वे अपने छत पर बैठने वाली गौरैये से बहुत प्रेम करते थे। घण्टों वे और गौरैया एक - दूसरे के साथ खेलते। फ्रीडा लारेंस के पक्षी प्रेम को जानती थी। उनके इसी व्यक्तित्व को उद्घाटित करने के लिए फ्रीडा ने ऐसा कहा होगा ।

प्रश्न ४ -आशय लिखें  :--
(क)- “वो लारेंस की तरह नैसर्गिक ज़िन्दगी का प्रतिरूप बन गये थे।”
उत्तर - डी.एच. लारेंस अंग्रेज़ी साहित्य के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी कवि थे। उनकी रचनाओं के मूल  में प्रकृति ही होती थी। ठीक उनकी ही तरह सालिम अली ने भी अपना जीवन प्रकृतिमय कर लिया था। सम्पूर्ण नैसर्गिकता उनके स्वभाव में सम्मिलित हो चुकी थी।

(ख) - कोई अपने जीवन की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ।
उत्तर - सालिम अली की तुलना एक पक्षी से करते हुए लेखक उन्हें अद्वितीय बताना चाहता है। लेखक की मान्यता है कि दूसरे सालिम अली ‘न भूतो न भविष्यति’ अर्थात् न हुआ है न होगा। कोई अपने दिल की धड़कन और हलचल भी दे दे , तो भी दूसरा सालिम अली पैदा नहीं हो सकता।

(ग)- सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे।
उत्तर - सालिम अली अद्वितीय प्रकृति प्रेमी थे। उन्हें प्रकृति के लगभग सभी उपादानों से सहज लगाव था। वे किसी एक विषय की खोज़ में लगकर स्वयम् को सीमाओं में आबद्ध नहीं करना चाहते थे। तात्पर्य यह कि किसी टापू की तरह एक जगह स्थिर न
रह कर स्वयम् को सागर की तरह विस्तृत किया,जिसमें कई टापू समा सकते हैं।

प्रश्न ५- इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा - शैली का परिचय दीजिए।
उत्तर - जाबिर हुसैन की भाषा पर हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू और संस्कृत भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट दिख पड़ता है। हुसैन साहब की शैली कला पूर्ण , भाव-प्रवण ,अनुभूति संपन्न, आलंकारिक और चित्रात्मक है।खिचड़ी शब्दावली के सहारे जटिल वाक्यों की रचना और भावानुरूप भाषा का प्रयोग जितनी सरलता और सहजता से हुसैन साहब कर लेते हैं, उतनी कारीग़री ,वाक्य-गढ़नीयता किसी विरले में ही हो सकती है।

प्रश्न ६- सालिम अली के व्यक्तित्व का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - सालिम अली अद्वितीय प्रकृति - प्रेमी थे। वे जर्ज़र और कृशकाय थे। शतायु होने के कग़ार पर पहुँचे सालिम अली को कैंसर जैसी जानलेवा और घातक बीमारी लग चुकी थी। श्रम की नैरन्तर्यता और उनकी घुमक्कड़ प्रवृत्ति ने अंतिम दिनों में उन्हें थका डाला था।किन्तु; उनकी खोज़ी प्रवृत्ति न बदल सकी थी । तभी तो सदा आँखों पर चढ़ी रहने वाली उनकी दूरबीन ; मरने के बाद भी गले में लटक रही थी। उम्र भर जंगलों,झरनों ,पहाड़ों और पक्षियों की आवाज़ का संगीत उनमें रोमांच भरता रहा था।वे प्रकृति के प्रतिरूप बन गये थे।

प्रश्न ७ -‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर - साँवले सपनों की याद’ शीर्षक छोटा , सुन्दर और आकर्षक है। इसे पढ़कर मन में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं; जिनका उत्तर पाने के लिए पाठक का मन व्याकुल होने लगता है और तब तक जिज्ञासा शान्त नहीं होती ; जब तक पाठक पूरी कहानी आद्योपांत पढ़ नहीं लेता। साँवले अर्थात् श्रीकृष्ण के वृन्दावन से आरंभ हुई कहानी सालिम अली की वन्य-भूमि में समा जाती है और उनके सपनों का विशेषण बनकर उनके के रंग में रंगती चली जाती है।इस प्रकार सालिम अली के सपने ‘साँवले सपने’ बन जाते हैं और उनकी याद ; ‘साँवले सपनों की याद’। इस तरह हम कह सकते है कि शीर्षक सार्थक एवम् सठीक है।

प्रश्न ८ - पर्यावरण को बचाने में आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?

उत्तर -  पर्यावरण हमारा रक्षा कवच है,अत: हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए।हमें अपनी सुख - सुविधाओं के लिए प्राकृतिक उपादानों के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। उनकी सुरक्षा और संरक्षा का भार स्वयम् उठाना चाहिए। कूड़ा-कचरा, पोलिथीन या प्लास्टिक जैसी दूषित सामग्री इधर - उधर न फेंककर निर्धारित स्थानों का उपयोग करना चाहिए।भोजन के बाद बचे - खुचे अंश को पशु-पक्षियों को देना चाहिए।पेड़ लगाना और धरती की हरियाली बचाए रखने जैसी बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए । ऐसा करके हम पर्यावरण की बचाने में हम अपना योगदान दे सकते हैं। 
॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday 19 July 2014

cbse hindi class 9 kaidi our kokila-kavita-makhanlal chaturvedi (कैदी और कोकिला)

 कैदी और कोकिला

प्रश्न १- कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर - कोयल की कूक सुनकर जेल में बन्द कवि की नींद टूट गई। सोने की इच्छा होने के बाद भी वह सो नहीं पा रहा था,क्योंकि कोयल की आवाज उसे सोने नहीं दे रही थी। कवि उसकी कूक का अलग-अलग संभावित मतलब निकालता है। अंतत: एक बात उसके समझ में आ जाती है कि स्वतंत्रता बड़ी चीज़ है। साथ ही यह भी कि उचित समय और माहौल में कही गई बात लोगों को सुननी ही पड़ती है। जैसे वह स्वतंत्र कोयल की कूक सुनने को बाध्य है । इस कूक के प्रतिक्रिया स्वरूप उसके मन में स्वतंत्रता की ललक जाग उठती है।

