Sunday, 20 December 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ-1 CHAPTER 17-BACHCHE KAM PAR JA RAHE HAIN BY RAJESH JOSHI (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १७ बच्चे काम पर जा रहे हैं - राजेश जोशी)

बच्चे काम पर जा रहे हैं

प्रश्न १ - कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर - कविता की पहली दो पंक्तियाँ हैं --
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह

इन पंक्तियों पर विचार करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। मात्र पढ़ लेने से ही बाल-मजदूरी का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। जब हम विचार करते हैं, तो मन करुणा से द्रवित हो उठता है। पंक्तियों में हाड़ को कंपकंपा देनेवाली शीत-ऋतु की भयानक प्रचंडता का वर्णन है, जिसमें गर्म-पोशाकधारी युवक भी ठिठुरने लगते हैं। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हँसने - खेलने - कूदने और पढ़ने की उम्र वाले बच्चे ; कितने मज़बूर होंगे कि वे काम पर जा रहे हैं। उफ्फ़ ! यह बहुत भारी समस्या है जो मन को व्यथित और भावी-भविष्य के प्रति चिन्तित भी करती है।

प्रश्न २ - कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रुप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’
कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
उत्तर  - ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’-- अर्थ की दृष्टि से यह एक विधानवाचक वाक्य है। जिसका लक्ष्य होता है -- मात्र सूचना या विवरण देना । सूचना या विवरण देनेवाले का उस सूचना के प्रभाव और गंभीरता से कोई लेना - देना नहीं होता। और पाठक भी उसे मात्र एक सूचना मानकर पढ़ता है। अत: कवि चाहता है कि वाक्य को प्रश्नवाचक स्वरूप देकर पाठक के सामने प्रस्तुत किया जाए, ताकि हर कोई इस बात पर अर्थात् ‘बाल मजदूरी’ जैसी विकट समस्या पर विचार करे और समाधान ढूँढ़े। 

प्रश्न ३ - सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर  - आर्थिक दृष्टि से हमारा समाज दो वर्गों में विभाजित है-- ग़रीब और अमीर । अमीर बच्चों को सारी सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं। परन्तु ; ग़रीब माता-पिता दुनिया के सबसे निरीह प्राणी होते हैं। वे दो वक़्त की रोटी नहीं जुटा पाते , तो भला अपने बच्चों को सुविधा और मनोरंजन के साधन कहाँ से उपलब्ध करा पाएँगे। तात्पर्य यह कि ग़रीबी के कारण ही बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित रह जाते हैं।

प्रश्न ४ - दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर  - आज का समाज व्यक्ति-केन्द्रित होता जा रहा है। ऐसे में लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं। उनकी अपनी कुछ सीमाएँ या विवशताएँ होती हैं, जिस कारण उन्हें दूसरों को देखकर भी अनदेखा करना पड़ता है।
बाल-श्रम के प्रति लोगों में जो उदासीनता दिखाई दे रही है, वह अचानक आज ही पैदा नहीं हुई है। भीषण महंगाई और बेरोज़गारी के कारण भूखमरी का शिकार होकर, मरते हुए लोगों को इस समाज ने देखा है। ऐसे में यदि कोई बालक अपने प्राण-रक्षा के लिए दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करता है , तो कोई इस पर भला क्या कहेगा। यदि कोई कुछ कहता भी है, तो सुनेगा कौन...? वह बाल-श्रमिक ? भूख के मारे जिसकी जान गले तक आ चुकी है ; या हम.. जो खुद हैरान , परेशान और हलकान हैं । सभी जानते और मानते हैं - ‘बुभुक्षित: किम् न करोति पापम्।’ अर्थात् भूखा व्यक्ति क्या नहीं कर सकता। तात्पर्य यह कि वह कोई भी पाप कर सकता है। शायद यही सोच कर सभी उदासीन हो गए हैं। फिर भी.... जिसकी रोटी बाल-श्रम पर हाय-तौबा मचाने से चलती हो..वह मचाए ।

प्रश्न ५ - आपने अपने शहर में बच्चों को काम करते कहाँ-कहाँ देखा है?
उत्तर  - हम पश्चिम बंगाल के रायगंज शहर में रहते हैं। हमने अपने शहर के कई दुकानों पर बच्चों को काम करते देखा है। दुकानों के अलावा वे सब्ज़ी मंडी में भी दिखाई देते हैं। चाय दुकानें और होटल तो जैसे उन्हीं की बदौलत चलते हैं। गली-गली घूमकर कूड़े से प्लास्टिक की थैलियाँ व अन्य सामान चुनते हुए भी उन्हें देखा जा सकता है। लोगों ने अपने घर का काम कराने के लिए बाकायदा उन्हें नौकर भी रखा है। हमारा शहर भी किसी अन्य शहर से कम नहीं है।

प्रश्न ६ - बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
उत्तर  - खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और मनोरंजन बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। उन्हें इन सबकी सुविधा और अवसर ज़रूर मिलना चाहिए। परन्तु; ग़रीबी , तंगहाली , महंगाई और बेरोज़गारी के कारण उनके माता-पिता मज़बूर हैं। आज बच्चे अपने अधिकार से वंचित होकर मज़दूरी करने पर विवश हैं। आज के बच्चे कल के भविष्य हैं। आज यदि उनकी देख-भाल ठीक से नहीं होगी, तो उनका भविष्य तो अंधकारमय होगा ही ; उनके बाद की पीढ़ी भी इससे प्रभावित होगी। इस परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान है।

प्रश्न ७ - काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने - आप को रखकर देखिए। जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर  - आज मैंने स्वयं को एक काम करने वाले बच्चे के स्थान पर रखकर देखा। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं बहुत ही दुर्भाग्यशाली हूँ। मेरा दुख तब और गहरा हो गया , जब मैंने अपने ही उम्र के बच्चों को स्कूल जाते देखा। मेरे मन में भी स्कूल जाने की ललक जग गई। सोचने लगा कि काश ! इन बच्चों की तरह मैं भी पढ़ता-लिखता और खेल-कूद पाता । फिर याद आया कि कैसे मेरे ग़रीब माता - पिता चाह कर भी मुझे स्कूल नहीं भेज पाए थे। एक आह - सी निकली और मैं टूटे मन से निराश होकर अपने काम करने के स्थान की ओर चल पड़ा। कदम जल्दी-जल्दी उठने लगे क्योंकि आज रात को मैं भूखा नहीं सोना चाहता था।

प्रश्न ८ - आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर  - बच्चे देश का भविष्य होते हैं। उम्र कम होने के कारण उन्हें सही और ग़लत की पहचान नहीं होती। भोले और भावुक होने के कारण उन्हें कभी भी बरगलाया जा सकता है। ग़ैर - क़ानूनी धन्धे या आपराधिक गतिविधियों में झोंका जा सकता है। एक बार यदि वे अपराध की दलदल में फँस गए, तो उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता है। अत: मेरे विचार से उन्हें काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। हाँ ; उन्हें खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और मनोरंजन का जन्मसिद्ध अधिकार है। उन्हें इन सबकी सुविधा और अवसर ज़रूर मिलना चाहिए। 

॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Friday, 18 December 2015

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ-1 CHAPTER 16 - YAMARAJ KI DISHA BY CHANDRAKANT DEVATALE (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १६ यमराज की दिशा - चन्द्रकांत देवताले)


यमराज की दिशा

प्रश्न १ - कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई?
उत्तर  - कवि की माँ ने बचपन से ही कवि को दक्षिण दिशा या यमराज की दिशा से बचने अर्थात् बुरे कर्म से बचने की सलाह दी थी। सही और ग़लत की पहचान करवाया था। अच्छे संस्कार दिए थे। प्रेम, मैत्री व ईश्वर - भक्ति का पाठ पढ़ाया था। फलत: कवि को दक्षिण दिशा अर्थात् यमराज की दिशा पहचानने में मुश्किल नहीं हुई।

प्रश्न २ - कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव न था?
उत्तर  - दिशाएँ अनन्त होती हैं। दक्षिण दिशा का भी अन्त नहीं है अर्थात् हिंसा , लूट , व्यभिचार , शोषण , उत्पीड़ण और अत्याचार आदि का अन्त नहीं है। इनका कोई एक सार्वभौमिक स्वरूप नहीं होता। इनके अनेकानेक रूप प्रचलित हैं। फलत: इनका विस्तार भी बड़ा है। समूची दुनिया ऐसी कुत्सित भावनाओं से भरी पड़ी है। अत: इनसे पार पाना या इनके पार जाना भी संभव न था और न होगा। कवि ने शायद इसीलिए कहा है कि दक्षिण को लांघ लेना संभव न था।

प्रश्न ३ - कवि के अनुसार आज हर दिशा, दक्षिण दिशा क्यों हो गई है?
उत्तर  - दक्षिण दिशा अर्थात् हिंसा , लूट , व्यभिचार , शोषण , उत्पीड़ण और अत्याचार आदि की दिशा। एक ऐसी दिशा जिसमें केवल और केवल यमराज अर्थात् शोषणकर्ता , अत्याचारी , चोर-डाकू और ठग - लुटेरे रहते हों। कवि की नज़र में आज हमारे समाज में चहुँओर शोषण और भ्रष्टाचार का बाज़ार गर्म दिखता है। अत: कवि के अनुसार आज हर दिशा, दक्षिण दिशा हो गई है।

