Sunday 20 December 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ-1 CHAPTER 17-BACHCHE KAM PAR JA RAHE HAIN BY RAJESH JOSHI (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १७ बच्चे काम पर जा रहे हैं - राजेश जोशी)

बच्चे काम पर जा रहे हैं

प्रश्न १ - कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर - कविता की पहली दो पंक्तियाँ हैं --
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह

इन पंक्तियों पर विचार करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। मात्र पढ़ लेने से ही बाल-मजदूरी का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। जब हम विचार करते हैं, तो मन करुणा से द्रवित हो उठता है। पंक्तियों में हाड़ को कंपकंपा देनेवाली शीत-ऋतु की भयानक प्रचंडता का वर्णन है, जिसमें गर्म-पोशाकधारी युवक भी ठिठुरने लगते हैं। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हँसने - खेलने - कूदने और पढ़ने की उम्र वाले बच्चे ; कितने मज़बूर होंगे कि वे काम पर जा रहे हैं। उफ्फ़ ! यह बहुत भारी समस्या है जो मन को व्यथित और भावी-भविष्य के प्रति चिन्तित भी करती है।

प्रश्न २ - कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रुप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’
कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
उत्तर  - ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’-- अर्थ की दृष्टि से यह एक विधानवाचक वाक्य है। जिसका लक्ष्य होता है -- मात्र सूचना या विवरण देना । सूचना या विवरण देनेवाले का उस सूचना के प्रभाव और गंभीरता से कोई लेना - देना नहीं होता। और पाठक भी उसे मात्र एक सूचना मानकर पढ़ता है। अत: कवि चाहता है कि वाक्य को प्रश्नवाचक स्वरूप देकर पाठक के सामने प्रस्तुत किया जाए, ताकि हर कोई इस बात पर अर्थात् ‘बाल मजदूरी’ जैसी विकट समस्या पर विचार करे और समाधान ढूँढ़े। 

प्रश्न ३ - सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर  - आर्थिक दृष्टि से हमारा समाज दो वर्गों में विभाजित है-- ग़रीब और अमीर । अमीर बच्चों को सारी सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं। परन्तु ; ग़रीब माता-पिता दुनिया के सबसे निरीह प्राणी होते हैं। वे दो वक़्त की रोटी नहीं जुटा पाते , तो भला अपने बच्चों को सुविधा और मनोरंजन के साधन कहाँ से उपलब्ध करा पाएँगे। तात्पर्य यह कि ग़रीबी के कारण ही बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित रह जाते हैं।

प्रश्न ४ - दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर  - आज का समाज व्यक्ति-केन्द्रित होता जा रहा है। ऐसे में लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं। उनकी अपनी कुछ सीमाएँ या विवशताएँ होती हैं, जिस कारण उन्हें दूसरों को देखकर भी अनदेखा करना पड़ता है।
बाल-श्रम के प्रति लोगों में जो उदासीनता दिखाई दे रही है, वह अचानक आज ही पैदा नहीं हुई है। भीषण महंगाई और बेरोज़गारी के कारण भूखमरी का शिकार होकर, मरते हुए लोगों को इस समाज ने देखा है। ऐसे में यदि कोई बालक अपने प्राण-रक्षा के लिए दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करता है , तो कोई इस पर भला क्या कहेगा। यदि कोई कुछ कहता भी है, तो सुनेगा कौन...? वह बाल-श्रमिक ? भूख के मारे जिसकी जान गले तक आ चुकी है ; या हम.. जो खुद हैरान , परेशान और हलकान हैं । सभी जानते और मानते हैं - ‘बुभुक्षित: किम् न करोति पापम्।’ अर्थात् भूखा व्यक्ति क्या नहीं कर सकता। तात्पर्य यह कि वह कोई भी पाप कर सकता है। शायद यही सोच कर सभी उदासीन हो गए हैं। फिर भी.... जिसकी रोटी बाल-श्रम पर हाय-तौबा मचाने से चलती हो..वह मचाए ।

