भारतवर्ष
सदा कानून को धर्म के रूप में देखता रहा है । आज एकाएक कानून और धर्म में
अन्तर पड़ गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता , पर कानून को दिया जा
सकता है।यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरू हैं वे भी कानून की त्रुटियों से
लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते
हैं कि समाज के उपरले वर्ग में चाहे जो भी रहा हो , भीतर - भीतर भरतवर्ष अब
भी अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। (मूल शब्द संख्या - ७५ )
शीर्षक - धर्म और कानून
संक्षेपण - आजकल भारत में धर्म और कानून को अलग - अलग माननेवाले एवम् कानून को धोखा देने को ज़ुर्म न माननेवाले लोगों की कमी नहीं है। फिर भी आम भारतीय धर्म को कानून से बड़ी चीज़ मानते हैं। ( संक्षेपित शब्द - २७)
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शीर्षक - धर्म और कानून
संक्षेपण - आजकल भारत में धर्म और कानून को अलग - अलग माननेवाले एवम् कानून को धोखा देने को ज़ुर्म न माननेवाले लोगों की कमी नहीं है। फिर भी आम भारतीय धर्म को कानून से बड़ी चीज़ मानते हैं। ( संक्षेपित शब्द - २७)
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॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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