प्रश्न ४ - भाव स्पष्ट कीजिए :-
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
उत्तर  - यमराज अर्थात् मौत का फ़रिश्ता या सौदाग़र। आज हमारे समाज में यमराजों की कमी नहीं है। तात्पर्य यह कि हमारे समाज में हिंसक , शोषक और अत्याचारियों की भरमार है। उनकी पाँचों अंगुलियाँ घी में हैं, उनके ठाट निराले हैं। कोई किसी से कम नहीं दिखता। उनकी आँखें दहक रही हैं। तात्पर्य यह कि उन आँखों में क्रोध , नफ़रत , क्रूरता ,कठोरता और हिंसकता भरी हुई है।

प्रश्न ५ - कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग - निर्देश करती है। आपकी माँ भी समय - समय पर आपको सीख देती होंगी --
(क) - वह आपको क्या सीख देती हैं?
उत्तर - जब से मैंने होश संभाला है तब से आज तक मेरी माँ ने न जाने कितनी बातें बताई और सिखाई होंगी। उन सभी को कलमबद्ध करना संभव नहीं । फिर भी यदि बताना ही पड़े ; तो मैं कहूँगा कि परस्पर मेल-मिलाप , जीवों पर दया , बड़ों का आदर - सम्मान करना , झूठ - बेईमानी और फ़रेब से बचना तथा ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने की सीख प्राय: दिया करती हैं।

(ख) - क्या उनकी हर सीख आपको उचित जान पड़ती है? यदि हाँ तो क्यों और यदि नहीं तो क्यों नहीं?
उत्तर - प्राय: माँ की सीख उचित ही हुआ करती है। परन्तु ; उनकी हर सीख मुझे उचित नहीं लगती। क्योंकि वे हर बात को अपने समय की तराजू पर तौला करती हैं। उनका समय हमारे समय से थोड़ा अलग था । लोगों के बोल - व्यवहार अलग थे। आज समय बदल गया है। अत: एकदम वही बात सही नहीं है, जो माँ जानती हैं या सोचा करती हैं। इसलिए मैं आदरपूर्वक सुनता हूँ,परन्तु कुछ बातें , जो मुझे उचित नहीं लगतीं, उन्हें क्षमा माँगते हुए नहीं मानता हूँ।

प्रश्न ६ - कभी - कभी उचित - अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर - मनुष्य का हृदय सदैव आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता। समय - समय पर मन की चंचलता और बदलती परिस्थितियाँ मनुष्य के निर्णयों को प्रभावित करती रहती हैं। कभी - कभी मनुष्य अपने निजी स्वार्थों के चक्कर में पड़कर हत्या, लूट, डकैती जैसे कुत्सित एवम् घृणित कार्य करने पर उतारु हो जाता है। ऐसे में ईश्वर का भय दिखाना बेहद ज़रुरी है। मनुष्य क़ानून से नहीं; ईश्वर से डरता है । क्योंकि; क़ानून का संबंध बुद्धि से है जबकि ईश्वर का संबंध सीधे आत्मा या हृदय से है। अत: पाप - पुण्य , ईश्वर , धर्म आदि बातों से डरकर मनुष्य की मनुष्यता जागृत हो जाती है और वह सन्मार्ग पर चलने लगता है। 


॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....


विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
  

Tuesday, 24 November 2015

REEDH KI HADDI - CBSE CLASS 9 HINDI KRITIKA - RIDH KI HADDI BY JAGDISH CHANDRA MATHUR (सी.बी.एस.ई. कक्षा नौवीं हिन्दी कृतिका भाग - 1- रीढ़ की हड्डी - लेखक जगदीश चंद्र माथुर)

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 रीढ़ की हड्डी
प्रश्न 1-  रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर "एक हमारा जमाना था ...."कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?
उत्तर- समय परिवर्तनशील हुआ करता है । अत: उसकी मानसिकता , विचारधारा और रहन-सहन में बदलाव आना स्वाभाविक है। वर्तमान में जो परिवर्तन दिखाई दे रहा है वह समयानुकूल ही है। रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद का अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करना बिल्कुल तर्कसंगत नहीं है क्योंकि सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक या अन्य क्षेत्रों में आए बदलाव समय सापेक्ष ही होते हैं। ऐसे में "एक हमारा जमाना था ...." कहकर अपने जमाने को श्रेष्ठ साबित करना और वर्तमान को गया-गुजरा या अविकसित कहना परोक्ष रूप से वर्तमान पीढ़ी को अपमानित करना है। ऐसी ही तुलना के क्रम में उस ज़माने को यदि आज का युवक गया-गुजरा कह दे तो उसे असभ्य , अव्यवहारिक और न जाने कैसे - कैसे विशेषणों से नवाजा जाता है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि ऐसी नौबत ही न आए। ऐसे लोगों को यदि दूसरों की भावनाओं का नहीं तो कम से कम अपने मान-सम्मान की चिन्ता अवश्य करनी चाहिए। 

प्रश्न 2- रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?
उत्तर- रामस्वरूप ने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाई। यह उनके आधुनिकता के समर्थक होने का प्रमाण है। वे अपनी बेटी का विवाह गोपालप्रसाद के बेटे से करवाना चाहते थे, जबकि दकियानूसी विचारवाले गोपालप्रसाद उच्च शिक्षित बहू नहीं चाहते थे। इसलिए रामस्वरूप बाबू को विवशतावश अपनी बेटी की उच्च शिक्षा की बात को छिपाना पड़ा। यह एक विरोधाभास ही सही पर वास्तव में यह उनकी विवशता को उजागर करता है कि आधुनिक समाज में सभ्य नागरिक होने के बावजूद उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की खातिर रूढ़िवादी लोगों के दवाब में झुकना पड़ रहा था। 

प्रश्न 3- अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं,वह उचित क्यों नहीं है ?
उत्तर- रामस्वरूप का अपनी बेटी उमा से अपेक्षित व्यवहार सरासर गलत है। वे अपनी पढ़ी-लिखी बेटी को कम पढ़ा-लिखा साबित करना चाहते हैं,जो कि बिल्कुल अनुचित है। साथ ही वे उमा की सुन्दरता को और भी बढ़ाने के लिए नकली प्रसाधन सामग्री को उपयोग करने की बात कर रहे हैं। वे चाहतें है कि उमा का व्यवहार लड़के और उसके पिता जैसा चाहते हैं वैसा हो। वह यह बात भूल रहें हैं कि लड़के की तरह लड़की की भी पसंद है,जिसका ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 4- गोपाल प्रसाद विवाह को 'बिजनेस' मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं ,क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर- मेरे विचार से दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं।लड़के के पिता गोपाल प्रसाद विवाह जैसे पवित्र रिश्ते में भी बिजनेस ढूँढ़ रहे हैं। जबकि लड़की के पिता रामस्वरूप आधुनिक समाज में सभ्य नागरिक होने के बावजूद रूढ़िवादी लोगों का साथ दे रहें हैं। यदि वे चाहते तो अपनी बेटी के लिए किसी अन्य सभ्य और स्वाभिमानी वर की तलाश करते। ऐसा करके वे दोनों ही संबंधों की गरिमा को कम कर रहे हैं।
अत: मेरे विचार से दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं। 

प्रश्न 5- "...आपके लाड़ले बेटे के की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं...."उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उत्तर- शंकर परजीवी , परमुखापेक्षी और पराश्रित जीवन जीने वाला लड़का है।उसको अपने मान-सम्मान की परवाह भी नहीं है। लड़कियों के हॉस्टल का चक्कर काटते हुए जब उसे पकड़ा गया तब उसने हॉस्टल की नौकरानी के पैर पकड़ लिए। उमा को पसन्द करने के क्रम में पिता की हाँ में हाँ और ना में ना मिला रहा था।उसने अपने पिता के दकियानूसी विचार और व्यवहार का ज़रा भी विरोध नहीं किया। उमा की पढ़ाई-लिखाई की बात जानकर वह अपने पिता के साथ तुरंत वापस जाने को तत्पर हो जाता है। इससे ऐसा लगता है जैसे शंकर का अपना कोई व्यक्तित्व ही न हो। उसके इसी वयक्तित्व हीनता को लक्ष्य करके उमा ने कहा कि “घर जाकर देखिए कि आपके लाड़ले बेटे के की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं....।”

प्रश्न 6-  शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की - समाज को कैसे व्यक्तित्व की जरूरत है ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- शंकर जैसे लड़के जहाँ एक ओर समाज को पंगु बनाते हैं वहीं दूसरी ओर अपने साथ - साथ समाज को भी पतन की ओर धकेलते हैं। समाज को आज उमा जैसे व्यक्तित्व की तलाश है । आज समाज में उसके जैसी साहसी , शिक्षित , सभ्य , स्पष्टवक्ता लड़की की ही आवश्यकता है। ऐसी लड़कियाँ ही समाज के तथाकथित रहनुमाओं का भांडाफोड़ करके उनको असलियत का आईना दिखा सकती हैं । निश्चित रूप से समाज को उमा जैसी क्रान्तिकारी लड़की ही चाहिए जो समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सके।

प्रश्न 7- 'रीढ़ की हड्डी' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 'रीढ़ की हड्डी' एकांकी का शीर्षक प्रतीकात्मक है । शरीर में 'रीढ़ की हड्डी' शरीर को सीधा रखती है। जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं होती , वे सीधे खड़े भी नहीं हो सकते। शंकर की बौद्धिक चारित्रिक एवं शारीरिक अयोग्यता के कारण ही उमा ने इसे बिना रीढ़ की हड्डी वाला कहा है। शंकर जैसे युवक  चरित्रहीन , परजीवी और सारी उम्र दूसरों के इशारों पर ही चलते हैं फलत: ये समाज पर बोझ होते हैं। यही स्थिति समाज की भी है। गोपाल प्रसाद जैसे घटिया या दकियानूसी - विचार तथा आत्म-केन्द्रित व्यक्तियों को प्रश्रय देनेवाली सामाजिक व्यवस्था भी लचर और असंतुलित है। ऐसे समाज को भी ‘बिना रीढ़ की हड्डी वाला समाज’ कहा जा सकता है। इस प्रकार दोहरा अर्थ रखने वाला ‘शीर्षक’ सर्वथा उपयुक्त और सार्थक है।

