Sunday 30 March 2014

hindi kavita cbse hindi a class 10 surdas ke pad हरि हैं राजनीति पढि आए ।



पद - 4

 हरि  हैं  राजनीति  पढि  आए ।
समुझी  बात  कहत  मधुकर के, समाचार  सब  पाए ।
इक अति चतुर  हुतै पहिलें हीं , अब  गुरुग्रंथ  पढाए ।
बढ़ी   बुद्धि  जानी  जो उनकी जोग  सँदेस  पठाए ।
ऊधौ  लोग   भले  आगे के पर  हित  डोलत धाए ।
अब  अपने   मन फेर  पाईहें , चलत  जु  हुते  चुराए ।
तें क्यौं अनीति करें आपुन  ,जे और अनीति छुड़ाए ।
राज धरम तो यहै ' सूर ' , जो प्रजा न जाहिं सताए ॥

व्याख्या


उद्धव द्वारा कृष्ण के सन्देश को सुनकर तथा  उनके मंतव्य को जानकर गोपियों को बहुत दुख हुआ । गोपियाँ बात करती हुई व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि वे तो पहले से ही बहुत चतुर - चालाक थे ।अब राजनीतिक कारण से मथुरा गये हैं तो शायद राजनीति शास्त्र मे भी महारत हासिल कर ली है और हमारे साथ ही राजनीति कर रहे हैं ।वहाँ जाकर शायद उनकी बुद्धि बढ़ गई है तभी तो हमारे बारे में सब कुछ जानते हुए भी  उन्होंने हमारे पास उद्धव से   योग का सन्देश भेजा है । उद्धव जी का इसमे कोई दोष नहीं । वे तो अगले ज़माने के आदमी की तरह दूसरों के कल्याण करने  में ही आनन्द का अनुभव करते हैं । हे उद्धव जी ! यदि कृष्ण ने हमसे दूर रहने का निर्णय ले ही लिया है तो हम भी कोई मरे नही जा रहीं । आप जाकर कहिएगा कि यहाँ से मथुरा जाते वक्त श्रीकृष्ण हमारा मन भी अपने साथ ले गए थे । हमारा मन तो उन्हीं के साथ है ;उसे वे वापस कर दें । अत्याचारी का दमन कर प्रजा को अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए वे मथुरा गए थे । परन्तु ; वहाँ जाकर वे स्वयं हम पर अत्याचार कर रहे हैं । कहिएगा कि एक अत्याचारी को कोई हक़ नहीं कि वह किसी दूसरे अत्याचारी पर ऊँगली उठाए । हे उद्धव जी ! आप उनसे कहिएगा कि वे हमारे राजा हैं और राजा होने के नाते  उन्हें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिये जिससे उनकी प्रजा को  किसी भी प्रकार से , कोई भी कष्ट पहुँचे । यही एक राजा का धर्म है ।

सन्देशा


गोपियों ने अपनी बातों से जताया है कि वे कृष्ण से अलग हो ही नहीं सकतीं । उनका मन सदा कृष्ण मे ही लगा रहता है । गोपियों ने अगले "जमाने का आदमी" कहकर उद्धव पर तो  व्यंग्य किया ही है बात ही बात में उन्होंने श्रीकृष्ण को उलाहना भी दिया है कि योग सन्देश भेजकर उन्होंने अत्याचार किया है । मात्र एक लक्ष्य को पाने के लिए अपनों से मुँह मोड़ना या भूल जाना बुद्धिमानी नहीं कही जाती । हर हाल में अपने धर्म का निर्वाह करना चाहिए ।

प्रश्न :-

क - गोपियों ने यह क्यों कहा है कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ?
उत्तर- श्रीकृष्ण ने प्रेम - सन्देश के स्थान पर योग - सन्देश भेजा ।  श्रीकृष्ण ने सीधे - सीधे अपनी बात न कहकर एक राजा की तरह अपना राजदूत भेजा  । गोपियों के साथ श्रीकृष्ण ने किसी चालबाज़ राजनेता  की तरह  कपट किया । ऐसा तो सिर्फ़ एक कुटिल  राजनीतिज्ञ ही कर सकता है । इसलिए गोपियों ने कहा है कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ।

ख - गोपियाँ श्रीकृष्ण को किस राजधर्म की याद दिला रही हैं?
उत्तर- गोपियाँ उद्धव के माध्यम से श्रीकृष्ण को याद दिलाना चाहती हैं कि राजा का धर्म प्रजा का हित करना है तथा उन्हें अपने प्रजा को किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए।

