Wednesday 2 March 2016

MATI WALI (माटी वाली) CBSE CLASS 9 HINDI KRITIKA-1 CHAPTER-4 BY VIDYA SAGAR NOUTIYAL

 

माटी वाली 


प्रश्न १ - शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को ही नहीं उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं। आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते माटी वाली को सब पहचानते थे?
उत्तर - माटी वाली अपने पति के साथ शहर से ३-४ किलोमीटर दूर रहती थी। परन्तु उसका पूरा समय टीहरी शहर में ही गुजरता था। टीहरी वासियों को अपना चूल्हा-चौका लीपने के लिए लाल माटी की जरूरत होती थी। शहर में लाल माटी पहुँचाने वाली केवल माटी वाली ही थी। वही शहर के प्रत्येक घर में माटी पहुँचाती थी। उस कार्य को करनेवाला कोई दूसरा नहीं था। अत: सभी लोग उसके ग्राहक थे। संभवत: बार-बार दिखने , मिलने या प्राय: घर में आने-जाने के कारण शहरवासी सिर्फ़ माटी वाली को ही नहीं उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते थे। 

प्रश्न २ - माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?
उत्तर - माटी वाली का जीवन संघर्षों से भरा था। उसके लिए दो वक़्त की जुटाना मुश्किल था। सुबह से शाम तक वह काम में लगी रहती थी । किन्तु ; संयोग से किसी दिन यदि वह काम न करती तो उसे भूखा ही सोना पड़ता था। जहाँ तक भाग्य की बात है तो कहा जा सकता है कि उसके भाग्य में काम करना ही लिखा था। आए दिन ज़िन्दगी के कड़वे सच का सामना करना पड़ता था। संभवत: यही कारण था कि उसके पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय नहीं था।

प्रश्न ३ - ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर - ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ वाक्य अर्थ की दृष्टि से प्रश्नवाचक वाक्य है, जिसका अभिप्राय है- ‘भूख’ और ‘स्वाद’ के बीच तुलना करके पाठक या श्रोता के मन में ‘भूख’ के महत्वपूर्ण होने की सूचना देना। तात्पर्य यह कि भूख लगने पर भोजन के स्वाद या उसकी मिठास की चिन्ता नहीं की जाती बल्कि पहले भूख मिटाने का उपाय ढूँढ़ा जाता है। भूख मिटाना पहली प्राथमिकता होती है, भोजन के स्वाद का स्थान बाद में आता है। पठित पाठ में माटी वाली चाय को ही साग की तरह बताती है, तब घर की मालकिन का यह कहना कि “भूख तो अपने आप में साग होती है बुढ़िया।” दिए गए वाक्य   ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ के अभिप्राय को और अधिक स्पष्ट करता है।

प्रश्न ४ - “पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।” मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर - हमारे पूर्व-पुरूषों द्वारा उपार्जित वे सभी चीजें जो हमें परम्परा से प्राप्त होती हैं, उन्हें विरासत कहा जाता है। निश्चित रूप से हमें अपनी विरासत की सुरक्षा और संरक्षा करनी चाहिए। विरासत एक ओर जहाँ पारम्परिक शिल्प , कला , कौशल और विज्ञान का अनूठा संग्रह होती है, वही अपनी भावी पीढ़ी के लिए कुछ करने या सोचने की प्रेरणा का स्रोत भी होती है। न जाने किन परिस्थियों में हमारे पूर्वजों ने एक-एक चीज़ इकट्ठा किया होगा और यत्नपूर्वक सहेजकर हमारे लिए रखा होगा। अत: उनके प्रति और अपनी विरासत के प्रति हमारे मन में आदर और श्रद्धा होनी चाहिए। परन्तु ध्यान रहे; विरासत के प्रति आदर और श्रद्धा रखने का तात्पर्य यह नहीं है कि उसे आदरणीय या पूजनीय मानकर उसका उपयोग ही न किया जाय। यह सरासर ग़लत है। वास्तव में विरासत का सदुपयोग ही उसके प्रति आदर और श्रद्धा का द्योतक है।

प्रश्न ५ - माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मज़बूरी को प्रकट करता है?
उत्तर - रोटी कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जिसे भविष्य के लिए संचित किया जा सके अथवा किसी बैंक में जमा किया जा सके। अभिप्राय यह कि आज की बनी रोटी आज ही खायी जाती है। रोटियों की गिनती तब की जाती है जब यह जानना हो कि आवश्यकता के अनुसार रोटियाँ हैं या नहीं? 
माटी वाली को माटी देने के बदले रोटियाँ भी मिलती थीं, जिससे वह अपना तथा अपने बूढ़े एवम् अशक्त पति का पेट भरती थी। माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना जहाँ एक ओर यह सिद्ध करता है कि उसके समस्त क्रिया-कलाप के केंद्र में वे रोटियाँ ही हैं वहीं दूसरी ओर उसकी ग़रीबी, बेबसी और लाचारी का व्यंजक भी है।

प्रश्न ६- आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी-- इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तर - माटी वाली अपने अशक्त पति का इस तरह ध्यान रखती थी जैसे किसी बच्चे का रखना पड़ता है। अशक्त पति के भरण-पोषण की जिम्मेदारी ने माटी वाली को कर्मठ , जिम्मेदार और परिश्रमी बना दिया। पति की हालत पर उसे दुख होता है, वह अपने को बेहद लाचार और मज़बूर महसूस करती है। किन्तु , वह अपनी बेबसी से पति को दुखी नहीं करना चाहती। अपने पति के लिए उसके मन में प्रेम, दया और करूणा भरी पड़ी थी। पति के चेहरे पर खुशी देखकर उसे तसल्ली मिलती थी। वह जानती थी कि उसका पति अधिक दिनों का मेहमान नहीं है। अत: वह अपने पति को अधिक से अधिक खुशियाँ  देना चाहती थी। इसके लिए उसे दिन-दिन भर काम करना करना पड़ता था। उसे पता था कि उस ग़रीब को दो वक़्त की रोटी मिल जाय तो उसके खुशी का ठिकाना नहीं रहता। मात्र इतनी उपलब्धि ही बुड्ढे के आनन्द का कारण बन जाती है। अपने बुड्ढे के चेहरे पर आने वाली उस खुशी को बरकरार रखना ही उस माटी वाली बुढिया ने अपना लक्ष्य बना लिया था।

प्रश्न ७ - “ग़रीब आदमी का श्मशान नहीं उजाड़ना चाहिए।” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - माटी वाली के पास ‘अपना’ कहने के लिए मात्र वह झोपड़ी ही थी। उसकी पूरी दुनिया उस झोपड़ी में ही समायी थी। उसी में उसने जीने-मरने के सपने देखे थे। टिहरी बाँध बनने के कारण पूरा गाँव विस्थापित होकर अन्यत्र जा रहा था। उसे भी झोपड़ी छोड़कर कहीं और चले जाने का निर्देश मिल चुका था। अपनी पूरी ज़िन्दगी झोपड़ी में गुज़ारने के बाद वह उसी झोपड़ी में मरना भी चाहती थी। सारा गाँव उजड़ कर जा रहा था पर; बेचारी माटीवाली भला कहाँ जाती। अत: वह ग़रीब और बेसहारा झोपड़ी के बाहर बैठी सबसे गुहार लगा रही थी - ‘ग़रीब आदमी का श्मशान नहीं उजाड़ना चाहिए।’    


॥ इति शुभम् ॥



विमलेश दत्त दूबे ‘स्वप्नदर्शी’



3 comments:

  1. ठकुराइन ने मतिवाली को कितीने रोटियां दिया था?

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