प्रश्न २- कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना जताई?
उत्तर- कोयल के बोलने के जो कारण हैं,उनका कयास लगाते हुए कवि ने संभावना व्यक्त की है कि कोयल अवश्य कोई जरूरी संदेश देना चाह रही है।शायद किसी ने उसके माधुर्य को लूट लिया है,या उसे किसी दुर्घटना का पूर्वाभास हो गया है जिसे वह बताना चाह रही है। यदि ऐसा नहीं है तो शायद जेल में कवि जैसे अन्य भारतीयों पर जो अत्याचार ढाए जा रहे हैं,उससे दुखी होकर सहानुभूति प्रकट करने आई है,अथवा इस जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का संदेश दे रही है।
प्रश्न ३- किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है?
उत्तर- ‘तम’ का अर्थ है - अंधेरा । जहाँ अंधेरा होता है,वहाँ पाप और अधर्म फलने-फूलने लगते है। तामसिकता या राक्षसी-प्रवृत्तियाँ हावी रहती हैं। इस बात का सशक्त उदाहरण है-अंग्रेजों का शासन काल। कहा जा सकता है कि तत्कालिन ब्रिटिश शासन में तामसिकता भरी पड़ी थी । भारत को लूटना, भारतीयों को प्रताड़ित करना, गरीबों का शोषण, विरोध करनेवालों को जेल या मृत्यु-दंड एवं आंदोलनकारियों के साथ पशुओं जैसे बर्ताव। ऐसे अन्यायी, अत्याचारी एवं हृदयहीन ब्रिटिश शासन के कुकृत्यों को देख कवि ने उसकी तुलना तम के प्रभाव से की है।

प्रश्न ४ - कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जानेवाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए?
उत्तर - प्रस्तुत कविता में पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाले यंत्रणाओं का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। भारत को पराधीनता से मुक्त कराने के संघर्ष में जो भी शामिल होते उन्हें  जेलों में ठूस दिया जाता था। उन्हें चोर-उचक्के, उठाई-गिरे, गुण्डे-मवाली और कतिलों के साथ ही रखा जाता था । विभिन्न प्रकार की यातनाएँ दी जाती थीं । हथकड़ी और बेड़ियों से जकड़ देना, काल-कोठरी में बन्द रखना, भर पेट खाना न देना, सोने न देना, गिट्टी तुड़वाना आदि जैसे काम के अलावा भारतीयों से कोल्हू चलाने, चक्की पिसवाने और मोट खींचवाने जैसे पशुओं के काम भी करवाए जाते थे।

प्रश्न ५ - भाव स्पष्ट
कीजिए--
(क)- मृदुल-वैभव की रखवाली-सी कोकिल बोलो तो।
उत्तर - कोयल अपनी कूक अर्थात् मीठी बोली के लिए जानी जाती है। वाणी की सरलता,मधुरता और मृदुलता का पर्याय बनकर कोयल सबको अपनी वाणी और भाषा को मृदुल-वैभव से सम्पन्न बनाने की प्रेरणा देते रहती है। अचानक कोयल के स्वर में वेदना का आभास पाकर कवि व्यग्र एवं चिंतित हो उठा। भाव यह है कि प्रतिनिधि भी जब हताश,निरास,और दुखी हो जाएँगे, हार मान लेंगे, तो भला उनका क्या होगा ; जिन्हें किसी पथ-प्रदर्शक या दिशा-निर्देशक की जरूरत है।

(ख)- हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
उत्तर- ब्रिटिश शासन में भारतीय आन्दोलनकारियों, क्रांतिकारियों,स्वतंत्रता संग्रामियों और राजनीतिक कैदियों को साधारण चोर-उचक्कों के साथ जेलों में रखा जाता था। उनपर भीषण अत्याचार ढाए जाते थे। पशुवत् व्यवहार किया जाता था। कोल्हू और मोट में जानवरों के स्थान पर उनसे काम लिया जाता था। इन सब के पीछे अंग्रेजों की एक कुटिल नीति थी ।वे शारीरिक और मानसिक यातना देकर भारतीयों को अपने सामने झुकाना चाहते थे। कवि भी जेल में था। वह अंग्रेजों की मंशा जान चुका था और मन में ठान लिया था कि वह किसी भी क़ीमत पर हार नहीं मानेगा। भाव यह है कि अंग्रेजों को कभी कामयाब नहीं होने देंगे। वे जो अकड़ते हैं कि जुल्म और सितम करके हमें वे डरा देंगे,झुका देंगे या हरा देंगे तो उनकी इस अकड़ को हम ढीली कर देंगे। अंतत: उन्हें ही मुँह की खानी पड़ेगी।

प्रश्न ६- अर्धरात्री में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है?
उत्तर- प्राय: भोर होने पर पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ता है।कवि ने जब अर्धरात्री में जब कोयल की आवाज सुनी तो उसे अंदेशा होने लगा कि वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठी है। कवि कोयल के चीखने के संभावित कारणों पर विचार करते हुए आशंकाएँ जाहिर करता है। जैसे - शायद उसका कुछ लुट गया है,जिस कारण वह रो रही है। संभवत: वह जिस जंगल में रहती है वहाँ आग गई है,जिससे दुखी हो वह चीख-चिल्ला रही है। या फिर हो सकता है जेलों में हमारे ऊपर जो अत्याचार ढाया जाता है, उसके विरोध में चीख रही हो और हमसे विद्रोह करने को कह रही हो।

प्रश्न ७- कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है?
उत्तर- कोयल स्वतंत्र है,आजाद है जबकि कवि परतंत्र और कैदी है। कोयल और कवि की स्थिति एक-दूसरे के विपरीत हैं। स्वतंत्र होने के कारण कोयल जब जी चाहे,जहाँ और जितना चाहे उड़ान भर सकती है, गा सकती है, खा-पी और बोल-बतिया सकती है। परंतु ; जेल में कैद और परतंत्र होने के कारण कवि पर ढेर सारी पाबंदियाँ हैं। वह अपनी काल-कोठरी से निकल नहीं सकता, खाना-पीना, बोलना-बतियाना और हँसना-गाना तो दूर की बात, वह अपनी मर्जी से रो भी नहीं सकता और न सो ही सकता है। इसलिए कवि को कोयल से ईर्ष्या हो रही है।

प्रश्न ८- कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं,जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है?
उत्तर- कवि के मन में सामान्य लोगों की तरह ही कोयल की स्मृतियाँ अंकित हैं।बचपन से ही वह कोयल को देखता आया है और और सुनता आया है कोयल की मधुर, सरस, कर्णप्रिय और मनभावन आवाज़ । उसकी आवाज बाग-बगीचों और वसंत की शोभा में चार चाँद लगा देती है। परन्तु ; आज जब उसे कोयल की कूक में एक हूक सुनाई पड़ती है और वह भी असमय, अकल्पित स्थान और अकारण, तो वह आश्चर्य चकित रह जाता है। वास्तव में कोयल की अनसुनी आवाज कवि के मन में संचित स्मृतियों को नष्ट कर रही है।
प्रश्न ९- हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है?
उत्तर- गहना हमारे सौंदर्य को बढ़ाता है। वैसे तमाम संसाधन जिनके प्रयोग से हमारा सौन्दर्य बढ़ जाए गहना कहलाएँगे। तत्कालिन समय में जो देश भक्त जेल जाता था उसे सम्मान और आदर दिया जाता था। उसका मान बढ़ जाता था । यही कारण है कि हथकड़ियों को गहना कहा गया है।

