Saturday 11 July 2015

CBSE CLASS 9 HINDI KSHITIJ CHAPTER 8 EK KUTTA AUR EK MAINA BY HAJARI PRASAD DWIVEDI(सी.बी.एस.ई कक्षा नौवीं हिन्दी क्षितिज पाठ ८ एक कुत्ता और एक मैना)


एक कुत्ता और एक मैना


प्रश्न १ - गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर  - गुरुदेव का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था। उन्हें आराम की ज़रुरत थी। चूँकि शान्तिनिकेतन में उनके दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा ही रहता था। अतः गुरुदेव ने शान्तिनिकेतन को छोड़ कहीं और अर्थात् श्रीनिकेतन में एकांतवास करने का निर्णय लिया।

प्रश्न २ - मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर  - गुरुदेव जब एकांतवास करने शान्तिनिकेतन को छोड़ श्रीनिकेतन चले गए, तो उनका स्वामी भक्त कुत्ता भी उन्हें ढूँढ़ते - ढूँढ़ते वहाँ पहुँच गया । और तब तक उनके सामने चुपचाप बैठा रहा , जब तक वे उठर उसे सहलाए नहीं। गुरुदेव का स्नेह भरा स्पर्श पाकर वह चंचल हो उठा था। दूसरी घटना ; इस बात को और अधिक स्पष्ट कर देती है । जब गुरुदेव की मृत्यु पर समस्त समाज शोक-मग्न था, तब कुत्ता भी घंटों तक उनके पास उदास बैठा रहा । वह अन्य लोगों के साथ गंभीर भाव से उत्तरायण तक भी गया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की तरह ही संवेदनशील होते हैं।

प्रश्न ३ - गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता का मर्म लेखक कब समझ पाया?
उत्तर  - लेखक प्राय: रोज़ ही लंगड़ी मैना को देखा करता था। लेकिन कभी उसमें कोई असामान्य बात उसे नज़र नहीं आई थी। किन्तु ; जब कविता पढ़ने के बाद उसने ध्यानपूर्वक मैना को निहारा तब सचमुच मैना उसे उदास - उदास लग रही थी। मैना की करूण - अवस्था देखते ही वह कविता के मर्म को समझ गया।

प्रश्न ४ - प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है , जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर  - प्रस्तुत निबन्ध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘प्रसन्न भाषा’ में लिखित एक ललित निबन्ध है। जिसमें उन्होंने अपने विचारों और भावनाओं को कल्पना का जामा पहनाकर पाठक के समक्ष एक सरस रचना को परोसा है। प्रस्तुत निबन्ध की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं :--

(क) - आत्म-कथात्मक शैली ==> इसमें लेखक ने आत्म-कथात्मक शैली का प्रयोग किया है। जैसे - “शुरू शुरु में मैं ऐसी बांग्ला में बात करता था। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा पुस्तकीय है।

(ख) - व्यंग्यात्मकता ==> द्विवेदी जी सफल साहित्यकार थे । अत: साहित्य के आदर्श और मर्यादा से परिचित थे। उन्होंने गुरुदेव के प्रश्न  “अच्छा साहब ! आश्रम के कौए क्या हो गए?” को आधार बनाकर आधुनिक साहित्यिकों को लक्ष्य करके कौवों का स्मरण किया है। उन्होंने बात ही बात में साहित्यकारों पर छींटा-कशी करते हुए करारा व्यंग्य  भी किया है।

(ग) - कल्पनात्मकता ==> द्विवेदी जी में अद्भुत कल्पना शक्ति थी। उन्होंने कौवा , लंगड़ी मैना , कुत्ता और मैना-दंपति आदि के विचारों , मनोभावों और प्रतिक्रियाओं को सहज ही में संवादात्मक कर दिया है।

(घ) - चित्रात्मकता ==> द्विवेदी जी की भाषा चित्रात्मक है। चाहे लंगड़ी मैना की करुण - मूर्ति को साकार करनेवाली भाषा हो अथवा गुरुदेव की मृत्यु के पश्चात् कुत्ते की उदास बैठे रहने की मुद्रा का वर्णन हो। शब्दों द्वारा दृश्य-चित्रण की बात हो , तो कोई द्विवेदी जी से सीखे।

प्रश्न ५ - आशय स्पष्ट कीजिए :--
इस प्रकार कवि की मर्म भेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है , जो मनुष्य , मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर  - विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गहरी अन्तर्दृष्टि प्राप्त थी। अपनी इसी प्रतिभा के कारण वे कुत्ते जैसे मूक प्राणी के अन्तर में छिपे ‘समर्पण-भाव’ को देख पाए थे। उन्होंने देखा कि कुता भक्त-हृदय है। उन्होंने उसकी स्वामी-भक्ति को आध्यात्मिक और अलौकिक रुप में देखा और माना कि यह आत्मा का आत्मा के प्रति समर्पण है। उन्होंने महसूस किया कि इतना समर्पण-भाव तो मनुष्य जीवन में बड़ी कठिनाई से उतर पाता है।


॥ इति - शुभम् ॥


अगला पाठ क्रमश: अगले पोस्ट में......
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’

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