ग- ‘अब गुरू ग्रंथ पढ़ाए’ में क्या व्यंग्य है?
उत्तर- इसमें कृष्ण पर व्यंग्य है। कृष्ण तो पहले से ही चतुर थे पर अब वह राजनीति भी पढ़ लिए हैं तभी तो खुद आने के जगह उद्धव द्वारा योग का नीरस संदेश भेज दिया है।

॥ इति - शुभम् ॥

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

 

cbse hindi a class x sur ke pad hamare hari haril ki lakadi (हमारे हरि हारिल की लकड़ी)




पद - 3

हमारे  हरि  हारिल  की  लकरी ।
मन
- क्रम - वचन नंद - नंदन उर , यह दृढ़ करि पकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस
- निसि , कान्ह - कान्ह जकरी ।
सुनत  जोग   लागत  है   ऐसो  ज्यौं करूई   ककरी ।
सु  तौ   ब्याधि  हमकौं  लै आए देखी सुनी  न  करी ।
यह  तौ 'सूरतिनहिं  लै  सौंपौ , जिनके  मन  चकरी ।।



व्याख्या


महाकवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के पाँचवें खण्ड से उद्धॄत इस पद में गोपियों ने उद्धव के योग -सन्देश के प्रति अरुचि दिखाते हुए  कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को व्यक्त किया है ।

गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! कृष्ण तो हमारे लिये हारिल पक्षी की लकड़ी की तरह हैं । जैसे हारिल पक्षी उड़ते वक्त अपने पैरों मे कोई लकड़ी या तिनका थामे रहता है और उसे विश्वास होता है कि यह लकड़ी उसे गिरने नहीं देगी , ठीक उसी प्रकार कृष्ण भी हमारे जीवन के आधार हैं । हमने मन कर्म और वचन से नन्द बाबा के पुत्र कृष्ण को अपना माना है । अब तो सोते - जागते या सपने में दिन - रात हमारा मन बस  कृष्ण-कृष्ण का जाप करते रहता है । हे उद्धव ! हम कृष्ण की दीवानी गोपियों को तुम्हारा यह योग - सन्देश कड़वी ककड़ी के समान त्याज्य लग रहा है ।  हमें तो कृष्ण - प्रेम का रोग लग चुका है, अब हम तुम्हारे कहने पर योग का रोग नहीं लगा सकतीं क्योंकि हमने तो इसके बारे में न कभी सुना, न देखा और न कभी इसको भोगा ही है । हमारे लिये यह ज्ञान-मार्ग सर्वथा अनजान है । अत: आप ऎसे लोगों को इसका ज्ञान बाँटिए जिनका मन चंचल है अर्थात जो किसी एक के प्रति आस्थावान नहीं हैं।
 
सन्देशा


भक्ति और आस्था नितान्त व्यक्तिगत भाव हैं ।अत: इसके मार्ग और पद्धति  का चुनाव भी व्यक्तिगत ही होता है । किसी पर अपने विचार थोपना या अपनी पद्धति को ही श्रेष्ठ कहना और अन्य  को व्यर्थ बताना तर्क-संगत नहीं होता । प्रेम कोई व्यापार नहीं है जिसमें हानि-लाभ की चिन्ता की जाय । 
प्रश्न :-
- गोपियों की अवस्था का वर्णन कीजिए ।
उत्तर - गोपियाँ मन ,कर्म और वचन से कृष्ण को अपना मान चुकी हैं ।उन्हें कृष्ण से अलग कुछ भी अच्छा नहीं लगता । सोते-जागते , दिन - रात यहाँ तक कि सपने में भी वे केवल कृष्ण के बारे में ही सोचते रहती हैं । कृष्ण की भक्ति ही अब उनके जीवन का अधार और उद्देश्य बन चुकी है । उन्होंने स्वयं को पूर्णत:  कृष्ण की सेवा मे समर्पित कर दिया है ।

-गोपियों ने कृष्ण की तुलना किससे की है और क्यों ?
उत्तर- गोपियों ने कृष्ण की तुलना हारिल पक्षी की लकड़ी से किया है । जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजो में पकड़े हुए लकड़ी को नहीं छोड़ता ।वही उनके उड़ान का संबल या सहारा होता है ठीक उसी तरह गोपियाँ भी कृष्ण को नहीं छोड़ सकतीं । कृष्ण उनके जीवन के आधार हैं अत: उन्होंने भी कृष्ण भक्ति को दृढ़ता से पकड़ रखा है। 

