पद-1
ऊधौ , तुम हो अति बड़भागी ।
अपरस रहत
सनेह तगा तैं , नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि
पात रहत जल भीतर , ता रस देह न दागी।
ज्यों
जल मांह तेल की गागरि , बूँद न ताकौं लागी ।
प्रीति - नदी में पाँव न
बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास ' अबला
हम भोरी , गुर चाँटी ज्यों पागी ॥
व्याख्या
प्रस्तुत पद में
गोपियों ने उदधव के ज्ञान-मार्ग और योग-साधना को नकारते हुए
उनकी प्रेम-संबंधी उदासीनता को लक्ष्य कर व्यंग्य किया है साथ ही भक्ति-मार्ग में अपनी आस्था
व्यक्त करते हुए कहा है- हे उद्धव जी! आप बड़े भाग्यशाली हैं
जो प्रेम के बंधन में नहीं बंधे और न
आपके मन में किसी के प्रति कोई अनुराग जगा। जिस प्रकार जल में रहनेवाले कमल के
पत्ते पर एक भी बूँद नहीं ठहरती,जिस प्रकार तेल की गगरी को जल में भिगोने पर उस पानी
की एक भी बूँद नहीं ठहर पाती,ठीक उसी प्रकार आप श्री कृष्ण रूपी प्रेम की नदी के
साथ रहते हुए भी उसमें स्नान करने की बात तो दूर आप पर तो श्रीकृष्ण-प्रेम की एक छींट भी
नहीं पड़ी। अत: आप भाग्यशाली नहीं हैं क्योंकि हम तो श्रीकृष्ण के
प्रेम की नदी में डूबती-उतराती रहती हैं। हे उद्धव जी! हमारी दशा तो उस चींटी
के समान है जो गुड़ के प्रति आकर्षित होकर वहाँ जाती और वहीं पर चिपक जाती है और
चाहकर भि अपने को अलग नहीं कर पाती और अपने अंतिम साँस तक बस वहीं चिपके रहती है।
संदेशा
निर्गुण की उपासना के प्रति उद्धव
की अनुरक्ति पर व्यंग्य करते हुए गोपियों ने कहना चाहा है कि हम आप जैसे संसार से
विरक्त नहीं हो सकते। हम सांसारिक हैं। अत: एक दूजे से प्रेम करते हैं । हमारे
मन में कृष्ण की भक्ति और अनुरक्ति है। कृष्ण से अलग हमारी कोई पहचान नहीं। हम
अबलाओं के लिए ज्ञान-मार्ग बड़ा
कठिन है।
प्रश्न
(क)गोपियों ने उद्धव को
बड़भागी क्यों कहा है?
उत्तर- गोपियों ने उद्धव को बड़भागी इसलिए कहा है क्योंकि आज तक उद्धव जी ने किसी से प्रेम नहीं किया,फलस्वरूप उन्हें कभी भी किसी का वियोग या विरोह-वेदना नहीं झेलना पड़ा।
(ख)गोपियों ने उद्धव की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर- गोपियों ने उद्धव को बड़भागी इसलिए कहा है क्योंकि आज तक उद्धव जी ने किसी से प्रेम नहीं किया,फलस्वरूप उन्हें कभी भी किसी का वियोग या विरोह-वेदना नहीं झेलना पड़ा।
(ख)गोपियों ने उद्धव की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर- गोपियों ने उद्धव की
तुलना ‘कमल के पत्ते’ और ‘तेल की गगरी’ से की है। गोपियों को उद्धव को प्रकृति
इनसे मिलती-जुलती लगती है। जिस प्रकार पानी में रहकर भी कमल का पत्ता
जल से निर्लिप्त रहता है, और तेल की गगरी पर जल की एक बूँद भी नहीं टीक पाती,ठीक उसी प्रकार उद्धव
जी भक्ति और प्रेम से अछूते हैं।
(ग)गोपियों ने स्वयं को अवला और भोली क्यों कहा है?
(ग)गोपियों ने स्वयं को अवला और भोली क्यों कहा है?
उत्तर-‘अबला’ कहकर गोपियाँ
यह कहना चाहती हैं कि वे योग-साधना जैसे कठिन मार्ग पर नहीं चल पाएगी जबकि ‘भोली’ कहकर
यह जताना चाहती है कि उन्होने भूत-भविष्य देखकर किसी योजना के तहत कृष्ण-भक्त नहीं बनी हैं
बल्कि उन्होने तो बिना सोचे-समझे नि:स्वार्थ कृष्ण से
प्रेम करती हैं।
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नोट :- अगला पद क्रमश: ........ अगले पोस्ट में ))
ACHHA HAI SIR ..AUR DALIYEEE
ReplyDeletethankss........soon i will post more study material
DeleteBauhut achha b
Deletethanks a lot
ReplyDeleteaapki bahut bahut shukriiya... bahut kaam aaya...
ReplyDeletehow to go to next post
ReplyDeletepls anyone can tell me
click on hindi tab> select class 10> select the chapter you want to open
DeleteGood and excellent
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ReplyDeletethanks sir or mam .thanks a lot.
ReplyDeleteM
DeleteOsome txt
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ReplyDeleteThanks a lot
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ReplyDeletepls post answer of all qustion
ReplyDeletethanking you
pulkit
fucking answers no of all
ReplyDeletewow loved this site the explanation is precise and perfect thanku....
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ReplyDeleteThank u sir
ReplyDeletethanks sir this is very nice and its sandarbh and prasang was n ot here you will send in this post please sir because its arth is very nice thats his sandarbh and prasang was n ot their it was not good
ReplyDeleteyou will send sandarbh and prasang in this post
very nice
Very nice keep the next poem that is kanyadan plz
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबहुत ही मददगार हैं सर और अच्छा भी
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteThanku sir...the explanation is precise and perfect
ReplyDeleteVery nice madam second pad ki vyakhaya nhi mili
ReplyDeleteउदधो तुम हो अति बड़भागी यह पंक्तियां कौन किससे
ReplyDeleteकह रहा है
ऊधौ अँखियाँ अति अनुरागी । इकटक मग जोवति अरु रोवतिं, भूलेहूँ पलक न लागी । बिनु पावस पावस करि राखी, देखत हौ बिदमान। अब धौं कहा कियौ चाहत हौ, छाँड़ौ निरगुन ज्ञान । तुम हौ सखा श्याम सुंदर के, जानत सकल सुभाइ । जैसैं मिलैं सूर के स्वामी, सोई करहु उपाइ॥
ReplyDeleteMujhe iska vyakhya sahiye.....
Vyakhya chahiye
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