प्रश्न 8- कथा वस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों ?
उत्तर- कथा वस्तु के आधार पर हम कह सकते हैं कि पुरूष पात्रों में गोपाल प्रसाद मुख्य है जबकि स्त्री पात्र में उमा का चरित्र है। दोनों में महत्व और प्रधानता की बात आती है, तो मुझे उमा ही एकांकी का मुख्य पात्र लगती है। भले ही एकांकी में वह थोड़े समय के लिए आई है परन्तु ; एकांकी का उद्देश्य और संदेश उमा के द्वारा ही पाठकों या दर्शकों तक पहुँचता है। एकांकीकार ने कथानक का ताना - बाना उमा के चरित्र को केन्द्र मे रखकर ही बुना है। माथुर जी ने अपनी बातों या विचारों को उमा के चरित्र के माध्यम से ही अभिव्यक्त किया है। उमा के चरित्र के इर्द-गिर्द ही सारी कहानी घूमती है , उसके अभाव में कहानी अधूरी ही रह जाती। अत: हम कह सकते हैं कि एकांकी में उमा का चरित्र ही मुख्य है।

प्रश्न 9 - एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपालप्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- रामस्वरूप एक साधारण व्यक्ति हैं। वे सामाजिक समरसता भी चाहते हैं।उनके मन में न तो पुरूष होने का दंभ है और न स्त्रियों के प्रति कोई हीन भावना। आधुनिक होने के कारण वे शिक्षा को सबके लिए आवश्यक समझते हैं।सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं को धता बताकर उन्होंने अपनी बेटी उमा को ऊँची शिक्षा दिलवाई। परन्तु उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति , आत्मविश्वास और सामाजिक कुरीतियों अथवा मान्यताओं का विरोध करने की क्षमता का अभाव है। फलत: उनका चरित्र एक बेचारा और लाचार व्यक्ति जैसा दिखता है।
गोपाल प्रसाद धूर्त किस्म का व्यक्ति है। वह स्वभाव से स्वार्थी और लालची है। वकील होने के कारण आज के समाज में शिक्षा के महत्व को वह भी जानता है। वह भी आधुनिकता से परिचित तो है किन्तु उसके विचार दकियानूसी , रूढ़ियों से ग्रस्त और पारंपरिक हैं। स्त्रियों के लिए उसके मन में इज्ज़त नहीं है। वह स्त्री-पुरुष की समानता का घोर विरोधी है। वह विवाह जैसे बंधन को बिज़नेस मानता है।

प्रश्न 10 - ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर -  ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी जगदीशचंद्र माथुर जी के ‘भोर का तारा’ शीर्षक संकलन से संकलित है। इस एकांकी का उद्देश्य समाज की उस घृणित मनोवृत्ति का पर्दाफ़ाश करना है जो स्त्रियों को पुरूषों की तुलना में कुछ समझती ही नहीं अथवा एकदम नीचले स्तर का मानती है। पुरूषों की पक्षपाती समाज-व्यवस्था में शादी-विवाह के अवसर पर वैवाहिक संबंध तय करते समय लड़कियों के साथ पशुवत् व्यवहार किया जाता है। उनका इस प्रकार निरीक्षण , जाँच या तोल-मोल किया जाता है, जैसे वे कोई बेजान-वस्तु या बेज़ुबान-पशु हों। प्रस्तुत एकांकी एक ओर जहाँ लड़का-लड़की के भेदभाव से ग्रसित समाज को आईना दिखाकर उसकी दूषित मनोवृत्ति पर कुठाराघात करती है; वहीं दूसरी ओर लड़कियों की स्वतंत्रता का परचम बुलंद करती है। उनके हक़ की गूँज को गर्जना में परिवर्तित करने की कोशिश करती है। साथ ही पूरे समाज को स्त्रियों के हक़ और अधिकार प्रदान कर उनकी दशा और दिशा को विकासोन्मुख करने का संदेश दिया है। 


प्रश्न 11 - समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन - कौन से प्रयास कर सकते हैं? 
उत्तर - हम समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने के लिए निम्नलिखित प्रयास कर सकते हैं :- 
(क) - सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को उचित सम्मान देकर ।
(ख) - अच्छे कार्य करनेवाली महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर कार्यक्रम के           माध्यम से उनको सम्मानित करके।
(ग) - समाज में स्त्री शिक्षा के महत्व को प्रचारित करके।
(घ) - दहेज - प्रथा का विरोध एवं बिना दहेज की शादी का समर्थन करके।
(ङ) - रुचि के अनुसार किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके।
(च) - शादी - विवाह के अवसर पर लड़की के पसंद-नापसंद को महत्व देकर।
(छ) - सामाजिक समरसता , समानता , सांवैधानिक कर्तव्य और अधिकार की         बातें बताकर
(ज) - अशिक्षित महिलाओं के बीच समाज की सफल महिलाओं के उदाहरण प्रस्तुत       करके उनके मन में भी शिक्षा के प्रति रुचि जागृत करके।
                  ॥ इति - शुभम् ॥






Tuesday, 22 September 2015

JAY SHANKAR PRASAD - AATMA KATHYA ( जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य कविता का सारांश)



आत्मकथ्य
(1)
मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ  देखो  कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य  जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं  अपने व्‍यंग्‍य-मलिन उपहास
तब भी  कहते हो -  कह डालूँ     दुर्बलता  अपनी बीती।
तुम सुनकर  सुख पाओगे ,  देखोगे - यह   गागर रीती।
किंतु कहीं  ऐसा न हो  कि  तुम ही  खाली करने  वाले -
अपने को समझो  ,  मेरा रस  ले   अपनी  भरने  वाले।
प्रसंग :-  प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित  ‘आत्मकथ्य’  नामक कविता से उद्धृत है। आलोच्य कविता में कवि ने अपने जीवन के सुख - दुख , पीड़ा , क्षोभ, आकांक्षा और अभाव को बड़े  ही मार्मिक ढंग से पाठकों के समक्ष रखा है। आत्मकथा लिखने के सन्दर्भ में अपनी अनिच्छा प्रकट करते हुए कहता है :-- 

व्याख्या :- आत्मकथा लिखने की बात से ही मन रुपी भौंरा अतीत की ओर उड़ान भर देता है। फिर तो अनायास ही अतीत की यादें , सुख-दुख की गाथाएँ कवि की आँखों के समक्ष चल-चित्र हो उठती हैं। ऐसा जान पड़ता है कि मन रुपी भौंरा कवि के आस-पास गुनगुनाते हुए अतीत की कहानी सुना रहा हो। कवि का जीवन-रुपी वृक्ष तब आशा , आकाँक्षा, खुशियाँ , आनंद और जोश रुपी पत्तियों से हरा-भरा था; परन्तु वर्तमान में परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं । अब तो एक-एक पत्ती मुरझा - मुरझाकर गिर रही है। कवि का जीवन-रुपी वृक्ष मानों पतझड़ का सामना कर रहा है। तात्पर्य यह कि कवि के जीवन में दुख , निराशा , कष्ट और उदासी के अलावा कुछ शेष नहीं है। कवि कहता है कि आज साहित्य रुपी आकाश में न जाने कितने लोगों के जीवन का इतिहास (आत्म-कथा) मौज़ूद है । किसी की आत्म-कथा पढ़कर , उनके जीवन के सुख-दुख की बातें जानकर लोग सहानुभूति नहीं दिखाते बल्कि उसका मज़ाक उड़ाते हैं , फ़ब्तियाँ कसते हैं । कवि कहता है कि ऐ मेरे मित्रो ! इस सचाई को जानकर भी तुम कहते हो कि मैं अपने जीवन के दोषों , कमियों और कमजोरियों को लिखकर सार्वजनिक कर दूँ । मेरा जीवन आनंदरहित और असफल है। मेरा जीवन रुपी घड़ा एकदम खाली और रसहीन है। मेरे दुख की बातें जानकर , मेरे खालीपन को देखकर क्या तुम्हें खुशी होगी? मित्रो !हो सकता है , आत्मकथा लिखने के क्रम में कोई ऐसा सत्य उद्घाटित होजाय , जिसे जानकर तुम स्वयं को ही मेरे दुख और अवसाद का कारण समझने लगो। अत: मैं आत्मकथा नहीं लिखना चाहता।

काव्य-सौन्दर्य :-
* भाव-सौन्दर्य -  प्रस्तुत कविता में कवि ने एक ओर जहाँ अपने जीवन के सुख-दुख आदि की पीड़ा और आनंद को बतानेवाले आत्मकथा को लिखने से इनकार किया है , वहीं दूसरी ओर अपने जीवन की असफला के साथ ही मित्रों और सहकर्मियों के ‘मुँह में राम , बगल में छुरी’ वाली प्रवृत्ति का उद्घाटन भी किया है।

* शिल्प-सौन्दर्य - 
> खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
> आत्म-कथात्मक शैली का प्रयोग विलक्षण है।
> कविता में बिम्बात्मकता झलकती है।
> तुक्त छंद का प्रयोग है।
> ‘मधुप’ और ‘गागर’ जैसे प्रतिकात्मक शब्दों का सफल प्रयोग हुआ है।
> भाषा सरल , सहज और भावानुकूल है।
> ‘जीवन-इतिहास’ मे रूपक अलंकार की छटा व्याप्त है।
> कविता शोक और शृंगार रस का पान कराती है।

