पद - 4
हरि हैं
राजनीति पढि आए ।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए ।
इक अति चतुर हुतै पहिलें हीं , अब गुरुग्रंथ पढाए ।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग सँदेस पठाए ।
ऊधौ लोग भले आगे के , पर हित डोलत धाए ।
अब अपने मन फेर पाईहें , चलत जु हुते चुराए ।
तें क्यौं अनीति करें आपुन ,जे और अनीति छुड़ाए ।
राज धरम तो यहै ' सूर ' , जो प्रजा न जाहिं सताए ॥
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए ।
इक अति चतुर हुतै पहिलें हीं , अब गुरुग्रंथ पढाए ।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग सँदेस पठाए ।
ऊधौ लोग भले आगे के , पर हित डोलत धाए ।
अब अपने मन फेर पाईहें , चलत जु हुते चुराए ।
तें क्यौं अनीति करें आपुन ,जे और अनीति छुड़ाए ।
राज धरम तो यहै ' सूर ' , जो प्रजा न जाहिं सताए ॥
व्याख्या
उद्धव द्वारा कृष्ण के सन्देश को सुनकर तथा उनके मंतव्य को जानकर गोपियों को बहुत दुख हुआ । गोपियाँ बात करती हुई व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि वे तो पहले से ही बहुत चतुर - चालाक थे ।अब राजनीतिक कारण से मथुरा गये हैं तो शायद राजनीति शास्त्र मे भी महारत हासिल कर ली है और हमारे साथ ही राजनीति कर रहे हैं ।वहाँ जाकर शायद उनकी बुद्धि बढ़ गई है तभी तो हमारे बारे में सब कुछ जानते हुए भी उन्होंने हमारे पास उद्धव से योग का सन्देश भेजा है । उद्धव जी का इसमे कोई दोष नहीं । वे तो अगले ज़माने के आदमी की तरह दूसरों के कल्याण करने में ही आनन्द का अनुभव करते हैं । हे उद्धव जी ! यदि कृष्ण ने हमसे दूर रहने का निर्णय ले ही लिया है तो हम भी कोई मरे नही जा रहीं । आप जाकर कहिएगा कि यहाँ से मथुरा जाते वक्त श्रीकृष्ण हमारा मन भी अपने साथ ले गए थे । हमारा मन तो उन्हीं के साथ है ;उसे वे वापस कर दें । अत्याचारी का दमन कर प्रजा को अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए वे मथुरा गए थे । परन्तु ; वहाँ जाकर वे स्वयं हम पर अत्याचार कर रहे हैं । कहिएगा कि एक अत्याचारी को कोई हक़ नहीं कि वह किसी दूसरे अत्याचारी पर ऊँगली उठाए । हे उद्धव जी ! आप उनसे कहिएगा कि वे हमारे राजा हैं और राजा होने के नाते उन्हें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिये जिससे उनकी प्रजा को किसी भी प्रकार से , कोई भी कष्ट पहुँचे । यही एक राजा का धर्म है ।
सन्देशा
गोपियों ने अपनी बातों से जताया है कि वे कृष्ण से अलग हो ही नहीं सकतीं । उनका मन सदा कृष्ण मे ही लगा रहता है । गोपियों ने अगले "जमाने का आदमी" कहकर उद्धव पर तो व्यंग्य किया ही है बात ही बात में उन्होंने श्रीकृष्ण को उलाहना भी दिया है कि योग सन्देश भेजकर उन्होंने अत्याचार किया है । मात्र एक लक्ष्य को पाने के लिए अपनों से मुँह मोड़ना या भूल जाना बुद्धिमानी नहीं कही जाती । हर हाल में अपने धर्म का निर्वाह करना चाहिए ।
प्रश्न :-
क - गोपियों ने यह क्यों कहा है कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ?
उत्तर- श्रीकृष्ण ने प्रेम - सन्देश के स्थान पर योग - सन्देश भेजा । श्रीकृष्ण ने सीधे - सीधे अपनी बात न कहकर एक राजा की तरह अपना राजदूत भेजा । गोपियों के साथ श्रीकृष्ण ने किसी चालबाज़ राजनेता की तरह कपट किया । ऐसा तो सिर्फ़ एक कुटिल राजनीतिज्ञ ही कर सकता है । इसलिए गोपियों ने कहा है कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ।
ख - गोपियाँ श्रीकृष्ण को किस राजधर्म की याद दिला रही हैं?
उत्तर- गोपियाँ उद्धव के माध्यम से श्रीकृष्ण को याद दिलाना चाहती हैं कि राजा का धर्म प्रजा का हित करना है तथा उन्हें अपने प्रजा को किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए।
ग- ‘अब गुरू ग्रंथ पढ़ाए’ में क्या व्यंग्य है?उत्तर- इसमें कृष्ण पर व्यंग्य है। कृष्ण तो पहले से ही चतुर थे पर अब वह राजनीति भी पढ़ लिए हैं तभी तो खुद आने के जगह उद्धव द्वारा योग का नीरस संदेश भेज दिया है।
उत्तर- श्रीकृष्ण ने प्रेम - सन्देश के स्थान पर योग - सन्देश भेजा । श्रीकृष्ण ने सीधे - सीधे अपनी बात न कहकर एक राजा की तरह अपना राजदूत भेजा । गोपियों के साथ श्रीकृष्ण ने किसी चालबाज़ राजनेता की तरह कपट किया । ऐसा तो सिर्फ़ एक कुटिल राजनीतिज्ञ ही कर सकता है । इसलिए गोपियों ने कहा है कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ।
ख - गोपियाँ श्रीकृष्ण को किस राजधर्म की याद दिला रही हैं?
उत्तर- गोपियाँ उद्धव के माध्यम से श्रीकृष्ण को याद दिलाना चाहती हैं कि राजा का धर्म प्रजा का हित करना है तथा उन्हें अपने प्रजा को किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए।
ग- ‘अब गुरू ग्रंथ पढ़ाए’ में क्या व्यंग्य है?उत्तर- इसमें कृष्ण पर व्यंग्य है। कृष्ण तो पहले से ही चतुर थे पर अब वह राजनीति भी पढ़ लिए हैं तभी तो खुद आने के जगह उद्धव द्वारा योग का नीरस संदेश भेज दिया है।
॥ इति
- शुभम् ॥