Saturday, 18 July 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 14 KAVITA CHANDRA GAHANA SE LOUTATI BER BY KEDAR NATH AGRAWAL (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १४ चन्द्र गहना से लौटती बेर - केद्रनाथ अग्रवाल)

चंद्रगहना से लौटती बेर

प्रश्न १ - ‘इस विजन में .... अधिक है’-- पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर  - प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने नगरीय संस्कृति के धनार्जन और मतलब-परस्ती को केन्द्र में रखकर किए जाने वाले कार्य को ही महत्वपूर्ण मानने की प्रवृत्ति तथा प्रेम , सौन्दर्य , प्रकृति एवं रिश्ते-नातों से स्वयं को सर्वथा अलग-थलग कर लेने जैसे कृत्य पर आक्रोश प्रकट किया है।

प्रश्न २ - सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर  - यहाँ सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि उसके पूर्ण विकास की ओर इशारा करना चाहता है। तात्पर्य यह कि सरसों की फ़सल अब पक चुकी है और खेत से कटकर खलिहान या घर तक आने के लिए तैयार हो चुकी है।

प्रश्न ३ - अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर  - अलसी चने के पौधों के बीच ज़बरदस्ती उग आई है इसलिए उसे हठीली कहा गया है। प्रस्तुत कविता में अलसी को एक बेफ़िक्र, शोख और अल्हड़ युवती माना गया है। उसकी चाल में एक लहर - सी है। लचीली कमर और छरहरी बदन वाली अलसी अपने केशों की सज्जा नीले रंग से की है, जो उसके ज़िद्दी स्वभाव का द्योतक है। ऐसा जान पड़ता है, वह प्रेम का सीधा-सीधा निमंत्रण दे रही हो कि - ‘कोई आए मेरा दिल थाम ले।’

प्रश्न ४ - अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर  - ‘हठीली’ अर्थात् ज़िद्दी। पहली बात तो यह कि अलसी चने के खेत में चने के पौधों के बीच ज़बरदस्ती उग आई है। दूसरी ; धरती पर बार-बार हवाओं द्वारा लिटा दिए जाने के बाद भी वह फिर से तनकर खड़ी हो जाती है। तीसरी बात ; पककर तैयार होने के बाद भी फ़लियों का न बिखरना उसके ज़िद्दी स्वभाव की ओर ही इशारा करता है । शायद इन्हीं कारणों के परिप्रेक्ष्य में उसके लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न ५ - ‘चाँदी का बड़ा - सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
उत्तर  - जलाशय में सूर्य का प्रतिबिम्ब पड़कर गोल और लम्बवत् चमक उत्पन्न करता है। वह चमकता प्रकाश यूँ जान पड़ता है , जैसे जल में कोई गोल और लम्बा चाँदी का चमचमाता खंभा पड़ा हुआ है। किरणों के लिए ऐसी कल्पना निश्चय ही कवि की चित्रकला में निपुणता और सूक्ष्म कल्पना - शक्ति को परिलक्षित करता है।

प्रश्न ६ - कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौन्दर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर  - चने का पौधा हरा - भरा है। वह खेत में लहरा रहा है। चने की लंबाई एक बीत्ते अर्थात् लगभग २५ से.मी. के आसपास है। अत: कवि ने उसे ठिगना कहा है। उसके माथे पर गुलाबी रंग का फूल खिला है। इससे उसका सौन्दर्य इस प्रकार बढ़ गया है कि कवि ने चने के पौधे में जान फूँककर उसे मानव जैसे क्रिया - कलाप करते हुए दिखाया है। चने की तुलना एक ठिगने आदमी से करते हुए कवि ने कहा है कि यूँ जान पड़ता है , जैसे वह अपने माथे पर गुलाबी रंग की पगड़ी बाँधकर किसी स्वयंवर में जाने के लिए तैयार खड़ा है। कवि की ऐसी कल्पना से यहाँ ‘मानवीकरण अलंकार’ की सृष्टि हुई है।


प्रश्न ७ - कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर  - कवि ने अग्रलिखित स्थानों या पंक्तियों में मानवीकरण किया है ==>

(क) -   यह हरा ठिगना चना,
         बाँधे मुरैठा शीश पर
         छोटे गुलाबी फूल का,
         सज कर खड़ा है।

(ख) -   पास ही मिलकर उगी है
        बीच में अलसी हठीली
        देह की पतली, कमर की है लचीली,
        नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
        कह रही है, जो छुए यह
        दूँ हृदय का दान उसको।

(ग) -   और सरसों की न पूछो-
         हो गई सबसे सयानी,
         हाथ पीले कर लिए हैं
         ब्याह - मंडप में पधारी।

(घ) - फाग गाता मास फागुन 
      आ गया है आज जैसे।

(ङ) -   हैं कई पत्थर किनारे
        पी रहे चुपचाप पानी
        प्यास जाने कब बुझेगी!


