Saturday 14 February 2015

CBSE CLASS 10TH HINDI - CHHAYA MAT CHHUNA (छाया मत छूना) GIRIJA KUMAR MATHUR

      छाया मत छूना


प्रश्न १ - कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर - कठिन यथार्थ का तात्पर्य है - जीवन का कठोर  सच । ‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने कहा है कि मनुष्य को भ्रम , दिखावा या किसी छलावा में न पड़कर जीवन की सचाई को कबूल करना चाहिए । जो सच है , उससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है और न ही पिंड छुड़ाया जा सकता है । हर हाल में सच का सामना करना ही पड़ता है । अत: जो सच है उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ।

प्रश्न २ - भाव स्पष्ट कीजिए --
  प्रभुता का शरण - बिम्ब केवल मृगतृष्णा है,
  हर  चंद्रिका  में छिपी  एक  रात कृष्णा है।

उत्तर - प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि यह संसार द्वन्द्वात्मक है। जीवन के बाद मरण , हार के बाद जीत एवम् दिन के बाद रात का आना नियति ने नियत कर रखा है। जैसे हर चाँदनी रात के बाद काली रात का आना तय है , ठीक उसी प्रकार एहसास भी बदला करते हैं। अत: कह सकते हैं कि बड़प्पन का एहसास भी एक भ्रम या छलावा है।

प्रश्न ३ - ‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर - ‘छाया अवास्तविक होती है। यहाँ ‘छाया’ शब्द कवि के अतीत की सुखद यादों के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है । कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है। अतीत के सुखद स्मृतियों की छाया प्राय: दुखदायी होती है। व्यक्ति अतीत के सुखद क्षणों को याद करके अपने वर्तमान को दुखी कर लेता है । अत: कवि ने कहा है--  “छाया मत छूना , मन होगा दुख दूना।”

प्रश्न ४ - कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे - कठिन यथार्थ ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई ?

उत्तर - प्रस्तुत कविता में कुछ अन्य विशेषण युक्त शब्द निम्नलिखित हैं, जिनके अर्थ में विशिष्टता समाई है-
* सुरंग-सुधियाँ-सुहावनी => इसका प्रयोग बीती हुई सुखद एवम् मधुर स्मृतियों के लिए किया गया है ।
* जीवित - क्षण => वैसे क्षण जो पुराने होकर भी वर्तमान में आँखों के समक्ष सजीव हो उठते हैं ।
* दुविधा - हत - साहस => साहस होते हुए भी किसी कशमकश में पड़कर उसका प्रकट न होना अथवा दब-सा जाना ।
* शरद - रात => ऐसी मोहक रात जो सर्दी से युक्त हो ।


प्रश्न ५ - ‘मृगतृष्ण’ किसे कहते हैं? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है? 

 उत्तर - ‘मृगतृष्णा’ का सांकेतिक अर्थ है - भ्रम या छलावा । बियावान रेगिस्तान में सूर्य की प्रचण्ड किरणें जब बालू की रेत पर पड़ती हैं , तब उनकी चमक प्यासे मृग को वहाँ पानी के होने का एहसास कराती हैं । जब मृग वहाँ पहुँचता है तब उसे पानी तो नहीं मिलता, परन्तु उतनी ही दूरी पर फिर उसे पानी होने का एहसास होता है । इस प्रकार वह पानी की खोज में भटकता हुआ प्यासे ही मर जाता है। इसी भ्रम या छलावे को मृगतृष्णा कहते हैं। प्रस्तुत कविता में ‘मृगतृष्णा’ का प्रयोग जीवन में धन - दौलत पाने तथा बड़प्पन के एहसास के लिए किया गया है ।

प्रश्न ६ -‘बीती ताहि बिसार दे , आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर - ‘बीती ताहि बिसार दे , आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है --   

‘जो न मिला भूल उसे , कर तू भविष्य वरण ।

प्रश्न ७ - कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - मनुष्य की अपूर्ण इच्छा ही उसके दुख का मूल कारण है। मनुष्य अपने जीवन में बड़ी - बड़ी आशाएँ करता है , उन आशाओं के पूरा न होने पर वह दुखी , निराश और उदास हो जाता है । यह जानते हुए भी कि हर काम अपने समय से ही होता है, फिर भी वह स्वय्म् ही अपने कार्य के होने के समय का निर्धारण करता है। जब उसके निर्धारित समयानुसार कार्य नहीं होता तो वह बहुत दुखी हो जाता है । 


प्रश्न ८ - जीवन में ‘सुरंग-सुधियाँ-सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन - कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर - जीवन सचमुच यादों से परिपूर्ण हुआ करता है। प्राय: हर दिन की अपनी एक कहानी होती है। दिन भर घटने वाली हर घटना  किसी न किसी कहानी की एक कड़ी होती है। अब उन सभी को याद रखना भला कहाँ संभव है । फिर कुछेक यादें हैं जिनकी चर्चा की जा सकती है । जैसे - नदी में नहाने जाना और तैरना , स्कूल के दिनों की मस्ती भरी बातें , खेल में जीत और हार के बाद का दृश्य , परीक्षाओं में सफलता और असफलता  के बाद की मनोदशा आदि । ये स्मृतियाँ आज भी मन को बिजली के बल्ब की तरह जलाती - बुझाती हैं ।

प्रश्न ९ - ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर - हम इस विचार से असहमत हैं । सच तो यह है कि समय बीत जाने पर मिलने वाली उपलब्धि किसी काम की नहीं होती । मन को सांत्वना देने के लिए चाहे हम अपनी पीठ थपथपा लें, पर उस उपलब्धि की कोई उपादेयता नहीं रह जाती । दूसरे ; समय बीत जाने पर मिलने वाली उपलब्धि हमें सांत्वना का पात्र बना देती है । तब सांत्वना के हर शब्द से व्यक्ति अपने को आहत या अपमानित महसूस करता है। अत: मेरे अनुसार ऐसी उपलब्धि व्यर्थ है।




॥ इति - शुभम् ॥


 विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
  

1 comment:

  1. Very good work Sir!!!!!����������

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