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(2)  
यह  विडंबना  !  अरी सरलते  तेरी  हँसी उड़ाऊँ मैं। 
भूलें अपनी   या   प्रवंचना  औरों की  दिखलाऊँ मैं। 
उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ , मधुर चाँदनी रातों  की। 
अरे खिल-खिलाकर हँसते होने वाली उन बातों की। 

प्रसंग :- प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अपने जीवन की कथा को सरल और
सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा के समान बताता है। साथ ही यह भी जता रहा है कि अपनी आत्मकथा सार्वजनिक कर वह उपहास का पत्र नहीं बनना चाहता है। कवि कहता है -

व्याख्या :- यह विडंबना है कि मेरे मित्र मुझसे आत्मकथा लिखने को कह रहे हैं,जिसे पढ़कर लोग प्राय: उपहास करते हैं। ऐ मेरी सीधी-सादी सरल ज़िन्दगी ! जीवन में मुझसे जो गलतियाँ हुईं हैं या लोगों ने जो धोखे दिए हैं, उन सभी को सार्वजनिक कर मैं तुम्हें हँसी का पात्र नहीं बनाना चाहता और न ही धोखेबाज़ मित्रों को उनकी असलियत बताकर उन्हें शर्मिंदा ही करना चाहता हूँ। सच तो यह है कि मैं आत्मकथा लिखने के पक्ष में ही नहीं हूँ क्योंकि इसमें व्यक्तिगत बातें भी बड़ी ईमानदारी से लिखनी पड़ती है। अब भला मैं जीवन के उन नितांत व्यक्तिगत बातों का उल्लेख कैसे कर पाऊँगा? ये मुझसे न हो सकेगा। अत: मैं आत्मकथा नहीं लिखना चाहता ।

काव्य - सौन्दर्य :-

* भाव-सौन्दर्य :- 
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का भाव है कि वह किसी भी सूरत में अपने को हँसी का पात्र नहीं बनाना चाहता और न ही अतीत को याद करके फिर से दुखी होना चाहता है।

*शिल्प-सौन्दर्य :- 
> खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग किया गया है।
> ‘अरी सरलते’ कवि के जीवन के लिए प्रयुक्त हुआ है।
> ‘चाँदनी रातें’ सुखद समय की प्रतीक हैं। 
> ‘खिल-खिला’ , ‘हँसते होने’ में अनुप्रास अलंकार है।
> अभिव्यक्ति की शैली प्रश्नात्मक है।


शेष भाग क्रमश: अगले पोस्ट में.. 

Sunday, 30 August 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 15 MEGH AAYE BY SARVESHVAR DAYAL SAKSENA (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १५ मेघ आए - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)


 मेघ आए

प्रश्न १ - बादलों के आने पर जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर  - बादलों के आने पर प्रकृति के समस्त उपादानों में गतिशीलता आ जाती है। कवि ने उनका जीवंत चित्रण किया है। बादलों के आते ही हवा या बयार के साथ धूल भी उड़ने लगती है । यह उड़ती धूल मेघ के आने की प्रथम सूचना देती है। हवा के झकोंरों से घर के दरवाज़े और खिड़कियाँ खुलने - बन्द होने लगती हैं। लगता है जैसे किसी आगंतुक मेहमान को देखने लिए सभी उत्सुक हैं। पीपल डोल उठता है जैसे कोई बूढ़ा-बुज़ुर्ग व्यक्ति मेहमान की अगवानी करने के लिए तत्परता दिखा रहा हो। अन्य वृक्ष हवा के दबाव से ऐसे हिलने लगते हैं, जैसे गाँव के युवक गरदन उचकाकर मेहमान को देखने की कोशिश कर रहे हों। नदी की धारा यूँ ठहर - सी जाती है, जैसे कोई प्रौढ़ा महिला रूककर घूँघट की ओट से आगंतुक को देख रही हो। अंतत: आकाश में बिजली चमकने लगती है और फिर झमाझम बारिश होने लगती है। वर्षा के कारण सूखे तालाब पानी से भर जाते हैं , लगता है जैसे किसी ने परात को पानी से भर दिया हो। जैसे मन की मुराद पूरी होने पर मन को राहत मिलती है और वह प्रसन्न हो जाता है, ठीक वैसे ही बादलों के आने से धरती की तपन और त्रास तो मिटती ही है , मौसम भी सुहाना हो उठता है।

प्रश्न २ - निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं?
* धूल
* पेड़
* नदी
* लता
* ताल
उत्तर  - प्रस्तुत पाठ में उल्लिखित सभी का मानवीकरण किया गया है, जो अग्रलिखित है --
* धूल ==> गाँव की युवती 
* पेड़  ==> गाँव के युवक
* नदी ==> गाँव की बड़ी-बूढ़ी
* लता ==> प्रतीक्षारत दुल्हन
* ताल ==> सेवक / नौकर

प्रश्न ३ - लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ?
उत्तर  - लता अपने प्रियतम से मिलने के लिए आतुर थी। बड़ों से लज्जा तथा संकोच के कारण वह सबके सामने आकर मेहमान से नहीं मिल सकती थी। अत: अपनी व्याकुलता मिटाने तथा मन को तसल्ली देने के लिए लता ने बादल रूपी मेहमान को कीवाड़ (दरवाज़े) की ओट से देखा।

प्रश्न ४ - भाव स्पष्ट कीजिए :--
(क) - क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
उत्तर - मेघ रूपी मेहमान की राह देख-देखकर लता रूपी नायिका की आँखें दुख गई थीं। उसे अब भ्रम हो गया था कि उसके प्रियतम नहीं आएँगे,परन्तु उसके प्रियतम आए और खूब आए। जब लता ने मेहमान को देखा और उससे मिली, तब उसकी आँखों में खुशी से आँसू लरजने लगे। उसके मन में पड़ी भरम की गाँठ खुल गई और उसने मेघ से अपनी सोच के लिए क्षमा माँगा।

(ख) - बाँकी चितवन उठा , नदी ठिठकी , घूँघट सरके ।
उत्तर - बादल के आने पर प्रकृति के समस्त उपादानों में हलचल या गतिशीलता दिखाई देती है। नदी की धारा हवा के दबाव के कारण ठहर - सी जाती है। लहरें भी थम - सी जाती हैं। यूँ जान पड़ता है; जैसे बादल रूपी मेहमान को देखने के लिए नदी रूपी महिला अपना घूँघट सरका कर उसे तिरछी नज़रों से देख रही हो।

प्रश्न ५ - मेघ रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर - मेघ रूपी मेहमान के आते ही हवा के झोंके तेज़ होने लगते हैं। हवा की तेज़ी के साथ धूल भी उड़ने लगती है और देखते ही देखते मन्द बयार धूल भरी आँधी का रूप धारण कर लेती है। हवा के झकोंरों से घर के दरवाज़े और खिड़कियाँ खुलने - बन्द होने लगती हैं। हवा का सबसे पहले प्रभाव पीपल के विशाल वृक्ष पर दिखाई देता है। उसकी डालियाँ और टहनियाँ हिलने - डुलने लगती हैं। अन्य वृक्ष हवा के दबाव से झुक - झुक जाते हैं। नदी की धारा हवा के दबाव के कारण ठहर - सी जाती है। आकाश में बिजली चमकने लगती है और फिर झमाझम बारिश होने लगती है। मेघ के बरसने के कारण सूखे तालाब पानी से भर जाते हैं। तपन और त्रास मिट जाती है। मौसम सुहाना लगने लगता है।

प्रश्न ६ - मेघों के लिए ‘बन-ठन के , सँवर के’ आने की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर - कहीं भी मेहमान बनकर जाना हो तो लोग तैयार होते हैं। इस तैयार होने अर्थात् सजने - सँवरने में समय लगता है। अक्सर; साज-सज्जा के कारण लोगों को कहीं पहुँचने में प्राय: देरी हो जाया करती है। कविता में समूची प्रकृति को मेघ की प्रतीक्षा में व्यग्र दिखाया गया है। किन्तु , मेघ बहुत विलम्ब से आता है। संभवत: इसी कारण से कवि ने मेघ का मानवीकरण करके उसकी तुलना उस पाहुन से की है, जो ‘बन-ठन के,सँवर के’ आने के चक्कर में देरी से पहुँचता है।

प्रश्न ७ - कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोजकर लिखिए ।
उत्तर - कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं :-
मानवीकरण अलंकार ==>
(क) - मेघ आए बड़े बन-ठन के , सँवर के ।
(ख) - आगे - आगे नाचती बयार चली
(ग) - पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
(घ) - धूल भागी घाघरा उठाए
(ङ) - बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
(च) - बोली अकुलाई लता
(छ) - हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। 
रूपक अलंकार ==>
(क) - क्षितिज अटारी गहराई
(ख) - गाँठ खुल गई अब भरम की
(ग) - मिलन के अश्रु ढरके

प्रश्न ८ - कविता में जिन रीति - रीवाज़ों का मार्मिक चित्रण हुआ है , उनका वर्णन कीजिए ।
उत्तर  - गाँव में किसी मेहमान के आने पर लोगों में उससे मिलने का उमंग दिखता है। मेहमान यदि शहर का हुआ तो लोगों की उत्कंठा और बढ़ जाती है। सभी अपने - अपने ढंग से उसकी ख़ातिरदारी या आवभगत करते हैं। मेहमान की अगवानी में कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति आगे आता है। बड़ी-बूढ़ी महिलाएँ भी पर्देदारी का निर्वाह करती हैं। युवकों में मेहमान के प्रति जिज्ञासा होती है। सभी उनका हार्दिक स्वागत करते हैं । स्वागत के क्रम में सबसे पहले परात में पानी लाकर मेहमान के ‘पाँव-पखारे’ जाते हैं अर्थात् धोए जाते हैं। इस प्रकार कविता में मेघ के आने को आधार मानकर कवि ने मेहमान के अगवानी से मेहमानी तक की ग्रामीण संस्कृति अथवा रीति-रिवाज़ों का बखूबी चित्रण किया है।

