अद्भुत रस
जहाँ सुनी अथवा अनसुनी वस्तु/ व्यक्ति / स्थान के विचित्र एवं आश्चर्यजनक रूप को देखकर विस्मय हो, वहाँ अद्भुत रस होता है।
स्थायी - विस्मय ।
संचारी - औत्सुक्य, आवेग, हर्ष, गर्व, मोह, वितर्क ।
आलंबन - विचित्र वस्तु, असामान्य घटना, विलक्षण दृश्य।
आश्रय - विस्मित या आश्चर्यचकित व्यक्ति ।
उद्दीपन - वस्तु की विचित्रता, घटना की नवीनता, दृश्य की विलक्षणता ।
अनुभाव - मुँह फाड़ना, आँखें बड़ी करना, भौंह तानना, स्तंभित होना, जड़वत होना, गद्गद होना, चुप हो जाना, मुँह ताकना, रोमांचित होना आदि ।
जैसे-
सेना – नायक राणा के भी
रण देख – देखकर चाह भरे ।
मेवाड़ – सिपाही लड़ते थे
दूने – तिगुने उत्साह भरे ।।
क्षण मार दिया कर कोड़े से
रण किया उतर कर घोड़े से ।
राणा रण–कौशल दिखा दिया
चढ़ गया उतर कर घोड़े से ।।
क्षण उछल गया अरि घोड़े पर¸
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर ।
वैरी – दल से लड़ते – लड़ते
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर ।।
विशेष -
* इसमें राणा प्रताप आलंबन है।
* सैनिकों का हृदय आश्रय है ।
* युद्ध करते - करते घोड़े से उतरना-चढ़ना , दुश्मन के घोड़े पर उछल कर चढ़ जाना, लड़ते-लड़ते घोड़े पर खड़ा हो जाना आदि उद्दीपन है।
* सैनिकों और सेना नायकों का आश्चर्य और चाह भरी नज़रों से देखना अनुभाव है।
* राणा के सैनिकों में गर्व , दुगुना उत्साह , उनका रण-कौशल, मातृभूमि के प्रति अनुराग आदि संचारी भाव है।
अन्य रसों की बात...क्रमश: अगले पोस्ट में..
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
hi
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