प्रश्न १०-‘काली तू....ऐ आली!’ इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में ‘काली’ एक चमत्कारपूर्ण शब्द है। ‘काली’ शब्द यहाँ एक ओर काले रंग के लिए प्रयुक्त हुआ है तो दूसरी ओर क्रमश : ब्रिटिश-शासन की करनी, उनके क्रूर और कठोर अत्याचार, जेल की भयानकता और अंग्रेजों के काले-कारनामों के लिए प्रयुक्त है। ‘काली’ शब्द की बार-बार आवृत्ति ने पंक्तियों को गेय बना दिया है। इससे गीतात्मकता और लयात्मकता के साथ एक प्रवाह भी आ गया है। जिससे पाठक का आनंद और भी बढ़ जाता है।

प्रश्न ११- काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
उत्तर- भाव-सौन्दर्य :- दावानल अर्थात् जंगल में लगने वाली आग। दावानल की ज्वालाएँ अपनी जद में आनेवाली हर चीज़ को खाक बना देती हैं। प्रस्तुत पंक्ति यहाँ देश में किसी भयानक और विनाशकारी दुर्घटना के होने की आशंका जतला रही है।
शिल्प सौंदर्य :- *भाषा प्रवाहमय और सशक्त है।
             *प्रश्न-शैली का प्रयोग सराहनीय है।
             *तत्सम शब्दों का बाहुल्य है।
             *प्रश्नालंकार का सठीक प्रयोग हुआ है।
             *गेयता और लयात्मकता का अच्छा ताल मेल है।

 

(ख) तेरे  गीत  कहावें  वाह , रोना  भी  है मुझे गुनाह !
    देख विषमता तेरी-मेरी , बजा रही तिस पर रणभेरी !

उत्तर- भाव सौंदर्य :- प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने अपने और कोयल के हालात के अंतर को बड़ी सहजता से अभिव्यक्त किया है। साथ ही आश्चर्य भी व्यक्त किया है कि कोयल को ऐसी परिस्थिति में भी उस पर विश्वास है कि यदि वह कवि का आह्वान करेगी तो कवि मौन नहीं रह सकता है।
शिल्प सौंदर्य :- *कविता में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
             *तत्सम,तद्भव एवं उर्दू शब्दों का अनूठा संगम है।
             *भाषा चित्रात्मक और लयात्मक है।
             *कोयल के रणभेरी बजाने से मानवीकरण अलंकार हुआ
है।                *सम्बोधन शैली का प्रयोग हुआ है।   
प्रश्न १२ - कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है?
उत्तर - कोयल अपनी मीठी बोली के कारण लोगों के दिलों पर राज करती है। उसकी आवाज़ मन को प्रसन्न कर देती है। शायद ही कोई ऐसा हो जो कोयल की आवाज़ सुनना पसंद न करता हो, अर्थात् लगभग सभी उसकी आवाज़ बड़ी चाव से सुनना चाहते हैं। कोयल की इसी विशेषता को ध्यान में रखकर ही कवि ने अपनी बात कहने के लिए उसका चुनाव किया है।

प्रश्न १३- आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता है?
उत्तर- अंग्रेज सदा-सर्वदा भारत पर राज करते रहना चाहते होंगे। स्वतंत्रता सेनानियों के उत्पात से जब उनके मनसूबों पर पानी फिरने की संभावना बढ़ जाती होगी तब उन्हें देशद्रोही करार देकर जेलों में भर देते होंगे। क्रांति को असफल करने तथा विद्रोह को कुचलने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को कठोर दंड दिया जाता होगा। ऐसा करके वे समस्त भारतीयों को एक संदेश देना चाहते होंगे कि हमारी नज़रों में स्वतंत्रता सेनानियों की औकात भी वही है, जो एक साधारण चोर, डाकू या कातिल की होती है। शायद भारतीयों के मनोबल को तोड़ने तथा उनमें एक खौफ पैदा करने के लिए एक सोची-समझी नीति के तहत इस प्रकार की शारीरिक और मानसिक यातनाएँ दी जाती होंगी।

 

॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
  

Thursday 17 July 2014

cbse CLASS 9 HINDI - KAVITA - RASAKHAN KE SAVAIYE ( रसखान के सवैये)

सवैये

प्रश्न १- ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन - किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर - कवि रसखान कृष्ण भक्त थे । कृष्ण से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु उन्हें प्रिय थी । ब्रजभूमि के गोपी - ग्वाल , पशु - पक्षी , पेड़ - पर्वत, नदी - तालाब और लता - कुँज आदि के प्रति उनके मन में सहज लगाव था । ब्रज भूमि के प्रति उनके प्रेम की अभिव्यक्ति उनके सवैयों में हो रही है।

प्रश्न २ - कवि का ब्रज के वन , बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण था ?   
उत्तर- कृष्ण भक्त रसखान के लिए हर वह चीज़ दर्शनीय है , जिसका श्रीकृष्ण से सम्बन्ध हो।  ब्रज के वन उन्हें बहुत प्यारे लगते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण वहाँ गाय चराने जाते थे और वन - विहार करते थे । वहाँ के बाग रसखान के लिए बहुत आकर्षक हैं क्योंकि श्रीकृष्ण वहाँ गोपियों के साथ झूला झुलते थे और चैन से वंशी बजाते थे । नदी य तालाब कवि रसखान के मन को भाते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण अन्य ग्वालों के साथ वहाँ खेलते ,स्नान करते और गोपियों के साथ जल-क्रीड़ा किया करते थे। यही कारण है कि रसखान इन्हें निहारते हैं तथा इसी बहाने अपने आराध्य देव का स्मरण भी करते हैं ।

प्रश्न ३ - एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्यौछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर - लकुटी और कामरिया कवि रसखान के लिए सबसे बड़ी निधि है । वह लकुटी और कामरिया किसी सामान्य व्यक्ति की नहीं , बल्कि उनके आराध्य श्रीकृष्ण की है । रसखान के लिए श्रीकृष्ण या उनसे जोड़ने वाले साधनों से बढ़कर इस संसार में कोई और महत्वपूर्ण चीज़ नहीं है। श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कामरिया (कम्बल) उन्हें श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं, इसलिए वे इन पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हैं।

प्रश्न ४ - सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया है ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर - सखी ने एक गोपी से आग्रह किया कि वह कृष्ण का स्वाँग करे । स्वाँग के लिए आवश्यक है कि वह अपने सिर पर मोर पंख से युक्त मुकुट लगाए । अपने गले में वैजयन्ती-माला पहने और पीला वस्त्र धारण करे । इसके पश्चात् हाथ में श्रीकृष्ण की तरह लाठी (लकुटी) लेकर गायों को चराने के लिए उनके पीछे - पीछे अन्य ग्वालों के साथ वन-वन डोलती फिरे और वहीं कहीं बैठ कर मधुर वंशी बजाए । गोपी अपनी सखी की सारी बात मान गई पर मुरली को लेने से इनकार कर दिया; क्योंकि उसे मुरली से चिढ़ थी।

प्रश्न ५ - आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर - कवि कृष्ण भक्त है । उसकी हार्दिक इच्छा है कि उसे प्रभु का सान्निध्य प्राप्त हो। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वह कृष्ण के आस - पास रहे। कवि को मालूम है कि कृष्ण गाय चराते हैं ; इसलिए वह चाहता है कि गाय बन जाए और नन्द जी की गायों के झुण्ड में शामिल होकर चरे , जिससे उसे कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त हो सके। श्रीकृष्ण सदा यमुना तट पर स्थित कदंब पर मुरली बजाते हैं ; इसलिए वह पक्षी के रूप में अपना बसेरा उसी पर बनाना चाहता है। रसखान अपने इष्टदेव के सम्पर्क में रहने के लिए गोबर्धन पर्वत का पत्थर भी बनने को तैयार है , क्योंकि उसे मालूम है कि श्रीकृष्ण उसे अपनी उंगली पर उठाए थे , संभव है फिर से संकट काल में पुन: उसे उठाएँ तब उनका सान्निध्य प्राप्त हो सकेगा।

प्रश्न ६ - चौथे सवैये में गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर - गोपियाँ कृष्ण की दीवानी थी । उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ मान लिया था। उनके प्रत्येक क्रिया - कलाप के केन्द्र में कृष्ण हुआ करते थे । उठते - बैठते , खाते - पीते , सोते - जागते उन्हें बस कृष्ण की ही रटना लगे रहती थी । कृष्ण उनके जीवन का आधार बन चुके थे । उनके बिना वे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थीं । यही कारण है कि वे कृष्ण के समक्ष स्वयम् को विवश पाती हैं।

प्रश्न ७ - भाव स्पष्ट कीजिए :--
(क) - ‘कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।’
उत्तर - प्रस्तुत सवैयांश का भाव है कि कवि रसखान के लिए कृष्ण से बढ़कर कुछ भी नहीं है। वे विभिन्न रत्न तथा आभूषणों से सुसज्जित एवम् सोने - चाँदी से बने करोड़ों स्वर्गिक महलों को छोड़कर उन करील - कुंजों में रहना चाहेंगे, जहाँ उनके आराध्य देव कृष्ण कभी विश्राम किया करते थे।


(ख) - ‘माई री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै , न जैहै , न जैहै ।’
उत्तर - प्रस्तुत सवैयांश में गोपी की विवशता का भाव भरा है । वह अपनी माँ से स्वयम् की विवशता बताते हुए कहती है कि श्रीकृष्ण का हँसता - मुस्काता चेहरा जब याद आएगा तब मैं स्वयम् को सम्हाल नहीं पाऊँगी। ओ री माई ! तब मुझे उसके पास जाना ही होगा।


प्रश्न ८ - ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’ में कौन - सा अलंकार है ?
उत्तर - ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास (वर्णानुप्रास) अलंकार है।

प्रश्न ९- काव्य - सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए --
‘या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ।’
उत्तर - भाव - सौन्दर्य
:-- प्रस्तुत काव्यांश में श्रीकृष्ण की मुरली के प्रति गोपी के मन में जो   ईर्ष्या और डाह है , उसका प्रकटीकरण हुआ है।
शिल्प - सौन्दर्य :--  
* प्रस्तुत काव्यांश में ब्रज भाषा का सुन्दर प्रयोग है। 
* सवैया छंद में रति भाव एवम् शृंगार रस का आकर्षण है।
* ‘मुरली मुरलीधर’ एवम् ‘अधरान धरी अधरा न’ में यमक अलंकार है।
* भाषा सरल , सहज और सरस है । 


॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Friday 11 July 2014

CLASS 10 HINDI- KRITIKA-GEORGE PANCHAM KI NAK (जार्ज़ पंचम की नाक)

 जार्ज़ पंचम की नाक

प्रश्न १ - सरकारी तंत्र में ज़ार्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिन्ता या बदहवासी दिखाई देती है , वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है ?
उत्तर - सरकारी तंत्र में ज़ार्ज पंचम की नाक को लेकर जो चिन्ता या बदहवासी दिखाई देती है,वास्तव में वह उसके पिट्ठूपन, चमचागीरी , और अपने देश तथा कर्तव्य के प्रति संवेदन-शून्यता का परिचायक है।समय रहते अपना काम न करना, अपनी गलतियों की लीपापोती करना, आम लोगों की आँखों में धूल झोंककर अपना उल्लू सीधा करना और अपने आला अधिकारियों से वाहवाही बटोरने के लिए देश और महापुरूषों तक का अपमान करने को सदा तैयार रहना इनकी पुरानी और स्थायी आदत है।

प्रश्न २- रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था ? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर  - रानी एलिजाबेथ का दरज़ी न तो इतिहासकार था , न समाजशास्त्री और न ही कोई मौसम-विज्ञानी । उसे भारत, पाकिस्तान और नेपाल के पहनावे - ओढ़ावे या मौसम की कोई जानकारी नहीं थी । ऐसे में वह समझ नहीं पा रहा होगा कि रानी के लिए उसे कैसे परिधान तैयार करने चाहिए । उसे पता था कि वेश-भूषा मान-सम्मान का द्योतक होता है।मेरे विचार से दरज़ी की परेशानी उचित थी । आखिरकार रानी ने उसे ही वेश-भूषा की ज़िम्मेदारी सौंपी होगी।

प्रश्न ३ - ‘और देखते ही देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा’ - नई दिल्ली ने काया पलट के लिए क्या-क्य प्रयत्न किए गए होंगे ?
उत्तर - नई दिल्ली ने महारानी के आगमन पर अपनी काया पलट करने लिए सरकारी भवनों को रंगवाया होगा । सड़कें और नालियों की सफाई हुई होगी। चौराहों पर लाईट की व्यवस्था हुई होगी। सड़कों के नाम की पट्टी लगाकर रेलिंग और क्रासिंग को रंगीन किया गया होगा । जगह-जगह स्वागत द्वार बनाया गया होगा । इन सब प्रयत्नों से नई दिल्ली ने अपनी काया पलट की होगी।