ग- उद्धव के योग-मार्ग के बारे में गोपियों के क्या विचार हैं?
उत्तर- गोपियाँ कृष्ण की अनन्य भक्त हैं उनके लिए कृष्ण ही सर्वस्व हैं । उनको योग-साधना में कोई रूचि नहीं है। उनके अनुसार उद्धव की कठिन योग- साधना  प्रेम का जगह नहीं ले सकती। उद्धव के योग-साधना के सन्देश ने उनकी विराहाग्नि को और बढ़ा दिया। उन्होंने योग-साधना को नीरस और बेकार माना।





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नोट :- अगला पद क्रमश: ........ अगले पोस्ट में ))

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Friday 28 March 2014

sur ke pad class x hindi a cbse मन की मन ही माँझ रही ।



पद - 2


मन   की   मन   ही   माँझ   रही ।
कहिए  जाइ  कौन  पै ऊधौ , नाहीं   परत   कही ।
अवधि असार आस आवन की , तन - मन विथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि ,विरहिनि विरह दही ।
चाहति हुती गुहारि जितहिं  तैं  ,   तैं  धार  बही ।
'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौं  , मरजादा   न  लही ॥
व्याख्या

श्री कृष्ण के मित्र उद्धव जी जब कृष्ण का संदेश सुनाते हैं कि वे नहीं आ सकते , तब गोपियों का हृदय मचल उठता है और अधीर होकर उद्धव से कहती हैं-

हे उद्धव जी! हमारे मन की बात तो हमारे मन में ही रह गई। हम कृष्ण से बहुत कुछ कहना चाह रही थीं, पर अब हम कैसे  कह पाएँगी। हे उद्धव जी! जो बातें हमें केवल और केवल श्री कृष्ण से कहनी है, उन बातों को किसी और को कहकर संदेश नहीं भेज सकती। श्री कृष्ण ने जाते समय कहा था कि काम समाप्त कर वे जल्दी ही लौटेंगे। हमारा तन और मन उनके वियोग में दुखी है, फिर भी हम उनके वापसी के समय का इंतजार कर रही थीं । मन में बस एक आशा थी कि वे आएँगे तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएँगे। परन्तु; श्री कृष्ण ने हमारे लिए ज्ञान-योग का संदेश भेजकर हमें और भी दुखी कर दिया। हम तो पहले ही दुखी थीं, अब इस संदेश ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। हे उद्धव जी! हमारे लिए यह विपदा की घड़ी है,ऐसे में हर कोई अपने रक्षक को आवाज लगाता है। पर, हमारा दुर्भाग्य देखिए कि ऐसी घड़ी में जिसे हम पुकारना चाहती हैं, वही हमारे दुख का कारण है। हे उद्धव जी! प्रेम की मर्यादा है कि प्रेम के बदले प्रेम ही दिया जाए ,पर श्री कृष्ण ने हमारे साथ छल किया है उन्होने मर्यादा का उल्लंघन किया है अत: अब हमारा धैर्य भी जवाब दे रहा है।

संदेशा


प्रेम का प्रसार बस प्रेम के आदान-प्रदान से ही संभव है और यही इसकी मर्यादा भी है। प्रेम के बदले योग का संदेशा देकर श्री कृष्ण ने मर्यादा को तोड़ा,तो उन्हे भी जली-कटी सुननी पड़ी। और प्रेम के बदले योग का पाठ पढ़ानेवाले उद्धव को भी व्यंग्य और अपमान झेलना पड़ा। अत: किसी के प्रेम का अनादर करना अनुचित है।

प्रश्न 

() गोपियों की मन की बात मन में ही क्यों रह गई?
उत्तर- कृष्ण गोपियों को अकेला छोड़ चले गए थे। वे गोपियों से मिलने आने की बजाय उनके लिए योग-संदेश भेज दिए। गोपियाँ अपने मन की बात उन्हें बता नहीं पाई। वे कृष्ण के सामने अपना प्रेम प्रकट नहीं कर पाई। अतउनके मन की बात मन में ही रह गई।

() गोपियों की विरहाग्नि और अधिक क्यों धधक गई?

उत्तर-जब गोपियों को पता चला कि श्री कृष्ण ने स्वयंआने की जगह उद्धव द्वारा खुद को गोपियों से दूर करने वाले योग-संदेश को भेज दिया है तो गोपियों की विरहाग्नि और धधक गई।

() गोपियाँ किस आशा में दुख सहकर भी जी रहीं थीं? 

उत्तर-गोपियों को विश्वास था कि श्री कृष्ण हमेशा के लिए नहीं गए हैं
 वे जल्द हीं लौटकर आ जाएँगे। वे मन में इसी विश्वास को लेकर विरह-व्यथा सह रहीं थीं।

 नोट :- अगला पद क्रमश: ........ अगले पोस्ट में ))

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’