प्रश्न ५ - आपने अपने शहर में बच्चों को काम करते कहाँ-कहाँ देखा है?
उत्तर  - हम पश्चिम बंगाल के रायगंज शहर में रहते हैं। हमने अपने शहर के कई दुकानों पर बच्चों को काम करते देखा है। दुकानों के अलावा वे सब्ज़ी मंडी में भी दिखाई देते हैं। चाय दुकानें और होटल तो जैसे उन्हीं की बदौलत चलते हैं। गली-गली घूमकर कूड़े से प्लास्टिक की थैलियाँ व अन्य सामान चुनते हुए भी उन्हें देखा जा सकता है। लोगों ने अपने घर का काम कराने के लिए बाकायदा उन्हें नौकर भी रखा है। हमारा शहर भी किसी अन्य शहर से कम नहीं है।

प्रश्न ६ - बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
उत्तर  - खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और मनोरंजन बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। उन्हें इन सबकी सुविधा और अवसर ज़रूर मिलना चाहिए। परन्तु; ग़रीबी , तंगहाली , महंगाई और बेरोज़गारी के कारण उनके माता-पिता मज़बूर हैं। आज बच्चे अपने अधिकार से वंचित होकर मज़दूरी करने पर विवश हैं। आज के बच्चे कल के भविष्य हैं। आज यदि उनकी देख-भाल ठीक से नहीं होगी, तो उनका भविष्य तो अंधकारमय होगा ही ; उनके बाद की पीढ़ी भी इससे प्रभावित होगी। इस परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान है।

प्रश्न ७ - काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने - आप को रखकर देखिए। जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर  - आज मैंने स्वयं को एक काम करने वाले बच्चे के स्थान पर रखकर देखा। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं बहुत ही दुर्भाग्यशाली हूँ। मेरा दुख तब और गहरा हो गया , जब मैंने अपने ही उम्र के बच्चों को स्कूल जाते देखा। मेरे मन में भी स्कूल जाने की ललक जग गई। सोचने लगा कि काश ! इन बच्चों की तरह मैं भी पढ़ता-लिखता और खेल-कूद पाता । फिर याद आया कि कैसे मेरे ग़रीब माता - पिता चाह कर भी मुझे स्कूल नहीं भेज पाए थे। एक आह - सी निकली और मैं टूटे मन से निराश होकर अपने काम करने के स्थान की ओर चल पड़ा। कदम जल्दी-जल्दी उठने लगे क्योंकि आज रात को मैं भूखा नहीं सोना चाहता था।

प्रश्न ८ - आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर  - बच्चे देश का भविष्य होते हैं। उम्र कम होने के कारण उन्हें सही और ग़लत की पहचान नहीं होती। भोले और भावुक होने के कारण उन्हें कभी भी बरगलाया जा सकता है। ग़ैर - क़ानूनी धन्धे या आपराधिक गतिविधियों में झोंका जा सकता है। एक बार यदि वे अपराध की दलदल में फँस गए, तो उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता है। अत: मेरे विचार से उन्हें काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। हाँ ; उन्हें खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और मनोरंजन का जन्मसिद्ध अधिकार है। उन्हें इन सबकी सुविधा और अवसर ज़रूर मिलना चाहिए। 

॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Friday 18 December 2015

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ-1 CHAPTER 16 - YAMARAJ KI DISHA BY CHANDRAKANT DEVATALE (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १६ यमराज की दिशा - चन्द्रकांत देवताले)


यमराज की दिशा

प्रश्न १ - कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई?
उत्तर  - कवि की माँ ने बचपन से ही कवि को दक्षिण दिशा या यमराज की दिशा से बचने अर्थात् बुरे कर्म से बचने की सलाह दी थी। सही और ग़लत की पहचान करवाया था। अच्छे संस्कार दिए थे। प्रेम, मैत्री व ईश्वर - भक्ति का पाठ पढ़ाया था। फलत: कवि को दक्षिण दिशा अर्थात् यमराज की दिशा पहचानने में मुश्किल नहीं हुई।

प्रश्न २ - कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव न था?
उत्तर  - दिशाएँ अनन्त होती हैं। दक्षिण दिशा का भी अन्त नहीं है अर्थात् हिंसा , लूट , व्यभिचार , शोषण , उत्पीड़ण और अत्याचार आदि का अन्त नहीं है। इनका कोई एक सार्वभौमिक स्वरूप नहीं होता। इनके अनेकानेक रूप प्रचलित हैं। फलत: इनका विस्तार भी बड़ा है। समूची दुनिया ऐसी कुत्सित भावनाओं से भरी पड़ी है। अत: इनसे पार पाना या इनके पार जाना भी संभव न था और न होगा। कवि ने शायद इसीलिए कहा है कि दक्षिण को लांघ लेना संभव न था।

