एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा
उत्तर - आज़ादी की लड़ाई से न तो देश का कोई कोना अछूता रहा और न कोई तबका । प्रस्तुत पाठ की दुलारी जो नाच-गाकर किसी तरह अपना गुज़ारा कर रही थी , वह समाज के उपेक्षित वर्ग से थी । जब विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाने लगी , तब दुलारी ने मेनचेस्टर और लंकाशायर में बनी कोरी धोतियों का बंडल देश के दीवानों के सुपुर्द कर दिया । कजरी गायक टुन्नू भी उसी तबके का था, जो देश के दीवानों की टोली में शामिल होकर शहीद हो गया। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं है।
प्रश्न २ - कठोर हृदयी समझे जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर विचलित क्यों हो उठी ?
उत्तर - टुन्नू और दुलारी का जब से सामना हुआ , तभी से दोनों एक - दूसरे पर आसक्त थे । टुन्नू का प्रेम प्रत्यक्ष था, जबकि कठोर हृदयी दुलारी मन ही मन प्रेम करती थी। अधिक उम्र की होने के कारण वह टुन्नू की ज़िन्दगी में नहीं आना चाहती थी । जब उसे टुन्नू की मृत्यु का समाचार मिला , तब उसका हृदय हाहाकार उठा। उस कठोर हृदयी की आँखों से गंगा - यमुना बहने लगी ।
प्रश्न ३ - कजली - दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा ? कुछ और परंपरागत लोक - आयोजनों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर - हमारा देश विविधताओं से भरा है ।यहाँ हर प्रदेश की अपनी-अपनी विशेषता और पर्व - त्योहार हैं । भारतीय संस्कृति लोक - संस्कृतियों का संगम है। इन्हीं लोक - संस्कृतियों में से एक है -- कजरी दंगल। यह सावन - भादों के महीने में आयोजित की जाती है । इसमें दो गायकों के बीच प्रतियोगिता होती है। धान की रोपाई के बाद किसानों को उसके तैयार होने का इन्तज़ार होता है। इस अवकाश के समय वे ऐसे आयोजन से मनोरंजन करते हैं। आल्हा , बैसाखी , बिहू , ओणम और चैती आदि इसी प्रकार के लोक - आयोजन हैं, जो बहुत प्रचलित हैं।
प्रश्न ४ - ‘दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक - सांस्कृतिक दायरे से बाहर है। फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर - दुलारी एक सरस कजरी गायिका है , जो अपनी गायन - कला के लिए प्रसिद्ध है । गायिका होने के साथ वह एक अच्छी नृत्यांगना भी है। दुलारी बात - बात में पद्य बोला करती थी, इससे पता चलता है कि वह कवि - हृदय भी थी। महिला होने पर भी वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से दबती नहीं थी। होली जलाने के लिए विदेशी धोतियों का बंडल फेंकना यह साबित करता है कि वह नीडर , साहसी , त्यागी , देशभक्त और अंग्रेजी शासन के विरूद्ध थी। परन्तु ; नाचने-गाने वाली होने के कारण उसे अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता। यद्यपि वह विशिष्ट कहे जाने वाले समाज के दायरे से बाहर है तथापि अपने बोल - व्यवहार , शील - आचरण , सच्चे प्रेम तथा देशभक्ति आदि कई चारित्रिक विशेषताओं के कारण वह विशिष्टों से भी विशिष्ट अर्थात् अति विशिष्ट है ।
प्रश्न ५ - दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ ?
उत्तर - खोजवाँ और बजरडीहा नामक दो गाँवों के बीच तीज के अवसर पर कजरी - दंगल का आयोजन हुआ था । दंगल में खोजवाँ वालों की तरफ़ से दुलारी बुलाई गई थी , जबकि बजरडीहा वालों ने एक नवोदित कलाकार टुन्नू को उतारा था। इसी कजरी - दंगल में दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय हुआ था ।
प्रश्न ६ - दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था - “तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?” ! दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा - वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - दुलारी ने टुन्नू के जवाब में गाया था-“तैं सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट?”! जिसका भाव है- ओ सिरफ़िरे ! तूने अपनी ज़िन्दगी में कब नोट देखा है , बता । दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा - वर्ग के लिए यह संदेश छिपा है कि उन्हें दिखावा या झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। अपनी सीमा में रहते हुए सामर्थ्य के अनुसार ही सपने संजोना चाहिए। नक़ली प्रेम , फिज़ूलखर्ची चारित्रिक - पतन या भटकाव से बचना चाहिए। कल्पना-लोक में विचरण न करके उन्हें वास्तविकता के धरातल पर रहते हुए अपनी परिस्थितियों के अनुसार ही क़दम उठाने चाहिए ।
प्रश्न ७ - भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने किस प्रकार योगदान दिया ?
