Thursday 17 July 2014

cbse CLASS 9 HINDI - KAVITA - RASAKHAN KE SAVAIYE ( रसखान के सवैये)

सवैये

प्रश्न १- ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन - किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर - कवि रसखान कृष्ण भक्त थे । कृष्ण से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु उन्हें प्रिय थी । ब्रजभूमि के गोपी - ग्वाल , पशु - पक्षी , पेड़ - पर्वत, नदी - तालाब और लता - कुँज आदि के प्रति उनके मन में सहज लगाव था । ब्रज भूमि के प्रति उनके प्रेम की अभिव्यक्ति उनके सवैयों में हो रही है।

प्रश्न २ - कवि का ब्रज के वन , बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण था ?   
उत्तर- कृष्ण भक्त रसखान के लिए हर वह चीज़ दर्शनीय है , जिसका श्रीकृष्ण से सम्बन्ध हो।  ब्रज के वन उन्हें बहुत प्यारे लगते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण वहाँ गाय चराने जाते थे और वन - विहार करते थे । वहाँ के बाग रसखान के लिए बहुत आकर्षक हैं क्योंकि श्रीकृष्ण वहाँ गोपियों के साथ झूला झुलते थे और चैन से वंशी बजाते थे । नदी य तालाब कवि रसखान के मन को भाते हैं क्योंकि श्रीकृष्ण अन्य ग्वालों के साथ वहाँ खेलते ,स्नान करते और गोपियों के साथ जल-क्रीड़ा किया करते थे। यही कारण है कि रसखान इन्हें निहारते हैं तथा इसी बहाने अपने आराध्य देव का स्मरण भी करते हैं ।

प्रश्न ३ - एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्यौछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर - लकुटी और कामरिया कवि रसखान के लिए सबसे बड़ी निधि है । वह लकुटी और कामरिया किसी सामान्य व्यक्ति की नहीं , बल्कि उनके आराध्य श्रीकृष्ण की है । रसखान के लिए श्रीकृष्ण या उनसे जोड़ने वाले साधनों से बढ़कर इस संसार में कोई और महत्वपूर्ण चीज़ नहीं है। श्रीकृष्ण की लकुटी (लाठी) और कामरिया (कम्बल) उन्हें श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं, इसलिए वे इन पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हैं।

प्रश्न ४ - सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया है ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर - सखी ने एक गोपी से आग्रह किया कि वह कृष्ण का स्वाँग करे । स्वाँग के लिए आवश्यक है कि वह अपने सिर पर मोर पंख से युक्त मुकुट लगाए । अपने गले में वैजयन्ती-माला पहने और पीला वस्त्र धारण करे । इसके पश्चात् हाथ में श्रीकृष्ण की तरह लाठी (लकुटी) लेकर गायों को चराने के लिए उनके पीछे - पीछे अन्य ग्वालों के साथ वन-वन डोलती फिरे और वहीं कहीं बैठ कर मधुर वंशी बजाए । गोपी अपनी सखी की सारी बात मान गई पर मुरली को लेने से इनकार कर दिया; क्योंकि उसे मुरली से चिढ़ थी।

प्रश्न ५ - आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर - कवि कृष्ण भक्त है । उसकी हार्दिक इच्छा है कि उसे प्रभु का सान्निध्य प्राप्त हो। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब वह कृष्ण के आस - पास रहे। कवि को मालूम है कि कृष्ण गाय चराते हैं ; इसलिए वह चाहता है कि गाय बन जाए और नन्द जी की गायों के झुण्ड में शामिल होकर चरे , जिससे उसे कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त हो सके। श्रीकृष्ण सदा यमुना तट पर स्थित कदंब पर मुरली बजाते हैं ; इसलिए वह पक्षी के रूप में अपना बसेरा उसी पर बनाना चाहता है। रसखान अपने इष्टदेव के सम्पर्क में रहने के लिए गोबर्धन पर्वत का पत्थर भी बनने को तैयार है , क्योंकि उसे मालूम है कि श्रीकृष्ण उसे अपनी उंगली पर उठाए थे , संभव है फिर से संकट काल में पुन: उसे उठाएँ तब उनका सान्निध्य प्राप्त हो सकेगा।

प्रश्न ६ - चौथे सवैये में गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर - गोपियाँ कृष्ण की दीवानी थी । उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ मान लिया था। उनके प्रत्येक क्रिया - कलाप के केन्द्र में कृष्ण हुआ करते थे । उठते - बैठते , खाते - पीते , सोते - जागते उन्हें बस कृष्ण की ही रटना लगे रहती थी । कृष्ण उनके जीवन का आधार बन चुके थे । उनके बिना वे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थीं । यही कारण है कि वे कृष्ण के समक्ष स्वयम् को विवश पाती हैं।

प्रश्न ७ - भाव स्पष्ट कीजिए :--
(क) - ‘कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।’
उत्तर - प्रस्तुत सवैयांश का भाव है कि कवि रसखान के लिए कृष्ण से बढ़कर कुछ भी नहीं है। वे विभिन्न रत्न तथा आभूषणों से सुसज्जित एवम् सोने - चाँदी से बने करोड़ों स्वर्गिक महलों को छोड़कर उन करील - कुंजों में रहना चाहेंगे, जहाँ उनके आराध्य देव कृष्ण कभी विश्राम किया करते थे।


(ख) - ‘माई री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै , न जैहै , न जैहै ।’
उत्तर - प्रस्तुत सवैयांश में गोपी की विवशता का भाव भरा है । वह अपनी माँ से स्वयम् की विवशता बताते हुए कहती है कि श्रीकृष्ण का हँसता - मुस्काता चेहरा जब याद आएगा तब मैं स्वयम् को सम्हाल नहीं पाऊँगी। ओ री माई ! तब मुझे उसके पास जाना ही होगा।


प्रश्न ८ - ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’ में कौन - सा अलंकार है ?
उत्तर - ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास (वर्णानुप्रास) अलंकार है।

प्रश्न ९- काव्य - सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए --
‘या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ।’
उत्तर - भाव - सौन्दर्य
:-- प्रस्तुत काव्यांश में श्रीकृष्ण की मुरली के प्रति गोपी के मन में जो   ईर्ष्या और डाह है , उसका प्रकटीकरण हुआ है।
शिल्प - सौन्दर्य :--  
* प्रस्तुत काव्यांश में ब्रज भाषा का सुन्दर प्रयोग है। 
* सवैया छंद में रति भाव एवम् शृंगार रस का आकर्षण है।
* ‘मुरली मुरलीधर’ एवम् ‘अधरान धरी अधरा न’ में यमक अलंकार है।
* भाषा सरल , सहज और सरस है । 


॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

No comments:

Post a Comment