प्रश्न ९ - कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का जो रोचक वर्णन किया है , उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - आकाश में बादलों के आते ही हवा या बयार के साथ धूल भी उड़ने लगती है । यह उड़ती धूल मेघ के आने की प्रथम सूचना होती है। हवा के झकोंरों से घर के दरवाज़े और खिड़कियाँ खुलने - बन्द होने लगती हैं। पीपल डोल उठता है । अन्य वृक्ष हवा के दबाव से ऐसे हिलने लगते हैं। नदी की धारा ठहर - सी जाती है। बादलों से भरे आकाश में बिजली चमकने लगती है, और फिर झमाझम बारिश शुरु हो जाती है। वर्षा के कारण सूखे तालाब पानी से भर जाते हैं । आकाश में बादल आने से धरती की तपन और त्रास तो मिटती ही है, मौसम भी सुहाना हो उठता है।
गाँव में किसी मेहमान (दामाद) के आने पर लोगों में उससे मिलने का उमंग दिखता है। सभी उसकी आवभगत करते हैं। मेहमान की अगवानी में कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति आगे आता है। बड़ी-बूढ़ी महिलाएँ भी पर्देदारी का निर्वाह करती हैं। युवकों में मेहमान के प्रति जिज्ञासा होती है। वे गरदन उचकाकर मेहमान को देखने की कोशिश कर रहे हैं।  सभी उनका हार्दिक स्वागत करते हैं । स्वागत के क्रम में सबसे पहले परात में पानी लाकर मेहमान के ‘पाँव-पखारे’ अर्थात् धोए जाते हैं। इस प्रकार कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का जीवंत चित्रण किया है।

प्रश्न १० - काव्य - सौन्दर्य लिखिए :--
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के , सँवर के।
उत्तर  - प्रस्तुत पंक्तियों का काव्य - सौन्दर्य निम्नलिखित है :-
* भाव-सौन्दर्य ==> प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मेघ का मानवीकरण करके उसकी तुलना उस शहरी पाहुन से की है, जो ‘बन-ठन के,सँवर के’ आने के चक्कर में देरी से पहुँचता है। 
* शिल्प-सौन्दर्य ==> प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों की भाषा साहित्यिक हिन्दी है। चित्रात्मक शैली के प्रयोग एवम् लोक-भाषा के शब्दों के चयन के कारण भाषा सरल , सहज और ग्राह्य बन पड़ी है। यहाँ मेघ का मानवीकरण हुआ है । अत: यहाँ मानवीकरण अलंकार है। इसके अतिरिक्त यहाँ ‘पाहुन ज्यों आए हों’ में उत्प्रेक्षा तथा ‘बन-ठन’ में अनुप्रास अलंकार की छटा छिटकी है।

प्रश्न ११ - वर्षा के आने पर आसपास के वातावरण में हुए परिवर्तनों को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर  - वर्षा के आने पर आकाश बादलों से ढँक जाता है। बिजली चमकने लगती है। बादल गर्जन - तर्जन करने लगते हैं। सभी जीव-जन्तु छुपने के लिए आश्रय ढूँढ़ने लगते हैं। पशु-पक्षी अपने बसेरों तथा लोग अपने घरों में दुबक जाते हैं। मोर नृत्य कर उठते हैं साथ ही कुछ उत्साही बड़े और बच्चे भी वर्षा का आनंद उठाते नज़र आते हैं। किसान आनंदित होकर अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। सूखे ताल-तलैया और गड्ढे  वर्षा के जल से लबालब भर जाते हैं। पूरी प्रकृति धुली-धुली लगती है। चारों ओर पानी ही पानी नज़र आता है। मेंढकों की टर्र-टर्र सुनाई पड़ने लगती है। गाँव की अपेक्षा शहर की सड़कों , गलियों ओर नालियों में जल-जमाव हो जाता है , जिससे कहीं आने-जाने में लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। परन्तु ; वातावरण की तपिश समाप्त हो जाने के कारण लोगों को गरमी से बहुत राहत मिलती है।  सबके खुश चेहरे पर एक ही बात झलकती है -- ‘ वाह ! कितना सुहाना मौसम है।’

प्रश्न १२ - कवि ने पीपल को ही बड़ा - बुज़ुर्ग क्यों कहा है ? पता लगाइए ।
उत्तर  - पीपल का वृक्ष रूप और आकार में ही विशाल नहीं होता बल्कि उम्र में भी सभी वृक्षों से बड़ा होता है । अन्य वृक्ष जहाँ सौ - डेढ़ सौ साल में समाप्त हो जाते हैं , वहीं पीपल की आयु हज़ारों वर्ष तक की हो सकती है। वृक्ष ही हमें ओषिद (ऑक्सीजन) नामक प्राण-वायु देते हैं। लेकिन अन्य वृक्ष केवल दिन में ही ऑक्सीजन देते हैं, जबकि संसार में केवल पीपल ही एक मात्र ऐसा वृक्ष है, जो दिन-रात हमारे लिए प्राण-रक्षक वायु ऑक्सीजन देता रहता है। अपनी इसी विशेषता के चलते यह पूजनीय है । लोग प्राचीन काल से इसको देवता मानकर पूजते आ रहे हैं। संभवत: इसी कारण कवि ने पीपल को ही बड़ा - बुज़ुर्ग कहा है।

प्रश्न १३ - कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप मे चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ ‘अतिथि’ (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है , लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं , लिखिए।
उत्तर  - वर्तमान युग घोर-आर्थिक युग है। लोगों की समस्त क्रियाएँ धनाधारित हो गयी हैं। धन-संग्रह की होड़ा-होड़ी में  लोग स्व-केन्द्रित होते जा रहे हैं। समयाभाव दूसरे के बारे में सोचने या जानने की फुर्सत नहीं है। हाँलाकि आज भी लोग अतिथि को विशेष महत्व देते हैं, परन्तु ; सच तो यही है कि ‘अतिथि देवो भव’ जैसी प्राचीन परंपरा का क्षरण हो रहा है। 
ये जो सामाजिक सरोकारों में कमी आयी है , इसके मूल में पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण, शहरी आबोहवा, बढ़ती महंगाई और धनार्जन की अंधी प्रतिस्पर्धा है।


॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....


विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday, 18 July 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 14 KAVITA CHANDRA GAHANA SE LOUTATI BER BY KEDAR NATH AGRAWAL (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ १४ चन्द्र गहना से लौटती बेर - केद्रनाथ अग्रवाल)

चंद्रगहना से लौटती बेर

प्रश्न १ - ‘इस विजन में .... अधिक है’-- पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर  - प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने नगरीय संस्कृति के धनार्जन और मतलब-परस्ती को केन्द्र में रखकर किए जाने वाले कार्य को ही महत्वपूर्ण मानने की प्रवृत्ति तथा प्रेम , सौन्दर्य , प्रकृति एवं रिश्ते-नातों से स्वयं को सर्वथा अलग-थलग कर लेने जैसे कृत्य पर आक्रोश प्रकट किया है।

प्रश्न २ - सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर  - यहाँ सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि उसके पूर्ण विकास की ओर इशारा करना चाहता है। तात्पर्य यह कि सरसों की फ़सल अब पक चुकी है और खेत से कटकर खलिहान या घर तक आने के लिए तैयार हो चुकी है।

प्रश्न ३ - अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर  - अलसी चने के पौधों के बीच ज़बरदस्ती उग आई है इसलिए उसे हठीली कहा गया है। प्रस्तुत कविता में अलसी को एक बेफ़िक्र, शोख और अल्हड़ युवती माना गया है। उसकी चाल में एक लहर - सी है। लचीली कमर और छरहरी बदन वाली अलसी अपने केशों की सज्जा नीले रंग से की है, जो उसके ज़िद्दी स्वभाव का द्योतक है। ऐसा जान पड़ता है, वह प्रेम का सीधा-सीधा निमंत्रण दे रही हो कि - ‘कोई आए मेरा दिल थाम ले।’

प्रश्न ४ - अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर  - ‘हठीली’ अर्थात् ज़िद्दी। पहली बात तो यह कि अलसी चने के खेत में चने के पौधों के बीच ज़बरदस्ती उग आई है। दूसरी ; धरती पर बार-बार हवाओं द्वारा लिटा दिए जाने के बाद भी वह फिर से तनकर खड़ी हो जाती है। तीसरी बात ; पककर तैयार होने के बाद भी फ़लियों का न बिखरना उसके ज़िद्दी स्वभाव की ओर ही इशारा करता है । शायद इन्हीं कारणों के परिप्रेक्ष्य में उसके लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न ५ - ‘चाँदी का बड़ा - सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
उत्तर  - जलाशय में सूर्य का प्रतिबिम्ब पड़कर गोल और लम्बवत् चमक उत्पन्न करता है। वह चमकता प्रकाश यूँ जान पड़ता है , जैसे जल में कोई गोल और लम्बा चाँदी का चमचमाता खंभा पड़ा हुआ है। किरणों के लिए ऐसी कल्पना निश्चय ही कवि की चित्रकला में निपुणता और सूक्ष्म कल्पना - शक्ति को परिलक्षित करता है।

