कवित्त १
प्रसंग :- कवि देव ने लीक
से हटकर कामदेव को महाराज और वसन्त को कामदेव का पुत्र मानकर एक बालक राजकुमार के
रुप में चित्रित किया है और समस्त
प्राकृतिक उपादानों को बालक वसंत के लालन - पालन में सहायक बताया है।
व्याख्या :-
घर में बालक का आगमन :- घर
- परिवार में किसी बच्चे के आगमन पर सबके चेहरे खिल जाते हैं।घर के लोग बच्चे को
रंग-विरंगे वस्त्र पहनाते हैं,उसको झूला झुलाते हैं।घर
के सदस्य अपने अपने तरीके से विभिन्न प्रकार की बातें करके या आवाज़ें निकालकर
बच्चे के मन बहलाव का प्रयास करते हैं।किसी कारण वश यदि बच्चा कभी रोने-धोने लगता
है तो माँ या घर की बड़ी-बूढ़ी सिर पर पल्लू रखकर बच्चे को बुरी नज़र से छुटकारा
दिलाने का टोटका करती है। राई और नून (सरसों और नमक) को बालक के पूरे शरीर के
चारों ओर घड़ी की दिशा में पाँच बार घुमाकर (अईंछ कर )गोबर से निर्मित चिपरी (उपला)
पर जलाती है तथा उसके धुएँ को घर में चारों ओर फ़ैलाती है।यदि बच्चा सोया हुआ हो तो
घर के सदस्य उसके बालों में उँगली से कंघी करते हुए या कानों के पास चुटकी बजाकर
उसे बड़े प्यार से जगाते हैं ताकि वह कहीं रोने न
लगे ।
प्रकृति मे बसंत का आगमन :- प्रकृति में बसंत के आगमन पर चारों ओर रौनक छा जाती है।चारों ओर रंग-विरंगे
फ़ूल खिल जाते हैं,पेड़ों की डालियों में नए-नए पत्ते निकल आते
हैं जिससे वे झुक-सी जाती हैं । मंद हवा के झोंके से वे डालियाँ ऐसे हिलती-डुलती
हैं मानों कोई झुला हों। बागों में कोयल,तोता,मोर आदि विभिन्न प्रकार के पक्षियों की आवाज़ सुनाई पड़ने लगती है।वातावरण
में चहुँओर विभिन्न प्रकार के फूलों की सुगंध व्याप्त रहने लगती है।कमल के फूल भी
यत्र-तत्र खिलकर अपनी सुगंधी विखेरते नज़र आते हैं। सुबह-सुबह गुलाब की कली को चटक
कर फूल बनते देखा जाता है।बसन्त ऋतु के आगमन पर प्रकृति फल-फूलों से लद जाती
है।बासंती बयार मन को खूब भाती है।
प्रकृति मे बसंत का एक बालक के रूप में आगमन :-
कवि देव ने वसंत के आगमन की तुलना एक बालक के आगमन से करते हुए प्रकृति मे
होने वाले परिवर्तनों को बड़े ही अनोखे ढंग से अभिव्यक्त किया है।
घर - परिवार में किसी बच्चे के आगमन पर जैसे सबके चेहरे खिल जाते हैं।ठीक वैसे
ही प्रकृति में बसंत के आगमन पर चारों ओर रौनक छा जाती है।प्रकृति में चारों ओर
रंग-विरंगे फ़ूलों को खिला देखकर ऐसा लगता
है मानों प्रकृति राजकुमार बसन्त के लिए रंग-विरंगे वस्त्र तैयार कर रही हो, ठीक वैसे ही जैसे घर के लोग बालक को रंग-विरंगे वस्त्र पहनाते हैं। पेड़ों
की डालियों में नए-नए पत्ते निकल आते हैं जिससे वे झुक-सी जाती हैं। मंद हवा के
झोंके से वे डालियाँ ऐसे हिलती-डुलती हैं जैसे घर के लोग बालक को झूला झुलाते हैं।
बागों में कोयल,तोता,मोर आदि विभिन्न
प्रकार के पक्षियों की आवाज़ सुनकर ऐसा लगता है मानों वे बालक बसंत के जी-बहलाव की
कोशिश मे हों; कुछ वैसे ही जैसे
घर के सदस्य अपने अपने तरीके से विभिन्न प्रकार की बातें करके या आवाज़ें निकालकर
बच्चे के मन बहलाव का प्रयास करते हैं। कमल के फूल भी यत्र-तत्र खिलकर अपनी सुगंधी
विखेरते नज़र आते हैं। वातावरण में चहुँओर विभिन्न प्रकार के फूलों की सुगंध
