साखियाँ
मानसरोवर सुभर जल , हंसा केलि कराहिं ।
मुकताफल मुकता चुगै , अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
अर्थ :- जल से परिपूर्ण संसार रुपी मानसरोवर में संत रुपी हंस स्वच्छंद रुप से जल - क्रीडा करते हुए मुक्ता - फल ( मोती ) चुग रहे हैं । उन्हें इस संसार रुपी सरोवर में इतना आनन्द आ रहा है कि वे अब कहीं दूसरी जगह ( स्वर्गलोक ) नहीं जाना चाहते ।
मुकताफल मुकता चुगै , अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
अर्थ :- जल से परिपूर्ण संसार रुपी मानसरोवर में संत रुपी हंस स्वच्छंद रुप से जल - क्रीडा करते हुए मुक्ता - फल ( मोती ) चुग रहे हैं । उन्हें इस संसार रुपी सरोवर में इतना आनन्द आ रहा है कि वे अब कहीं दूसरी जगह ( स्वर्गलोक ) नहीं जाना चाहते ।
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं , प्रेमी मिलै न कोइ ।
प्रेमी को प्रेमी मिलै , सब विष अमृत होइ ।2।
अर्थ :- एक सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी को किसी अन्य सच्चे भक्त या ईश्वर
प्रेमी की तलाश होती है। परन्तु ; कबीरदास जी के अनुसार इस संसार
में एक सच्चा भक्त या ईश्वर प्रेमी का मिलना बहुत कठिन है । यदि संयोग से ऎसा संभव
हो जाय तो दोनों भक्तों या ईश्वर - प्रेमियों
के समस्त विकार मिट जाते हैं ।
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ , सहज दुलीचा डारि ।
स्वान रूप संसार है , भूँकन दे झख मारि।3।
अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि यदि सवारी ही करनी है तो ज्ञान रुपी हाथी पर सहजता का दुलीचा (गद्दा) डालकर चढ़ो और कुत्तों (छींटाकशी करनेवालों) के भौंकने की परवाह किए बिना शान से सवारी करो । तात्पर्य यह कि हमें ज्ञानी बनना चाहिए पर हमारे अन्दर विनम्रता का होना बहुत आवश्यक है। इसके अभाव में ज्ञान व्यर्थ - सा हो जाता है । ज्ञानी को लोगों के कुछ कहने या बातों की परवाह किए बिना अपना कर्तव्य करना चाहिए।
पखापखी के करनै , सब जग रहा भुलान।
अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि यदि सवारी ही करनी है तो ज्ञान रुपी हाथी पर सहजता का दुलीचा (गद्दा) डालकर चढ़ो और कुत्तों (छींटाकशी करनेवालों) के भौंकने की परवाह किए बिना शान से सवारी करो । तात्पर्य यह कि हमें ज्ञानी बनना चाहिए पर हमारे अन्दर विनम्रता का होना बहुत आवश्यक है। इसके अभाव में ज्ञान व्यर्थ - सा हो जाता है । ज्ञानी को लोगों के कुछ कहने या बातों की परवाह किए बिना अपना कर्तव्य करना चाहिए।
पखापखी के करनै , सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ।4।
अर्थ :- पक्ष और विपक्ष के चक्कर में पड़कर लोग स्वयं को जातियों ,सम्प्रदायों और
धर्मों में बाँट लिए हैं और सांसारिक पचड़े में पड़कर अपने जीवन के असली उद्देश्य से भटक
गये हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि जो निष्पक्ष भाव से तटस्थ रहते हुए ईश्वर की भक्ति
मे लीन रहता है , वास्तव में वही संत है , वही ज्ञानी है ।
हिंदू मूआ राम कहि , मुसलमान खुदाइ ।
कहै कबीर सो जीवता , जे दुँहुँ के निकट न जाइ।5।
अर्थ :- हिन्दू राम के नाम पर और मुसलमान खुदा के नाम पर लड़ते-झगड़ते और मरते-कटते रहता है। कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार मे वही जीवित रहता है या जीने लायक है, जो इन दोनों के पास नहीं फ़टकता अर्थात् जो धर्म या जाति जैसे भेद भाव को नहीं मानता उसी का जीना सार्थक है।
काबा फिरि कासी भया , रामहिं भया रहीम।
अर्थ :- हिन्दू राम के नाम पर और मुसलमान खुदा के नाम पर लड़ते-झगड़ते और मरते-कटते रहता है। कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार मे वही जीवित रहता है या जीने लायक है, जो इन दोनों के पास नहीं फ़टकता अर्थात् जो धर्म या जाति जैसे भेद भाव को नहीं मानता उसी का जीना सार्थक है।