उत्तर - भारत के स्वाधीनता संग्राम में दुलारी और टुन्नू ने अपनी - अपनी तरह से योगदान दिया। दुलारी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के क्रम में नई धोतियों का बंडल फ़ेंका, इससे उसने अन्य लोगों को ऐसा ही करने के लिए प्रेरित भी किया। टुन्नू खादी धारण कर देश के दीवानों की टोली में शामिल हो गया। उसने अंग्रेजों का विरोध किया और इस विरोध में वह शहीद भी हो गया ।
प्रश्न ८ - दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी ? यह प्रेम दुलारी को देश - प्रेम तक कैसे पहुँचाता है ?
उत्तर - दुलारी और टुन्नू दोनों कजरी - गायक थे। टुन्नू युवा था , जबकि दुलारी प्रौढ़ा थी। दोनों एक - दूसरे की गायकी से प्रभावित थे और दोनों एक - दूसरे की कला का सम्मान भी करते थे। यह सम्मान - भाव ही कालान्तर में प्रेम में परिणित हो गया । अपने प्रेम का एहसास होते ही दुलारी ने टुन्नू को अपने यहाँ आने से मना कर दिया । दुलारी से निराश टुन्नू स्वयम् को देश के लिए समर्पित करने के निर्णय के साथ स्वतंत्रता - आंदोलन में शामिल हो गया । अपने टुन्नू को आंदोलनकारियों में देख दुलारी ने भी वही रास्ता अपनाया और विदेश में बनी नई धोतियों के अपने बंडल को होली जलाने के लिए फ़ेंक दिया । इस प्रकार हम देखते हैं कि कला से उपजा प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक पहुँचा देता है ।
प्रश्न ९ - जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश फ़टे - पुराने थे,परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मीलों में बनी कोरी साड़ियों का फ़ेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?
उत्तर - देश के दीवानों द्वारा फैलाई चादर पर जो विदेशी वस्त्र फेंके जा रहे थे , वे अधिकांश फ़टे - पुराने थे। किन्तु ; दुलारी ने नई धोतियों का बंडल फ़ेंका था । इससे पता चलता है कि अंग्रेजों के प्रति उसके मन में बड़ा आक्रोश था। साथ ही यह भी कि उसने हृदय से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। इससे उसकी देश भक्त , त्याग और दृढ़ - इच्छा शक्ति का भी पता चलता है ।
प्रश्न १० - “ मन पर किसी का वश नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोरजनित प्रेम व्यक्त हुआ है परन्तु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा में मोड़ा ?
उत्तर - दुलारी उम्र में टुन्नू से बहुत बड़ी थी। फिर भी टुन्नू का मन उसके प्रति आसक्त था । उसका यह प्रेम शारीरिक या रौपिक नहीं बल्कि आत्मिक था। तभी तो दुलारी ने जब उसके प्रेम के उपहार को उपेक्षा से फ़ेंक दिया तो उसकी आँखों से आँसू और मुँह से “ मन पर किसी का वश नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” किशोरजनित प्रेम संवाद निकल पड़ा। उसका प्रेम नि:स्वार्थ था। अत: उसके विवेक ने उसके प्रेम को देश - प्रेम की ओर मोड़ दिया। ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि देश-प्रेम नि:स्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा है ।
प्रश्न ११ - “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! का प्रतीकार्थ समझाइए ।
उत्तर - ‘नाक’ सदा से मान, प्रतिष्ठा और इज्ज़त का प्रतीक रही है। शायद इसी कारण सबको प्रिय रही है ।‘झुलनी’ , नथिया अथवा लौंग उसी नाक की शोभा बढ़ाने वाले गहने हैं। अत: ये गहने भी अति प्रिय हैं। भारतीय समाज में ये सुहाग की निशानी माने जाते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दुलारी के ‘नाक का गहना टुन्नू था ।
पुलिस ने दुलारी को ज़बरदस्ती उसी स्थान पर नाचने - गाने के लिए बुलाया, जहाँ टुन्नू की हत्या की गई थी । तब दुलारी ने “एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! कासो मैं पूछूँ?” जैसा लोक-संगीत गाया। जिसका अर्थ है -यही वह स्थान है, जहाँ मेरी ‘झुलनी’ (टुन्नू के अर्थ में) खो गई है, मैं किससे पूछूँ, कहाँ ढूँढ़ूँ ? इस गीत में उसके मन की पीड़ा , आक्रोश एवम् व्यथा - कथा प्रकट हुई है ।
॥ इति - शुभम् ॥
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
Nice answer it's helpful
ReplyDeleteThanks
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ReplyDeleteThanks
It helped me in completing my question and answers of my school
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteSanju