Friday 9 May 2014

lokokti andhon me kana raja अंधों में काना राजा

अंधों में काना राजा

अज्ञानी लोगों के बीच अल्प-ज्ञानी व्यक्ति भी आदर सम्मान है । अज्ञानी लोगों की दृष्टि में उसका उतना ज्ञान ही उसे महत्त्वपूर्ण बना देता है , वह लोगों का विश्वासपात्र बन जाता है,लोग उसके दिशा-निर्देशों पालन करने लगते हैं। इस प्रकार धीरे - धीरे वह अल्प-ज्ञानी स्वयम् को विद्वान मानने लगता है और दूसरों पर अपने ज्ञान का रौब झाड़ते फिरता है। इस प्रकार अंधों के उस समाज में उसकी तूती बोलती है।
किन्तु; सच तो यह है कि वह अल्प-ज्ञानी है,अत: उसके ज्ञान से समाज को कोई फ़ायदा नहीं होता , बल्कि प्राय: नुकसान ही होता है;फिर भी लोग उसकी बातों को ही अपने लिये हितकारी मानकर उसका अनुकरण एवम् अनुसरण करते हैं।   
परन्तु ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सदा ऐसी ही बनी रहती है। कभी गलती से या किसी दुर्योग के कारण यदि वह अल्प-ज्ञानी विद्वानों की मंडली में पहुँच जाता है तब उसके ज्ञान से परदा उठ जाता है । जैसे ही उसे अपनी औकात पता चलती है ; उसका सिर स्वत: नीचा हो जाता है। उसकी हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे  वाली हो जाती है।
ऐसे उदाहरण प्राय: गाँवों में मिला करते हैं। गाँवों के लोग उस थोड़े पढ़े - लिखे व्यक्ति को भी ज्ञानी मानते हैं और उससे राय - सलाह लिया करते हैं। क्योंकि सभी उसी से राय लेते हैं अत: उसकी बात को काटने का साहस कोई नहीं करता  है। अपनी अल्पज्ञता से वह जो भी राय देता है, गाँव के लोग उसका अक्षरश: पालन करते हैं।
वर्तमान में चुनाव का माहौल है इसलिए अंधों में काना राजा लोकोक्ति की प्रासंगिकता और बढ़ गई है।ऐसे मौके को अवसरवादी , छलिया और धूर्त किस्म के नेता खूब भुनाते हैं। वे अपने चमचा-तंत्र से “अंधों में काना राजा” अर्थात् किसी ऐसे अल्प-ज्ञानी का पता लगवाते हैं जिसकी गाँव के लोगों में चलती हो । उसके बाद अपने चापलूस-तंत्र के द्वारा उसके बल-बुद्धि-विद्या और सामाजिक रूतबा की खूब तारीफ़ करवाते हैं। फ़िर चतुर-चालाक नेता उसके सामने अज्ञानी बनकर उपस्थित होते हैं और उससे राय लेते हैं कि वोट प्राप्त करने के लिये उन्हें क्या करना चाहिये ? अपनी झूठी प्रशंसा पाकर वह पूरे गाँव को समझाता है और उसके कहने में आकर ग्रामीण अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेते हैं। ऐसे अल्प-ज्ञानियों के कारण बुरे , लुच्चे , भ्रष्ट और बेईमान नेता फ़िर से जीत जाता है तथा अच्छे , सच्चे , नेक और ईमानदार नेता हार जाते हैं। 
अब शायद कहने की जरूरत नहीं रही कि जब मौका है,माहौल है और मुमकिन भी है तब मुनासिब यही है कि हम अल्पज्ञ लोगों से सावधान एवम् सतर्क रहें। अन्यथा हम पर एक अन्य लोकोक्ति भी काबिज़ हो जाएगी...
       जन्म के अन्धे , नाम नयनसुख

॥ इति - शुभम् ॥

बिमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी '

                

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