काबा फिरि कासी भया , रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया , बैठी कबीरा जीम ।6।
अर्थ :- जब तक कबीर दास जी को ज्ञान नही था तब तक वे भी अज्ञानियों की तरह धर्म और जाति आदि के भेद से ग्रसित थे । ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें काबा (मुसलमानों का तीर्थस्थल ) और काशी (हिन्दुओं का तीर्थस्थल )में कोई अन्तर नहीं जान पड़ता । ज्ञान प्राप्ति के बाद राम और रहीम दोनों एक ही लगते हैं । भेद भाव मिट जाने से कबीर दास को गरीबों के मोटे अनाज़ भी अब मैदा जैसे ही महीन लगने लगे हैं अर्थात् अब उनके मन में किसी प्रकार का भेद नहीं रह गया ।
ऊँचे कुल का जनमिया , जे करनी ऊँच न होइ।
अर्थ :- जब तक कबीर दास जी को ज्ञान नही था तब तक वे भी अज्ञानियों की तरह धर्म और जाति आदि के भेद से ग्रसित थे । ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें काबा (मुसलमानों का तीर्थस्थल ) और काशी (हिन्दुओं का तीर्थस्थल )में कोई अन्तर नहीं जान पड़ता । ज्ञान प्राप्ति के बाद राम और रहीम दोनों एक ही लगते हैं । भेद भाव मिट जाने से कबीर दास को गरीबों के मोटे अनाज़ भी अब मैदा जैसे ही महीन लगने लगे हैं अर्थात् अब उनके मन में किसी प्रकार का भेद नहीं रह गया ।
ऊँचे कुल का जनमिया , जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा , साधु निन्दा सोइ ।7।
अर्थ :- ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं कहलाता।ऊँचा अर्थात् महान बनने के लिए तो ऊँचे कर्म भी करना पड़ता है । इसमें कुल की कोई भूमिका नहीं होती । जिस प्रकार शराब यदि सोने के कलश में रख दी जाय तो भी वह साधुओं के लिए पेय नहीं बन सकती। साधुजन उसकी निन्दा ही करेंगे ठीक उसी प्रकार ऊँचे कुल में जन्मे लोग यदि नीच कर्म करने वाले होंगे तो वे भी शराब की तरह निन्दा के पात्र ही होंगे ।
अर्थ :- ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं कहलाता।ऊँचा अर्थात् महान बनने के लिए तो ऊँचे कर्म भी करना पड़ता है । इसमें कुल की कोई भूमिका नहीं होती । जिस प्रकार शराब यदि सोने के कलश में रख दी जाय तो भी वह साधुओं के लिए पेय नहीं बन सकती। साधुजन उसकी निन्दा ही करेंगे ठीक उसी प्रकार ऊँचे कुल में जन्मे लोग यदि नीच कर्म करने वाले होंगे तो वे भी शराब की तरह निन्दा के पात्र ही होंगे ।
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कबीर के पद और सबद क्रमश: अगले पोस्ट में.....)
विमलेश दत्त दूबे ‘ स्वप्नदर्शी ’
Its good and helped me alot for my test ..... xD :) p
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DeleteAlso
DeleteYou are tell beautifully and understandable
DeleteReallly!! HELPfUll..
ReplyDeleteThnx 2 d maker!
Thank you so much.Tomorrow is my exam and it helped me a lot.
ReplyDeleteReally....����
DeleteGood
DeleteHai in which class you are!
Deletethnk you it helped me alot
ReplyDeleteThank you for the explanation. Really awesome and helpful. Thanks a .
ReplyDeleteI forgot to write a word. Thanks a bunch
ReplyDeletereally helpful...!!! :-D
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ReplyDeleteWow
ReplyDeleteTq
ReplyDeleteI m very thankful to the makers. it really helped me a lot
ReplyDeletehelped a lot in H.W
ReplyDeletereally helpful and informative content
ReplyDeleteAwesome content,helped me at fullest in my exams:D
ReplyDeleteits awesum... thanq
ReplyDeleteI really loved and liked this
ReplyDeletethis is just cool!! it helped me even i dont need a book is this kind of things are here
ReplyDeleteThanks too much tomorrow is my half yearly exam and it will help me a lot .