प्रश्न ६ - कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौन्दर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर  - चने का पौधा हरा - भरा है। वह खेत में लहरा रहा है। चने की लंबाई एक बीत्ते अर्थात् लगभग २५ से.मी. के आसपास है। अत: कवि ने उसे ठिगना कहा है। उसके माथे पर गुलाबी रंग का फूल खिला है। इससे उसका सौन्दर्य इस प्रकार बढ़ गया है कि कवि ने चने के पौधे में जान फूँककर उसे मानव जैसे क्रिया - कलाप करते हुए दिखाया है। चने की तुलना एक ठिगने आदमी से करते हुए कवि ने कहा है कि यूँ जान पड़ता है , जैसे वह अपने माथे पर गुलाबी रंग की पगड़ी बाँधकर किसी स्वयंवर में जाने के लिए तैयार खड़ा है। कवि की ऐसी कल्पना से यहाँ ‘मानवीकरण अलंकार’ की सृष्टि हुई है।


प्रश्न ७ - कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर  - कवि ने अग्रलिखित स्थानों या पंक्तियों में मानवीकरण किया है ==>

(क) -   यह हरा ठिगना चना,
         बाँधे मुरैठा शीश पर
         छोटे गुलाबी फूल का,
         सज कर खड़ा है।

(ख) -   पास ही मिलकर उगी है
        बीच में अलसी हठीली
        देह की पतली, कमर की है लचीली,
        नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
        कह रही है, जो छुए यह
        दूँ हृदय का दान उसको।

(ग) -   और सरसों की न पूछो-
         हो गई सबसे सयानी,
         हाथ पीले कर लिए हैं
         ब्याह - मंडप में पधारी।

(घ) - फाग गाता मास फागुन 
      आ गया है आज जैसे।

(ङ) -   हैं कई पत्थर किनारे
        पी रहे चुपचाप पानी
        प्यास जाने कब बुझेगी!


प्रश्न ८ - कविता में उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है :-
‘और चारों तरफ़ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।’
उत्तर  - उल्लेखित भाव निम्नलिखित पंक्तियों में व्यंजित हो रहा है :-
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें ;


प्रश्न ९ - ‘और सरसों की न पूछो’- इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर  - ऐसी शैली प्राय: लोग अपने मित्रों अथवा बहुत ही अपनों के साथ प्रयोग करते हैं। इसमें औपचारिकता किनारे खड़ी हो जाती है। चेहरे पर मौखिक भाषा के भाव के साथ आंगिक हाव भी खुल कर दिखता है। प्राय: जब कोई बहुत रोचक बात बतानी होती है तब बातों के क्रम को बनाए रखने तथा उस बात पर सभी के ध्यानाकर्षण के लिए लोग ऐसी शैली का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न १० - काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर   - काले माथे और सफ़ेद पंखों वाली चिड़िया ऐसे लोगों का प्रतीक हो सकती है, जिनकी कथनी कुछ और एवम् करनी कुछ और होती है। भले ही ये देखने में भद्र लगते हों, परन्तु; वास्तविकता यह है कि ऐसे लोग मौकापरस्त होते हैं। किसी को हानि पहुँचाकर भी यदि इनका स्वार्थ साधता है तो ऐसे लोग नहीं चूकते। वर्तमान में राजनीतिक दलों के कई सफ़ेदपोश नेता इस चिड़िया के उदाहरण हो सकते हैं।


॥ इति - शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday, 11 July 2015

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ CHAPTER 8 EK KUTTA AUR EK MAINA BY HAJARI PRASAD DWIVEDI(सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ८ एक कुत्ता और एक मैना)


एक कुत्ता और एक मैना


प्रश्न १ - गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर  - गुरुदेव का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था। उन्हें आराम की ज़रुरत थी। चूँकि शान्तिनिकेतन में उनके दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा ही रहता था। अतः गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और अर्थात् श्रीनिकेतन में एकांतवास करने का निर्णय लिया।

प्रश्न २ - मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर  - गुरुदेव जब एकांतवास करने शान्तिनिकेतन को छोड़ श्रीनिकेतन चले गए, तो उनका स्वामी भक्त कुत्ता भी उन्हें ढूँढ़ते - ढूँढ़ते वहाँ पहुँच गया । और तब तक उनके सामने चुपचाप बैठा रहा , जब तक वे उठर उसे सहलाए नहीं। गुरुदेव का स्नेह भरा स्पर्श पाकर वह चंचल हो उठा था। दूसरी घटना ; इस बात को और अधिक स्पष्ट कर देती है । जब गुरुदेव की मृत्यु पर समस्त समाज शोक-मग्न था, तब कुत्ता भी घंटों तक उनके पास उदास बैठा रहा । वह अन्य लोगों के साथ गंभीर भाव से उत्तरायण तक भी गया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की तरह ही संवेदनशील होते हैं।

प्रश्न ३ - गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता का मर्म लेखक कब समझ पाया?
उत्तर  - लेखक प्राय: रोज़ ही लंगड़ी मैना को देखा करता था। लेकिन कभी उसमें कोई असामान्य बात उसे नज़र नहीं आई थी। किन्तु ; जब कविता पढ़ने के बाद उसने ध्यानपूर्वक मैना को निहारा तब सचमुच मैना उसे उदास - उदास लग रही थी। मैना की करूण - अवस्था देखते ही वह कविता के मर्म को समझ गया।

प्रश्न ४ - प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है , जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर  - प्रस्तुत निबन्ध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘प्रसन्न भाषा’ में लिखित एक ललित निबन्ध है। जिसमें उन्होंने अपने विचारों और भावनाओं को कल्पना का जामा पहनाकर पाठक के समक्ष एक सरस रचना को परोसा है। प्रस्तुत निबन्ध की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं :--

(क) - आत्म-कथात्मक शैली ==> इसमें लेखक ने आत्म-कथात्मक शैली का प्रयोग किया है। जैसे - “शुरू शुरु में मैं ऐसी बांग्ला में बात करता था। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा पुस्तकीय है।

(ख) - व्यंग्यात्मकता ==> द्विवेदी जी सफल साहित्यकार थे । अत: साहित्य के आदर्श और मर्यादा से परिचित थे। उन्होंने गुरुदेव के प्रश्न  “अच्छा साहब ! आश्रम के कौए क्या हो गए?” को आधार बनाकर आधुनिक साहित्यिकों को लक्ष्य करके कौवों का स्मरण किया है। उन्होंने बात ही बात में साहित्यकारों पर छींटा-कशी करते हुए करारा व्यंग्य  भी किया है।

(ग) - कल्पनात्मकता ==> द्विवेदी जी में अद्भुत कल्पना शक्ति थी। उन्होंने कौवा , लंगड़ी मैना , कुत्ता और मैना-दंपति आदि के विचारों , मनोभावों और प्रतिक्रियाओं को सहज ही में संवादात्मक कर दिया है।

(घ) - चित्रात्मकता ==> द्विवेदी जी की भाषा चित्रात्मक है। चाहे लंगड़ी मैना की करुण - मूर्ति को साकार करनेवाली भाषा हो अथवा गुरुदेव की मृत्यु के पश्चात् कुत्ते की उदास बैठे रहने की मुद्रा का वर्णन हो। शब्दों द्वारा दृश्य-चित्रण की बात हो , तो कोई द्विवेदी जी से सीखे।

प्रश्न ५ - आशय स्पष्ट कीजिए :--
इस प्रकार कवि की मर्म भेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है , जो मनुष्य , मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर  - विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गहरी अन्तर्दृष्टि प्राप्त थी। अपनी इसी प्रतिभा के कारण वे कुत्ते जैसे मूक प्राणी के अन्तर में छिपे ‘समर्पण-भाव’ को देख पाए थे। उन्होंने देखा कि कुता भक्त-हृदय है। उन्होंने उसकी स्वामी-भक्ति को आध्यात्मिक और अलौकिक रुप में देखा और माना कि यह आत्मा का आत्मा के प्रति समर्पण है। उन्होंने महसूस किया कि इतना समर्पण-भाव तो मनुष्य जीवन में बड़ी कठिनाई से उतर पाता है।


॥ इति - शुभम् ॥


अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में......
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Saturday, 4 July 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 7 MERE BACHAPAN KE DIN BY MAHADEVI VERMA (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ७ मेरे बचपन के दिन)


मेरे बचपन के दिन उदधि डॉट कॉम

मेरे बचपन के दिन

प्रश्न १ - ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि --
(क) - उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर - उस समय से तात्पर्य है - महादेवी वर्मा के जन्म के समय अर्थात् बीसवीं सदी के प्रारंभ का समय। तत्कालिन समय में लड़कियों की बड़ी ही दयनीय दशा थी।उन्हें पैदा होते ही परमधाम भेज दिया जाता था। यदि वे सौभाग्यवश बच जातीं तो आए दिन उनका तिरस्कार होता था साथ ही उनके साथ भेदभाव और अन्याय किया जाता था। उन्हें नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते थे। शिक्षा-दीक्षा और सम्मान से महरुम उनकी दशा अत्यन्त शोचनीय थी।