प्रश्न ८ - कविता में उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है :-
‘और चारों तरफ़ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।’
उत्तर  - उल्लेखित भाव निम्नलिखित पंक्तियों में व्यंजित हो रहा है :-
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें ;


प्रश्न ९ - ‘और सरसों की न पूछो’- इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर  - ऐसी शैली प्राय: लोग अपने मित्रों अथवा बहुत ही अपनों के साथ प्रयोग करते हैं। इसमें औपचारिकता किनारे खड़ी हो जाती है। चेहरे पर मौखिक भाषा के भाव के साथ आंगिक हाव भी खुल कर दिखता है। प्राय: जब कोई बहुत रोचक बात बतानी होती है तब बातों के क्रम को बनाए रखने तथा उस बात पर सभी के ध्यानाकर्षण के लिए लोग ऐसी शैली का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न १० - काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर   - काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया ऐसे लोगों का प्रतीक हो सकती है, जिनकी कथनी कुछ और एवम् करनी कुछ और होती है। भले ही ये देखने में भद्र लगते हों, परन्तु; वास्तविकता यह है कि ऐसे लोग मौकापरस्त होते हैं। किसी को हानि पहुँचाकर भी यदि इनका स्वार्थ साधता है तो ऐसे लोग नहीं चूकते। वर्तमान में राजनीतिक दलों के कई सफ़ेदपोश नेता इस चिड़िया के उदाहरण हो सकते हैं।


॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday, 11 July 2015

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ CHAPTER 8 EK KUTTA AUR EK MAINA BY HAJARI PRASAD DWIVEDI(सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ८ एक कुत्ता और एक मैना)


एक कुत्ता और एक मैना


प्रश्न १ - गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर  - गुरुदेव का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था। उन्हें आराम की ज़रुरत थी। चूँकि शान्तिनिकेतन में उनके दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा ही रहता था। अतः गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और अर्थात् श्रीनिकेतन में एकांतवास करने का निर्णय लिया।

प्रश्न २ - मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर  - गुरुदेव जब एकांतवास करने शान्तिनिकेतन को छोड़ श्रीनिकेतन चले गए, तो उनका स्वामी भक्त कुत्ता भी उन्हें ढूँढ़ते - ढूँढ़ते वहाँ पहुँच गया । और तब तक उनके सामने चुपचाप बैठा रहा , जब तक वे उठर उसे सहलाए नहीं। गुरुदेव का स्नेह भरा स्पर्श पाकर वह चंचल हो उठा था। दूसरी घटना ; इस बात को और अधिक स्पष्ट कर देती है । जब गुरुदेव की मृत्यु पर समस्त समाज शोक-मग्न था, तब कुत्ता भी घंटों तक उनके पास उदास बैठा रहा । वह अन्य लोगों के साथ गंभीर भाव से उत्तरायण तक भी गया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की तरह ही संवेदनशील होते हैं।

प्रश्न ३ - गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता का मर्म लेखक कब समझ पाया?
उत्तर  - लेखक प्राय: रोज़ ही लंगड़ी मैना को देखा करता था। लेकिन कभी उसमें कोई असामान्य बात उसे नज़र नहीं आई थी। किन्तु ; जब कविता पढ़ने के बाद उसने ध्यानपूर्वक मैना को निहारा तब सचमुच मैना उसे उदास - उदास लग रही थी। मैना की करूण - अवस्था देखते ही वह कविता के मर्म को समझ गया।

प्रश्न ४ - प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है , जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर  - प्रस्तुत निबन्ध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘प्रसन्न भाषा’ में लिखित एक ललित निबन्ध है। जिसमें उन्होंने अपने विचारों और भावनाओं को कल्पना का जामा पहनाकर पाठक के समक्ष एक सरस रचना को परोसा है। प्रस्तुत निबन्ध की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं :--

