Monday 15 September 2014

CBSE CLASS 10 HINDI GRAMMAR VEER RAS (वीर रस)

 2. वीर रस
स्थायी भाव उत्साह जब विभाव , संबंधित अनुभावों और संचारी भावों के सहयोग से परिपुष्ट होता है, तब वीर रस की उत्पत्ति होती है ।
स्थायी भाव - उत्साह
संचारी भाव - गर्व, हर्ष, रोमांच, आवेग, ग्लानि
आलंबन - शत्रु, दीन, संघर्ष
आश्रय - उत्साही व्यक्ति
उद्दीपन - सेना, रणभेरी, शत्रु की बातें, जयकार, समर्थन  आदि ।
अनुभाव - दहाड़, रोंगटे खड़े होना, आक्रमण, हुँकार आदि।



अपनी तलवार दुधारी ले,
भूखे नाहर सा टूट पड़ा ।
कल कल मच गया अचानक दल,
अश्विन के घन सा फूट पड़ा । 

 
राणा की जय, राणा की जय,
वह आगे बढ़ता चला गया ।
राणा प्रताप की जय करता ,
राणा तक चढ़ता चला गया ।

 
रख लिया छत्र अपने सर पर,  
राणा प्रताप मस्तक से ले ।   
ले सवर्ण पताका जूझ पड़ा ,
रण भीम कला अंतक से ले ।
 
झाला को राणा जान मुगल ,
फिर टूट पड़े थे झाला पर ।
मिट गया वीर जैसे मिटता ,
परवाना दीपक ज्वाला पर ।


झाला ने राणा रक्षा की ,
रख दिया देश के पानी को ।
छोड़ा राणा के साथ साथ ,
अपनी भी अमर कहानी को ।

विशेष - 


* इसमें मुगल सेना आलंबन है। 
* राणा प्रताप का सेनापति झाला आश्रय है। 
* देश-भक्ति , वीरता , त्याग और बलिदान आदि संचारी भाव है।  
* राणा की जय- जयकार , भीषण मार-काट , हुँकार भरना , मुगलों को भ्रमित करना आदि उद्दीपन है।
* शत्रुओं पर टूट पड़ना , राणा प्रताप का  छत्र अपने सर पर रख लेना , अपना बलिदान देना आदि अनुभाव है।

 अन्य रसों की बात...क्रमश: अगले पोस्ट में..
 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

9 comments:

  1. हिंदी शिक्षण के साथ आप देश की युवा पीढ़ी को देश का इतिहास पढ़ाते हुए राष्ट्रवाद की शिक्षा भी दे रहे हैं ! हृदय से आभार !!!!!!!!!!!

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  2. I agree with you sir

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  3. vir ras-
    yaha mahan drishya hai-
    chal raha manushya hai
    ashru-swed-rakt se lath-path,lath-path,
    agni-path! agni-path! agni-path1

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  4. Mai satya kehta hu sakhe sukumar mat jano mujhe
    Ravan se bhi yuddh me prastut sada mano mujhe
    Hai aur ki baat hi kya garv mai krta nhi
    Nana tatha nij taat se bhi samar me darta nhi.

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    1. Ravan nhi hai isme "yamraj se bhi yuddh main prastut sada mano mujhe" ye line hai

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    2. yeh veer ras hai na?

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  5. चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुराणी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

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