(ख) - लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर - शिक्षा - दीक्षा के प्रसार ने आज लोगों की आँखें खोल दी हैं। सामाजिक संजाल (Social Medias) खासकर फ़ेसबुक , ट्वीटर और टी.वी आदि जैसे संचार - साधनों ने जागरण का मंत्र फूँक दिया है।आज संविधान ने भी लड़कियों को समान अधिकार प्रदान किया है। सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं ने ‘लड़का-लड़की एक समान’ का नारा दिया है। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं आगे बढ़कर ‘बेटी बचाओ’ आंदोलन चलाया है। ऐसे प्रयासों के कारण लड़का-लड़की में भेद जैसी बातें अब मिथक साबित हो रही हैं। आज लड़कियों के जन्म के संबंध में भले ही लोगों को खुशी न हो रही हो, किन्तु दुख का अनुभव भी नहीं हो रहा। अब उन्हें भी वे तमाम सुविधाएँ प्राप्त होने लगी हैं, जिन पर परंपरा से लड़कों का ही आधिपत्य था।

प्रश्न २ - लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाई?
उत्तर  - लेखिका को उर्दू-फ़ारसी सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अपने पिताजी की इच्छाओं का सम्मान कहिए अथवा डर के कारण उन्होंने उर्दू-फ़ारसी सीखने की हामी भरी थी। अरुचि के कारण उन्हें उर्दू - फ़ारसी सीखना भी कठिन लग रहा था। जिस दिन मौलवी साहब उसे पढ़ाने आए, उनकी दाढ़ी देखकर लेखिका डर गई और घ के भीतर जाकर चारपाई के नीचे  छिप गई। अंततः मौलवी साहब को वापस जाना पड़ा और उसके बाद लेखिका फिर कभी उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख पाई।

प्रश्न ३ - लेखिका ने अपनी माँ की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर  - लेखिका ने अपनी माँ के बारे में बताया है कि वे एक धार्मिक महिला थीं। हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान रखने वाली उनकी माता भजन भी लिखती थीं। लिखने के साथ-साथ उन्हें गाने का भी शौक था। धार्मिक होने के कारण वे सवेरे प्रभाती और शाम को साँझा गाती थीं। मीरा के पद उन्हें बेहद पसंद थे।

प्रश्न ४ - जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर  - जवारा के नवाब के साथ लेखिका के पारिवारिक संबंध अत्यन्त घनिष्ठ एवम् अपनों से भी आत्मीय थे। दोनों परिवार प्राय: प्रत्येक तीज-त्योहार एक-दूसरे से मिलजुल कर मनाता था। आज जबकि सगे भाइयों अथवा अपनों के साथ किसी की नहीं बनती, तब भला हिन्दू-मुस्लिम जो स्वतंत्रता-प्राप्ति अथवा देश के बँटवारे के बाद एक - दूसरे के घोर विरोधी हो गए हैं ; उन दो ध्रुवों का मिलन कैसे संभव हो सकता है। यही कारण है कि जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा कहा है।

प्रश्न ५ - ज़ेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं / होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
उत्तर  - ज़ेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होता , तो अपने किए के बदले में कुछ पाने का ख़्वाहिशमंद रहता। साथ ही मैं महादेवी से उम्मीद करता कि वे हमारा सम्मान करें। इसके अलावा मैं चाहता कि समय - समय पर महादेवी भी मेरा कार्य कर दिया करें ।

प्रश्न ६ - महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे / करेंगी?
उत्तर - कोई भी पुरस्कार देशहित से बड़ा नहीं हो सकता। यदि देश की सेवा किसी भी रुप में किंचित् भी कर सका , तो मैं स्वयम् को बड़ा भाग्यशाली समझूँगा। यदि मुझसे कहा जाता कि पुरस्कार में प्राप्त चाँदी का कटोरा देश के हितार्थ दे दो , तब मुझे बड़ी प्रसन्न्ता होती। ऐसे में यदि मुझे कोई सोने का कटोरा भी मिला होता तो उसे भी मैं ‘राष्ट्राय स्वाहा , इदं न मम’ की भावना के साथ दे देता।

प्रश्न ७ - लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है , उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर - मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। अत: मैं उस परिवेश की चर्चा भोजपुरी में ही कर रहा हूँ।
महादेवी जी जवना छात्रावास में रहत रहली , ओमे अलग-विलग भाषा बोलेवाला के भरमार रहे। केहू हिन्दी , केहू मराठी , केहू फ़ारसी तऽ केहू संस्कृतो बोलेवाला रहे। बूंदेली , अवधी , ब्रजभाषा आऽ भोजपुरी के तऽ बाते मत पूछीं। अँगुरी पर गिनल मुसकिल हो जाई। कहे के मतलब जे कौनो भाषा शाएदे जे बाकी रहे। हँऽऽ इ एगो अलग बात रहे कि खाना - पीना सभे एके मेस में , एकट्ठे खात रहे , आऽ पढ़ाई - लिखाई भी सबकर एकही भाषा में होत रहे।



॥ इति शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

Sunday, 28 June 2015

CBSE CLASS IX HINDI KSHITIJ CHAPTER 6 PREM CHAND KE PHATE JOOTE BY HARISHANKAR PARASAI (सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ६ प्रेमचंद के फ़टे जूते)



प्रश्न 1 - हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन - कौन सी विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं?
उत्तर  - प्रेमचंद का जीवन कष्टों से भरा था। वे सदैव जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं (रोटी,कपड़ा और मकान) की पूर्ति के लिए जूझते और तरसते रहे। संघर्षशीलता , जुझारुपन , जिजीविषा , धैर्य , सादग़ी एवं परदुख-कातरता के अलावा रूढ़ियों तथा बाह्याडंबरों का विरोध उनके स्वभाव में शामिल था। प्रेमचंद का व्यक्तित्व एक मर्यादित लेखक का है, जिनका साहित्य समाज के लिए दर्पण का काम करता है।

प्रश्न 2 - कथन के सामने सही / गलत लिखिए।
(क) - बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
उत्तर - ग़लत  ।

(ख) - लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।
उत्तर - सही  । 

(ग) - तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
 उत्तर - ग़लत  ।

(घ) - तुम जिसे घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ अंगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर - ग़लत  ।

प्रश्न ३-नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए:-
(क) - जूता हमेशा टोपी से क़ीमती रहा है। अब तो जूते की क़ीमत और भी बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
उत्तर - जूते का स्थान पैरों में होता है जबकि टोपी शीश पर शोभा पाती है। किन्तु ; आज जूते की क़ीमत बढ़ गई है । तात्पर्य यह कि आज अयोग्य को सम्मानित किया जा रहा है , जबकि टोपी अर्थात् बुद्धिमान और विद्वान को कोई पूछता भी नहीं। आज ‘विद्या धनं सर्वधन प्रसाधनम्’ की बात बेमानी-सी लगती है।आज सरस्वती पर लक्ष्मी भारी पड़ती-सी जान पड़ती है। अर्थात् एक धनवान के आगे-पीछे पचीसों विद्वान डोलते नज़र आते हैं।

(ख) - तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर - लेखक ने प्रेमचंद के पहनावे को लक्ष्य करके इस सत्य को उजागर किया है कि वे दिखावा-पसंद न थे।सच पर पर्दा डालना उनके स्वभाव में शामिल न था।इसके साथ ही लेखक ने अपने माध्यम से समाज की सचाई पर पर्दा डालने एवम् ढोंग और दिखावा करने जैसी मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया है।

(ग) - जिसे तुम घृणित समझते हो , उसकी तरफ़ हाथ की नहीं , पाँव की अँगुली से इशारा करते हो।
उत्तर - लेखक के अनुसार प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त घृणित विचार-धाराओं,आदर्शों , मान्यताओं एवम् सामाजिक विकास को बाधित करनेवाली रुढ़ियों और परम्पराओं के साथ-साथ जिसे भी घृणित समझा , उसके साथ उन्होंने कभी नरमी नहीं दिखाई। उसकी ओर अँगुली या हाथ नहीं उठाया बल्कि उसे लातों और जूतों के योग्य समझा। तात्पर्य यह कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व घृणितों का सफ़ाया कड़ाई से करने का संदेश देता है।

प्रश्न ४ - पाठ में लेखक एक जगह पर सोचता है कि ‘फ़ोटो खिचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग - अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वज़हें हो सकती हैं?
उत्तर - मेरे अनुसार पोशाक के संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:-
पहला तो यह कि फ़ोटो खिंचाने के लिए जैसे सभी अच्छी पोशाकें पहनते हैं; प्रेमचंद ने भी कुछ वैसा ही किया था, यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है क्योंकि पहनने के लिए उससे ख़राब वस्त्र हो भी नहीं सकते थे। अर्थात् वही पोशाक सबसे अच्छी थी, जिसे वे पहने थे। दूसरा कारण ; प्रेमचंद का सीधा , सरल व दिखावा या पाखंड-रहित जीवन हो सकता है , क्योंकि प्रेमचंद के जीवन में कोई लुकाव-छिपाव नहीं था। वे जैसे थे , वैसे दिखते थे । शायद इन्हीं बातों के परिप्रेक्ष्य में लेखक ने अपने विचार बदले होंगे।

प्रश्न ५ - आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन - सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर  - इस लेख की रचना शैली बेहद आकर्षक है। लेखक ने मूलत: गागर में सागर भरने जैसी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इस लेख का विस्तार ठीक किसी नदी के विस्तार की तरह है। जिस प्रकार अपने उद्गम - स्थल पर नदी पानी की एक पतली रेखा होती है और क्रमश: उसका विस्तार होते जाता है , ठीक उसी तरह इस लेख की शुरुआत प्रेमचंद के एक फ़ोटो से होती है, जिसमें उनका फ़टा जूता देखकर लेखक सोचने लगता है। फिर तो सोचते ही विचारों का ताँता लग जाता है। बातों ही बातों में प्रेमचंद के समस्त व्यक्तित्व को पाठक की आँखों के सामने चलचित्र की भाँति साकार करने की लेखक की क़ाबिलियत ने मुझे बहुत प्रभावित किया