व्याप्त रहने लगती है। जैसे घर की बड़ी-बूढ़ी राई और नून जलाकर बच्चे को बुरी नज़र से
छुटकारा दिलाने का टोटका करती है। बसंत ऋतु में सुबह-सुबह गुलाब की कली चटक कर फूल
बनती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे बालक बसंत को बड़े प्यार से सुबह-सुबह जगा रही हो ;
कुछ वैसे ही जैसे घर के सदस्य बच्चे के बालों में उँगली से कंघी
करते हुए या कानों के पास धीरे चुटकी बजाकर उसे बड़े प्यार से जगाते हैं ताकि वह कहीं रोने न लगे ।
******************************************************************
प्रश्न १:- दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज
वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत
वर्णन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर :- परंपरा से कवियों ने वसन्त के वर्णन में लगभग एक
रुपता दिखाई है।अन्यान्य कवियों ने जहाँ वसन्त के मादक रुप को सराहा है और समस्त
प्रकृति को कामदेव की मादकता से प्रभावित दिखाया है। वहीं कवि देव ने लीक से हटकर
कामदेव को महाराज और वसन्त को कामदेव का पुत्र मानकर एक बालक राजकुमार के रुप में
चित्रित किया है।जहाँ अन्य कवियों ने प्रकृति के सौन्दर्य को ही निहारा है, वहीं कवि देव ने समस्त प्राकृतिक उपादानों को बालक वसंत के
लालन - पालन में सहायक बताया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से सर्वथा भिन्न है।
प्रश्न २:- ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’- इस पंक्ति का भाव
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्तियाँ देवदत्त द्विवेदी द्वारा रचित सवैया से ली गई है।
इसमें वसंत ऋतु में प्रकृति के प्रात:कालिन सौन्दर्य को दर्शाया गया है।
प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि सुबह-सवेरे सोये हुए वसंत रुपी बालक को गुलाब की कली चटकारी देकर अर्थात् चुटकी बजाकर जगा रही है। आशय यह है कि वसंत काल में गुलाब की कली सुबह-सवेरे चटक कर फूल बन जाती है।
प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि सुबह-सवेरे सोये हुए वसंत रुपी बालक को गुलाब की कली चटकारी देकर अर्थात् चुटकी बजाकर जगा रही है। आशय यह है कि वसंत काल में गुलाब की कली सुबह-सवेरे चटक कर फूल बन जाती है।
प्रश्न ३:- पठित कविताओं के आधर पर कवि देव की
काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :- रीतिकाल के महत्वपूर्ण शृंगारी कवि देवदत्त की निम्नलिखित काव्यगत विशेषताएँ
हैं - उनके काव्य में सरल और सहज ग्राह्य ब्रजभाषा का प्रयोग
मिलता है। वे पूरी प्रवीणता के साथ सवैया ,पद , कवित्त
और अन्य तुक्त छंद का प्रयोग करते हैं। छंदोबद्धता और आलंकारिता उनके भाषा की
विशेषता है। उनकी कविताओं में अनुप्रास, रूपक, उपमा एवं मानवीकरण अलंकार का चामत्कारिक
प्रयोग मिलता है। भावाभिव्यक्ति में उनकी भाषा सशक्त है। प्रकृति - चित्रण में उन्हें सिद्धहस्तता प्राप्त है।नवीन उपमा और उपमान के द्वारा
अपने काव्य को रोचकता प्रदान कर नवीन परंपरा का सूत्रपात करना उनके लेखनी की
विशेषता है।
॥ इति-शुभम् ॥
अगला पोस्ट क्लास 10 के लिए...))
No comments:
Post a Comment