Saturday 4 July 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 7 MERE BACHAPAN KE DIN BY MAHADEVI VERMA (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ७ मेरे बचपन के दिन)


मेरे बचपन के दिन उदधि डॉट कॉम

मेरे बचपन के दिन

प्रश्न १ - ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि --
(क) - उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर - उस समय से तात्पर्य है - महादेवी वर्मा के जन्म के समय अर्थात् बीसवीं सदी के प्रारंभ का समय। तत्कालिन समय में लड़कियों की बड़ी ही दयनीय दशा थी।उन्हें पैदा होते ही परमधाम भेज दिया जाता था। यदि वे सौभाग्यवश बच जातीं तो आए दिन उनका तिरस्कार होता था साथ ही उनके साथ भेदभाव और अन्याय किया जाता था। उन्हें नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते थे। शिक्षा-दीक्षा और सम्मान से महरुम उनकी दशा अत्यन्त शोचनीय थी।

(ख) - लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर - शिक्षा - दीक्षा के प्रसार ने आज लोगों की आँखें खोल दी हैं। सामाजिक संजाल (Social Medias) खासकर फ़ेसबुक , ट्वीटर और टी.वी आदि जैसे संचार - साधनों ने जागरण का मंत्र फूँक दिया है।आज संविधान ने भी लड़कियों को समान अधिकार प्रदान किया है। सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं ने ‘लड़का-लड़की एक समान’ का नारा दिया है। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं आगे बढ़कर ‘बेटी बचाओ’ आंदोलन चलाया है। ऐसे प्रयासों के कारण लड़का-लड़की में भेद जैसी बातें अब मिथक साबित हो रही हैं। आज लड़कियों के जन्म के संबंध में भले ही लोगों को खुशी न हो रही हो, किन्तु दुख का अनुभव भी नहीं हो रहा। अब उन्हें भी वे तमाम सुविधाएँ प्राप्त होने लगी हैं, जिन पर परंपरा से लड़कों का ही आधिपत्य था।

प्रश्न २ - लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई?
उत्तर  - लेखिका को उर्दू-फ़ारसी सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अपने पिताजी की इच्छाओं का सम्मान कहिए अथवा डर के कारण उन्होंने उर्दू-फ़ारसी सीखने की हामी भरी थी। अरुचि के कारण उन्हें उर्दू - फ़ारसी सीखना भी कठिन लग रहा था। जिस दिन मौलवी साहब उसे पढ़ाने आए, उनकी दाढ़ी देखकर लेखिका डर गई और घ के भीतर जाकर चारपाई के नीचे  छिप गई। अंततः मौलवी साहब को वापस जाना पड़ा और उसके बाद लेखिका फिर कभी उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख पाई।

प्रश्न ३ - लेखिका ने अपनी माँ की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर  - लेखिका ने अपनी माँ के बारे में बताया है कि वे एक धार्मिक महिला थीं। हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान रखने वाली उनकी माता भजन भी लिखती थीं। लिखने के साथ-साथ उन्हें गाने का भी शौक था। धार्मिक होने के कारण वे सवेरे प्रभाती और शाम को साँझा गाती थीं। मीरा के पद उन्हें बेहद पसंद थे।

प्रश्न ४ - जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर  - जवारा के नवाब के साथ लेखिका के पारिवारिक संबंध अत्यन्त घनिष्ठ एवम् अपनों से भी आत्मीय थे। दोनों परिवार प्राय: प्रत्येक तीज-त्योहार एक-दूसरे से मिलजुल कर मनाता था। आज जबकि सगे भाइयों अथवा अपनों के साथ किसी की नहीं बनती, तब भला हिन्दू-मुस्लिम जो स्वतंत्रता-प्राप्ति अथवा देश के बँटवारे के बाद एक - दूसरे के घोर विरोधी हो गए हैं ; उन दो ध्रुवों का मिलन कैसे संभव हो सकता है। यही कारण है कि जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा कहा है।

प्रश्न ५ - ज़ेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं / होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
उत्तर  - ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होता , तो अपने किए के बदले में कुछ पाने का ख़्वाहिशमंद रहता। साथ ही मैं महादेवी से उम्मीद करता कि वे हमारा सम्मान करें। इसके अलावा मैं चाहता कि समय - समय पर महादेवी भी मेरा कार्य कर दिया करें ।

प्रश्न ६ - महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे / करेंगी?
उत्तर - कोई भी पुरस्कार देशहित से बड़ा नहीं हो सकता। यदि देश की सेवा किसी भी रुप में किंचित् भी कर सका , तो मैं स्वयम् को बड़ा भाग्यशाली समझूँगा। यदि मुझसे कहा जाता कि पुरस्कार में प्राप्त चाँदी का कटोरा देश के हितार्थ दे दो , तब मुझे बड़ी प्रसन्न्ता होती। ऐसे में यदि मुझे कोई सोने का कटोरा भी मिला होता तो उसे भी मैं ‘राष्ट्राय स्वाहा , इदं न मम’ की भावना के साथ दे देता।

प्रश्न ७ - लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है , उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर - मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। अत: मैं उस परिवेश की चर्चा भोजपुरी में ही कर रहा हूँ।
महादेवी जी जवना छात्रावास में रहत रहली , ओमे अलग-विलग भाषा बोलेवाला के भरमार रहे। केहू हिन्दी , केहू मराठी , केहू फ़ारसी तऽ केहू संस्कृतो बोलेवाला रहे। बूंदेली , अवधी , ब्रजभाषा आऽ भोजपुरी के तऽ बाते मत पूछीं। अँगुरी पर गिनल मुसकिल हो जाई। कहे के मतलब जे कौनो भाषा शाएदे जे बाकी रहे। हँऽऽ इ एगो अलग बात रहे कि खाना - पीना सभे एके मेस में , एकट्ठे खात रहे , आऽ पढ़ाई - लिखाई भी सबकर एकही भाषा में होत रहे।



॥ इति शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

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