10. वात्सल्य रस
जब अपने या पराए बालक को देखकर या सुनकर उसके प्रति मन में एक सहज आकर्षण या बाल-रति का भाव उमड़ता हो वहाँ वात्सल्य रस होता है।
स्थायी - संतान प्रेम या बाल - रति ।
संचारी - हर्ष, मोद, चपलता, आवेग, औत्सुक्य, मोह ।
आलंबन - बालक के चिताकर्षक हाव - भाव, बोली एवं रूप - सौंदर्य ।
आश्रय - माता, पिता, दर्शक, श्रोता, पाठक ।
उद्दीपन - बाल सुलभ क्रीड़ा, बातें, चाल, चेष्टाएँ, तुतलाना, जिद ।
अनुभाव - गोद में सोना, प्यार जताना, गले लगाना, चूमना, बाहों में भरना, उसी के समान बोलना, साथ में खेलना आदि ।
जैसे -
चलत देखि जसुमति सुख पावै।
ठुमकि-ठुमकि पग धरनि रेंगत, जननी देखि दिखावै।
देहरि लौं चलि जात, बहुरि फिरि-फिरि इतहिं कौ आवै।
गिरि-गिरि परत,बनत नहिं लाँघत सुर-मुनि सोच करावै।
विशेष -
* इसमें श्रीकृष्ण आलंबन है।
* यशोदा मैया का हृदय आश्रय है ।
* घुटनों के बल चलना , अपनी परछांई पकडने की चेष्टा करना ,किलकारी मार कर हँसना आदि उद्दीपन है।
* खुश होना , दूसरों को देखाना, बार-बार नन्द बाबा को बुला लाना अनुभाव है।
* ठुमकना , किलकारी , चपलता आदि संचारी भाव है।
अन्त में.. भक्ति रस की बात...क्रमश: अगले पोस्ट में..
विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’
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ReplyDeleteu cant;t copy nd paste it...wht need of pdf..??
DeleteGud bt give examples
ReplyDeletegive more examples
ReplyDeleteWow such a bullshit explanation.. without any example
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