(क) - आत्म-कथात्मक शैली ==> इसमें लेखक ने आत्म-कथात्मक शैली का प्रयोग किया है। जैसे - “शुरू शुरु में मैं ऐसी बांग्ला में बात करता था। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा पुस्तकीय है।

(ख) - व्यंग्यात्मकता ==> द्विवेदी जी सफल साहित्यकार थे । अत: साहित्य के आदर्श और मर्यादा से परिचित थे। उन्होंने गुरुदेव के प्रश्न  “अच्छा साहब ! आश्रम के कौए क्या हो गए?” को आधार बनाकर आधुनिक साहित्यिकों को लक्ष्य करके कौवों का स्मरण किया है। उन्होंने बात ही बात में साहित्यकारों पर छींटा-कशी करते हुए करारा व्यंग्य  भी किया है।

(ग) - कल्पनात्मकता ==> द्विवेदी जी में अद्भुत कल्पना शक्ति थी। उन्होंने कौवा , लंगड़ी मैना , कुत्ता और मैना-दंपति आदि के विचारों , मनोभावों और प्रतिक्रियाओं को सहज ही में संवादात्मक कर दिया है।

(घ) - चित्रात्मकता ==> द्विवेदी जी की भाषा चित्रात्मक है। चाहे लंगड़ी मैना की करुण - मूर्ति को साकार करनेवाली भाषा हो अथवा गुरुदेव की मृत्यु के पश्चात् कुत्ते की उदास बैठे रहने की मुद्रा का वर्णन हो। शब्दों द्वारा दृश्य-चित्रण की बात हो , तो कोई द्विवेदी जी से सीखे।

प्रश्न ५ - आशय स्पष्ट कीजिए :--
इस प्रकार कवि की मर्म भेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है , जो मनुष्य , मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर  - विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गहरी अन्तर्दृष्टि प्राप्त थी। अपनी इसी प्रतिभा के कारण वे कुत्ते जैसे मूक प्राणी के अन्तर में छिपे ‘समर्पण-भाव’ को देख पाए थे। उन्होंने देखा कि कुता भक्त-हृदय है। उन्होंने उसकी स्वामी-भक्ति को आध्यात्मिक और अलौकिक रुप में देखा और माना कि यह आत्मा का आत्मा के प्रति समर्पण है। उन्होंने महसूस किया कि इतना समर्पण-भाव तो मनुष्य जीवन में बड़ी कठिनाई से उतर पाता है।


॥ इति - शुभम् ॥


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विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday, 4 July 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 7 MERE BACHAPAN KE DIN BY MAHADEVI VERMA (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ७ मेरे बचपन के दिन)


मेरे बचपन के दिन उदधि डॉट कॉम

मेरे बचपन के दिन

प्रश्न १ - ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि --
(क) - उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर - उस समय से तात्पर्य है - महादेवी वर्मा के जन्म के समय अर्थात् बीसवीं सदी के प्रारंभ का समय। तत्कालिन समय में लड़कियों की बड़ी ही दयनीय दशा थी।उन्हें पैदा होते ही परमधाम भेज दिया जाता था। यदि वे सौभाग्यवश बच जातीं तो आए दिन उनका तिरस्कार होता था साथ ही उनके साथ भेदभाव और अन्याय किया जाता था। उन्हें नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते थे। शिक्षा-दीक्षा और सम्मान से महरुम उनकी दशा अत्यन्त शोचनीय थी।

(ख) - लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर - शिक्षा - दीक्षा के प्रसार ने आज लोगों की आँखें खोल दी हैं। सामाजिक संजाल (Social Medias) खासकर फ़ेसबुक , ट्वीटर और टी.वी आदि जैसे संचार - साधनों ने जागरण का मंत्र फूँक दिया है।आज संविधान ने भी लड़कियों को समान अधिकार प्रदान किया है। सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं ने ‘लड़का-लड़की एक समान’ का नारा दिया है। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं आगे बढ़कर ‘बेटी बचाओ’ आंदोलन चलाया है। ऐसे प्रयासों के कारण लड़का-लड़की में भेद जैसी बातें अब मिथक साबित हो रही हैं। आज लड़कियों के जन्म के संबंध में भले ही लोगों को खुशी न हो रही हो, किन्तु दुख का अनुभव भी नहीं हो रहा। अब उन्हें भी वे तमाम सुविधाएँ प्राप्त होने लगी हैं, जिन पर परंपरा से लड़कों का ही आधिपत्य था।