प्रश्न ४- आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है-
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर- ऐसी पत्रकारिता से लाभ कम और हानि अधिक है। हानि इसलिए क्योंकि हमारी मानसिकता आज अनुकरण की मानसिकता बनती जा रही है । हमें चर्चित लोगों की जीवनशैली अच्छी लगती है । परंतु बहुत कम लोग हैं जो अनुकरणीय हैं । अत: ऐसी पत्रकारिता ठीक नहीं । इससे समाज  को कोई फायदा नहीं होता है । हाँ; पत्रकार को चर्चित व्यक्ति से वाहवाही या पुरस्कार मिलने की संभावना रहती है । परंतु मात्र व्यक्तिगत प्रशंसा या पुरस्कार के लिए समाज के एक विशेष पाठकवर्ग को खाई में ढकेलना पत्रकारिता करना नहीं , अपराध और चमचागीरी करना है। ऐसी पत्रकारिता से परहेज़ करना चाहिए।

(ख) इस प्रकार की पत्रकारिता आम जनता खास कर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर- इस प्रकार की पत्रकारिता पाठकों को दिग्भ्रमित करती है और विशेषकर युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव डालती है । युवा पीढ़ी चर्चित हस्तियों के बोलने , चलने-फिरने और पहनने आदि का नकल करती है साथ ही उनके जैसा जीवन-शैली अपनाने की कोशिश में अपराध करने से भी नहीं हिचकती । ऐसी पत्रकारिता से सौंदर्य प्रसाधन और पहनावे का क्षेत्र विशेष रूप से कुप्रभावित होता है। इसलिए ऐसी पत्रकारिता युवा पीढ़ी के लिए अहितकर है।

प्रश्न ५ - ज़ार्ज पंचम की लाट की नाक को पुन: लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किया ?
उत्तर- ज़ार्ज पंचम की लाट की नाक लगाने के लिए मूर्तिकार ने कई युक्तियाँ भिड़ाई । हुक्मरानों को कई सुझाव भी दिए। मूर्ति की जन्म-पत्री हाथ न लगने पर अर्थात् पत्थर के प्रकार आदि का पता न चलने पर व्यक्तिगत रूप से नाक लगाने की ज़िम्मेदारी लेते हुए देश भर के पहाड़ों और पत्थर की खानों का तूफ़ानी दौरा किया । जब सम्भावित पत्थर न मिल पाया तो हुक़्मरानों की इज़ाजत लेकर देश भर के नेताओं और महापुरूषों की मूर्तियों को टटोलना शुरू किया। उसने देश भर नेताओं और महापुरूषों की नाक नापने के बाद पटना सेक्रेटेरियट के सामने बने शहीद स्मारक के बच्चों की नाक भी नापी परन्तु ; दुर्भाग्य से सभी की नाक ज़ार्ज पंचम की नाक से बड़ी निकली । हताश मूर्तिकार और चिन्तित एवम् आतंकित हुक्मरानों ने अंतत: एक ज़िन्दा आदमी की नाक काटकर लगा दी । इस प्रकार ज़ार्ज पंचम की लाट भी नाकवाली लाट बन गई । 

प्रश्न ६- प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं।उदाहरण के लिए ‘फ़ाईलें सब कुछ हज़म कर चुकी है।’ ‘सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की तरफ़ ताका।’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर- मौजूदा व्यवस्था पर चोट करने वाले कुछ कथन निम्नलिखित हैं-
(क) शंख इंग्लैण्ड में बज रहा था,गूँज हिन्दुस्तान में आ रही थी।
(ख) सड़कें जवान हो गईं,बुढ़ापे की धूल साफ़ हो गई।
(ग) दिल्ली में सब था,सिर्फ नाक नहीं थी।
(घ) रानी आए और नाक न हो,तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
(ङ) उनकी हालत देखकर लाचार कलाकर की आँखों में आँसू आ गए।
(च) विदेशों की सारी चीजें अपना चुके हैं।
(छ) चालिस करोड़ में से कोई एक ज़िंदा नाक काटकर लगा दी जाए।


प्रश्न ७- ‘नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है।’ यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है?लिखिए।
उत्तर- ‘नाक’ इज्जत-प्रतिष्ठा,मान-मर्यादा और सम्मान का प्रतीक है।शायद यही कारण है कि इससे संबंधित कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे- नाक कटना,नाक रखना,नाक का सवाल,नाक रगड़ना आदि। पाठ में जार्ज पंचम की नाक कटने से उसके अपमान का संकेत मिलता है साथ ही सरकारी तंत्र की मानसिकता की स्पष्ट झलक भी दिखाई देती है। ये सभी तांत्रिक विदेशियों की नाक को ऊँचा करने को अपने नाक का सवाल बना लेते हैं और इसके लिए यदि आवश्यक हुआ तो भारतीय महापुरूषों या नेताओ की नाक नीची करवाने या कटवाने से गुरेज़ नहीं करते। 


 प्रश्न ८ - ज़ार्ज पंचम की लाट पर किसी भी भरतीय नेता , यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है ?
उत्तर - ज़ार्ज पंचम इंग्लैण्ड का राजा था जिसने भारतीय स्वतंत्रता - संग्रामियों पर बहुत ज़ुल्म ढाए थे । वह अपनी नाक हर हालत में ऊँची रखना चाहता था । परन्तु; जब देश आज़ाद हुआ तब उस नक्कू की नाक ही नहीं रही । संयोगवश उसकी लाट की नाक टूट गई थी और बहुत ढ़ूँढ़ने पर भी किसी भारतीय महापुरूष या स्वतंत्रता सेनानी की नाक फिट न बैठ सकी । इस घटना के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि वे सभी भारतीय जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने बलिदान दिए,चाहे वह बूढ़ा हो या जवान हो या फिर बच्चा ही क्यों न हो , उनकी मान-मर्यादा और इज्ज़त के समक्ष ज़ार्ज पंचम या उसके समतुल्य किसी अन्य की कोई इज्ज़त नहीं। तात्पर्य यह कि भारतीय स्वतंत्रता - संग्रामियों की इज्ज़त की तुलना में ज़ार्ज पंचम कहीं नहीं ठहरते।

प्रश्न ९ -अखबारों में ज़िन्दा नाक लगाने की ख़बर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर - भारत के सभी अख़बारों ने यह ख़बर छापी कि ज़ार्ज पंचम के ज़िन्दा नाक लगाई गई है , जो कतई पत्थर की नहीं लगती । उस दिन किसी भी अख़बार ने किसी उद्घाटन या किसी सभा की चर्चा नहीं की थी । पूरा अख़बार खाली था न जाने क्यों ? बस; एक ही खबर छपी थी।