ReplyDeleteAwesome thanks man thankyou so much for your help
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DeleteIt's awesome explanation thanks
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ReplyDeleteYou are such a maniac
ReplyDeletethank you this one is extremely good!!
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ReplyDeleteTomorrow is my exam, I hope it will also help in my exam.
ReplyDeleteYo Yo Honey Singh
ReplyDeleteThanks too much
ReplyDeletesaying it again.................. has helped me a lot for my exams
ReplyDeleteIt's really nice
ReplyDeletethanks it helped a lot.......
ReplyDeleteniceeeee thanks
ReplyDeleteThnq it helped me a lot tmro is my exam
ReplyDeletethnx
ReplyDeleteIt is really helpful and fully enhanced and it helped me really for my test. I hope I will find meaning of other poems of kshitiz from udadhi.
ReplyDeleteThnku helped me
ReplyDeleteOoh! Thanx man I was afraid as I was not knowing 1 of the sakhiya and now it had made it so easy...
ReplyDeletethnxx a lot bro.... for making it !!!
ReplyDeleteVery helpful indeed..
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ReplyDeleteit is very helpful.......
ReplyDeleteThis was too helpful to me as tomorrow is my exam and preparing for full marks . THANKs TO THE CREATOR
ReplyDeleteexcellent.....thank you so much
ReplyDeleteoooooooh this is all wrong
Deletethe first sakhiyan
ReplyDeleteis wrong
everything is wrongggggggggggggg!!!!!
ReplyDeleteThanks .... It helped a lot for my exam ...
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ReplyDeletenot satisfied
ReplyDeleteTruly unique but has some mistakes
ReplyDeleteI LIKE IT
ReplyDeleteThanks to complete my home work
ReplyDeletethanku................. to complete my seminar
ReplyDeleteits so very useful
i like it
yo yo........................yo honey singh
Oh really so much used
ReplyDeleteReally very helpful
ReplyDeleteHelped me a lot
ReplyDeleteNot satisfied
ReplyDeleteAare hum isse acchha likh sakta hain
ReplyDeleteThanks a lot it was a good meaning than
ReplyDeleteMy teachar has said to me
it helps me a lot.........
ReplyDeleteand i finally pass my exam����
Thank you very much.
ReplyDeleteIt helped me a lot for exams .
Feeling good...
Thanx idont know what will hppn nxt rrw my paper i know nothing
ReplyDelete#Thanxx for helping me for my exam
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ReplyDeleteThnx it helped a lot in my project.
ReplyDeleteu will lose your marks. rubhish thing ever. a 2 days old child can tell better than u
ReplyDeleteNot very understanding language I felt in this page .But it was helpful for me
ReplyDeleteMst hai Bhai bhaut help mil ja Raha hai a lot of thanxxxx.
ReplyDeleteWow. Nice work.:-):-)☺️☺️☺️☺️
ReplyDeleteअमैनज़िंग
DeleteThanks yaar bhai to mast ha
ReplyDeleteIts really help me
ReplyDeleteWrong all.........
ReplyDeleteWrong all.........
ReplyDeleteallright,thanks alot.keep it going sir.apke vajha se aaj mujhe lag raha hai ki internet also had boon.
ReplyDeleteThank god tomorrow is my exam
ReplyDeleteThank you and it help me lotsssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssßsssssssssssssssssßsssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssss
ReplyDeleteYou are great thanks a lot
ReplyDeleteVery nice it's not ajoks ok
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThanks God
ReplyDeleteNot
ReplyDeleteNot
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ReplyDeleteIt was really helpful and understanding language to learn🤗👍👏💯
ReplyDeleteबड़ा अच्छा है पर मुझे साथ में इन सभी साखियों का शिल्प सौंदर्य भी चाहिए
ReplyDeleteThanks Dutta Dubey ji for clearing my doubt and very nice and your meaning is so wonderful
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर व्याख्या!
ReplyDeleteधन्यवाद!
- अनुज पाण्डेय
कवि, गोरखपुर, उत्तरप्रदेश
It is soo Help full four me, for understanding this chapter - Sakhiya
ReplyDeleteThanks 👍☺️
ReplyDeleteThis was great. But tbh the second one was a bit wrong as the 'premi' has been referred to God .Hope this was helpful .
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