प्रश्न २ - लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई?
उत्तर  - लेखिका को उर्दू-फ़ारसी सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अपने पिताजी की इच्छाओं का सम्मान कहिए अथवा डर के कारण उन्होंने उर्दू-फ़ारसी सीखने की हामी भरी थी। अरुचि के कारण उन्हें उर्दू - फ़ारसी सीखना भी कठिन लग रहा था। जिस दिन मौलवी साहब उसे पढ़ाने आए, उनकी दाढ़ी देखकर लेखिका डर गई और घ के भीतर जाकर चारपाई के नीचे  छिप गई। अंततः मौलवी साहब को वापस जाना पड़ा और उसके बाद लेखिका फिर कभी उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख पाई।

प्रश्न ३ - लेखिका ने अपनी माँ की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर  - लेखिका ने अपनी माँ के बारे में बताया है कि वे एक धार्मिक महिला थीं। हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान रखने वाली उनकी माता भजन भी लिखती थीं। लिखने के साथ-साथ उन्हें गाने का भी शौक था। धार्मिक होने के कारण वे सवेरे प्रभाती और शाम को साँझा गाती थीं। मीरा के पद उन्हें बेहद पसंद थे।

प्रश्न ४ - जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर  - जवारा के नवाब के साथ लेखिका के पारिवारिक संबंध अत्यन्त घनिष्ठ एवम् अपनों से भी आत्मीय थे। दोनों परिवार प्राय: प्रत्येक तीज-त्योहार एक-दूसरे से मिलजुल कर मनाता था। आज जबकि सगे भाइयों अथवा अपनों के साथ किसी की नहीं बनती, तब भला हिन्दू-मुस्लिम जो स्वतंत्रता-प्राप्ति अथवा देश के बँटवारे के बाद एक - दूसरे के घोर विरोधी हो गए हैं ; उन दो ध्रुवों का मिलन कैसे संभव हो सकता है। यही कारण है कि जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा कहा है।

प्रश्न ५ - ज़ेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं / होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
उत्तर  - ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होता , तो अपने किए के बदले में कुछ पाने का ख़्वाहिशमंद रहता। साथ ही मैं महादेवी से उम्मीद करता कि वे हमारा सम्मान करें। इसके अलावा मैं चाहता कि समय - समय पर महादेवी भी मेरा कार्य कर दिया करें ।

प्रश्न ६ - महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे / करेंगी?
उत्तर - कोई भी पुरस्कार देशहित से बड़ा नहीं हो सकता। यदि देश की सेवा किसी भी रुप में किंचित् भी कर सका , तो मैं स्वयम् को बड़ा भाग्यशाली समझूँगा। यदि मुझसे कहा जाता कि पुरस्कार में प्राप्त चाँदी का कटोरा देश के हितार्थ दे दो , तब मुझे बड़ी प्रसन्न्ता होती। ऐसे में यदि मुझे कोई सोने का कटोरा भी मिला होता तो उसे भी मैं ‘राष्ट्राय स्वाहा , इदं न मम’ की भावना के साथ दे देता।

प्रश्न ७ - लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है , उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर - मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। अत: मैं उस परिवेश की चर्चा भोजपुरी में ही कर रहा हूँ।
महादेवी जी जवना छात्रावास में रहत रहली , ओमे अलग-विलग भाषा बोलेवाला के भरमार रहे। केहू हिन्दी , केहू मराठी , केहू फ़ारसी तऽ केहू संस्कृतो बोलेवाला रहे। बूंदेली , अवधी , ब्रजभाषा आऽ भोजपुरी के तऽ बाते मत पूछीं। अँगुरी पर गिनल मुसकिल हो जाई। कहे के मतलब जे कौनो भाषा शाएदे जे बाकी रहे। हँऽऽ इ एगो अलग बात रहे कि खाना - पीना सभे एके मेस में , एकट्ठे खात रहे , आऽ पढ़ाई - लिखाई भी सबकर एकही भाषा में होत रहे।



॥ इति शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’