प्रश्न ६ - इस पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर  - प्रस्तुत पाठ में ‘टीला’ विकास के मार्ग में अवरोध का सूचक है। जिस प्रकार ऊँचे और बड़े टीले मार्ग अवरुद्ध कर देते हैं; ठीक उसी प्रकार समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार , जीर्ण-शीर्ण रीतियाँ , व्यर्थ के रस्म और रीवाज़ तथा परम्परागत कुरीतियाँ सामाजिक विकास की गति में बाधा पहुँचाती हैं, अवरोध उत्पन्न करती हैं। यहाँ ‘टीले’ शब्द का प्रयोग तत्कालिन समय में व्याप्त ऐसी ही समस्याओं या बाधाओं के लिए हुआ है।

प्रश्न ७ - प्रेमचंद के फ़टे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।

उत्तर  -      स्वयम्    लिखें... :-)


प्रश्न ८ - आपकी दृष्टि में वेश - भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर  - समय परिवर्तनशील है। अत: यहाँ कुछ भी चिरस्थायी नहीं है। चाहे वह परिस्थिति हो या अथवा विधि-विधान या खान-पान । हम पहनावा को ही ले। पहले सर्दी , गर्मी और बरसात से बचने या तन ढँकने के लिए पोशाक धारण किया जाता था। बदलते समय ने वेश-भूषा की अवधारणा ही बदल दी है। आज वेश - भूषा सामाजिक रुतबा का प्रतीक बन गया है। यह लोगों को मान-सम्मान दिलाता है। स्वयं को खास दिखाने या सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए विभिन्न सरकारी - ग़ैरसरकारी संस्थाओं , स्कूलों आदि ने अपनी अपनी वेश-भूषा निर्धारित कर रखा है। लोग अपनी औक़ात से ज्यादा पहनावे पर खर्च करते हैं। पिछले साल का फ़ैशन इस साल भी करना पिछड़ेपन का सबूत माना जाता है। आज वेश - भूषा आधुनिकता का पर्याय बन गया है। यह बदलता मिज़ाज और मानसिकता निश्चित रूप से चिन्ता का विषय है। 


॥ इति शुभम् ॥

अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में.....

विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’ 

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ CHAPTER 5 NANA SAHAB KI PUTRI DEVI MAINA KO BHASMA KAR DIYA GAYA BY CHAPALA DEVI(नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया)

BIMLESH DUTTA DUBEY

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

प्रश्न 1 - बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन - कौन से तर्क देकर मैना ने महल की रक्षा करने हेतु प्रार्थना की?

उत्तर  - बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को महल की रक्षा करने के लिए विभिन्न तर्क दिया। मसलन; महल उसे बहुत प्रिय है , इस निर्जीव महल ने अंग्रेजों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया, आपकी मृत बेटी मैरी भी इस महल में खेल चुकी है, उसे भी यह महल प्यारा था.... इत्यादि जैसे तर्क देकर मैना ने महल की रक्षा की प्रार्थना की।


प्रश्न 2 - मैना जड़ - पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी, जबकि अंग्रेज़ उसे नष्ट करना चाहते थे।क्यों?

उत्तर  - मैना का जन्म विठूर के राजमहल में ही हुआ था। उसने जब से होश संभाला स्वयं को उसी महल में पाया। फलत: महल के एक-एक जर्रे से उसका लगाव हो गया था। उसी महल में वह पली-बढ़ी और अपना बचपन गुज़ारा । उस महल के साथ उसकी ढेर सारी यादें जुड़ी हुई थी इसलिए वह उसे बचाना चाहती थी। जबकि ठीक उसके विपरीत नाना साहब को पकड़ पाने में असमर्थ रहे अंग्रेज वैसी सभी चीज़ों को समाप्त कर देना चाहते थे , जो नाना साहब की याद दिलाकर उनकी असफलता का मज़ाक उड़ा रहे थे।


प्रश्न 3 - `सर टॉमस हे' के मैना पर दया भाव के क्या कारण थे?

उत्तर  - सर टॉमस हे सेनापति होने के साथ मनुष्य भी थे। अत: उनमें मनुष्यता का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। वे स्वभाव से कोमल और दयालु थे। यही कारण था कि वे मैना की भावनात्मक बातों को ध्यान से सुनने लगे। दया  भाव का दूसरा पक्ष यह था कि मैना उनकी मृत बेटी मैरी की सहेली थी। अत: मैना के प्रति उनके मन में सहज ही सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी।इन्हीं मिले - जुले कारणों से प्रभावित उनका मन दया - भाव से भर उठा था।


प्रश्न 4 - मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैथकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी ?

उत्तर  - जनरल अउटरम अपनी सख़्ती के लिए प्रसिद्ध थे। सर ‘हे’ के कहने पर एक बार वे सोचने पर मजबूर हो गए, परन्तु; उनका निर्णय नहीं बदला। इसके पीछे उनका जातीय - प्रेम रहा होगा , जिसे नाना साहब से ख़तरा था। साथ ही वे अपने उच्चाधिकारियों के गुस्से का शिकार नहीं होना चाह रहे होंगे। शायद ; उन्हें डर था कि यदि उन्होंने मैना के साथ नरमी दिखाई तो उन्हें इसका ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। जो शायद  नौकरी से हाथ धोने से लेकर कठोर दंड के रूप में सामने आ सकता था।संभवत: यही कारण रहे होंगे तभी तो उन्होंने मैना की इतनी छोटी - सी इच्छा भी पूरी न होने दी।


प्रश्न 5 - बालिका मैना की कौन - कौन - सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर  - बालिका मैना असाधारण बालिका थी , जिसमें ढेरों विशेषताएँ थीं। मैं उसकी निडरता , साहस , तर्कशक्ति - संपन्नता , विनम्रता , सहनशीलता और बलिदान जैसी विशेषताओं को अपनाना चाहूँगा। चूँकि इन्हीं गुणों ने मैना को असाधारणता प्रदान किया था , झुण्ड से अलग ला खड़ा किया था। अत: मैं भी उन्हीं गुणों को अपनाकर असाधारण बनना चाहूँगा।


प्रश्न 6 - ‘टाइम्स’ पत्र ने 6 सितम्बर को लिखा था -- ‘बड़े दुख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।’ इस वाक्य में ‘भारत सरकार’ से क्या आशय है?

उत्तर  - तत्कालिन समय में भारत ग़ुलाम था। भारत के शासन की बागडोर अंग्रेज़ों के हाथ में थी। अत: आलोच्य पंक्ति में प्रयुक्त ‘भारत सरकार’ से तात्पर्य उस शासन से है , जो ब्रिटिश - शासन के अन्तर्गत भारत में कुछ अंग्रेज़ अधिकारियों द्वारा चालित था।


प्रश्न 7 - स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने में इस प्रकार के लेखन की क्या भूमिका रही होगी?

उत्तर  - इस प्रकार के लेख भावनाओं को भड़काते हैं , साथ ही सोचने पर मजबूर करते हैं। अंग्रेज़ों की क्रूरता , निर्दयता और अत्याचार की ऐसी कहानियाँ आम लोगों को भी अंग्रेज़ों के विरूद्ध ला खड़ा करती होंगी। अबलाओं , बालिकाओं व निरीह लोगों या मैना सरीखी वीर बालाओं की हत्या की घटना को पढ़कर अंग्रेज़ों के समर्थकों का मन भी हाहाकार कर उठता होगा। परिणाम स्वरूप वे भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो जाते होंगे।इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस प्रकार के लेखन की महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी।


प्रश्न 8 - कल्पना कीजिए की मैना के बलिदान की ख़बर आपको रेडियो पर प्रस्तुत करनी है। इन सूचनाओं के आधार पर आप एक रेडियो - समाचार तैयार करें।

उत्तर  - ये आकाशवाणी है... अब आप मुझसे (अपना नाम) समाचार सुनिए--
नमस्कार !... सबसे पहले मुख्य समाचार....।
गोरी सरकार की काली करतूत , 
अउटरम बनें यमदूत -- 
रोने भी नहीं दिया मैना को...।
अब , समाचार विस्तार से --
कल कानपुर में अंग्रेज़ अधिकारियों की सरगर्मी दिनभर जारी रही। आज सुबह 11:15 मिनट पर समूचा देश तब स्तब्ध रह गया जब नाना साहब की पुत्री मैना को दहकती आग में झोंककर भस्म कर देने की ख़बर कानपुर कीले के अधिकारियों ने दी।
जैसा कि आपको मालूम ही होगा कि कल जनरल अउटरम ने मैना को आधी रात में ही हिरासत में तब ले लिया था , जब वे अपने ध्वस्त महल के मलवे पर बैठी हुई रो रही थी। गिरफ़्तारी के वक़्त मैना ने अनुरोध किया था कि उन्हें चैन से रो लेने दिया जाए। किन्तु; अउटरम ने उनकी एक न सुनी। सूत्रों के अनुसार उच्चाधिकारियों के आदेश पर आज करीब 9:00 बजे देवी मैना को दहकती आग के हवाले कर दिया गया। दुनिया के देशों ने इस घटना की निन्दा की है। सारे देश में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ नारे लगाए जा रहे हैं। अउटरम आदि के पुतले फूँके जा रहे हैं। मैना का बलिदान इतिहास में अमर रहेगा। इसी के साथ समाचार समाप्त हुए। 
मुझे इज़ाजत दीजिए... नमस्कार। 


शेष प्रश्नों के उत्तर स्वयं देने की कोशिश करें... :-)


॥ इति-शुभम् ॥



 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’