प्रश्न ३ - कवि के अनुसार आज हर दिशा, दक्षिण दिशा क्यों हो गई है?
उत्तर  - दक्षिण दिशा अर्थात् हिंसा , लूट , व्यभिचार , शोषण , उत्पीड़ण और अत्याचार आदि की दिशा। एक ऐसी दिशा जिसमें केवल और केवल यमराज अर्थात् शोषणकर्ता , अत्याचारी , चोर-डाकू और ठग - लुटेरे रहते हों। कवि की नज़र में आज हमारे समाज में चहुँओर शोषण और भ्रष्टाचार का बाज़ार गर्म दिखता है। अत: कवि के अनुसार आज हर दिशा, दक्षिण दिशा हो गई है।

प्रश्न ४ - भाव स्पष्ट कीजिए :-
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर  - यमराज अर्थात् मौत का फ़रिश्ता या सौदाग़र। आज हमारे समाज में यमराजों की कमी नहीं है। तात्पर्य यह कि हमारे समाज में हिंसक , शोषक और अत्याचारियों की भरमार है। उनकी पाँचों अंगुलियाँ घी में हैं, उनके ठाट निराले हैं। कोई किसी से कम नहीं दिखता। उनकी आँखें दहक रही हैं। तात्पर्य यह कि उन आँखों में क्रोध , नफ़रत , क्रूरता ,कठोरता और हिंसकता भरी हुई है।

प्रश्न ५ - कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग - निर्देश करती है। आपकी माँ भी समय - समय पर आपको सीख देती होंगी --
(क) - वह आपको क्या सीख देती हैं?
उत्तर - जब से मैंने होश संभाला है तब से आज तक मेरी माँ ने न जाने कितनी बातें बताई और सिखाई होंगी। उन सभी को कलमबद्ध करना संभव नहीं । फिर भी यदि बताना ही पड़े ; तो मैं कहूँगा कि परस्पर मेल-मिलाप , जीवों पर दया , बड़ों का आदर - सम्मान करना , झूठ - बेईमानी और फ़रेब से बचना तथा ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने की सीख प्राय: दिया करती हैं।

(ख) - क्या उनकी हर सीख आपको उचित जान पड़ती है? यदि हाँ तो क्यों और यदि नहीं तो क्यों नहीं?
उत्तर - प्राय: माँ की सीख उचित ही हुआ करती है। परन्तु ; उनकी हर सीख मुझे उचित नहीं लगती। क्योंकि वे हर बात को अपने समय की तराजू पर तौला करती हैं। उनका समय हमारे समय से थोड़ा अलग था । लोगों के बोल - व्यवहार अलग थे। आज समय बदल गया है। अत: एकदम वही बात सही नहीं है, जो माँ जानती हैं या सोचा करती हैं। इसलिए मैं आदरपूर्वक सुनता हूँ,परन्तु कुछ बातें , जो मुझे उचित नहीं लगतीं, उन्हें क्षमा माँगते हुए नहीं मानता हूँ।

प्रश्न ६ - कभी - कभी उचित - अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर - मनुष्य का हृदय सदैव आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता। समय - समय पर मन की चंचलता और बदलती परिस्थितियाँ मनुष्य के निर्णयों को प्रभावित करती रहती हैं। कभी - कभी मनुष्य अपने निजी स्वार्थों के चक्कर में पड़कर हत्या, लूट, डकैती जैसे कुत्सित एवम् घृणित कार्य करने पर उतारु हो जाता है। ऐसे में ईश्वर का भय दिखाना बेहद ज़रुरी है। मनुष्य क़ानून से नहीं; ईश्वर से डरता है । क्योंकि; क़ानून का संबंध बुद्धि से है जबकि ईश्वर का संबंध सीधे आत्मा या हृदय से है। अत: पाप - पुण्य , ईश्वर , धर्म आदि बातों से डरकर मनुष्य की मनुष्यता जागृत हो जाती है और वह सन्मार्ग पर चलने लगता है। 


॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....


विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’