उत्साह
कवि - सूर्यकांत
त्रिपाठी ‘निराला’
प्रश्न १- कवि
बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने
के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर - कवि
जानता है कि न चाहते हुए भी ‘गरजना’ सुनाई पड़ती है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम
से अपने संदेश को जन-जन तक पहुँचा कर लोगों के मन में पुन: उमंग,जोश और नई आशा भरना चाहता है।इसलिए कवि बादल से
फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए
नहीं कहता बल्कि ‘गरजने’ के लिए कहा है।
प्रश्न २- कविता
का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर - उत्साह
एक आह्वान गीत है। उत्साह का अभिप्राय है-जोश और उमंग।कविता के माध्यम से कवि
वैचारिक व सामाजिक क्रांति लाने के लिए लोगों को उत्साहित करना चाहते हैं। बादल का
उमड़ना-घुमड़ना जहाँ मन में उमंग भरता है; वहीं उसका गरजना लोगों के मन में क्रान्ति के लिए जोश भी भर देता है। इसलिए
कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ सर्वथा उचित है।
प्रश्न ३- कविता
में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर - ‘उत्साह’ कविता में बादल निम्नलिखित अर्थों की ओर संकेत करता है -
(क) बादल
पीड़ित-प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
(ख) बादल नई
कल्पना और नए अंकुर को संभव करनेवाला है।
(ग) बादल विध्वंस,विप्लव और क्राँति को संभव करने वाले का
प्रतीक
है।
(घ) बादल दृढ़ता,जोश,उमंग और नवीन आशा का संचार करनेवाला
है।
(ङ) बादल सामाजिक
और वैचारिक परिवर्तन का सूत्रधार है।
प्रश्न ३- शब्दों
का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा
हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है।
उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर - प्रस्तुत
कविता में निम्नलिखित शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है :-
(क) “ घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ”
(ख) “ विद्युत-छवि उर में ”
उत्तर - जब मैं
पटकाई पहाड़ की गोद मे बसे लिदू (तिनसुकिया,असम) में था तब अचानक एक दिन वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते
भावों को कविता में पिरोया था। प्रस्तुत है वह कविता....
चारों तरफ़ बिखरी
- सी हरियाली,
राहें चुमती - सी
फूलों की डाली ,
गुनगुनाते हुए
तितलियाँ और भौंरे,
वादी ने मानों
ज़ुल्फें बिखरा ली ।
वो सूरज का धीरे
- धीरे मुसकुराना
दिनभर हँसते -
हँसते थक - सा जाना
देखकर रंगीं शाम
उसका नजरे झुकाना
फिर सो जाना ऐसे
जैसे कोई मवाली।
शाम के धुंधलके
में चाँद का करीब आना,
शर्म से धीरे - धीरे फिर घूँघट उठाना ,
मुस्कुरा कर
उसका चाँदनी विखराना ,
शर्माना
दुल्हन-सी मानो मुखड़ा छुपाली ।
ओ झरना ओ मन्दिर
वो छोटी-सी वादी,
ओ वर्षा की
रिमझिम वो शामें निराली,
ऐ लिदू !
तुम्हारी नदी और पहाड़ी,
हँसीनी तुम्हारी
हमने दिल में बसाली।
विमलेश दत्त दूबे
‘स्वप्नदर्शी’
sir pls post the sar of the poem.
ReplyDeleteThank u very much
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