माना कि शरीर ही सब कुछ है, पर यह भी मानिए कि शरीर ही सब कुछ नहीं है।पेट की आग सब पर हावी है ज़रूर,पर दिल की आग भी आग ही है।वह आग जो एक छोटी - सी पूँछ से उचक कर लंका - दहन को उबल पड़ती है और इस अग्निकाण्ड से बचाने वाला बड़भागी कोई विभीषण ही होता है। दिमाग़ के रावण और पेट के कुंभकरण के आलीशान महल आगे दिल के विभीषण की झोपड़ी दुबकी - सकुची पड़ी थी , पर दुनिया ने देखा कि जब सोने की लंका जलकर राख़ हो चुकी,तब भी विभीषण की झोपड़ी ज्यों की त्यों बनी रही।
(मूल शब्द संख्या - ८१ )
शीर्षक - शरीर बनाम दिल
संक्षेपण - समस्त
कार्यो का आधार शरीर बहुत महत्त्वपूर्ण है पर दिल को अनदेखा नहीं करना
चाहिए। दिल की आग पेट से भी भयानक होती है।अत: दिल को भी उचित सम्मान मिलना
चाहिए। शीर्षक - शरीर बनाम दिल
( संक्षेपित शब्द - २९)
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॥ इति - शुभम् ॥
सार लेखन या संक्षेपण के उदाहरण क्रमश: आगे ...
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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