प्रश्न १० - “नई दिल्ली में सब था....सिर्फ़ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर - प्रस्तुत कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि देश की आज़ादी के बाद नई दिल्ली के पास सबकुछ था । परन्तु ; नई दिल्ली के जो हुक़्मरान थे , उन्होंने नई दिल्ली की नाक ही कटा दी थी। एलिजाबेथ एवम् प्रिंस फ़िलिप के आने पर चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी की ज़िन्दा नाक काटकर ज़ार्ज पंचम की लाट में लगा देने की अपमान जनक बात सोचना और कर गुजरना.... उफ्फ़ ! भला इससे ज्यादा कोई अपने देश का क्या अपमान कर सकता है ।अंग्रेजों के इन पिट्ठुओं ने दिल्ली की नाक ही नहीं रहने दी थी । यदि सच में दिल्ली के पास नाक होती तो इतना बखेड़ा खड़ा न करके सीधे ज़ार्ज पंचम के लाट को ही हटवा दिया होता ।

प्रश्न १
१  - ज़ार्ज पंचम के नाक लगने वाली ख़बर के दिन अख़बार चुप    क्यों थे ?
उत्तर - अख़बार उस दिन चुप थे । चुप रहना ही शायद उन्होंने अच्छा समझा । यदि वे सच छाप देते तो पूरी दुनिया क्या कहती । दुनिया के लोग जब जानते कि आज़ादी के बाद भी दिल्ली में बैठे हुक़्मरान आज भी अंग्रेजों के आगे अपनी दुम हिलाते हैं , उनसे प्रशंसा पाने के लिए उनके पैरों में नाक रगड़ते हैं और उनकी खुशी के लिए अपने देश का सिर शर्म से झुकाने में भी नहीं हिचकते तो पूरी दुनिया में थू - थू हो जाती , इसलिए अख़बार चुप थे ।

 ॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Tuesday 8 July 2014

CBSE NCERT CLASS 10TH HINDI-MANVIYA KARUNA KI DIVYA CHAMAK-SARVESHWAR DAYAL SAKSENA (मानवीय करूणा की दिव्य चमक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेन)

 मानवीय करूणा की दिव्य चमक
प्रश्न १- फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी ?
उत्तर- देवदार एक विशाल और छायादार वृक्ष होता है, जो अपनी सघन और शीतल छाया से श्रांत-पथिक एवं अपने आस-पड़ोस को शीतलता प्रदान करता है। ठीक ऐसे ही व्यक्तित्व वाले थे-- फ़ादर कामिल बुल्क़े। वे अपने मानवीय गुणों के कारण महान तथा उदार बन गए थे। वे एक तरह से स्नेह,ममता,वात्सल्य,दया,करूणा और आत्मीयता के पर्याय  बन गए थे। फ़ादर बुल्क़े जिससे भी मिलते थे ; उसी से घनिष्ठ संबंध बना लेते थे। अपने प्रियजनों के यहाँ वे किसी भी उत्सव में बड़े भाई और पुरोहित की तरह खड़े रहकर अपने आशीष से भर देते थे।

प्रश्न २ - फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं,किस आधार पर ऐसा कहा गया है ?
उत्तर - फ़ादर बुल्के ने भारत को अपना कर्मक्षेत्र बनाया । यहीं पर उन्होने धर्माचार की पढ़ाई की । हिन्दी से उनका विशेष लगाव था । वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे । वे राँची के सेण्ट जेवियर्स कालेज में हिन्दी और संस्कृत के विभागाध्यक्ष भी रहे। भारतीय संस्कृति से उनके प्रेम का सशक्त उदाहरण उनका शोध-प्रबंध- ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ है ।उन्होंने भारतीय परंपराओं , मानवीय मूल्यों और संस्कृति को पूरी तरह आत्मसात कर लिया था । अत: कहा जा सकता है कि फ़दर बुल्क़े भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न ३ - पाठ में आए उन प्रसंगो का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ादर बुल्क़े का हिंदी प्रेम प्रकट होता है ?
उत्तर - फ़ादर बुल्क़े का हिन्दी से सहज लगाव था । यही कारण था कि उन्होंने हिन्दी से ही बी.ए. और फिर एम.ए. भी किया । सेंट जेवियर्स कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष भी बनें। वहीं उन्होंने शोध-प्रबंधक-- ‘रामकथा - उत्पत्ति और विकास’ लिखा। अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश एवं ‘ब्लू बर्ड’ नामक उपन्यास का ‘नीलपंछी’ नाम से हिन्दी में अनुवाद किया।  इसके अलावा बाइबिल का भी अनुवाद किया। वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे । इसके लिए अकाट्य तर्क देते थे। ये सभी बातें उनके प्रगाढ़ हिन्दी प्रेम को प्रकट करती हैं।

प्रश्न ४ - इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्क़े की जो छवि उभरती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- फ़ादर बुल्क़े मूलत: विदेशी थे । उनकी जन्मभूमि बेल्जियम थी । परंतु भारत के प्रति उनके मन में गहरा लगाव था । इसी लगाव के कारण उन्होंने अपनी कर्मभूमि के रूप में भारत को चुना । भारतीय संस्कृति, परंपरा, आचार, व्यवहार को पूरी तरह आत्मसात कर वे विशुद्ध भारतीय बन गए। परंपरागत इसाई पादरियों से सर्वथा अलग वे बहुत ही मिलनसार थे । दूसरों के प्रति उमके मन में प्रेम, वात्सल्य, ममता, दया, करूणा,स्नेह, सद्‍भावना और अपनत्व छलकता रहता था । वे फल -फूल,गंधयुक्त

विशालकाय देवदार वृक्ष की तरह थे ,जो सबको शान्ति प्रदान करता है।

प्रश्न ५ -  लेखक ने फ़ादर बुल्क़े को ‘मानवीय करूणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर- फ़ादर बुल्क़े के हृदय में सबके लिए करूणा,प्रेम,दया और वात्सल्य उमड़ता रहता था । वे सबके सुख-दुख में हृदय से सम्मिलित होते थे । उनकी आँखों में वात्सल्य तैरता रहता था । बड़े से बड़े दुख में भी उनके सांत्वना के शब्द हृदय को अपार शांति प्रदान करते थे। संन्यासी होकर भी वे एक बार जिससे संबंध बना लेते थे , उसे कभी तोड़ते नहीं थे।यही कारण है कि लेखक ने फ़ादर बुल्क़े को ‘मानवीय करूणा की दिव्य चमक’ कहा है।

प्रश्न ६ - फ़ादर बुल्क़े ने संन्यसी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है,कैसे?
उत्तर- प्राय: संन्यासी सांसारिक मोह - माया से दूर रहते हैं । जबकि फ़ादर ने ठीक उसके विपरीत छवि प्रस्तुत की है।परंपरागत संन्यासियों के परिपाटी  का निर्वाहन न कर, वे सबके सुख - दुख मे शामिल होते। एक बार जिससे रिश्ता बना लेते ; उसे कभी नहीं तोड़ते । सबके प्रति अपनत्व,प्रेम और गहरा लगाव रखते थे । लोगों के घर आना - जाना नित्य प्रति काम था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि फ़ादर बुल्क़े ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग छवि प्रस्तुत की है।
प्रश्न ७ - आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि फ़ादर बुल्क़े की मृत्यु पर उनके चाहनेवलों का जन - सैलाब उमर पड़ा था। फ़ादर बुल्क़े ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके लिए इतने लोग दुखी होंगे। वहाँ उपस्थित सभी लोग दुखी एवं शोक मग्न थे । सभी की आँखें नम थीं ।अब उनका नाम गिनवाना या लिखना स्याही की फिज़ूलखर्ची ही होगी।

(ख) - ‘फ़ादर को याद करना उदास शान्त संगीत सुनने जैसा है।’
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति ‘फ़ादर को याद करना उदास शान्त संगीत सुनने जैसा है।’ का आशय है, जिस प्रकार उदास शान्त संगीत को सुनकर हमारा मन व्यथित और उदास हो उठता है ,उसी प्रकार फ़ादर को याद करने से भी हमारा मन व्यथित और उदास हो उठता है।

प्रश्न ८ - आपके विचार से बुल्क़े ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर - हमारे विचार से फ़ादर बुल्क़े ने भारत के प्राचीन एवं गौरवपूर्ण इतिहास तथा यहाँ की सभ्यता-संस्कृति, जीवन-दर्शन, सत्य, अहिंसा, प्रेम, धर्म, त्याग तथा ऋषि-मुनियों से प्रभावित होकर ही भारत आने का मन बनाया होगा।

प्रश्न ९ -‘बहुत सुन्दर है मेरी जन्मभूमि-रैम्सचैपल।’इस पंक्ति में फ़ादर बुल्क़े की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन -सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर - फ़ादर बुल्क़े के उपर्युक्त कथन से अपनी जन्मभूमि के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम ,श्रद्धा ,सम्मान और हार्दिक लगाव का भाव झलकताहै। प्राय: समस्त प्राणी अपनी जन्मभूमि से गहरा लगाव रखते हैं । मुझे भी अपनी जन्मभूमि बहुत ही प्यारी लगती है । मेरे लिए मेरी जन्मभूमि दुनिया में सबसे सुन्दर है । इसने मुझे ही नहीं मेरी माँ को भी पाला,पोसा और बड़ा किया है ।इसके ऋण से मैं कभी उऋण नहीं हो पाऊँगा । यदि कभी जरूरत पड़ी तो इसके लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दूँगा। मैं मानता हूँ कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’


॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘ स्वप्नदर्शी’

Sunday 6 July 2014

CBSE HINDI CLASS 10 LAKHANAVI ANDAZ (लखनवी अंदाज़) YASHPAL (यशपाल)



लखनवी अंदाज़

(यशपाल )

प्रश्न१- लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?


उत्तर- जब लेखक दूसरे दर्जे के डिब्बे में चढ़ा तो वहाँ नवाब खानदान से ताल्लुक रखनेवाले एक सफ़ेदपोश सज्जन आलथी-पालथी मारे सीट पर बैठे थे।लेखक के अचानक प्रवेश से शायद उनके चिंतन में बाधा पहुँची, जिसका असंतोष उनके चेहरे और व्यवहार में झलक उठा। उन्होंने न तो कोई उत्सुकता दिखाई और न सहयात्री के प्रति जो सामान्य व्यवहारिकता होती है उसका ही निर्वाह किया। खिन्न भाव से बैठे रहे।




प्रश्न २- नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा,नमक-मिर्च बुरका,सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा। उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

उत्तर- नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा,नमक-मिर्च बुरका,अंततः सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया।उनका यह बर्ताव स्वयं को खास दिखाने और लेखक पर अपनी अमीरी का रौब झाड़ने के लिए था।उनका ऐसा करना दंभ,मिथ्या-आडंबर,प्रदर्शन-प्रियता एवं उनके व्यवहारिक खोखलेपन की ओर संकेत करता है।




प्रश्न ३- बिना विचार,घटना और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है।यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?


उत्तर- बिना विचार घटना और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है’- लेखक के इस विचार से हम पूर्णतः सहमत हैं। क्योंकि कभी - कभी कहानीकार को न तो कोई प्लाट तलाशने की जरूरत पड़ती है, न घटना-क्रम को संजोकर पात्रों के बीच कहानी का ताना-बाना ही बुनना पड़ता है।अनायास ही घटना न होते हुए भी कोई छोटी-सी बात एक कहानी का विस्तार ले लेती है और देखते ही देखते अकारण ही कहानी बन जाती है।




प्रश्न ४- आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?


उत्तर- इस निबंध को हम निम्नलिखित नाम दे सकते हैं-

१) अनोखी नवाबगीरी

२) हाल-फटेहाल,नवाबी-चाल



प्रश्न ५-

(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है।इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।


उत्तर- नवाब साहब ने बड़े प्यार से खीरों को धोया।अपनी तौलिया से पोंछा।सामने एक अन्य तौली बिछाई,फिर चाकू से खीरों के सीरों को काटा एवम् झाग निकाला। फिर बड़े सलीके से छिलकर उसकी फाँकें बनाने लगे।खीरे की पतली फाँकों को करीने से तौलिए पर सजाया। उसके बाद जीरा मिला नमक और मिर्च छिड़का।खीरे की फाँक पनियाने लगी, जिसे देखकर लेखक के मुँह में भी पानी आ गया।




(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?


उत्तर - लोगों के अपने -अपने और अलग-अलग खाद्य-पदार्थ होते हैं, जिनके नाम मात्र से मन ललच उठता है।मुझे कच्चा अमरूद बहुत पसन्द है,जिसका रसास्वादन करने के लिए उसे अच्छी तरह धो लेते हैं।फिर उसके पतले-पतले और छोटे-छोटे टुकड़े कर लेते हैं।फिर उसमें काला नमक , लाल मिर्च बुरक कर उसमें सरसों की खट्टी चटनी डालकर हिला देते हैं।और फिर काँटा-चम्मच से एक-एक टुकड़ा लेकर मुँह में डालते हैं।स्वाद से आँखें बन्द हो जाती हैं।ऐसे कई और खाद्य-पदार्थ हैं--जैसे टमाटर,पपीता और खरबूज़ा आदि।इन्हें भी खाने के लिए कुछ इसी प्रकार की तैयारियाँ करते हैं।




प्रश्न ६ - खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है।आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा और सुना होगा ।किसी एक के बारे में लिखिए।


उत्तर - हाँ, हमने प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी शतरंज़ के खिलाड़ीको पढ़ा है।कहानी में शतरंज़ के खेल की लत में पड़कर नवाब साहब अपना सबकुछ गँवा बैठते हैं।यहाँ तक की खेल-खेल में दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे की जान ले लेते हैं।




प्रश्न ७ - क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ, तो ऐसी सनकों का उल्लेख करें।


उत्तर- हाँ, सनक भी सकारात्मक हो सकती है। ऐसी कई सनकों को हमने देखा और सुना है।महात्मा गाँधी का अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन उनकी एक सनक ही तो थी, जो कालान्तर में ऐतिहासिक घटना में बदल गई। निरालाको अतुकान्त कविता लिखने की सनक ही थी जो आज प्रगतिवादी कविता का रूप धारण कर चुकी है। सनकियों जैसे अंदाज़ और रफ़्तार में दौड़कर गेन्द फेंकने की आदत ने शोएब अख्तर को विश्व का तेज़ गेन्दबाज़ बना दिया।न जाने और कितने ही उदाहरण हैं,जो ये सिद्ध कर देते हैं कि एक सनक भी सकारात्मक हो सकती है।




प्रश्न ८- निम्नलिखित वाक्यों में से क्रिया पद छाँटकर क्रिया भेद भी लिखिए।

(क)- एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।

उत्तर - मारे बैठे थे ------  संयुक्त क्रिया ।



(ख)- नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।

उत्तर- दिखाया ------- मुख्य क्रिया ।



(ग)- ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।

उत्तर - बैठे, करते रहने ----- असमापिका क्रिया ।



(घ) - अकेले सफ़र का वक़्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।

उत्तर - काटने , खरीदे होंगे।  ---------- समापिका क्रिया ।



(ङ)- दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाले।

उत्तर - सिर काटे , झाग निकाले। --------असमापिका क्रिया ।



(च)- नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा ।

उत्तर - देखा -------- सकर्मक क्रिया ।



(छ) - नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गये।

उत्तर - थककर ------ पूर्वकालिक क्रिया ।

       लेट गये ......... संयुक्त क्रिया ।



(ज)-  जेब से चाकू निकाला ।

उत्तर - निकाला ------ सकर्मक ।



॥ इति - शुभम् ॥
  विमलेश दत्त दूबे ‘ स्वप्नदर्शी’

Wednesday 2 July 2014

CBSE CLASS 10 HINDI KAVITA-AT NAHI RAHI HAI-QUESTION-ANSWER-SURYAKANT TRIPATHI NIRALA (अट नहीं रही है सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ प्रश्न-उत्तर)



अट नहीं रही है
प्रश्न १- छायावाद की एक खास विशेषता है अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना।कविता की किन पंक्तियों को पढकर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर - कविता के निम्नलिखित पंक्तियों को पढकर यह धारणा पुष्ट होती है कि प्रस्तुत कविता में अन्तर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाया गया है :-

कहीं  साँस लेते हो ,

घर घर भर देते हो ,

उड़ने को नभ में तुम,

पर पर कर  देते हो ।



प्रश्न २ - कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से क्यों नहीं हट रही
        है?

उत्तर - फागुन के महीने में प्रकृति के समस्त उपादानों पर सौन्दर्य छा जाता है।खेत-खलिहानों, बाग़-बगीचों में प्राकृतिक सौन्दर्य अपने चरम पर होता है।जीव-जन्तुओं,पशु-पक्षियों में एक अलग उल्लास झलकता है।फागुन की सुन्दरता तथा मादकता बाह्य परिवेश के साथ-साथ अन्तर्मन में भी समा जाती है।कवि चाह कर भी आँखें नहीं हटा सकता ; क्योंकि आँखें फ़ेर लेने या बन्द कर लेने पर भी मन निर्बाध रूप से सौन्दर्य को देखता रहता है।



प्रश्न ३ - प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन
        किन रूपों में किया है ?

उत्तर - प्रस्तुत कविता अट नहीं रही हैमें कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निरालाजी ने फागुन के सर्वव्यापक सौन्दर्य और मादक रूप के प्रभाव को दर्शाया है।पेड़-पौधे नए-नए पत्तों,फल और फूलों से अटे पड़े हैं,हवा सुगन्धित हो उठी है,प्रकृति के कण-कण में सौन्दर्य भर गया है। खेत-खलिहानों, बाग़-बगीचों , जीव-जन्तुओं,पशु-पक्षियों एवम् चौक-चौबारों में फ़ागुन का उल्लास सहज ही दिखता है।


प्रश्न ४ - फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न 
        होता है ?

उत्तर - फागुन में सर्वत्र मादकता मादकता छाई रहती है।प्राकृतिक शोभा अपने पूर्ण यौवन पर होती है।पेड़-पौधे नए-नए पत्तों,फल और फूलों से लद जाते हैं,हवा सुगन्धित हो उठती है।बाग़-बगीचों और पशु-पक्षियों में फ़ागुन का उल्लास भर जाता है। ऐसा परिवर्तन केवल और केवल फागुन में ही होता है।अत: कहा जा सकता है कि फागुन में जो होता है;वह बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है।


प्रश्न ५ - इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की
       विशेषताएँ बताएँ ।

उत्तर - महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निरालाजी छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं।छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं- प्रकृति चित्रण और प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण।उत्साहऔर अट नहीं रही हैदोनों ही कविताओं में प्राकृतिक उपादानों का चित्रण और  मानवीकरण हुआ है। काव्य के दो पक्ष हुआ करते हैं-अनुभूति पक्ष और अभिव्यक्ति पक्ष अर्थात् भाव पक्ष और शिल्प पक्ष ।इस दृष्टि से दोनों कविताएँ सराह्य हैं। छायावाद की अन्य विशेषताएँ जैसे गेयता , प्रवाहमयता , अलंकार योजना और संगीतात्मकता आदि भी विद्यमान है।निरालाजी की भाषा एक ओर जहाँ संस्कृतनिष्ठ, सामासिक और आलंकारिक है तो वहीं दूसरी ओर ठेठ ग्रामीण शब्द का प्रयोग भी पठनीय है। अतुकांत शैली में रचित कविताओं में क्राँति का स्वर , मादकता एवम् मोहकता भरी है। भाषा सरल, सहज, सुबोध और प्रवाहमयी है।


प्रश्न ६- होली के आस-पास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते 
       हैं, उन्हें लिखिए।

उत्तर - वसंत ऋतु में जब प्रकृति सजने लगती है, उसका रूप निखर उठता है और उस पर यौवन का खुमार छा जाता है तब होली का त्योहार उसका श्रृंगार करने आता है।मौसम सुहाना हो उठता है । समस्त वातावरण में नवीनता का संचार हो जाता है। चहुँओर नए पत्ते एवम् फल-फूल दिखाई पड़ते हैं।खेती पक कर तैयार होने लगती है।प्रकृति फल-फूल-कन्द-मूल एवम् धन-धान्य से भरपूर होकर अन्नपूर्णा बन जाती है।वातावरण हर्षोल्लासपूर्ण तथा मोहक बन जाता है। 


॥ इति - शुभम् ॥



 विमलेश दत्त दूबे स्वप्नदर्शी